ग्रहों के
आधार पर धारण किए जाने वाले रत्नों का क्या प्रभाव होता है साधारणत: देखे जाने पर ग्रहों से निकलने वाले रंग के आधार पर उनके
रत्नों को नाम दिया गया है जैसे कि सूर्य से निकलने वाली किरणों को माणिक रत्न
के द्वारा उगते व ढलते हुये सूर्य में देखा जा सकता है इसी प्रकार सुनहरा लाल रंग मंगल ग्रह से निकालने वाली लाल किरणों
से संबंधित माना जाता है परंतु इन किरणों से संबन्धित विषयो पर भी कई प्रकार के भेद हैं
किसी भी वस्तु मे कोई
भी रंग हमें तब दिखाई देता है जब वह वस्तु उस रंग को छोड़कर अन्य सभी रंग वापस से परावर्तित
कर देती है जब सभी रंग परावर्तित होते
हैं तो हमें सिर्फ सफेद रंग नजर आता है उदाहरण के तौर पर बिना किसी रंग का हीरा कार्बन नामक
धातु का सबसे शुद्ध रूप माना जाता है हमारे पास नीले गुलाबी और पीले हीरे होते हैं
जिनको
उनके रंग के द्वारा पहचाना जा सकता है इसलिए यह जानना जरूरी है कि ग्रह और उससे संबंधित
रत्न किस प्रकार से काम करते हैं |
भौतिक विज्ञान के आधार पर यह माना जाता है कि सूर्य द्वारा आने
वाली रोशनी कई प्रकार के रंगों से मिलकर बनी होती है और उनकी अलग-अलग प्रकार की
तरंग धैर्य अथवा वेवलेंथ होती है कुछ को हम अपनी नंगी आंखों से देख सकते हैं और
कुछ को उनकी बहुत ही चोटी अथवा बहुत ही बड़ी वेवलेंथ के कारण देख पाना असंभव होता है | कुछ किरणे ऐसी भी होती हैं जो हमारी धरती को उसके वातावरण से बचा
कर रखती हैं | मानव द्वारा सेटेलाइट के माध्यम से खींची गई रंगीन तस्वीरें तो हमारी धरती को नीले
रंग का गोला बताती हैं हम यह भी जानते हैं कि कोई नीले रंग की किरण छोटी वेवलेंथ से बड़ी वेवलेंथ की और बढ़ती है
| इस सम्पूर्ण प्रक्रिया को रोशनी का विकिरण कहते हैं
जिसमे रोशनी करने वाली
सभी किरणे सफ़ेद रंग मे परावर्तित हो जाती हैं
जो
कि हम इंद्रधनुष के समय देख सकते हैं जिसमें 7 प्रकार के रंग जिसमें बैंगनी,इंडिगो,नीला,हरा,पीला,संतरी और लाल रंग होते है जो अपनी अपनी
वेवलेंथ के अनुसार देखे जाते है बैंगनी रंग की वेवलेंथ 3970 ऐंग्स्ट्रॉम होती है जबकि लाल रंग की वेवलेंथ
7630 एंग्स्ट्रम होती है इन दोनों
रंगों के बीच अन्य ग्रहों की वेवलेंथ होती है रंगों का परावर्तन उनकी वेवलेंथ के द्वारा देखा
जा सकता है आंखों से देखे जाने वाले रंगो मे बैंगनी रंग सबसे कम वेवलेंथ होने के कारण सबसे देर में
तथा लाल रंग सबसे ज्यादा वेवलेंथ होने के कारण सबसे पहले देखा जाता है इससे ऊपर व नीचे
की वेबलेंथ के रंग हम नंगी आंखों से नहीं देख सकते जिन्हें अल्ट्रा वॉयलेट या इंफ्रारेड
कैटेगरी में रखा जाता है ऐसी रोशनी जो दिखाई नहीं देती उसकी वेवलेंथ 5800 एंग्स्ट्रम से कम होती है जोकि पीले रंग से थोड़ा कम होती है,वह किरणें जो धरती पर शुक्र द्वारा आती है वह इसके लगभग समान होती हैं परंतु
ना दिखाई देने वाले रंग से थोड़ा कम होती हैं | इसी प्रकार चंद्र
के द्वारा आने वाली किरणें उसके सूर्य से स्थित दूरी के आधार पर होती हैं |
पूर्णमासी के
दिन चंद्र की किरणें दिखाई देने वाली किरणों से ज्यादा अच्छी होती हैं परंतु उसके बाद धीरे-धीरे कम
होती चली जाती हैं | यह माना जाता है कि जिन किरणों की वेवलेंथ कम होती है उनमें
ज्यादा ऊर्जा होती है बहुत ही कम वेवलेंथ वाली किरणे ज़्यादा ऊर्जा वाली होती हैं ऐसा एक्स-रे किरणों मे देखा जा
सकता हैं जिनमें बहुत ज्यादा ऊर्जा होती है धरती पर पाये जाने वाले जीवित प्राणियों के लिए नुकसानदायक
होती हैं |
रंगों के आधार
पर पड़ने वाली वेवलेंथ धरती पर विभिन्न प्रकार के ग्रहों के द्वारा आती है और उन्हें
रत्नो के माध्यम से
परावर्तित किया जाता है जिससे रत्न और ग्रहों का एक चक्र बन जाता है साधारण सारणी में
इसे बताया गया हैं
|
4000 से 5000
ऐंग्स्ट्रॉम वाली वेबलेंथ बैंगनी अथवा नीले रंग की होती है जो नीलम नामक रत्न तथा शनि ग्रह से संबंधित
होती है |
5000 से 5500
एग्स्ट्रम वाली किरणें जो नीले रंग की हरियाली
लिए होती है पन्ना नामक रत्न तथा बुध ग्रह से संबंधित होती हैं | यदि साधारण हरा हो तो यह रंग लहसुनिया का होता है जिसका प्रतीक केतू ग्रह होता है |
5500 से 6000 एग्स्ट्रम वाली किरणों का रंग समुद्री हरा होता है जो एक्वामरीन नामक रत्न तथा बुध ग्रह से संबंधित
होती हैं कभी-कभी यह हल्के पीले अथवा बिना किसी रंग की भी होती हैं जिसके लिए पीला सुनहेला गुरु ग्रह के लिए,हीरा शुक्र ग्रह के लिए,तुरमली व सफेद मोती चंद्र से संबंधित है वह भी आते हैं |
6000 से 7000
ऐंग्स्ट्रॉम वाले रंग जो कि भूरा पीलापन लिए गए होते हैं उसके लिए जरकन रत्न तथा गुरु ग्रह
से संबंधित होते हैं लाल संतरी अथवा सुनहरी लाल मूंगा धातु से संबंधित होते हैं जो
मंगल ग्रह से संबंधित हैं |
7000 से 7500 एग्स्ट्रम वाले क्रीम रंग के गाढ़े लाल माणिक रत्न तथा सूर्य से संबंधित होते हैं |
भारतीय शास्त्र
ज्योतिष के अनुसार कुछ ग्रहों को शुभ अथवा कुछ को अशुभ मानते हैं सूर्य,मंगल,शनि पाप प्रभावित बुध तथा घटता हुआ चंद्र अशुभ ग्रह तथा गुरु,शुक्र,बुध तथा चढ़ता हुआ चंद्र शुभ ग्रह माना गया है बुध ग्रह सहचार्य के अनुसार शुभ
अथवा अशुभ फल देता है इसी प्रकार से चंद्र को घटते और बढ़ते क्रम के अनुसार शुभ और अशुभ माना गया
है राहु केतु को अशुभ माना जाता है यहां शुभ और अशुभ के मायने थोड़े अलग से हैं जो
ग्रह किसी एक खास अवस्था में शुभ होगा वह दूसरी खास अवस्था में अशुभ भी हो सकता है
|
जीवन एक महत्वपूर्ण
उपहार है जो प्रकृति हमें धरती पर देती है इसकी किसी भी प्रकार से हानि होना धरती के उपहार को नकारा
जाना है यदि हम समझ लेंगे तो शुभ और अशुभ से ऊपर हो जाएंगे जिससे जीवन आसान हो जाएगा
यदि हम अशुभ मानेंगे तो धरती पर जीवन जीना मुश्किल होगा इसलिए धरती पर पड़ने
वाली किरणों में सबसे कम (5800 एंग्स्टोर्म ) वेवलेंथ वाली किरणें जीवन
को चलाने में सहायक होती हैं | पीली किरण जो कि गुरु ग्रह
से संबंधित होती हैं उनकी वेवलेंथ (5890 एंग्स्टोर्म ) सबसे कम तथा दिखाए
जाने वाले रंगों से थोड़ा अधिक होती है इसी प्रकार शुक्र की किरणें दिखाई जाने वाली
किरणों से थोड़ी कम होती
है | इससे समझा जा सकता है कि गुरु और शुक्र को सबसे ज्यादा
शुभ ग्रहों में क्यों रखा गया है बुध ग्रह की हरी किरणें 5270 ऐंग्स्ट्रॉम वेवलेंथ
देती है जिसे शुक्र के बाद शुभ ग्रह माना गया है |
घटते
हुए चंद्रमा की किरणें दिखाई जाने वाली किरणों से थोड़ी सी अधिक होती है खासतौर से जब पूर्ण चंद्र होता है तब,इसलिए उसे भी शुभ माना गया है |
किरणों की
वेवलेंथ जो मंगल और शनि द्वारा भेजी जाती है जोकि उगते और छुपते सूर्य
के साथ आती है दिखाई जाने वाली वेवलेंथ से
कहीं ज्यादा होती है इसी कारण इन तीन ग्रहों की ऊर्जा को अशुभता में रखा गया है इसी कारण जिस बालक
का जन्म संधि के समय होता है अर्थात दिन और रात जब समाप्ति या उदय की ओर हो तब होता
है उसे शुभ नहीं माना जाता इसी कारण घटता चंद्र भी अशुभ माना गया है |
चंद्रग्रहण धरती
पर पूर्णमासी के दिन लगता है जब धरती चन्द्र पर सूर्य से आने वाली किरणों को रोक लेती है जिससे धरती पर पड़ने
वाली चंद्र की किरणें जो शुभ होती हैं जब उन में रुकावट आ जाती है तो उसे बुरा माना जाता है इसी प्रकार
सूर्य ग्रहण में चंद्र धरती और सूर्य के बीच में आकर सूर्य की किरणों को धरती पर आने से
रोक लेता है इसी कारण सूर्य ग्रहण को भी अशुभ माना जाता है |
ग्रहों से निकलने
वाली ऊर्जा के कारण ही ग्रहों में संबंध होता है इस प्रकार सूर्य चंद्र गुरु व मंगल
ग्रहों का एक परिवार बनाते हैं जिनकी वेवलेंथ धरती पर दिखाई जाए जाने वाली किरणों से
अधिक होती है तथा शुक्र बुध और शनि की वेवलेंथ धरती पर दिखने वाली वेवलेंथ से कम होती है वो अपना एक अलग ही परिवार बनाते
हैं,जो ग्रह एक ही परिवार के होते हैं एक दूसरे के मित्र
तथा अन्य के शत्रु
होते हैं इन्हीं आधार पर ग्रह मैत्री अथवा ग्रह शत्रुता भी रखी गई है | सत्याचार्य और वराहमिहिर इससे अपना अलग मत रखते हैं जबकि ताजिक ग्रंथों में केशव इन को मान्यता
देते हैं |
ज्योतिष में प्रत्येक
भाव और प्रत्येक राशि से संबंधित कोई ना कोई जीव माना गया है जैसे कि लग्न शरीर,दूसरा भाव परिवार,आंख,तीसरा भाव पड़ोस छोटे भाई-बहन का रखा गया है | यह कहा जाता हैं की
गुरु जो कि शुभ ग्रह होता है जिस भाव बैठता है उसकी हानि
करता है परंतु शनि जिस भाव में बैठता है उस को बढ़ाता है भले ही उसे
प्राकृतिक रूप से अशुभ माना जाता है,यहां यह भी देखें
कि अच्छा और बुरा करने की स्थिति में यह ग्रह स्वयं होते हैं परंतु हम इस नियम को भूल नहीं सकते यह
नियम रत्न धारण कराते वक्त ध्यान
रखा जाना चाहिए | हम ग्रहों से निकलने वाली ऊर्जा के आधार पर ही नियमों
को बता पाने में सक्षम होते हैं |
हमने देखा की
पीले रंग की वेवलेंथ जो कि बृहस्पति ग्रह से भेजी जाती है उस वेवलेंथ अथवा रोशनी से थोड़ा सा ज्यादा
है जो हमें रंगों को दिखाती है गुरु जिस घर में बैठते हैं उस घर के शुभ प्रभाव को कम
कर देते हैं जिस भाव पर उनकी रोशनी पड़ती है जो कि पंचम सप्तम नवम होता है उस पर अपनी
सुविधा देते हैं इस कारण गुरु जहां बैठता है वहा खराब और जहां देख रहा होता है वहां
शुभ माना जाता है जबकि इसका ठीक विपरीत प्रभाव शनि के लिए कहा गया है | ऐसा हम तुला लग्न के लिए सही प्रकार से देख सकते हैं जिसमें गुरु ग्रह को अशुभ माना
जाता है क्योंकि वह तीसरे और छठे भाव का स्वामी बनता है जब वह सातवें भाव में होता
है तो उस भाव का नाश कर देता है ऐसे में यदि सुनहेला पहनाया जाए तो जातक के जीवन साथी को कोई ना कोई परेशानी
अथवा हानि हो सकती है सुनहेला यहा पहनना ग़लत हुआ ऐसे ही यदि देखा जाए शनि
अगर मेष में हो और वह सप्तम भाव में हो तो वह चौथे और पांचवें का मालिक होकर
योगकारक बनेगा ऐसा शनि जातक के जीवन साथी को बचाने का कार्य करेगा क्योंकि वह नीच अवस्था
में है ऐसे में जातक निम्न जीवनसाथी से संबंध रखने का प्रयास करेगा यहां शनि को दिशा
बल प्राप्त होता है अब यदि सप्तम भाव
कमजोर पाया गया तो
नीलम पहनाया जा सकता है इस नियम के आधार
पर ही सब ग्रहों के रत्न को धारण कराया जाना चाहिए |
तंत्र की भूमिका को
भी ज्योतिष में नकारा नहीं जा सकता जो कि नकली ऊर्जा को सिद्धांत पर काम करती है
यह माना जाता है कि ऊर्जा कभी नष्ट नहीं होती बल्कि परावर्तित की जा सकती है अच्छे ग्रह की ऊर्जा को बुरे
में और बुरे ग्रह की ऊर्जा को अच्छे में बदला जा सकता है परंतु नष्ट नहीं किया जा सकता
तंत्र
इसी सिद्दांत पर काम करते हैं
परंतु
इसके नियम कठिन होने के कारण हर कोई यह बात नहीं समझ सकता |
हमने देखा की ऊंची फ्रीक्वेंसी व छोटी वेवलेंथ वाली किरणें अल्ट्रावायलेट किरणे होती हैं जो धरती पर शुभ
नहीं मानी जाती | हमारी धरती आसमान से देखने पर नीले रंग
की नजर आती है जो छोटी वेवलेंथ की ऊंची ऊर्जा को सोख नहीं पाती हैं | वह किरणें जो शनि ग्रह द्वारा भेजी जाती
हैं धरती पर देखी जाने पर सबसे कम वेवलेंथ की किरण नीली अथवा बैंगनी रूप में दिखाई
देती है जो यह स्पष्ट बताता है कि शनि ऊंच वेवलेंथ की किरणों को नहीं सोखता है इस आधार पर
यह कहा जा सकता है कि शनि में भी जीवन हो सकता है |
हमारा यह तथ्य
गुरु,मंगल,बुध और चंद्र
पर जीवन का ना होना बताता है क्योंकि यह ग्रह ऊंच वेवलेंथ के विकिरणों को सोखते हैं शुक्र ग्रह
में कार्बन डाइऑक्साइड और कार्बन मोनोऑक्साइड के साथ-साथ पानी व भाप की मात्रा
भी है जो रेडिएशन में भी दिखती है वहां पर भी जीवन होने की संभावना अल्ट्रावायलेट रेंज होने
के कारण हो सकती है देखते हैं कि भविष्य में विज्ञान इस विषय में क्या कहता है |
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