हमारे प्राचीन विद्वानो
ने प्रत्येक प्राणी को जीवन मे कुछ दान–पुण्य करने को कहा हैं जिससे
जग कल्याण,समाज सेवा के साथ साथ धर्म की रक्षा
भी होती रहे | आइए जानते हैं की किस
व्यक्ति को कितना दान करना चाहिए |
पौराणिक ग्रंथो मे यू
तो दान करने के बहुत से तरीके व विधान बताए गए हैं जो की विभिन्न अवसरो जैसे व्रत,उध्यापन,जन्मदिन,विवाह,नवरात्र,त्योहार तथा अंतिम संस्कार के समय
किए जाने चाहिए परंतु “शिव महापुराण” मे इस दान कर्म को करने का
तरीका बहुत ही बढ़िया तरीके से बताया गया हैं जो आज इस कलयुग के संदर्भ मे बहुत सही प्रतीत होता
हैं |
सर्वप्रथम जो व्यक्ति खेती करते हैं उनके लिए कहा गया हैं की वह अपने
लाभ का 10% दान करे जिससे उन्हे दान करने के पुण्य की प्राप्ति होती रहे |
स्वयं का व्यापार अथवा किसी की नौकरी करने
वालों को अपनी आय का 17% दान करने को कहा गया हैं
जिससे समाज सेवा होती रहे |
मंदिर के पुजारियों को जो दान
मिलता हैं (जो की उन्होने स्वयं अर्जित ना किया हो) उसका उन्हे 25% का दान करना चाहिए जिससे उन्हे ज्ञान व ईश्वर की प्राप्ति मे सहायता मिलती रहे |
इसी प्रकार यदि किसी को
अचानक धन की प्राप्ति हुई हो अथवा किसी को किसी भी प्रकार का
धन बिना प्रयास किए मिला हो तो उसे उस कुल प्राप्त धन का
50% दान करना चाहिए जिससे उसे उसकी हानी का भागी
ना बनना पड़े जिसका वास्तव मे वो धन था |
यहाँ ध्यान रखे की किसी भी प्रकार का दान किसी योग्य व सुपात्र व्यक्ति को दिये जाने के लिए कहा
अथवा बताया गया हैं मंदिर मे अथवा पुजारियों,पंडितो को नहीं | कुछ धर्म के ठेकेदार व्यक्ति विशेष को डरा धमकाकर जो दान करते करवाते हैं उस दान का
फल ना तो दान करने वाले को मिलता हैं और ना दान लेने वाले को ही
उसका कोई उचित लाभ मिल पाता हैं | अत: दान करने से पहले भली भांति जान ले
की किसको व कितना दान करना हैं |
जिन व्यक्तियों की जन्म पत्रिका के दूसरे भाव
मे राहू हो उन्हे मंदिर अथवा धर्मस्थान मे कभी भी दान नहीं करना चाहिए इससे
उन्हे हानी मिलती हैं |
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