बाल्मीकी रामायण मे “श्री राम” के जन्म के विषय मे
बालकांड के 18वे सर्ग व श्लोक 7 से 10 मे कहा गया हैं |
“तथाश्च द्वादशे मासे
चैत्र नवमी के तिथों नक्षत्रे धिति दैवतये स्वोच्च
समस्थेसु पंचासु ग्रहेसु कर्कटे लग्ने वाक्पथा विंदुना सह: प्रोध्यामने जगन्नाथम सर्वलोका
नमस्कुरुतम कौशल्या जनाएद्रमम सर्वलक्षणा संयुतम”
जो चैत्र मास की नवमी
तिथि के दिन पुनर्वसु नक्षत्र व कर्क लग्न होने की पुष्टि करता हैं परंतु वार के
विषय मे कुछ नहीं बताता इसमे यह भी कहा गया हैं
की श्री राम के जन्म के समय 5 ग्रह अपनी ऊंच अवस्था मे थे
|
विचित्र रामायण मे
लिखा हैं की “नरनाथग्रणी
चैत्रशुक्ल नवमी सप्तसवूदून (सूर्य),कव्युदून (शुक्र),धर्नाणीनदनुदून (मंगल),सुपरवागुडु (गुरु) ऊंचास्थलई”अर्थात राम जन्म के
समय सूर्य,शुक्र,मंगल व गुरु ग्रह ऊंच के थे |
प्राचीन ग्रंथ “लघु जातक” के अनुसार जो कुंडली
दी गयी हैं उसमे भी 5 ग्रह सूर्य,शुक्र,गुरु,मंगल व शनि ऊंच के बताए
गए हैं परंतु उसमे भी वार नहीं लिखा हैं |
एक अन्य ग्रंथ “होरानुभव दर्पण” जिसमे श्री राम के
अतिरिक्त श्री कृष्ण,अर्जुन,टीपू सुल्तान आदि की
पत्रिकाए भी दी गयी हैं उसमे श्री राम के जन्म के समय 3 ग्रह गुरु,शनि व मंगल ऊंच के बताए गए हैं
तथा जन्म शनिवार का बताया गया हैं |
“सृष्टियादी महायुगम वैवस्वत मन्वंतरम त्रेता द्वापर संधि पश्चगतम सृष्टियादी
समहरगनम शनिवारम मध्याहम स्वभानु वर्ष चैत्र शुक्ल
नवमी पुनर्वसु नक्षत्र कर्क लग्न”
तेलुगू कवि “भास्कर” ने 14 शताब्दी मे “भास्कर रामायण” मे तथा एक अन्य तेलुगु कवि “बुद्दा रेड्डी” ने 13 शताब्दी मे “द्विपद रामायण” मे श्री राम का जन्म का वार बुधवार को बताया हैं
वही भरत का जन्म गुरुवार को तथा लक्ष्मण व
शत्रुघ्न का जन्म शुक्रवार को बताया गया हैं |
लघुजातक व होरानुभाव
दर्पण मे दी गयी कुंडलियों मे जहां 5 व 3 ग्रह ऊंच के बताए गए वही एक अन्य कुंडली जो विभिन्न
पत्रिका मे छपती रही हैं उसमे 4 ग्रह गुरु,शुक्र,मंगल व शनि ऊंच के बताए गए हैं सूर्य को यहाँ मीन राशि मे दिखाया गया हैं |
इस प्रकार देखे तो
प्रस्तुत सभी तीनों कुंडलियों मे दोष नज़र आता हैं जिससे ज्योतिष के प्रति संशय
उत्पन्न होता हैं |
वर्तमान समय के ज्योतिष के
महा विद्वान व ज्योतिष पुरोधा “श्री के॰ एन॰ राव” के अनुसार श्री राम के जन्म के समय मे थोड़ा सा विरोधाभास हैं
उनके अनुसार राम जन्म यदि नवमी के दिन हुआ हैं तो चन्द्र से सूर्य 96 से 108 अंश
की दूरी मे होगा जो मीन राशि मे पड़ेगा ना की मेष राशि मे और जिससे राम जन्म के
समय चार ग्रह ऊंच के होंगे पाँच नहीं | वास्तव मे देखने पर भी चार ग्रह ऊंच तथा एक ग्रह स्वग्रही ज़्यादा सही प्रतीत
होता हैं | वही यदि कर्क लग्न
मे चन्द्र पुनर्वसु नक्षत्र का होगा तो वह 3*20 अंशो का होगा अष्टमी तिथि जो 9 से
108 अंशो के मध्य होती हैं ज्ञात करने पर सूर्य से चन्द्र 93*20 अंश तक जाती हैं
जिससे 3*से 2*40 अंश तक बाकी बच जाते हैं जिससे सूर्य मीन मे आ जाएगा मेष मे नहीं मेष
मे होने से तिथि अष्टमी बन जाएगी नवमी नहीं |
वही यदि सूर्य को मीन
मे रखने पर गुरु की दृस्टी उस पर आ जाती हैं जो श्री राम के राजा
बनने की स्थिति स्पष्ट कर देती हैं वही शुक्र का चतुर्थेश होकर सूर्य संग नवम
भाव मे ऊंच के नवमेश से दृस्ट होना उनके पिता को भी राजा होना अथवा पिता का राज
भवन होना दर्शाता हैं | यदि सूर्य को दशम भाव मे ऊंच का माने
तो यह द्वितीयेश होकर स्थित होगा जिससे मंगल की दृस्टी इस सूर्य पर तथा दूसरे भाव पर भी होगी जो श्री राम को हिंसात्मक रूप से मृत्यु प्रदान करेगी
जबकि हम सब भली भांति जानते हैं की श्री राम ने जल समाधि ली थी जिसके कई कारण हो
सकते हैं जिनमे से एक कारण कुंडली मे जलीय राशियो पर पाप ग्रहो का प्रभाव भी रहा
होगा |
ज्योतिष पुरोधा “श्री राव” के अनुसार उनको यह श्री राम की पत्रिका उनके गुरु “श्री योगी भास्करानंद
जी” ने उन्हे दिखाई थी (
जिसका उल्लेख श्री राव ने सप्तऋषि पब्लिकेशन वालो से अपने एक साक्षात्कार मे भी
किया हैं जो उन्होने 9 जून 2015 को दिया था ) जिसके अनुसार श्री राम जी की पत्रिका
मे कर्क लग्न मे ऊंच गुरु संग स्वग्रही चन्द्र हैं,चतुर्थ भाव मे ऊंच शनि,छठे भाव मे राहू,सप्तम मे ऊंच मंगल,नवम
भाव मे ऊंच सूर्य संग शुक्र,दशम मे बुध तथा द्वादश भाव मे
केतू हैं | इस प्रकार इस पत्रिका मे 4 ग्रह ऊंच तथा एक
ग्रह स्वग्रही होता हैं | कुछ विद्वान बुध को नवम
भाव मे सूर्य संग मानते हैं ऐसा होने पर श्री राम चन्द्र के भाइयो का उत्थान होना
संभव नहीं दिखता क्यूंकी बुध तृतीयेश व द्वादशेश हैं
वही बुध ऐसे मे नीच का भी हो जाएगा जो की भगवान की कुंडली होने के कारण संभव ही
नहीं हैं | श्री राम अपनी पत्नी सीता सहित वन मे गए थे ऐसे मे
यदि बुध को दशम भाव मे रखा जाए तो यह स्पष्ट रूप से दिखाई देता हैं दशम से बुध की
दृस्टी चतुर्थ भाव पर आती हैं जहां सप्तमेश शनि स्थित हैं जो पत्नी के घर से दुर वन अथवा विदेश जाने का
संकेत देती हैं तथा द्वादशेश बुध की सप्तमेश पर दृस्टी पत्नी के अपहरण को भी बताती
हैं वही तीसरे भाव के स्वामी का दशम मे होना श्री राम के बाद जन्मे भाइयो का
जीवन मे ऊंचा उठना भी बताते हैं और सच मे ऐसा ही
हुआ भी था |
पंचमेश का ऊंच का होकर नवमेश को देखना
पूर्व पुण्य द्वारा ऊंच आध्यात्मिकता बताता हैं वही ग्रह के रूप मे गुरु व मंगल का ऊंच
का होकर एक दूसरे को देखना ऊंच दर्जे की नैतिकता बताता हैं | पंचमेष मंगल का ऊंच का होकर स्वग्रही लग्नेश तथा षष्ठेश गुरु को दृस्टी देना उनके
बच्चो का उनसे युद्ध होना तथा उन्हे युद्ध मे हराया जाना सिद्द कर
देता हैं सभी जानते हैं की लव कुश ने श्री राम को युद्ध मे हरा दिया था |
सूर्य व नवमेश गुरु
का मंगल व शनि से देखा जाना पिता की आयु हेतु शुभ नहीं दिखता तथा चन्द्र शनि व
मंगल संबंध सन्यास हेतु उत्तम होता हैं जो यहा स्पष्ट हैं | राहू का धनु राशि मे होना जो जैमिनी
ज्योतिष के अनुसार कोदंड राशि हैं राम के पास धनुष बाण होना स्पष्ट करती हैं | केतू का द्वादश होना शास्त्र अनुसार आध्यात्मिकता
हेतु बहुत ही शुभ होता हैं वही मरणोपरांत जातक की चीर प्रसिद्दि भी बताता हैं |
इन सब कारणो से देखे
तो श्री राम जी की पत्रिका मे 4 ग्रह ऊंच व एक ग्रह चन्द्र
का स्वग्रही होना ज़्यादा सही प्रतीत होता हैं वही श्री राव द्वारा किया गया
उनका फलित बहुत सही व सटीक दिखता हैं |
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