शुक्रवार, 23 जुलाई 2010

कैरियर का चुनाव(4)

जैमिनी ज्योतिष पद्धति :

जैमिनी पद्धति के अनुसार व्यवसाय चयन हेतु कारकांश महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। (कारकांश आत्म कारक का नवमांश है) यदि कारकांश या उससे दसवां किसी ग्रह से युक्त न हो तो कारकांश से दशमेश की नवमांश में स्थिति से व्यवसाय ज्ञात किया जाता है।

1) कारकांश में सूर्य राजकीय सेवा देता है और राजनैतिक नेतृत्व देता है।
2) पूर्ण चंद्र व शुक्र कारकांश में लेखक व उपदेशक बनाता है।
3) कारकांश में बुध व्यापारी तथा कलाकार का योग प्रदान करता है।
4) बृहस्पति कारकांश में जातक को धार्मिक विषयों का गूढ़ विद्वान व दार्शनिक बनाता है।
5) कारकांश में शुक्र जातक को सरकारी अधिकारी शासक व लेखक बनाता है।
6) कारकांश में शनि जातक को विख्यात व्यापारी बनाता है।
7) कारकांश यदि राहु हो तो मशीन निर्माण कार्य, ठगी का कार्य करने वाला जातक को बना देता है।
8) कारकांश का केतु से संबंध हो तो जातक नीच कर्म तथा धोखाधड़ी से आजीविका कमाता है।
9) कारकांश यदि गुलिक की राशि हो और चंद्र से दृष्ट हो तो व्यक्ति अपने त्यागपूर्ण व्यवहार से और धार्मिक कार्यों से जीविका अर्जित करेगा।
10) कारकांश में यदि केतु हो और शुक्र से दृष्ट हो तो धार्मिक कार्यों से आजीविका अर्जित करेगा।
11) कारकांश यदि सूर्य व शुक्र द्वारा दृष्ट हो तो जातक राजा का कर्मचारी बनता है।
12) कारकांश से तीसरे और छठे में क्रूर ग्रह हों तो जातक खेती व बागवानी का कार्य करता है।
13) कारकांश में चंद्र हो और शुक्र से दृष्ट हो तो वह रसायन विज्ञान द्वारा आजीविका अर्जित करता है।
14) कारकांश में चंद्र यदि बुध द्वारा दृष्ट हो तो जातक डॉक्टर होता है।
15) कारकांश में शनि हो या उससे चौथे में हो तो जातक अस्त्र-शस्त्र विद्या में निपुण होता है।
16) कारकांश से चौथे में सूर्य या मंगल शस्त्रों से जीविका प्रदान करता है।
17) कारकांश से पांचवें या लग्न में चंद्र व गुरु जातक को लेखनी द्वारा जीविका अर्जन प्रदान करते हैं।
18) कारकांश में पांचवें व सातवें में गुरु हो तो व्यक्ति सरकारी उच्च अधिकारी होता है।
19) कारकांश में यदि शनि हो तो जातक पैतृक व्यवसाय करता है।
20) कारकांश लग्न या उससे पंचम स्थान में अकेला केतु हो तो मनुष्य ज्योतिषी गणितज्ञ, कंप्यूटर विशेषज्ञ होता है।
21) कारकांश लग्न से पंचम में राहु हो तो जातक एक अच्छा मैकेनिक होता है।
22)यदि नवांश में राहु आत्मकारक के साथ हो तो जातक चोरी, डकैती से आजीविका चलाता है।
23) कारकांश लग्न से शनि चतुर्थ या पंचम हो तो जातक निशानेबाज होता है और यही आजीविका का साधन भी हो सकता है।
24) कारकांश से पंचम में शुक्र हो तो जातक को कविता करने का शौक होता है।
25) कारकांश से पंचम में यदि गुरु हो तो जातक वेदों और उपनिषेदों का जानकार और विद्वान होता है तथा यही जातक की आजीविका का साधन भी होता है।
26) कारकांश से पंचम में यदि सूर्य हो तो जातक दार्शनिक तथा संगीतज्ञ होता है।

जन्मकुंडली में नौकरी का योग

 जातक की कुंडली में निम्नानुसार योग होने की स्थिति में वह नौकरी करेगा-

1) यदि षष्ठम भाव, सप्तम भाव से ज्यादा बली हो।
2) लग्न, सप्तम भाव, चंद्र लग्न एवं धन के कारक गुरु का शुभ ग्रह बुध एवं शुक्र से संबंध।
3) लग्न, लग्नेश, नवम भाव, नवमेश, दशम भाव एवं दशमेश, एकादश भाव या एकादशेश किसी भी जल तत्व ग्रह से प्रभावित न हो।
4) केंद्र या त्रिकोण में कोई भी शुभ ग्रह न हो।
5) यदि जातक की आयु २० से ४० वर्ष के दौरान निर्बल योगकारक ग्रह तृतीयेश, षष्ठेश या एकादशेश की दशा से प्रभावित हो।

जन्मकुंडली में व्यवसाय का योग :

जातक की कुंडली में निम्नानुसार योग होने की स्थिति में वह व्यवसायी होगा-

1) यदि सप्तम भाव षष्ठ भाव से ज्यादा बली हो।
2) नवम और दशम तथा द्वितीय और एकादश भावों के बीच आपसी संबंध हो।
3) यदि जातक का जन्म दिन में हो तो चंद्र लग्न या दशम भाव पर योगकारी ग्रह या उच्च या स्वराशिस्थ शनि की दृष्टि हो या उससे संबंध हो।
4) जन्मकुंडली में अधिकांश ग्रह अग्नि या वायु तत्व राशियों में विद्यमान हों तो जातक के व्यवसायी होने की संभावना अत्यधिक बली हो जाती है।

जन्म कुंडली में व्यवसाय के स्तर का योग :
वर्तमान समय में व्यवसाय या व्यापार का वैश्वीकरण हो जाने के कारण देश के स्थान पर दिशा पर ज्यादा महत्व दिया जाना चाहिए। नवांशेश यदि बली हो तो रोजगार का स्तर काफी अच्छा होता है और जातक को रोजगार में मान सम्मान प्राप्त होता है और यदि नवांशेश निर्बल हो तो रोजगार से मामूली आय होती है। अतः राशि बली होने से आमदनी का स्तर एवं रोजगार का स्तर सही ढंग से जाना जा सकता है।

बुधवार, 21 जुलाई 2010

कैरियर का चुनाव(3)

डॉक्टर चिकित्सक बनने के योग : 

कुंडली में यदि - दशम भाव /दशमेश पर अष्टमेश की दृष्टि/ युति प्रभाव और सूर्य शनि का दृष्टि व युति संबंध हो।

एकादश भाव/ एकादशेश पर सूर्य, शनि व अष्टमेश का प्रभाव हो।

लग्न में अष्टमेश,सूर्य व शनि की युति हो।

षष्ठेश का दशम, एकादश भाव या इनके भावेश को प्रभावित करना भी डॉक्टरी योग बनाता है।

दशम भाव में मंगल शनि की युति सर्जन बनाती है।

षष्ठेश का संबंध लग्न व दशम भाव से होना भी डॉक्टरी योग बनाता है।

मंगल, शुक्र व शनि की राशियों में चंद्र-शनि, मंगल-शनि, बुध-शनि इन दो ग्रहों की युति या सूर्य चंद्र के साथ अलग-अलग तीन ग्रहों की युति जातक को चिकित्सक बनाती है।

इंजीनियर बनने के योग :

कुंडली में मंगल व शनि का बलवान व शुभ होना इंजीनियर बनने हेतु अति आवश्यक है। क्योंकि शनि लोहे व तकनीकी का कारक है तथा मंगल ऊर्जा, विद्युत आदि का कारक है।

मंगल व शनि की राशियों का लग्न होना तथा इन दोनों ग्रहों का शुभ स्थिति में होना।

यदि मंगल व शनि पंचम भाव में होकर कर्मभाव/कर्मेश से संबंध स्थापित करें।

दशम भाव/ दशमेश पर मंगल से दृष्टि संबंध तथा सप्तम सप्तमेश से संबंध होना।

ज्योतिष में शनि, मंगल, राहु व केतु को तकनीकी व खोजीग्रह माना गया है। यदि इनमें से किसी का संबंध दशम भाव/दशमेश से हो जाए तो जातक इंजीनियर बन सकता है।

बलवान शुक्र बुध से युति कर दशम भाव/दशमेश को प्रभावित करें।

कुंडली में राहु का पंचम भाव/ पंचमेश से दृष्टि युति संबंध भी जातक को इंजीनियरिंग हेतु प्रेरित करता है।

वकालत के योग :

कानून की शिक्षा हेतु गुरु, शनि, शुक्र व बुध ग्रह अत्यधिक प्रभावी होना आवश्यक होता है। जहां गुरु व शुक्र कानून शास्त्र से संबंधित है। बुध व शनि वाणी व बहस करने हेतु जरूरी हैं। इनके बिना वकालत नहीं की जा सकती।

यदि दशम भाव में शनि उच्च का हो, दशम भाव पर दृष्टि डाले तो वकालत का योग बनता है।

गुरु उच्च/स्वक्षेत्री होकर दशम भाव/दशमेश से दृष्टि युति संबंध बनाए।

नवमेश दशमेश का परस्पर संबंध हो।

कुंडली में बुध, गुरु, शनि का उच्च व बली होना। दशमेश का नवम/षष्ठ भाव से संबंध होना।

तुला राशि का संबंध दशम भाव/लग्न से होना (तुला राशि को न्याय का प्रतीक माना जाता है।)

गुरु का बली होना तथा धनु/मीन राशि का शुभ ग्रहों से दृष्ट होना।

दशम भाव पर मंगल, गुरु व केतु का प्रभाव होना भी वकालत की और प्रेरित करता है।

तुला, धनु व मीन राशियों का लग्न या दशम भाव से संबंध भी जातक को वकालत की ओर प्रेरित करता है।

अध्यापक बनने के योग :

कुंडली में गुरु व बुध का शुभ, उच्च व बली होना।

लग्नेश की पंचमेश से युति होना।

दशम भाव में उच्च का गुरु होना।

तीसरे/दसवें भाव में गुरु का होना। बुधादित्य योग होना

सप्तमेश केंद्र में बैठकर दशमेश से दृष्ट हो तथा इन दोनों में से किसी भाव में गुरु हो। गुरु सूर्य का उच्च होना, युतिगत होना तथा एक दूसरे से सप्तम होना।

अभिनय कला के योग :

पंचम में शुक्र हो पंचमेश शुक्र से संबंधित हो।

पंचम शुक्र, ग्यारहवें राहु तथा लग्नेश पंचम में हो।

पंचम शुक्र, भाग्येश भाग्य स्थान में लग्नेश धनेश का योग हो।

लग्नेश लग्न में शुक्र मंगल व्यय भाव में हो।

मंगल, शुक्र, बुध का किसी प्रकार का संयोग हो। राहु चंद्र संग, शुक्र लग्नेश संग हो।
व्यय भाव में शुक्र चंद्र बुध से युत व दृष्ट हो।

छठे भाव में सूर्य, शुक्र, राहु हो तथा पंचम भाव का किसी भी प्रकार से इन ग्रहों का संबंध हो।

कैरियर का चुनाव(2)

शिक्षा का निर्णय :

विद्या का निर्णय साधारणतः चौथे घर, उसके स्वामी और विद्या कारक बृहस्पति से होता है। पांचवा घर बुद्धिमत्ता का प्रतीक है। चौथे में अशुभ ग्रह शिक्षा में रुकावट उत्पन्न करते हैं। शुभ स्थिति में बृहस्पति तथा बुध मनुष्यों तथा पदार्थों का अच्छा ज्ञान प्रदान करते हैं। बृहस्पति चौथे या दशम में उच्च कानूनी शिक्षा का द्योतक है। यदि दूसरे घर का स्वामी सुस्थित हो, तो व्यक्ति वक्ता या प्राध्यापक बनता है। केंद्र में बुध या दूसरे में शुक्र होने पर ज्योतिष शास्त्र का ज्ञान होता है।
दूसरे में मंगल तथा केंद्र में बुध मनुष्य को गणितज्ञ या प्राविधिक योग्यता प्रदान करता है। सूर्य या मंगल दूसरे के स्वामी के नाते शुक्र या बृहस्पति के साथ तर्क शक्ति और मन संबंधी शास्त्रों का ज्ञान प्रदान करते हैं। बृहस्पति तथा शुक्र जब केंद्रों में हों, बुध द्वारा दृष्ट हों तो दार्शनिक अभिरुचि का निर्देशन करते हैं।

केंद्रों में शुक्र और बृहस्पति होने से उर्वर प्रतिभा का ज्ञान होता है। चतुर्थ के स्वामी और बृहस्पति तीसरे, छठे तथा ११वें के स्वामी ग्रहों के प्रभाव से मुक्त होने चाहिए। फिर शिक्षा-क्रम नहीं टूटता।

सफलता प्राप्ति के प्रमुख योग :

यदि दूसरे का स्वामी ९वें में हो तो पैतृक संपत्ति प्राप्त होती है। शुभ ग्रहों से वसीयत का, लाभप्रद ग्रहों से, विशेषकर ७वें शुक्र से विवाह द्वारा धनलाभ का ज्ञान प्राप्त होता है। अपनी जन्मपत्री से समानता रखने वाले लोगों के साथ संबंध होने से लोग पद तथा समृद्धि संपन्नता में और आगे बढ़ जाते हैं।

कामर्स की शिक्षा और व्यवसाय :

इस विषय की जानकारी केवल बुध के चतुर्थ और पंचम भाव से संबंधित भाव से नहीं होती बल्कि अन्य ग्रहों का सहयोग भी आवश्यक है। कामर्स पढ़ने वालों की कुंडली में मंगल ग्रह का भी सहयोग है। मंगल का चतुर्थ, पंचम भाव से संबंध है। मंगल आंकड़ों का आकलन विषय का सूक्ष्म अध्ययन सिखाता है। बृहस्पति धन का कारक है, यह संपूर्ण विषय धन की गणना से संबंधित है, इसलिए बृहस्पति का भी सहयोग चतुर्थ, पंचम भाव से हो सकता है। इसी प्रकार शनि ग्रह कानून या वकालत सिखाता है। इस विषय में कानून का अध्ययन भी किया जाता है। एक विषय सैक्रटेरियल प्रेक्टिस तथा व्यापार कानून का है, जिसमें शुक्र का महत्व हो सकता है।
इस प्रकार बुध, बृहस्पति, मंगल, शनि, शुक्र का महत्व इस विषय के अध्ययन के लिए है। इनमें से जो ग्रह बलवान होगा उस विषय में अधिक रुचि तथा उन्नति होगी।

चार्टर्ड एकाउंटेंट अर्थात् सी.ए. कंपनी सेक्रेटरी अर्थात् सी. एस. करके इस विषय में आगे बढ़ सकते हैं ये कामर्स की खास व्यवस्था हैं।

कामर्स के लिए, बुध, बृहस्पति, मंगल, शनि, शुक्र इनमें से किन्हीं दो ग्रहों का चतुर्थ, पंचम भाव-भावेश से संबंध होना आवश्यक है।

चार्टर्ड एकाउंटेंट (सी.ए.) के लिए बृहस्पति, मंगल, बुध इन तीन ग्रहों का संबंध चतुर्थ-पंचम भाव-भावेश से होना आवश्यक है।

कंपनी सेक्रेटेरियल (सी.एस.) के लिए बृहस्पति, मंगल, बुध-शनि ग्रह का संबंध पंचम भाव से होना आवश्यक है। उपरोक्त योग में मंगल की जगह केतु हो सकता है।

किसी भी जातक की जन्मकुंडली में लग्न, लग्नेश, पंचम भाव, पंचमेश, नवम भाव नवमेश का अच्छे भावों व शुभ ग्रहों से युत होना जातक को आदर्श स्थिति प्रदान करते हैं। परंतु जहां तक कैरियर का संबंध है उसके लिए जातक का दशम भाव व दशमेश का अध्ययन अति आवश्यक होता है। दशम भाव कर्म भाव भी कहलाता है जिससे जातक के कार्य, व्यवसाय, नौकरी आजीविका का पता चलता है। दशम भाव में स्थित ग्रह, दशमेश व उसका स्वामी, नवांश, तीनों लग्नों से दशम भाव में स्थित ग्रह, कुंडली के योग कारक ग्रह आदि का अध्ययन कर जातक की आजीविका का पता चल सकता है।

दशम भाव के अतिरिक्त एकादश, द्वितीय व सप्तम भाव पर भी दृष्टिपात करना जरूरी होता है। कारण यह सभी भाव धन, व्यवसाय व सांझेदारी से जुड़े होते हैं जिनके बिना आजीविका या व्यवसाय नहीं किया जा सकता।
दशम भाव का मुख्यतः कैसे विचार किया जाए इस हेतु हमारे आचार्यों ने बहुत कुछ स्पष्ट किया है।

लग्न या चंद्र से दशम जो ग्रह हो उनके अनुसार आजीविका से लाभ होता है। यदि कोई ग्रह ना हो तो सूर्य से दसवे जो ग्रह हो उससे भी आजीविका जाननी चाहिए।

यदि सूर्य, चंद्र व लग्न से दशम कोई ग्रह ना हो तो दशमेश जिस नवांश में हो उस ग्रहानुसार आजीविका होती है।
नवांश चक्र में दशमस्थ ग्रह/दशमेश ग्रह के आधार पर भी आजीविका हो सकती है।

इसके अतिरिक्त शनि ग्रह पर ध्यान देना चाहिए क्योंकि नाड़ी ग्रंथों में शनि को कर्म का कारक कहा गया है।
६, ७, व ९ भाव को अवलोकित करना चाहिए। ये भी आजीविका निर्धारण में महत्व रखते हैं।

जन्म नक्षत्र व उससे दशम नक्षत्र व नक्षत्र स्वामी से भी आजीविका देखी जा सकती है।

यदि दशम में राहु-केतु हो तो दशमेश व राहु केतु के अनुसार आजीविका हो सकती है।

उपरोक्त परिस्थितियों के अलावा अन्य और भी कई योग हो सकते हैं जो आजीविका निर्धारण में हमारी सहायता करते हैं ऐसे ही कुछ योग निम्नलिखित हैं-

कैरियर का चुनाव (1)

दशम भाव (या तो लग्न से या चंद्र से जो भी बलवान हो) और उसके स्वामी, दशम भाव में स्थित ग्रहों से, जन्मपत्री के प्रधान ग्रह, और नवांष में दशमेश की स्थिति से कैरियर के बारे में ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है।

मेष, सिंह और धनु आग्नेय राषियां हैं। वृषभ, कन्या और मकर पार्थिव हैं। मिथुन, तुला, कुंभ वायव्य और कर्क, वृश्चिक, मीन जलीय हैं। दशम भाव में आग्नेय राशि होने पर कारखाने, अग्नि, सेना, लोहा, धातुशोधन मुद्रण संबंधी कोई कार्य अपनाया जाता है।

दशम भाव में जलीय राशि नाविक, जलयात्री, समुद्री, सेना नायक, सराय चलाने वाले मछली विक्रेता उत्पन्न करती है।
पार्थिव राशि भूमि संबंधी जायदाद, कृषि, वस्त्र की दुकान, व्यापार, बागवानी इत्यादि प्रदान करती है।

वायव्य राशि वक्ता, पत्रकार, ज्योतिषी, टेक्निकल ज्ञान का व्यवसाय करने वालों का निर्देशन करती है। राशि निर्देशन उनमें स्थित ग्रहों या दृष्टिपात कर्ता ग्रहों द्वारा और भी परिवर्धित-संशोधित हो जाता है।

अगर हम कैरियर के प्रश्न को वास्तविकता से देखें तो हमें पता चलता है कि यह केवल कर्म से नहीं जुड़ा अपितु लाभ, धन और सुख से भी जुड़ा है। इसलिए हम व्यवसाय को द्वितीय, चतुर्थ एवं एकादश भाव से भी जान सकते हैं। इन भावों को यदि हम सर्वाष्टक वर्ग के अनुसार देखें तो स्पष्ट रूप से दिखता है कि जातक को कर्म द्वारा कितना लाभ मिलता है और कितना व्यर्थ करता है। ज्योतिष शास्त्रानुसार यदि दशम् भाव में कोई ग्रह हो तो जातक को अपने कर्मों द्वारा उन्नति सुनिश्चित होती है। यदि दशमस्थ ग्रह उच्च का हो तो जातक को एकाएक उन्नति मिलेगी। यदि दशमस्थ ग्रह नीच का हो तो उन्नति तो मिलती है लेकिन संदिग्ध रहती है। कैरियर की जानकारी के लिए नवांश कुंडली पढ़ना अति आवश्यक है। यदि दशमभाव में कोई ग्रह न हो तो दशमेश और नवांशेश को जानकर फिर कैरियर पर विचार करें?

सूर्य :

जैसे सूर्य का दशम भाव से या दशमेश के नवांशेश से संबंध हो तो जातक सुगंधित वस्तुओं, आभूषणों का कार्य, दवाईयां, प्रबंधन, राज्य का शासन करेगा, लेकिन पिता के सहयोग व समर्थन से सफल होगा।

चंद्रमा :

यदि इन भावों और राशियों का संबंध चंद्रमा से हो तो जातक को खेती-बाड़ी से संबंधित चीजों का क्रय-विक्रय करना चाहिए। ऐसे जातक को धागा, कपड़ों और पेय पदार्थों का कार्य करना चाहिए। नर्स, दाई, जौहरी, मूल्यवान पत्थरों-मोतियों के व्यापारी, साथ ही राजकीय कर्म पर प्रभाव रखता है।

मंगल :

सैनिक, योद्धा, बढ़ई, यांत्रिक, पर्यवेक्षक, वकील, बैंकर, सेनानायक, बीमा एजेंट और कसाई का पेशा कराता है। इन भावों का संबंध मंगल से बने तो जातक अस्त्र-शस्त्र, कलपुर्जे का काम या ऐसा कार्य करना चाहिए जिसमें अग्नि और पराक्रम की आवश्यकता होती है। ऐसे जातक कनिष्ठ अभियंता, मिलिट्री पुलिस या फौज का काम करता है। यदि इसमें मंगल पीड़ित हो तो जातक पराये धन का लाभ उठाता है या जबरन किसी पर रौब जमा कर कार्य करने वाला होता है।

बुध :

उपदेशकों, अध्यापकों, गणिततज्ञों, लेखकों, मुद्रकों, सचिवों, पुस्तक विक्रेताओं, लेखपालों और बीमा एजेंटो पर शासन करता है। बुध ग्रह जातक की बुद्धि से करने वाला व्यवसाय कराता है अर्थात ऐसा काम जिसमें बुद्धि का उपयोग होता है। जैसे : ज्योतिष, अध्यापक या गणितज्ञ।

बृहस्पति :

पुरोहित-पादरी, कानूनज्ञाता, सभासद-सांसद, विधायक, न्यायाधीश, विद्वान जन नेता बनाता है। बृहस्पति यदि दशमेश या नवांशेश अथवा दशमस्थ हो तो जातक इन व्यवसायों से धन प्राप्त करता है। इतिहास और पुराणादि का पठन-पाठन, धर्मोपदेश, किसी धार्मिक संस्था का निरीक्षण अथवा संपादन, हाई कोर्ट कार्य अथवा जजमेंट तैयार करना।

शुक्र :

कलाकारों, संगीतज्ञों, अभिनेताओं, सुगंध निर्माताओं, जौहरी, शराब बेचने वाले और सूक्ष्म बुद्धि के वकीलों का जन्मदाता है। यदि शुक्र का संबंध हो तो जातक जौहरी का काम, गौ महिषादि का रोजगार, दूध, मक्खन आदि का क्रय-विक्रय, होटल या रेस्तरां का प्रबंधक।

शनि :

विभिन्न उत्तरदायित्व पूर्ण पेशों, मिल के अधिकारियों, कंपोजीटरों, फैक्ट्री-कुलियों और मंत्रियों पर शासन करता है। काष्ठादि का क्रय-विक्रय, मजदूरी और मजदूरों की सरदारी आदि का कार्य। अर्थात् शनि शारीरिक परिश्रम से संबंधित कार्य कराता है। वकालत, दो मनुष्यों के बीच झगड़ा करवाकर अपना काम निकलवाना उत्तरादायित्व वाला काम। उपर्युक्त तथ्यों के अनुसार पता चलता है कि जातक किस प्रकार का व्यवसाय करेगा। किंतु एक ग्रह कई प्रकार के व्यवसायों को निर्दिष्ट करता है। इसलिए ग्रहों की स्थिति पर, उसके उच्च नीचादि गुणदोष पर तथा उन ग्रहों पर शुभाशुभ दृष्टि का अच्छी तरह विचार करना चाहिए। यदि निर्दिष्ट कुंडली में धन योग उत्तम है तो जातक डिप्टी, बैरिस्टर या वकील जैसे व्यवसाय करेगा।

सोमवार, 12 जुलाई 2010

लोशु ग्रिड

अंक शास्त्र के अंतर्गत लो-शु वर्ग की रचना सर्वप्रथम चीन में हुई, जिसकी उत्पत्ति के बारे में यह माना जाता है कि ÷लो' नामक नदी तट पर एक कछुए की पीठ पर यह रचना प्राप्त हुई। इसका उपयोग चीन के राजाओं व ज्योतिषियों ने कालांतर में मानव जीवन को समृद्ध व सफल बनाने में किया। धीरे-धीरे यह रचना पूरे विश्व में समय के साथ-साथ फैलती चली गई।


लोशु ग्रिड क्या है :

यह ९ कोष्ठकों का ३x३ खानों वाला एक वर्ग होता है, जिसमें 1 से ९ तक अंक लिखे हुए होते हैं। जन्मतिथि के आधार पर अंकों को इस वर्ग व ग्रिड में बैठाकर देखते हैं। जिस भी अंक की कमी लोशु ग्रिड के आधार पर होती है जीवन में उस अंक से संबंधित दिशा, वस्तु, धातु, कारक आदि प्रभावित क्षेत्रों में कमी रहेगी। अंकों से संबंधित धातु, दिशा आदि के विषय में हमें निम्न सारणी की आवश्यकता पड़ती है। जन्मतिथि के आधार पर जो अंक लोशु ग्रिड में नहीं होता, उस अंक से संबंधित दिशा, व्यक्ति, धातु, कारक आदि को उस व्यक्ति के जीवन में प्रवेश करवाकर उसकी हर प्रकार की कमियों को पूरा किया जा सकता है। यहां पर भी ध्यान रखना होता है कि जो अंक जन्मतिथि में नहीं है (लोशु ग्रिड) केवल उन्हीं क्षेत्रों में व्यक्ति विशेष को कमी हो ऐसा कदापि नहीं माना जा सकता। क्योंकि बहुत से अन्य कारण भी होंगे जिनका प्रभाव समय के साथ-साथ समाप्त भी होता जाएगा जैसे (किसी की मृत्यु पश्चात् उससे संबंधित अंक का व्यर्थ होना) किसी एक अंक का अधिक बार होना उस व्यक्ति विशेष पर उस अंक से संबंधित तत्व, ग्रह आदि की अधिकता भी दर्शाता है जो कभी-कभी नुक्सान भी दे सकती है अतः ऐसे अंकों हेतु उपाय भी करने होते हैं।

अनुपस्थित अंकों हेतु उपाय व सुझाव अंक एक (जल तत्व)-

पानी भरा पात्र पूर्व/उ.पू. में रखें। सूर्य को प्रातः ताम्र पात्र से अर्य दें। मछली घर (एक्वेरियम) रखें। उत्तर दिशा में फब्बारा/स्वीमिंग पूल रखें। प्यासे व्यक्तियों को पानी पिलाएं। १, १०, २८ जन्मतिथि वालों का संग करें, संबंध बनाएं।

अंक २, ५, व ८ (भूमि तत्व) जन्मतिथि पर न होने (अनुपस्थित) पर उपाय-

चकोर/वर्गाकार खाने की मेज (डायनिंग टेबल) प्रयोग करें। शयनकक्ष दक्षिण-पश्चिम में बनाएं। घर के मध्य में पीली रोशनी (बल्व) लगवाएं। पहाड़ों के चित्र द.प. में लगाएं। एक मुखी रुद्राक्ष/क्रिस्टल माला धारण करें। हरा पिरामिड रखें।

अंक ३, ४ (काष्ठ तत्व) हेतु उपाय -

मुख्य द्वार पर संगीतमय घंटी (विंड चाइम्स्) लगाएं। उत्तर पूर्व दिशा स्वच्छ रखें। पूर्व/दक्षिण - पूर्व में हरी रोशनी लगवाएं। हरे पौधे व हरियाली वाली तस्वीरें पूर्व/दक्षिण-पूर्व में लगवाएं। ३, १२, ३०, १३, २२ जन्मतिथि वालों से संबंध बढ़ाएं।

अंक ६-७ (धातु तत्व हेतु उपाय) :

दाएं हाथ में स्वर्ण (सोना पहनें)। सुनहरी पीली संगीतमय घंटी (विंड चाइम्स्) पश्चिम / उत्तर - पश्चिम/ उत्तर में लगाएं। धातु की बनी वस्तुएं मूर्तियां आदि पश्चिम/उत्तर पश्चिम में रखें। पीले रंग का पिरामिड घर पर रखें।

अंक ९ (अग्नि तत्व) :

लाल रंग की रोशनी दक्षिण पूर्व में लगाएं। बैठक में फूलों वाले पौधे लगाएं। दक्षिण पूर्व में तंदूर (ओवन) आदि रखें। दक्षिणी दीवार पर लाल रंग की तस्वीर लगाएं। आइए अब इस लोशु चक्र विधि को एक जन्मतिथि पर आजमा कर देखते हैं। किसी व्यक्ति की जन्मतिथि ३० नवंबर १९७७ अर्थात ३०, ११, १९७७ है इसे लोशु चक्र में लिखने पर हमें यह चार्ट प्राप्त होगा।
       अनुपस्थित अंक २, ४, ५, ६, ८ अर्थात् भूमि तत्व (२, ५, ८) ४ (काष्ठ तत्व) तथा ६ (धातु तत्व) है जबकि १, ३, ७, ९ उपस्थित है जिसमें 1 व ७ अंक की अधिकता है अर्थात् 1 (जल तत्व, ३ (काष्ठ तत्व), ७ (धातु तत्व) व ९ (अग्नि तत्व) इस जातक के जीवन में स्पष्ट है कि जल व धातु तत्व की अधिकता है जबकि भूमि तत्व की कमी है अतः जातक को भूमि तत्व (२, ५, ८) अंकों के उपाय करने चाहिए।
इस जातक को विवाह व संतान प्राप्ति के बाद काफी सफलता मिली कारण पति की जन्मतिथि ८ व पुत्री की जन्मतिथि ११ जो कि २, ८ बनती है अर्थात् भूमि तत्व की कमी पूरी होने से जीवन पहले से अधिक सफल हुआ।
लोशु चक्र रहस्यमय अंक ज्योतिष का चक्र है, जिससे जातक के जीवन में वांछनीय बदलाव कर लाभ दिए व लिए जा सकते है।

शुभ नाम का चयन कैसे करें ?

हमारे जीवन में "नाम" का बड़ा महत्व होता है नाम से ही हमारी पहचान होती है। नाम रखने की विधि को हमारे यहां संस्कार का दर्जा दिया गया है जिसमें जातक के जन्म नक्षत्र पर आधारित नाम रखने का चलन है। कभी-कभी यह भी देखने में आता है कि किसी जातक का नाम तो बड़ा अच्छा है, परंतु फिर भी सफलता उससे कोसों दूर होती है ऐसे में अंक ज्योतिष द्वारा उसके नाम में थोड़ा सा परिवर्तन करके उपयोग में लाने से लाभ प्राप्त होता है।

वैसे तो नाम के अंकों (नामांकों) को घटा बढ़ाकर लिखने से सही व उपयुक्त नाम रखा जा सकता है। परंतु इस विधि से नाम रखने पर भी अधिक लाभ नहीं मिलता कारण मूलांक व भाग्यांक का नामांक से मेल न रखना। यदि किसी जातक के नामांक का ग्रह उसके मूलांक, भाग्यांक का शत्रु होता है तो उसके नाम को बदलना चाहिए। नाम के आगे अथवा पीछे कुछ अक्षरों को जोड़ घटाकर नामांक को उसके भाग्यांक/मूलांक के साथ समायोजित कर लाभकारी बनाया जा सकता है।
स्पष्ट है कि कुछ अंक किसी निश्चित अंक के मित्र व कुछ शत्रु होते हैं। यदि नामांक, भाग्यांक व मूलांक के शत्रु अंक का होगा तो सफलता नहीं मिलेगी इसलिए नामांक का मूलांक व भाग्यांक से समायोजन होना जरूरी है।

मूलांक-

किसी भी जातक की जन्मतिथि का योग मूलांक कहलाता है जैसे १४, ५, २३ तारीखों को जन्मे जातकों का मूलांक ५ कहलाएगा।

भाग्यांक-

जन्म की तिथि, माह व वर्ष का योग भाग्यांक होता है जैसे 01 जनवरी १९८२ का भाग्यांक १+१+१+९+८+२=२२ =४ होगा।

शुभ नाम चयन हेतु उदारण देखें-

किसी जातक का नाम Mahendra Singh व उसकी जन्मतिथि ११/०१/१९८० है। जातक का मूलांक = ११ = १+१ = २ है। जातक का भाग्यांक = ११/०१/१९०८ = १+१+१+१+९+८+० = २१ = ३ जातक का नामांक- M A H E N D R A S I N G H 4 1 5 5 5 4 2 1 + 3 1 5 3 5 = 27 + 17 = 44 = 8 अतः जातक का संबंध २, ३ व ८ अंकों से है चूंकि नामांक (८) २ व ३ का मित्र अंक नहीं है इसलिए जातक को इस नाम में कुछ फेर बदल करना पड़ेगा (क्योंकि मूलांक व भाग्यांक तो बदले नहीं जा सकते)।
यदि जातक अपना नाम केवल Mahendra कर ले जिससे नामांक २७ =९ हो जाएगा तो उसे लाभ होने लगेगा कारण अंक ९ मूलांक व भाग्यांक दोनों का मित्र है जिससे उसे हर काम में आसानी व अपेक्षित लाभ होने लगेगा।