मानव शरीर की
भांति प्रत्येक वस्तु जो धरती पर महसूस की जाती है हजारों
कोशिकाओं से बनी होती हैं जिनमें धरती के बाहर से आने वाली 7 प्रकार की
किरणें सम्मिलित होती हैं यह भी देखा जाता है कि मानव शरीर में होने वाली बीमारियां इन्हीं 7 किरणों के असंतुलित होने के कारण होती
हैं जिसको आयुर्वेद
के अनुसार त्रिदोष कहा जाता है त्रिदोष हमारे शरीर में पाए जाने वाले पंचतत्वो में से मुख्यत
तीन तत्व हैं जिनमें कफ तत्व जल से,पित्त तत्व अग्नि से तथा वायु तत्व हवा से लिया गया है | आयुर्वेद मानता है कि इन्हीं तीनों तत्वो के किसी भी प्रकार से असंतुलित होने से ही शरीर
में बीमारी होती है | इस प्रकार की असंतुलितता कभी-कभी परिस्थितिवश और
कभी-कभी स्वयं कारको द्वारा कर दी जाती हैं जो ना सिर्फ मानव शरीर को बीमार करती है बल्कि उसका इलाज भी करना पड़ता है,हिंदूदर्शन इस प्रकार के कर्म को व्यसन की श्रेणी मे रखता
हैं अर्थात जातक विशेष
द्वारा किए जाने वाले कुछ ऐसे काम जिनसे उसके शरीर में किसी भी प्रकार की परेशानी अथवा बीमारी
होने की संभावनाएं बढ़ जाती है जिससे शरीर में इन 7 किरणों में से किसी एक की अधिकता
या कमी हो जाने के
कारण जातक विशेष सकारात्मक व नकारात्मक सोचने वाला,गुस्से वाला,बहादुर,क्रूर अथवा कायर किस्म का होने लगता है |
हिंदू दर्शन सभ्यता इस प्रकार के सभी दोषों को
मुख्यत: तीन गुणों में देखा करती है जिनमें सत्वगुण रजोगुण तथा तमोगुण
शामिल हैं सतोगुण जातक विशेष
के सही मानसिक संतुलन तथा उसके दुनियादारी के बंधनों से सही तरह से तालमेल
बिठाने और अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए रखा जाता है जबकि दो अन्य गुण जातक
विशेष के मानसिक क्रियाकलापों को तेज अथवा कम कर उसको शारीरिक व मानसिक रूप से बीमार
करने के काम में आ जाते हैं अतः यह स्पष्ट कहा जा सकता है कि इन्हीं तीन तत्वो व दोषों के कारण
जातक विशेष - विशेष व्यक्तित्व का हो जाता है |
इन 3 गुण और
3 तत्वो के मध्य में
ज्योतिष आता है जो वेदों के 6 अंगों में से एक है इस ज्योतिष को वेदों की आंख माना गया है जिससे मानव जीवन का कल्याण किया जा
सकता हैं इसमें मुख्यत: 7 ग्रह सूर्य,चन्द्र,मंगल,बुध,गुरु,शुक्र और शनि रखे गए हैं इन सातो ग्रहो मे से निकलने वाली ये 7 किरणें अथवा ऊर्जा जब जातक विशेष पर किसी एक खास अवस्था
में धरती पर पड़ती है तो जातक पर उसका प्रभाव पड़ता है जो उसके आने वाले जीवन अथवा भविष्य पर
असर डालता है जन्म कुंडली इन्ही किरणों द्वारा दिये गए प्रभावों को जातक विशेष पर
बताती हैं जिससे उसके जीवन मे क्या होगा जाना जा सकता हैं ज्योतिष एक बहुत बड़ा
विज्ञान है जो सामान्य वर्ग के लिए रचा नहीं गया परंतु ये भी सत्य हैं की आज के संदर्भ में जब दुनिया
तेजी से भाग रही है जातक विशेष ज्योतिष के माध्यम से अपने जीवन में
होने वाली कई परेशानियां अथवा बीमारियों का सही इलाज प्राप्त करना चाहता हैं ऐसे में इन ग्रहो से आने
वाली किरणे उनसे संबन्धित रत्नो के द्वारा बीमारी हरने में बहुत सा
महत्वपूर्ण
किरदार
अदा करती हैं |
भारतीय रसायन
विज्ञान के “रासजल निधि” नामक पुस्तक
में प्रत्येक ग्रह के रसायनिक पदार्थों के विषय में बताया गया है | प्राचीन संत अगस्त्य द्वारा लिखित “रत्न शास्त्र” तथा भोजराज द्वारा
रचित “युक्ति कल्पतरु” आदि में भी रत्नों
से मिलने वाली ऊर्जा के विषय में जानकारी दी गई है जिससे मानव जाति को सुविधा प्रदान की जा सकती है
|
हमारे प्राचीन विद्वान ग्रहो से संबन्धित
इन विशेषताओ के बारे में आधुनिक विज्ञान से कई साल पहले ही जानते
थे आयुर्वेद को जानने वाले हमारे प्राचीन वैध एक प्रकार से ज्योतिषी ही
थे जो किसी भी व्यक्ति को उसकी बीमारी के अनुसार रत्न धारण करवा कर बीमारी का हरण करवा
लेते थे कहीं-कहीं रत्नों की भस्म का भी उल्लेख प्राचीन शास्त्रों में मिलता है जिससे
बीमारियों का इलाज सही प्रकार से किया जाता था इस प्रकार
देखे तो प्राचीन विद्वान रत्न मंत्र तथा औषधि के द्वारा मानव जीवन का कल्याण
करने में लगे हुए थे आधुनिक विद्वान विभिन्न प्रकार की जड़ी
बूटियों को दवा के रूप में ही देखते हैं रत्न एक प्रकार से व्यक्ति विशेष को उसके
शरीर में किसी खास ग्रह के द्वारा होने वाली कमी का पता बताते हैं तथा जातक
को आंतरिक रूप से मजबूती प्रदान कर उसको अपने निश्चित कर्म पथ पर ले आते हैं |
यहां पर हम अब हम कुछ ऐसे
ही रत्नों से संबंधित बीमारियों के इलाज के विषय में जानकारी दे रहे हैं मुख्यत: सात प्रकार के रत्नों के विषय में शास्त्र बताते हैं तथा सात प्रकार के ग्रहों
के अनुसार ही उन्हें रखा गया है |
माणिक्य रत्न सूर्य के लिए
रखा गया है जो हृदय संबंधी,रक्त की कमी (एनीमियां),अधरंग तथा हर्निया
में लाभकारी होता है |
मोती अथवा मुक्ता को
चंद्र जनित रोग जैसे मानसिक परेशानी,दिमागी बुखार,चेचक का होना,माता का निकलना,किडनी का फूल जाना,टीबी होना तथा पथरी
होने में लाभकारी माना गया है |
मूंगा रत्न जोकि मंगल ग्रह
से संबंधित रखा गया है भोजन का ठीक से ना पचना,नींद में समस्या
होना, गुर्दा विकार होना,मधुमेह,अल्सर,बवासीर,शारीरिक थकान तथा
कुष्ठ रोगों में लाभकारी पाया गया है |
पन्ना जो कि बुध ग्रह से
संबंधित रत्न है ब्लड प्रेशर,अस्थमा,बुखार,कैंसर तथा सिफलिस रोगों में उपयोगी पाया गया है |
पुखराज जोकि गुरु ग्रह से
संबंधित है पीलिया,दौरा पड़ना,पेट संबंधी रोग,मोटापा,मासिक धर्म की परेशानी, हैजा हेतु लाभकारी
माना गया है |
हीरा जो कि शुक्र ग्रह से संबंधित है
नींद ना आना,आंखों में दिक्कत होना,बहरापन होना,हिस्टीरिया, निमोनिया,दांतों के रोग,अतिसार,फिस्टुला,रक्तप्रदर आदि की बीमारियों में महत्वपूर्ण
माना गया है |
नीलम रत्न शनि ग्रह से संबंधित होने
के कारण इसे अधरंग,मैनिंजाइटिस,फोड़े-फुंसी,अल्सर,माइग्रेन, साइटिका,आर्थराइटिस,एग्जिमा,एपिलेप्सी आदि बीमारियो मे
उपयोगी माना गया है |
कोई भी रत्न 3:25 रत्ती से कम धारण नहीं होना चाहिए और उसे शरीर से छूता हुआ होना चाहिए
प्रत्येक व्यक्ति मुहूर्त को तो नहीं जान सकता परंतु रत्न धारण कर काफी हद तक अपने
आप को बीमार होने से बचा सकता है |
हिंदू ज्योतिष शास्त्र मानव जीवन के लिए कल्याण के महत्व के विषय में बहुत सी
जानकारियां देता हैं,आस्था से देवी
देवताओं की पूजा अर्चना,व्रत,नियम आदि करना और आवश्यक रत्न धारण करना ऐसे कई अन्य कार्य
है जो यदि सही समय अथवा सही मुहूर्त अनुसार किए जाएं तो जातक का शरीर निरोगी रह
सकता है |
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