हमारे प्राचीन
विद्वानो ने अति साधारण होने के बावजूद “अधि योग” को बहुत महान योगों में रखा
जाता है जो जातक को उच्च सम्मान के साथ-साथ अधिकार एवं ऊंच स्थिति भी देता है | अलग-अलग विद्वान इस अधि योग के बारे में अपनी अलग-अलग राय रखते
हैं | ज्योतिष पुरोधा महर्षि “पराशर” व “वराहमिहिर” के अनुसार लग्न
अथवा चंद्र से 6,7,8 भाव में शुभ ग्रह बैठे
तो अधि योग बनता है जबकि मंत्रेश्वर जी इस योग को लग्न से भी मानते हैं जिसे लग्नाधि योग कहा जाता
है | वैधनाथ लग्नाधि योग के लिए कहते हैं कि यह तभी मान्य होगा
जब 6,7,8 भावो में बैठे शुभ ग्रहों को कोई
पाप ग्रह ना देख रहा हो और ना ही इनसे चौथे भाव में कोई पाप ग्रह स्थित हो | यहां यह भी ध्यान देना चाहिए 6,7,8 भाव दशम भाव से 9,10 और 11 भाव होते हैं जो
पद-प्रसिद्धि एवं समृद्धि बताता है इसलिए कहा जा सकता है
की इन तीन भाव में शुभ ग्रहों का बैठना दशम भाव को अतिरिक्त बल ही प्रदान करता है संभवत: इस योग के पीछे
हमारे विद्वानो का
तर्क
यहीं हो | अधि योग जातक को किसी भी प्रकार से संपन्नता व समृद्दि प्रदान कर उसे उससे ऊंच स्थान पर पहुंचाता है |
आइए अब कुछ उदाहरण
देखते हैं |
प्रथम कुंडली
(4/8/1944 2:20 दिल्ली) वृष लग्न का
यह जातक रात को जन्मा था पूर्ण चंद्र
को शुक्र बुध देख रहे हैं जो दूसरे व पांचवें भाव के स्वामी हैं लग्न से चौथे
भाव में गुरु और मंगल संग हैं शुक्र जोकि चन्द्र लग्न से पांचवें और दसवें भाव के स्वामी बनते हैं
लग्नेश होकर लग्न
से तीसरे तथा चन्द्र लग्न से सातवे हैं | यह जातक गरीब
परिवार में जन्म लेकर एक नाविक कंपनी मे बहुत ही ऊंची पदवी व ऊंचे वेतनमान पर पहुंचा |
दूसरी कुंडली (20/10/1945 18:15 लखनऊ) मेष लग्न के इस जातक का जन्म बहुत ही गरीब परिवार में
हुआ था इसकी पत्रिका
मे चंद्र से सातवें और आठवें भाव में शुभ ग्रह हैं | गुरु जोकि चंद्र
लग्न का स्वामी हैं चंद्र से दशम भाव का स्वामी भी है,चन्द्र से सातवे भाव में
शुक्र संग बैठा है शुक्र लग्न से दूसरे व सातवे भाव का स्वामी होकर
कुंडली मे नीच तथा नवांश मे ऊंच का हैं,इस गुरु और शुक्र
पर मंगल और शनि की दृष्टि भी है इस पत्रिका में मंगल योगकारक
है बावजूद इसके जातक को ज्यादा शुभ परिणाम नहीं मिले परंतु शुक्र महादशा में जातक एक
बड़ी कंपनी में मैनेजर बना और उसकी स्थिति और समृद्दि बढ़ती चली गई |
यह अधि योग “श्रुतकीर्ति” के अनुसार भी चंद्र से 6,7,8 भावो में शुभ ग्रह होने पर योग बनता है जबकि कल्याण वर्मा
के अनुसार जब इन शुभ ग्रहों
पर कोई पाप ग्रह
का प्रभाव ना हो और यह शुभ ग्रह सूर्य से अस्त ना हो तभी
वह अपना पूरा परिणाम दे सकते हैं जो की ग्रहों से संबंधित दशा पर ही प्राप्त होंगे बहुत सी कुंडलियों
का अध्ययन करने के बाद अनुभव मे दखने मे आता हैं की कल्याण वर्मा का
मत ज़्यादा सही व सटीक जान पड़ता हैं | हमारे पहले उदाहरण
मे शुक्र सूर्य से ज़्यादा दूर नहीं हैं जिस कारण जातक को इस
अधि योग के पूर्ण परिणाम नहीं मिले,वही दूसरे उदाहरण मे गुरु शुक्र पर शनि
मंगल की दृस्टी ने शुक्र दशा होने पर भी अपने पूर्ण फल नहीं दिये |
अत: यह स्पष्ट हैं की अधि योग
के शुभफलों के लिए चन्द्र से 6,7,8 भावो मे स्थित शुभ ग्रहो पर पाप प्रभाव नहीं होना चाहिए तथा उन्हे सूर्य से
अस्त भी नहीं होना चाहिए तभी जातक को अधि योग का प्रभाव प्राप्त होता हैं |
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें