ज्योतिष विज्ञान मे फलित करने के हजारो सूत्र व नियम हमारे ज्योतिषीय विद्वानो ने दिये
हुये हैं उसके बावजूद फलादेश करना हमेशा से एक मुश्किल व दुष्कर कार्य रहा
है खास तौर पर जब लग्न से 6,8 और 12 भाव में बैठे हुए ग्रहों का फलकथन करना हो अथवा उनके बारे
मे कुछ विशेष फलित कहना होतो यह अच्छे से अच्छे ज्योतिषी के लिए भी आसान नहीं होता
| इसी प्रकार यदि कोई ग्रह अपने नियत भाव से 6,8 या 12वे भाव मे गया होतो उसका फलित करना भी मुश्किल होता है संभवत: इसी
कारण ज्योतिष के बहुत से
विद्वानों ने हर भाव को लग्न मानकर उसके अनुसार फलकथन अथवा फलित करने को कहा है इसके अलावा जन्मलग्न से भी
उस ग्रह के द्वारा बन रहे अन्य योगो के विषय में फलित करते समय जानकारी रखी जानी चाहिए |
प्रथम उदाहरण
में मिथुन लग्न है जिसमे राहू सिंह,गुरु तुला,केतू कुम्भ,शुक्र-चन्द्र मीन,सूर्य-शनि मेष तथा मंगल-बुध वृष राशि मे हैं | शुक्र पंचमेश-द्वादशेश बनकर ऊंच अवस्था में दशम भाव में है
जिससे यह कहा जा सकता है कि शुक्र संतान हेतु बहुत शुभता देगा,चंद्र से देखने पर यह ज्यादा शुभ नहीं दिखता परंतु शुक्र पंचमेश होकर उच्च का होना कोई छोटा महत्व तो नहीं रखता बावजूद इसके इस जातक की विवाह के 16 साल तक कोई संतान नहीं हुई थी इसने बहुत
सारे उपाय व इलाज भी कराएं परंतु संतान नहीं हुई | यहां ध्यान दें कि शुक्र जो की पंचम भाव का स्वामी है अपने
से छठे बैठा है इस प्रकार
देखने पर ज्ञात होता हैं की यह शुक्र की गलत या अशुभ स्थिति है जिस कारण उसने
अपने ऊंच होने के फल जातक विशेष को नहीं दिये |
कुंडली संख्या 2 भी मिथुन लग्न की
हैं जिसमे चन्द्र कर्क,मंगल-राहू कन्या,बुध-शनि मकर,सूर्य-गुरु कुम्भ तथा शुक्र-केतू मीन राशि मे हैं | इस जातक की पुत्र संतान तो है परंतु उसके जितनी समझदार व कामयाब नहीं है इस पत्रिका में चंद्र कर्क राशि में है और शुक्र
उससे नवे हैं जिससे शुक्र का अशुभ फल ही प्राप्त होता है इसकी संतान तो हुई हैं परंतु यह शुक्र
स्वयं के पंचम भाव से छठे ऊंच का होकर भी
अपने फल नहीं दे पाया | यह प्रतीत होता है कि इस जातक की संपत्ति पहली
पीढ़ी में ही नष्ट हो जाएगी और बाद में उसे संतान से सुख भी प्राप्त नहीं होगा पंचम भाव से
संबन्धित इस शुक्र की अशुभता उसके पंचम भाव से छठे होने पर ज़्यादा रही है |
यह कहा जाता है
कि सप्तमेश आठवें भाव में हो तो अशुभ होता है और इसी प्रकार अष्टमेश यदि सातवें भाव
में हो तो भी अशुभ होता है पर क्या दोनों का एक ही फल होता
है अनुभव मे हमने ऐसा नहीं
पाया अष्टमेश का सप्तम भाव में होना ज़्यादा अशुभ होता
हैं क्यूंकी अष्टम भाव सप्तम से दूसरा होता हैं तथा लग्न से अष्टम का स्वामी होना
लग्न हेतु शुभ नहीं होता है,दूसरी अवस्था मे
सप्तमेश का अष्टम मे होना ज़्यादा शुभ कहा
जाएगा और ऐसा शुभ ग्रह जैसे गुरु,बुध,शुक्र से होतो शुभ फल ही प्राप्त होंगे क्यूंकी आठवें भाव
में शुभ ग्रह लंबी आयु,धन व प्रसन्नता ही देंगे | ऐसे मे यदि मान ले की लग्न तुला है
और मंगल आठवें भाव में वृषभ राशि मे हो तो यह मंगल पापी ग्रह होने के साथ साथ सप्तमेश होकर
आठवें भाव में होगा जो शुक्र के घर को खराब करेगा तथा शुक्र के कारक को भी प्रभावित
करेगा | इसी प्रकार यदि कर्क लग्न हो और शनि आठवें भाव में हो तो
इसको दो प्रकार से देखा जाएगा सप्तमेश का आठवें भाव में होना और अष्टमेश
का अष्टम भाव में ही होना,जिससे दूसरी अवस्था विपरीत राजयोग
का निर्माण करेगी अनुभव मे देखने मे आता हैं की शनि का सप्तमेश
होकर अष्टम मे होना विवाह हेतु खराबी तो नहीं देता परंतु
अष्टम भाव मे शनि वैवाहिक जीवन मे अशांति तो देता
ही हैं |
साधारणतय यह
माना जाता है कि किसी भी भाव के स्वामी यदि 3,6,8,12 भाव में हो तो उन भावों का शुभफल कम हो जाता
है कुछ विद्वान मानते हैं कि 6,8,12 भावो में शुभ ग्रह शुभता नहीं देते,कुछ का मानना है कि 6,8,12 भाव में बैठकर शुभ ग्रह कर्ज,बीमारी,तकलीफें व हानि को कम करते हैं वहीं कुछ ऐसे भी हैं जो यह मानते हैं
कि 6,8,12 के स्वामी यदि इन्हीं भाव में हो तो बहुत अच्छे
फल देते हैं जब इस तरह की कई प्रश्न उठते हैं तो ज्योतिषी द्वारा सटीक फलादेश करना
थोड़ा मुश्किल हो जाता है |
आइए अब भावो का अध्ययन
करते हैं |
छठा भाव – इस भाव मे सूर्य,मंगल,शनि को शत्रुहंता माना गया है |
चंद्र इस भाव मे होने पर
जातक को दुष्ट प्रवृत्ति वाला कहा गया हैं जिसके बहुत से शत्रु होते हैं ऐसा जातक कार्य संपादन में धीमा तथा
खराब
पाचन क्रिया वाला होता हैं यदि चंद्रबली हो तो जातक दीर्घ आयु और जीवन का आनंद लेने वाला होता है और यदि
चंद्र कमजोर हो तो जातक कम आयु का होता है | शुक्र,बुध और गुरु छठे भाव में हो तो जातक के शत्रु नहीं होते |
यह सभी फलादेश
वराहमिहिर ने अपनी पुस्तक
बृहद जातक में दिये हैं,ध्यानपूर्वक देखने पर यह पता चलता है की शुभ ग्रह यदि छठे भाव में
हो तो जातक के शत्रु नहीं होते,अशुभ ग्रह होने पर शत्रु तो होते हैं पर वह उन्हें परास्त
कर देता है ऐसे मे यकीनन पहली अवस्था को शुभ माना जाएगा | यदि इन अशुभ ग्रहों
पर थोड़ा सा और पाप प्रभाव होगा तो शत्रु को हराने के लिए युद् करना जिससे स्वयं को भी हानि पहुँचना व चोटिल आदि होना भी पड़ सकता है यदि
शुभ ग्रह पाप प्रभावित हुए तो कुछ छोटे मोटे शत्रु अवश्य पैदा होंगे जो उसके सम्मुख टिक ना पाने के
कारण समर्पण करेंगे या उसके मित्र बन जाएंगे |
वैद्यनाथ दीक्षित
जी ने अपने ग्रंथ “जातक पारिजात” मे छठे भाव मे स्थित
ग्रहो के बारे मे निम्न बाते कही हैं |
सूर्य – ऐसा जातक बहादुर,राजा के द्वारा सम्मानित,स्वाभिमानी,कामी,धनवान और प्रसिद्ध होता है |
चंद्रमा – ऐसा जातक बहुत आकर्षक व बड़ी आयु वाला तथा अशुभ चंद्रमा होने पर छोटी आयु वाला
होता है |
मंगल - जातक के पास बहुत सी संपत्ति होती है,उसकी जठराग्नि मजबूत होती हैं वह धनी,प्रसिद्ध होता हैं तथा दुश्मनों को परास्त करता है |
बुध – जातक आनंद कार्यों में रहने वाला,लड़ाकू परंतु
अच्छे चरित्र वाला होता है जो अपने रिश्तेदारों का आदर नहीं करता |
गुरु – इस भाव मे गुरु जातक को कामी,कमजोर तथा शत्रुओं
को परास्त करने वाला बनाते हैं |
शुक्र – ऐसा जातक अपने किए कार्यो से शोकग्रस्त तथा गलत कार्य से प्रभावित होता हैं |
शनि – ऐसा जातक बहुत अधिक खाने वाला,शत्रुओं से डरने वाला,जुनूनी एवं धनी होता हैं |
ऐसे मे ध्यानपूर्वक देखने
पर पता चलता है कि सूर्य,मंगल,शनि जब छठे भाव में होते हैं तो वह जातक को धनी,जुनूनी और बहादुर
बनाते हैं जबकि शुभ ग्रह छठे भाव में ज्यादा धन नहीं देते यहां धन का अर्थ जातक की
कमाई ना होकर उसकी बचत से है | नेहरूजी व अमिताभ बच्चन के छठे भाव में
बृहस्पति का होना तो यही बताता है |
प्रोफेसर राव
के अनुसार बुरी प्रकृति पूरी तरह से बदली नहीं जा सकती गुरु शुभ ग्रह है जिन्हें
संतान,धन,कार्यक्षेत्र
और लाभ का कारक माना जाता है जब यह छठे भाव में होते हैं तो इन सब में कोई ना कोई कमी
अवश्य आती है,जातक के पास धन ज़्यादा नहीं होता,संतान का सुख कम होता हैं संपत्ति यदि होती हैं तो उसकी कोई ना कोई
परेशानी अवश्य रहती हैं | नेहरू जी इसका प्रत्यक्ष उदाहरण हैं |
छठा भाव बीमारी,कर्जा और शत्रु बताता है गुरु शुभ ग्रह है वह जब इस छठे भाव में बैठेंगे तो
वह छठे भाव का फल कुछ शुभ ही देंगे ऐसे मे जातक को कर्ज,बीमारी अथवा शत्रुओं से आनंद प्राप्त होगा जिस कारण नेहरू जी कर्ज,बीमारी व शत्रु मुक्त रहे,यहां ध्यान दें
कि यह छठे गुरु दोहरा स्वभाव दिखाते
हैं वह यहां कर्जमाफी तो कराते ही
है साथ ही धनकारक होने पर धन भी देते हैं अमिताभ बच्चन इसका एक बेहतरीन उदाहरण है |
शुक्र भौतिक व स्त्री सुखों का
कारक है जब यह छठे भाव में होता है तो उसके कारकत्व व प्रकृति
अवश्य ही प्रभावित होती हैं | अब प्रश्न उठता है की यदि मंगल छठे में हो तो क्या जातक के पास भूमि भाई और साहस होगा इसके लिए हमें
एक अन्य सूत्र भी पढ़ना चाहिए जो यह बताता है कि प्रत्येक भाव को लग्न बनाकर लग्न के
अनुसार देखा जाना चाहिए ऐसे मे संपति के लिए हेतु चौथा भाव देखा जाना चाहिए,संपत्ति कारक मंगल जब छठे भाव में होता है जोकि चौथे
भाव से तीसरा उपचय भाव होने के कारण यह संपत्ति के विषय में शुभता ही बताता है अर्थात मंगल को छठे भाव
में अच्छा बल प्राप्त होता है जबकि गुरु के यहां होने पर गुरु अपने से ग्यारहवें भाव अर्थात लाभ भाव से आठवां होता है तथा दूसरे ( धन भाव ) से पांचवां होने से संपति तो प्राप्त होती हैं पर धन नहीं |
अष्टम भाव – वराहमिहिर “बृहदजातक” में कहते हैं सूर्य,मंगल और शनि आठवें भाव में हो तो जातक अंधा होता है तथा उसकी कम संतान होती हैं,यदि गुरु-शुक्र अष्टम में हो तो जातक अपने स्तर से नीचे का काम अथवा निम्न स्तर
का काम करता है,चंद्रमा अष्टम में होने पर जातक अस्थिर स्वभाव वाला तथा बीमार रहता है और यदि बुध अष्टम
में हो तो जातक के सभी काम समाज के कायदे-कानून के अनुसार रहते हैं |
जातक पारिजात
के अनुसार अष्टम भाव में सूर्य जातक को दिल जीतने वाला तथा विवादों को हल करने वाला,चंद्रमा लड़ाकू,खुले विचार वाला,सीखने व घूमने का शौकीन,मंगल अच्छे वस्त्रो
वाला धनी तथा कई लोगों पर अधिकार रखने वाला,बुध रईस अच्छी आदतों
वाला,गुरु दीर्घायु,न्याय करने वाला तथा निम्न
कार्य करने वाला,शुक्र दीर्घायु अच्छा रहन-सहन वाला,धनी एवं बली तथा शनि ईर्ष्यालु,बहादुर परंतु धनहीन बनाते हैं |
अष्टम भाव को
भले ही खराब माना जाता हो पर अनुभव मे देखने पर आता हैं की यहां पाप ग्रह ज्यादा
बुरा फल नहीं देते,गुरु और शुक्र अष्टम में 9वे भाव से 12वे होने पर अच्छे कार्य करते हैं इन्हे शुभग्रह होने के कारण भाग्य हेतु
बुरा
माना जाता हैं जिस कारण इनके कुछ बुरे फल भी होते हैं परंतु
आठवां भाव आयु बताता है और जब शनि आठवें भाव में होते हैं तो जातक को दीर्घायु बना
देते हैं परंतु यह अष्टम भाव के शनि दूसरे भाव को देखते है जिससे जातक को धन की कमी बनी रहती है |
कुछ अन्य सूत्र
भी देखे जाने चाहिए जो इस प्रकार से हैं |
1)शुभ ग्रह हमेशा उन्नति करते हैं,पाप ग्रह हमेशा
हानि पहुंचाते हैं 6,8,12 भाव अशुभ भाव हैं जिनमे कोई भी ग्रह जाने पर कुछ ना कुछ हानि अपने कारकत्व की अवश्य करता है | जब भी हम किसी भाव की बात करें तो उनके स्वामी उस भाव से 6,8,12 पर नहीं होने चाहिए नहीं तो वह अपनी शुभता खो देते हैं
|
2)प्रत्येक भाव को लग्न मान कर उसका फलित करना चाहिए तथा उससे बनने वाले अन्य
योग भी देखे जाने चाहिए |
पहला सूत्र हम देख
ही चुके हैं आइए अब दूसरा सूत्र देखते हैं |
यदि पंचम भाव
देखना हो तो पंचम भाव को लग्न बना लिया जाए | पहली पत्रिका
में पंचम भाव मे तुला राशि पड़ती है जिसमे गुरु बैठा है इसे हम पुत्र कारक तथा उस भाव से तीसरे और छठे भाव का स्वामी
मानते हैं जिसका
शुक्र से परिवर्तन हुआ है जो ऊंच का होकर चंद्र संग है यह शुक्र मीन राशि से 3रे व 8वे भाव का स्वामी
हैं जातक की कोई संतान नहीं है उसके ऊंच शुक्र ने भी कुछ नहीं किया शुक्र की दशा 1933 से आरंभ हुई जब
जातक 10 साल का था और उसका विवाह 1944 में हुआ | गुरु की पंचम
भाव में स्थिति संतान का होना बताती है और गुरु पत्रिका में लग्न से दो केंद्रों का स्वामी बनता है तथा पंचम भाव से 3रे व 6ठे भाव का स्वामी होने पर अशुभता दिखाता है |
अनुभव मे देखे तो कुम्भ लग्न के लिए
मंगल
का 7 वें भाव में दशमेश होकर बैठना अच्छा है क्योंकि मंगल सिंह राशि का होगा जो अपने भाव से
4 और 9 भाव की दूरी पर होगा जिससे राज योग बनेगा ऐसा यहाँ कहा जा सकता है | इसी प्रकार देखे तो धनु लग्न हेतु गुरु का आठवें भाव में बैठना धन के लिए
अच्छा होता है आठवें भाव में ही गुरु ऊंच का बनता है जिससे वह स्वयं से 6 और 9 भावो के फल के साथ साथ 1 और 4 के फल
भी देता है जिससे राज योग,लक्ष्मी योग और अधि योग का निर्माण होता है इसके अतिरिक्त क्यूंकी
गुरु कर्क में उच्च का होता है जो धन,व्यवसाय,संतान,संपत्ति एवं विद्या का कारक होता है 11वे भाव से यह 10वां भाव होता है जो धन देता हैं,2रे से 7वा होने पर 2रे को देखता है जिससे 2रे,5वे व 11वे भाव को ताकत मिलती है |
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