हरिवंश पुराण
में लिखा है की श्री कृष्ण का अभिजीत मुहूर्त में जन्म हुआ था जिसमें 5 ग्रह ऊंच एवं एक ग्रह स्वग्रही था | भाद्रपद कृष्ण अष्टमी में सूर्य सिंह राशि में होता है अर्थात सूर्य स्वग्रही
था जब सूर्य 6 अंश 40 मिनट का मिथुन राशि के आद्रा नक्षत्र में होता है तो उत्तर भारत
में मानसून शुरू होता है अर्थात भारी वर्षा होती है जब सूर्य कर्क में आता है तब सावन मास का आरंभ होता है
और जब सूर्य सिंह में जाता है तब जल बरसने से बाढ़ आती है कृष्ण का जन्म समय यमुना
में बाढ़ आई हुई थी तथा करिश्मे होने लगे थे बहुत सी पुस्तकें जैसे
श्रीमद्भागवत,गीता,हरिवंशपुराण,ब्रह्म वैवर्त
पुराण मे श्री कृष्ण के जन्म का समय आधी रात का दिया गया है |
भारतीय विद्वानो ने
भगवान कृष्ण का वृष लग्न माना हैं परंतु ग्रहो की स्थिति पर सभी विद्वान एकमत नहीं
हैं ज्योतिष पितामाह व हमारे गुरु श्री के एन राव के अनुसार भगवान श्री कृष्ण की पत्रिका
मे ग्रहो की स्थिति कुछ इस प्रकार से हो
सकती हैं |
निश्चित व निर्धारित
पत्रिका वृषभ लग्न की है जिसमें वृष राशि में चंद्रमा,कर्क राशि में गुरु,सिंह राशि में
सूर्य शुक्र,कन्या राशि में बुध,तुला राशि में शनि राहु,मकर राशि में
मंगल तथा मेष राशि में केतु स्थित हो सकते है |
श्रीकृष्ण की
इस पत्रिका में एकादशेश गुरु का तीसरे भाव में होना उनके सबसे
छोटे होने का पता बताता है क्योंकि यह गुरु शनि और मंगल से दृष्ट
है उन से पहले जन्मे सभी भाई बहनों की हत्या कंस के द्वारा कर दी गई थी | शनि राहु का छठे भाव में बारहवें भाव को देखना तथा चतुर्थेश को बारहवें भाव
के स्वामी मंगल के द्वारा देखना जन्म के समय उनके मां-बाप का कारावास में होना
निश्चित करता है | कुंडली में सप्तमेश अष्टमेश
का संबंध अध्यात्म साधना हेतु बढ़िया होता है जोकि ध्यान समाधि आदि के अतिरिक्त विवाह बंधन का
टूटना भी दर्शाता है ध्यान दें यह संबंध मंगल और शुक्र का बन रहा है जो एक से अधिक
विवाह की पुष्टि करते हैं | पंचमेश का
पंचम भाव में उच्च राशि का होना श्री कृष्ण भगवान के अत्याधिक बुद्धिमान व अच्छे विद्वान
होने की पुष्टि करता है |
तीसरे भाव में
उच्च का गुरु उपदेश देने के लिए उनकी पुष्टि करता है सभी जानते हैं उन्होंने गीता का
उपदेश दिया था | छठे भाव के स्वामी
शुक्र का सूर्य सिंह चतुर्थ भाव में होना उनकी दो माताओं की पुष्टि करता है | दशमेश का छठे भाव में राहु संग होना जादू करिश्मा आदि करना बताता है
| सप्तमेश का ग्यारहवें भाव में होना एक से
अधिक विवाह की पुष्टि करता है तथा उनके कई सारी अनुयाई होने का पता बताता है | लग्न में उच्च का चंद्रमा तथा उस पर किसी भी ग्रह का प्रभाव ना होना उनकी चंचल
प्रवृति को दर्शाता है तृतीयेश का लग्न में होना गायन अथवा वादन
कला से संबंधित बताता है |
इस प्रकार हम
देखे तो श्री राव द्वारा प्रस्तुत यह कुंडली काफी हद
तक भगवान श्री कृष्ण के विषय में सटीकता से बताती है |
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