रविवार, 15 अप्रैल 2018

गुण मिलान....जातक अनुकूल


भारत के अलग-अलग प्रांतों में गुण मिलान के अलग-अलग प्रकार बताए गए हैं बावजूद इसके कुछ सूत्र ऐसे हैं जो गुण मिलान के लिए लगभग सभी प्रांतों में सामान्यत: एक जैसे ही पाए ही जाते हैं | ज्योतिष अनुसार विवाह संबंध प्रसन्नता भरा,सुखी,लंबा तथा संपन्नता प्रदान करने वाला होना चाहिए परंतु आज के इस भागते दौड़ते जीवन मे इन सबके अतिरिक्त और भी कई अन्य बातें विवाह संबंध बनाने मे देखी जाने लगी हैं | प्राचीन समय मे जहां विवाह का मुख्य आधार संतति प्राप्त कर अपने धर्म का पालन करना होता हैं वही अब के समय मे कई अन्य बातें भी इस मे शामिल हो गयी हैं जिनसे विवाह संबंध बनाते समय पहले के मुक़ाबले बहुत सी परेशानियाँ खड़ी होने लगी हैं |

हमारे प्राचीन शास्त्रों में मुख्यतः 5 तथ्य महत्वपूर्ण रूप से बताए गए हैं जो विवाह करते समय ध्यान मे अवश्य रखे जाने चाहिए ये पाँच तथ्य निम्न हैं 1) जातक अनुकूल 2) योग अनुकूल 3) दशा संधि 4) दोष साम्य तथा 5) पौरुत शोधन अथवा कूट सहमति |

प्रस्तुत लेख में प्रथम तथ्य जातक अनुकूल के सी ही कुछ विशेषताओ के बारे में हम जानकारी दे रहे हैं जो विवाह हेतु अशुभ माने जाते हैं |

1) लग्न षडाष्टक दोष - वर और वधु के लग्न में 6 और 8 का अंतर नहीं होना चाहिए | लड़के का लग्न मेष हो तो वधू का लग्न कन्या अथवा वृश्चिक नहीं होना चाहिए |

2) चन्द्र षडाष्टक दोष - वर और वधु की चंद्र राशि में भी 6 और 8 का अंतर नहीं होना चाहिए उदाहरण यदि लड़के चन्द्र राशि  मेष हो तो वधू का चन्द्र राशि कन्या अथवा वृश्चिक नहीं होनी चाहिए |

3) शुक्र षडाष्टक दोष - वर और धु दोनों की पत्रिकाओं में शुक्र भी एक दूसरे से 6/8 का नहीं होना चाहिए जैसे यदि लड़के की पत्रिका में शुक्र मेष में हो तो लड़की की पत्रिका में शुक्र कन्या अथवा वृश्चिक में नहीं होना चाहिए |

4) गुलिक दोष - दोनों की कुंडली मे गुलिक भी 6/8 की अवस्था में नहीं होना चाहिए |

5) परस्पर अष्टम स्थिति दोष - इस दोष के लिए शुक्र,सूर्य और केतु को दोनों कुंडलियों में देखा जाना चाहिए | स्त्री की पत्रिका से पुरुष की पत्रिका में शुक्र का आठवे होना,स्त्री की पत्रिका से पुरुष की पत्रिका में सूर्य का अष्टम होना तथा स्त्री की पत्रिका से पुरुष की पत्रिका मे केतू का अष्टम होना | ऐसे में विवाह निर्धारित नहीं करना चाहिए |

6) द्वादश शुक्र स्थिति दोष - यदि दोनों की पत्रिका में शुक्र बारहवें भाव में हो तो भी विवाह नहीं 
करना चाहिए |

7) चन्द्र शुक्र दोष - यदि दोनों पत्रिकाओं में चंद्र शुक्र की युति हो तो भी विवाह नहीं करना चाहिए |

8) अपुत्र राशि दोष - यदि दोनों पत्रिकाओं के पंचम भाव में पुत्र राशियां जैसे वृषभ,सिंह,कन्या तथा वृश्चिक होतो भी विवाह नहीं करना चाहिए | जो जातक मकर,मेष,वृषभ और कर्क लग्न में होते हैं उनके पंचम भाव में अपुत्र राशियां आती हैं | अत: परस्पर इन लग्नों मे जन्मे जातको का विवाह भी नहीं करना चाहिए परंतु ऐसे मे भाव कुंडलियाँ भी देखनी चाहिए केवल लग्न कुंडली से देखना प्रयाप्त साबित नहीं होता | यहाँ यह भी ध्यान दे की पंचमेश की स्थिति 6,8,12 मे होने से भी संतान संबंधी परेशानियाँ  होती ही हैं |

9) निचाधिक्य दोष - यदि किसी भी पत्रिका में दो या दो से अधिक ग्रह नीच के होतो संबंध नहीं करना चाहिए |

10) चन्द्र शुक्र नीच स्थिति दोष - यदि दोनों की पत्रिका में चंद्र और शुक्र दोनों नीच हो (जो कि वृश्चिक राशि के जन्म तथा शुक्र के कन्या में होने से ही होगा) तो भी विवाह नहीं करना चाहिए |

11) सम सप्तम वेध दोष - लड़के का नक्षत्र लड़की के नक्षत्र से 14वा नहीं होना चाहिए | ऐसे मे भले ही लग्न व चन्द्र लग्न ससप्तक ही क्यू ना हो तब भी विवाह नहीं करना चाहिए |

12) भिन्न नक्षत्र दोष - लड़का लड़की की कुंडली में भिन्न नक्षत्र दोष नहीं होना चाहिए भिन्न नक्षत्र दोष का अर्थ ऐसे नक्षत्रों से है जो 2 राशियों में होते हैं जैसे कृतिका,मृगशिरा,पुनर्वसु,उत्तराफाल्गुनी,चित्रा,विशाखा,तथा उत्तराषाढ़ा,धनिष्ठा और पूर्व भाद्रपद |

13) पंचम भाव स्थिति दोष - यदि दोनों पत्रिकाओं में पंचम भाव में राहु केतु हो और वह शनि के नवांश  में हो तो भी विवाह नहीं करना चाहिए |

14) स्त्री लग्नाधिपति द्वितीय स्थिति दोष - यदि लड़की का लग्नेश लड़के के लग्न से दूसरे भाव में हो तो भी विवाह नहीं करना चाहिए |

15) षष्ट-अष्टम-द्वादश स्थिति दोष - यदि लग्नेश तथा 2,5,7,8 व 9 भाव के स्वामी 6/8/12 भाव में हो तो विवाह नहीं करना चाहिए |

16) लग्न अथवा चंद्र लग्न यदि पापकर्तरी में हो तो भी विवाह नहीं करना चाहिए |

प्रस्तुत सभी सूत्रों में से यदि 5 अथवा 5 से अधिक दोष आ रहे हो तो विवाह संबंध निरस्त कर देना चाहिए अथवा ऐसे मे वर कन्या का विवाह नहीं करना चाहिए अन्यथा भावी वैवाहिक जीवन मे तनाव व समस्याएँ आती रहती हैं |


जैसा की नाम से ही पता चल जाता हैं की यह सभी तथ्य जातक अनुकूल नामक तथ्य के तहत लिए गए हैं अर्थात जातक जातिका एक दूसरे के लिए अनुकूल हैं की नहीं इन सब बातों से भली भांति देखा व समझा जा सकता हैं |

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