मंगलवार, 26 मई 2015

शुक्र ग्रह अस्त



शुक्र ग्रह अस्त

शुक्र ग्रह को ग्रह मण्डल मे शुभता की श्रेणी मे गुरु ग्रह के बाद दूसरे पायदान मे रखा गया हैं | शुक्र काल पुरुष की इच्छाओ का प्रतीक माना जाता हैं जिसे मानव शरीर मे कुंडली शक्ति मे स्थित रखा गया हैं कुंडली मे शुभ शुक्र जातक विशेष को सभी प्रकार की सांसारिक वस्तुए प्रदान कर आनंद व भोग से परिपूर्ण करता हैं (इसीलिए इसे द्वितीय व सप्तम भाव का स्वामी बनाया गया हैं ) यह शुक्र इतना प्रभावशाली होता हैं की अस्त अवस्था मे भी यह जातक विशेष के जीवन पर अपना प्रभाव रखता हैं | प्रस्तुत लेख मे हम शुक्र के इसी अस्तावस्था के प्रभाव की चर्चा कर रहे हैं जिसके लिए हमने कुछ कुंडलियों का अध्ययन भी करने का प्रयास किया हैं |

जब कोई ग्रह सूर्य के नजदीक आ जाता हैं तो उसे अस्त माना जाता हैं प्रत्येक ग्रह के अस्त होने के कुछ अंश निर्धारित होते हैं जिसमे शुक्र ग्रह के 10 अंश सामान्य अवस्था मे तथा 8 अंश वक्र अवस्था माने गए हैं | अस्त ग्रह के विषय मे यह माना जाता हैं की वह अपने कारकत्व ठीक से प्रदान नहीं करता हैं अर्थात वह जिन जिन वस्तुओ का कारक होता हैं उन वस्तुओ को सही प्रकार से प्रदान नहीं करता |

सारावली के 36वे अध्याय रश्मि चिंता मे कल्याण वर्मा कहते हैं की शुक्र व शनि को छोड़कर जो भी ग्रह अस्त होता हैं वह अपनी रश्मि अर्थात किरणे प्रदान नहीं करता हैं जिससे उसके कारकत्व वाली वस्तुए जातक को ठीक से प्राप्त नहीं हो पाती | जातक पारिजात मे बैधनाथ पंडित अध्याय 5 के 7वे श्लोक आयुर्दाय मे कहते हैं की शुक्र व शनि अस्त होकर भी अपना प्रभाव प्रदान करते हैं ( इसमे संदेह नहीं हैं की ग्रहो की रश्मियों का प्रभाव महत्वपूर्ण होता हैं क्यूंकी ग्रहो की अस्तावस्था व ग्रसितावस्था मे उन्हे विकल अर्थात कमजोर माना जाता हैं ) चूंकि शुक्र शनि दोनों ग्रहो को अस्तावस्था के बावजूद रश्मि प्रदाता माना गया हैं और ऐसा कुंडलियों का अध्ययन करने पर पाया भी गया हैं की जब कुंडली मे शुक्र अस्तावस्था मे होता हैं तो जातक सादा जीवन ऊंच विचार वाली सोच रख अपनी इच्छाओ को दमित कर जीवन को ऊंच स्तर पर ले जाता हैं | शुक्र का अस्त होना जातक के सांसारिक जीवन को संतुलित कर उसे दार्शनिकता की और बढाता हैं जिससे व्यक्ति के महान बनने की शुरुआत होती हैं सांसारिकता का कारक शुक्र अस्त होकर जातक को सांसारिक वस्तुओ से मोह भंग कर उसे ईश्वर के करीब लाने मे सहायक सिद्द होता हैं |

किसी भी कार्य को करने हेतु इच्छा होनी ज़रूरी होती हैं यह इच्छा ही अच्छी बुरी वस्तुओ से हमारा परिचय कराती हैं इच्छा ना हो तो जीवन नीरस हो जाता हैं और इच्छाओ का स्वामी व कारक यह शुक्र ही होता हैं | शुक्र जब भी किसी ग्रह के संपर्क मे आता हैं तब वह परिशुद्ध होकर उस ग्रह से संबन्धित तत्वो पर अपना प्रभाव डाल देता हैं गुरु जहां देवताओ के गुरु माने जाते हैं वही शुक्र दानवो के गुरु कहे गए हैं जो प्रत्येक वस्तुओ और इच्छाओ पर अपना अधिकार रखना चाहते हैं और ऐसे मे जब यही शुक्र सूर्य से अस्त हो जाते हैं तो अपनी सारी राजसिकता को सात्विक्ता मे बदल जीवन को ईश्वर से जोड़ने का कार्य करा मोह माया के बंधनो से मुक्त करते हैं परंतु ऐसा भी नहीं हैं की शुक्र के अस्त होने पर जातक विशेष को संसार का सुख नहीं मिलता मिलता अवश्य हैं परंतु एक सही व मर्यादित रूप मे जिससे जातक स्वर्ण की भांति तपकर इस धरती पर अपना नाम रोशन करता हैं महान ऋषिओ,आचार्यो,संतो,व विद्वानो की पत्रिका मे शुक्र का अस्त होना तो यही सिद्द करता हैं |

आइए कुछ कुंडलियों मे शुक्र अस्त का प्रभाव देखते हैं |

1)भारत 15/8/1947 00:00 दिल्ली वृष लग्न की इस पत्रिका मे शुक्र तृतीय भाव मे अस्त हैं और हमारा भारत वर्ष विश्व मे धर्म व अध्यात्म के क्षेत्र मे क्या स्थान रखता हैं सब जानते ही हैं |

2)आदि शंकराचार्य व रामानुजाचार्य की कर्क लग्न की इस पत्रिकाओ मे शुक्र दशम भाव मे ऊंच के सूर्य से अस्त हैं और इनके विषय मे प्रत्येक भारतवासी सब जानते ही हैं |

3) सरस्वती पुत्र रवीन्द्रनाथ टैगोर 7/5/1861 मीन लग्न तथा अरविंद घोष 15/8/1872 मेष लग्न दोनों पत्रिका मे शुक्र दूसरे भाव मे अस्त हैं और इनका जीवन किस प्रकार का था यह बताने की आवशयकता ही नहीं हैं |

4)स्वामी विवेकानंद 12/1/1863 धनु लग्न इनकी पत्रिका मे भी शुक्र अस्त हैं |

5)नरसिंह भारती 11/3/1858 तुला लग्न,इनके अतिरिक्त मोतीलाल नेहरू 6/5/1861 धनु लग्न,जगमोहन डालमिया 7/4/1893 वृष लग्न,हरगोविंद खुराना 9/1/1922 वृष लग्न,मुंशी प्रेमचंद 31/7/1880 6:00 कर्क लग्न,सरदार पटेल 18/10/1875 मेष लग्न,जज ब्रजेश कुमार 1/9/1915 कुम्भ लग्न,लेखक बर्नार्ड शाह 26/7/1856 वृष लग्न की पत्रिकाओ मे शुक्र अस्त हैं |     

शनिवार, 23 मई 2015

किस नक्षत्र मे आरंभ करे व्यापार



किस नक्षत्र मे आरंभ करे व्यापार

प्राय: देखने मे आता हैं की जब कोई जातक स्वयं का व्यापार करना चाहता हैं तो उसके सामने दो बड़ी समस्याए आती हैं पहली की कौन सी वस्तु का व्यापार करे व दूसरी की व्यापार कब आरंभ करे ज्योतिष द्वारा यह जाना जा सकता हैं किस जातक के लिए कौन सी वस्तु का व्यापार लाभकारी रहेगा जिसके लिए प्रत्येक जातक की कुंडली का अध्ययन करना पड़ता हैं | व्यापार कब आरंभ करे इसके लिए गोस्वामी तुलसीदास अपने रचित ग्रंथ दोहावली मे लिखते हैं की श्रवण,धनिष्ठा,शतभीषा,हस्त,चित्रा,स्वाति,पुष्य,पुनर्वसु,मृगशिरा,अश्विनी,रेवती तथा अनुराधा नक्षत्रो मे आरंभ किया गया व्यापार व दिया गया धन हमेशा धनवर्धक होता हैं जो किसी भी अवस्था मे डूब नहीं सकता अर्थात इन नक्षत्रो मे आरंभ किया गया व्यापार कभी भी जातक को हानी नहीं दे सकता हैं | इसी प्रकार शेष अन्य नक्षत्रो मे दिया गया,चोरी गया,छीना हुआ अथवा उधार दिया धन कभी भी वापस नहीं आता हैं अर्थात जातक को हानी ही प्रदान करता हैं |

एक अन्य श्लोक् मे कहा गया हैं की यदि रविवार को द्वादशी,सोमवार को एकादशी,मंगलवार को दशमी,बुधवार को तृतीया,गुरुवार को षष्ठी,शुक्रवार को द्वितीया तथा शनिवार को सप्तमी तिथि पड़े तो यह तिथिया सर्व सामान्य हेतु हानिकारक बनती हैं अर्थात आमजन को इन तिथियो मे नुकसान ही होता हैं | अत: इन तिथियो मे कोई बड़ा सौदा अथवा लेन-देन नहीं करना चाहिए |

जातक की अपनी राशि से जब चन्द्र का गोचर 3,6,12 भावो से होता हैं तब जातक को अवस्य ही दुख तकलीफ,धनहानी जैसी परेशानियों का सामना करना पड़ता हैं इसी प्रकार जब मेष राशि के प्रथम,वृष के पंचम,मिथुन के नवे,कर्क के दूसरे,सिंह के छठे,कन्या के दसवे,तुला के तीसरे,वृश्चिक के सातवे,धनु के चौथे,मकर के आठवे,कुम्भ के ग्यारहवे,तथा मीन के बारहवे चन्द्र होतो जातक हेतु घातक प्रभाव होता हैं जिससे जातक को मृत्यु तुल्य कष्ट प्राप्त होते हैं अत: इन इन दिनो जातक को विशेष सावधान रहना चाहिए |    

सोमवार, 18 मई 2015

धर्म अर्थ काम और मोक्ष



धर्म अर्थ काम और मोक्ष

भारतीय समाज हमारे जीवन को चार भागो मे बांटता हैं जो क्रमश: धर्म,अर्थ,काम व मोक्ष हैं ज्योतिष मे भी जातक विशेष की कुंडली इन्ही चारो का प्रतिनिधित्व कुंडली के सभी 12 भावो द्वारा करती हैं कौन सा जातक किस भाग की अधिकता व कमी वाला जीवन जिएगा यह उसकी कुंडली देखकर जाना जा सकता हैं आइए ज्योतिष की दृस्टी से कुछ ऐसी ही कुंडली के भावो का अध्ययन प्रस्तुत लेख मे करते हैं |
धर्म-भारतीय संस्कृति का मूल “धर्म” ही हैं | धर्म शब्द का शाब्दिक अर्थ होता हैं “धारण करना” अर्थात धारण करने वाले को धर्म कहते हैं पंच तंत्र के अनुसार यह धर्म ही हैं जो व्यक्ति को अन्य जीवो से अलग करता हैं वही वैशेषिक सूत्र के अनुसार जिससे सांसारिक सुख व आध्यात्मिक कल्याण प्राप्त हो वही धर्म हैं | जहां मनुस्मृति मे धर्म के चार श्रोत (श्रुति,स्मृति,सदाचार तथा जो अपनी आत्मा को प्रिय लगे ) व दस लक्षण (धैर्य,क्षमा,संयम,चोरी ना करना,शुद्दी,इंद्रियो को वश मे करना,बुद्दि,शिक्षा,सत्य तथा क्रोध ना करना) बताए गए हैं वही महाभारत मे धर्म को अर्थ व काम का श्रोत माना गया हैं | गीता व पुराण मे भी धर्म के महत्व को प्रधानता दी गयी हैं जिनमे कहाँ गया हैं की धर्म का पालन करने से मनुष्य पाप से बचा रहता हैं | ज्योतिष मे धर्म हेतु कुंडली के 1,5,9 भावो का अध्ययन किया जाता हैं यदि इन भावो मे अधिक शुभ ग्रहो  का प्रभाव होता हैं तो जातक धर्म प्रधान होता हैं अपने धर्म को मानने वाला,धर्म का प्रचार व प्रसार करने वाला  धार्मिक विचारो तथा धार्मिक रीति रिवाजो को मानने वाला होता हैं |

अर्थ-अर्थ को दूसरा पुरुषार्थ कहा गया हैं जिसका शाब्दिक अर्थ पदार्थ व वस्तु हैं इनमे वह सभी भौतिक वस्तुए आती हैं जो मनुष्य को जीवन यापन के लिए चाहिए होती हैं मनुष्य की सभी आवशयकताए इस अर्थ से ही पूर्ण व संचालित होती हैं इस कारण सभी धर्मशास्त्रों मे मनुष्य की दूसरी अवस्था (ग्रहस्थ आश्रम) मे धन कमाना मनुष्य का लक्ष्य कहा गया हैं परिवार की आवशयकताओ के लिए धन का होना जितना ज़रूरी हैं उतना ही धर्म संचालन के लिए भी धन अथवा अर्थ का होना ज़रूरी हैं इस तरह से धर्म व काम की पूर्ति का साधन अर्थ हैं बिना अर्थ के धर्म व काम संभव ही नहीं मुश्किल भी हैं | कुंडली मे 2,6,10 भावो को अर्थ संबंधी भाव कहा जाता हैं जिससे जातक का धन,संघर्ष व कर्म क्षेत्र बंधा हुआ होता हैं इन भावो मे ग्रहो का प्रभाव जातक को अर्थ संबंधी सोच व विचार प्रदान करता हैं जिसके अनुसार जातक अपने जीवन मे अर्थ प्राप्ति का प्रयत्न करता हैं |

काम-यह तीसरा पुरुषार्थ हैं जिसका शाब्दिक अर्थ इच्छा होता हैं काम का अभिप्राय: मनुष्य की सभी शारीरिक,मानसिक,संवेगात्मक तथा कलात्मक इच्छाओ की पूर्ति से हैं जो उसके सम्पूर्ण विकास व जीवन के परम लक्ष्य को प्राप्त करने मे सहायक हैं | इच्छा अथवा काम सभी कार्यो की प्रेरणा शक्ति होती हैं इस काम को भारतीय मनीषियों ने तीन श्रेणियो मे रखा हैं जिसमे सात्विक काम ( जो फल की इच्छा किए बिना धर्मानुसार किया जाता हैं ) को श्रेष्ठ कहा गया हैं जबकि अन्य काम (राजसिक व तामसिक )जातक विशेष को मोह माया के बंधन चक्र मे बांधते हैं भारतीय समाज मे इस सात्विक काम को नियंत्रित करने के लिए विवाह करने का विधान रखा गया हैं जिससे जातक विशेष की यौन संबंधी इच्छाओ की तृप्ति होती हैं | कुंडली के 3,7,11 भावो को काम संबंधी भाव माना गया हैं इन भावो मे ग्रहो का प्रभाव जातक के काम संबंधो,विचारो को उसके जीवन मे परिलक्षित करता हैं |  

मोक्ष –जीवन की अंतिम अवस्था को मोक्ष अवस्था कहा जाता हैं इस अवस्था मे जातक की सभी इच्छाओ की पूर्ति हो चुकी होती हैं अथवा उसकी इच्छाए समाप्त हो चुकी होती हैं व्यक्ति धर्म के मार्ग पर चलते हुये संसार से मुक्त होना चाहता हैं,समाज हेतु अच्छे कार्य करना पसंद करता हैं,सबका भला चाहता हैं तथा सभी इच्छाओ,कर्मो का त्याग कर इस धरती पर दोबारा जन्म ना लेने की अभिलाषा रखता हैं प्रत्येक वस्तु,पदार्थ आदि से मोह नष्ट करना अथवा मोह का क्षय करना ही मोक्ष कहलाता हैं जातक की कुंडली के 4,8, व 12 भाव मोक्ष भाव कहलाते हैं | इन भावो मे ग्रहो का प्रभाव जातक को मोक्षता की और प्रेषित करता हैं जिसके अनुसार जातक जीवन भर अपने अच्छे बुरे कर्म कर मोक्ष पाना चाहता हैं |

गुरुवार, 14 मई 2015

15 मई का ग्रह गोचर



15 मई का ग्रह गोचर

15 मई 2015 के ग्रह गोचर पर नज़र डालिए आपको अधिकतर ग्रह सम राशियो मे नज़र आएंगे दोपहर 11:40 को जब मंगल और शनि के अंश समान होंगे तथा सूर्य वृष राशि पर आ चुका होगा जिससे शनि,सूर्य और मंगल का संबंध बन जाएगा जो अगले एक माह तक रहेगा पाप ग्रहो का यह संबंध तथा सम राशियो मे ग्रहो की उपस्थिती धरती पर अवस्य ही विनाशकारी प्रभाव दिखाएगी संभवत: कोई बड़ा भूकंप व सुनामी आने वाले कुछ दिनो मे अपना प्रभाव दिखा सकते हैं |