शुक्र
ग्रह अस्त
शुक्र
ग्रह को ग्रह मण्डल मे शुभता की श्रेणी मे गुरु ग्रह के बाद दूसरे पायदान मे रखा
गया हैं | शुक्र
काल पुरुष की इच्छाओ का प्रतीक माना जाता हैं जिसे मानव शरीर मे कुंडली शक्ति मे
स्थित रखा गया हैं कुंडली मे शुभ शुक्र जातक विशेष को सभी प्रकार की सांसारिक
वस्तुए प्रदान कर आनंद व भोग से परिपूर्ण करता हैं (इसीलिए इसे द्वितीय व सप्तम
भाव का स्वामी बनाया गया हैं ) यह शुक्र इतना प्रभावशाली होता हैं की अस्त अवस्था
मे भी यह जातक विशेष के जीवन पर अपना प्रभाव रखता हैं |
प्रस्तुत लेख मे हम शुक्र के इसी अस्तावस्था के प्रभाव की चर्चा कर रहे हैं जिसके
लिए हमने कुछ कुंडलियों का अध्ययन भी करने का प्रयास किया हैं |
जब कोई
ग्रह सूर्य के नजदीक आ जाता हैं तो उसे अस्त माना जाता हैं प्रत्येक ग्रह के अस्त
होने के कुछ अंश निर्धारित होते हैं जिसमे शुक्र ग्रह के 10 अंश सामान्य अवस्था मे
तथा 8 अंश वक्र अवस्था माने गए हैं |
अस्त ग्रह के विषय मे यह माना जाता हैं की वह अपने कारकत्व ठीक से प्रदान नहीं
करता हैं अर्थात वह जिन जिन वस्तुओ का कारक होता हैं उन वस्तुओ को सही प्रकार से
प्रदान नहीं करता |
सारावली
के 36वे अध्याय रश्मि चिंता मे कल्याण वर्मा कहते हैं की शुक्र व शनि को छोड़कर जो
भी ग्रह अस्त होता हैं वह अपनी रश्मि अर्थात किरणे प्रदान नहीं करता हैं जिससे
उसके कारकत्व वाली वस्तुए जातक को ठीक से प्राप्त नहीं हो पाती |
जातक पारिजात मे बैधनाथ पंडित अध्याय 5 के 7वे श्लोक आयुर्दाय मे कहते हैं की
शुक्र व शनि अस्त होकर भी अपना प्रभाव प्रदान करते हैं ( इसमे संदेह नहीं हैं की
ग्रहो की रश्मियों का प्रभाव महत्वपूर्ण होता हैं क्यूंकी ग्रहो की अस्तावस्था व
ग्रसितावस्था मे उन्हे विकल अर्थात कमजोर माना जाता हैं ) चूंकि शुक्र शनि दोनों
ग्रहो को अस्तावस्था के बावजूद रश्मि प्रदाता माना गया हैं और ऐसा कुंडलियों का अध्ययन
करने पर पाया भी गया हैं की जब कुंडली मे शुक्र अस्तावस्था मे होता हैं तो जातक
सादा जीवन ऊंच विचार वाली सोच रख अपनी इच्छाओ को दमित कर जीवन को ऊंच स्तर पर ले
जाता हैं | शुक्र
का अस्त होना जातक के सांसारिक जीवन को संतुलित कर उसे दार्शनिकता की और बढाता हैं
जिससे व्यक्ति के महान बनने की शुरुआत होती हैं सांसारिकता का कारक शुक्र अस्त
होकर जातक को सांसारिक वस्तुओ से मोह भंग कर उसे ईश्वर के करीब लाने मे सहायक
सिद्द होता हैं |
किसी भी
कार्य को करने हेतु इच्छा होनी ज़रूरी होती हैं यह इच्छा ही अच्छी बुरी वस्तुओ से
हमारा परिचय कराती हैं इच्छा ना हो तो जीवन नीरस हो जाता हैं और इच्छाओ का स्वामी
व कारक यह शुक्र ही होता हैं |
शुक्र जब भी किसी ग्रह के संपर्क मे आता हैं तब वह परिशुद्ध होकर उस ग्रह से
संबन्धित तत्वो पर अपना प्रभाव डाल देता हैं गुरु जहां देवताओ के गुरु माने जाते
हैं वही शुक्र दानवो के गुरु कहे गए हैं जो प्रत्येक वस्तुओ और इच्छाओ पर अपना
अधिकार रखना चाहते हैं और ऐसे मे जब यही शुक्र सूर्य से अस्त हो जाते हैं तो अपनी
सारी राजसिकता को सात्विक्ता मे बदल जीवन को ईश्वर से जोड़ने का कार्य करा मोह माया
के बंधनो से मुक्त करते हैं परंतु ऐसा भी नहीं हैं की शुक्र के अस्त होने पर जातक
विशेष को संसार का सुख नहीं मिलता मिलता अवश्य हैं परंतु एक सही व मर्यादित रूप मे
जिससे जातक स्वर्ण की भांति तपकर इस धरती पर अपना नाम रोशन करता हैं महान ऋषिओ,आचार्यो,संतो,व
विद्वानो की पत्रिका मे शुक्र का अस्त होना तो यही सिद्द करता हैं |
आइए कुछ
कुंडलियों मे शुक्र अस्त का प्रभाव देखते हैं |
1)भारत
15/8/1947 00:00 दिल्ली वृष लग्न की इस पत्रिका मे शुक्र तृतीय भाव मे अस्त हैं और
हमारा भारत वर्ष विश्व मे धर्म व अध्यात्म के क्षेत्र मे क्या स्थान रखता हैं सब
जानते ही हैं |
2)आदि
शंकराचार्य व रामानुजाचार्य की कर्क लग्न की इस पत्रिकाओ मे शुक्र दशम भाव मे ऊंच
के सूर्य से अस्त हैं और इनके विषय मे प्रत्येक भारतवासी सब जानते ही हैं |
3) सरस्वती
पुत्र रवीन्द्रनाथ टैगोर 7/5/1861 मीन लग्न तथा अरविंद घोष 15/8/1872 मेष लग्न
दोनों पत्रिका मे शुक्र दूसरे भाव मे अस्त हैं और इनका जीवन किस प्रकार का था यह
बताने की आवशयकता ही नहीं हैं |
4)स्वामी
विवेकानंद 12/1/1863 धनु लग्न इनकी पत्रिका मे भी शुक्र अस्त हैं |
5)नरसिंह
भारती 11/3/1858 तुला लग्न,इनके
अतिरिक्त मोतीलाल नेहरू 6/5/1861 धनु लग्न,जगमोहन
डालमिया 7/4/1893 वृष लग्न,हरगोविंद
खुराना 9/1/1922 वृष लग्न,मुंशी प्रेमचंद
31/7/1880 6:00 कर्क लग्न,सरदार
पटेल 18/10/1875 मेष लग्न,जज
ब्रजेश कुमार 1/9/1915 कुम्भ लग्न,लेखक
बर्नार्ड शाह 26/7/1856 वृष लग्न की पत्रिकाओ मे शुक्र अस्त हैं |