धर्म अर्थ काम और मोक्ष
भारतीय समाज हमारे जीवन को चार भागो मे बांटता हैं जो क्रमश:
धर्म,अर्थ,काम व मोक्ष हैं ज्योतिष मे भी जातक विशेष की
कुंडली इन्ही चारो का प्रतिनिधित्व कुंडली के सभी 12 भावो द्वारा करती हैं कौन सा
जातक किस भाग की अधिकता व कमी वाला जीवन जिएगा यह उसकी कुंडली देखकर जाना जा सकता
हैं आइए ज्योतिष की दृस्टी से कुछ ऐसी ही कुंडली के भावो का अध्ययन प्रस्तुत लेख
मे करते हैं |
धर्म-भारतीय संस्कृति का मूल “धर्म” ही हैं | धर्म शब्द का शाब्दिक अर्थ होता हैं “धारण करना” अर्थात धारण
करने वाले को धर्म कहते हैं पंच तंत्र के अनुसार यह धर्म ही हैं जो व्यक्ति को
अन्य जीवो से अलग करता हैं वही वैशेषिक सूत्र के अनुसार जिससे सांसारिक सुख व
आध्यात्मिक कल्याण प्राप्त हो वही धर्म हैं | जहां
मनुस्मृति मे धर्म के चार श्रोत (श्रुति,स्मृति,सदाचार तथा जो अपनी आत्मा को प्रिय लगे ) व दस लक्षण (धैर्य,क्षमा,संयम,चोरी ना करना,शुद्दी,इंद्रियो को वश मे करना,बुद्दि,शिक्षा,सत्य तथा क्रोध ना करना) बताए गए हैं वही महाभारत
मे धर्म को अर्थ व काम का श्रोत माना गया हैं | गीता व पुराण मे भी धर्म के महत्व को प्रधानता दी गयी हैं
जिनमे कहाँ गया हैं की धर्म का पालन करने से मनुष्य पाप से बचा रहता हैं | ज्योतिष मे धर्म हेतु कुंडली के 1,5,9 भावो का अध्ययन किया जाता हैं यदि इन भावो मे अधिक शुभ
ग्रहो का प्रभाव होता हैं तो जातक धर्म
प्रधान होता हैं अपने धर्म को मानने वाला,धर्म
का प्रचार व प्रसार करने वाला धार्मिक
विचारो तथा धार्मिक रीति रिवाजो को मानने वाला होता हैं |
अर्थ-अर्थ को दूसरा पुरुषार्थ कहा गया हैं जिसका शाब्दिक अर्थ
पदार्थ व वस्तु हैं इनमे वह सभी भौतिक वस्तुए आती हैं जो मनुष्य को जीवन यापन के
लिए चाहिए होती हैं मनुष्य की सभी आवशयकताए इस अर्थ से ही पूर्ण व संचालित होती
हैं इस कारण सभी धर्मशास्त्रों मे मनुष्य की दूसरी अवस्था (ग्रहस्थ आश्रम) मे धन
कमाना मनुष्य का लक्ष्य कहा गया हैं परिवार की आवशयकताओ के लिए धन का होना जितना
ज़रूरी हैं उतना ही धर्म संचालन के लिए भी धन अथवा अर्थ का होना ज़रूरी हैं इस तरह
से धर्म व काम की पूर्ति का साधन अर्थ हैं बिना अर्थ के धर्म व काम संभव ही नहीं
मुश्किल भी हैं | कुंडली मे 2,6,10 भावो
को अर्थ संबंधी भाव कहा जाता हैं जिससे जातक का धन,संघर्ष व कर्म क्षेत्र बंधा हुआ होता हैं इन भावो मे ग्रहो का
प्रभाव जातक को अर्थ संबंधी सोच व विचार प्रदान करता हैं जिसके अनुसार जातक अपने
जीवन मे अर्थ प्राप्ति का प्रयत्न करता हैं |
काम-यह तीसरा पुरुषार्थ हैं जिसका शाब्दिक अर्थ इच्छा होता हैं काम
का अभिप्राय: मनुष्य की सभी शारीरिक,मानसिक,संवेगात्मक
तथा कलात्मक इच्छाओ की पूर्ति से हैं जो उसके सम्पूर्ण विकास व जीवन के परम लक्ष्य
को प्राप्त करने मे सहायक हैं | इच्छा अथवा काम सभी कार्यो की प्रेरणा शक्ति होती
हैं इस काम को भारतीय मनीषियों ने तीन श्रेणियो मे रखा हैं जिसमे सात्विक काम ( जो
फल की इच्छा किए बिना धर्मानुसार किया जाता हैं ) को श्रेष्ठ कहा गया हैं जबकि
अन्य काम (राजसिक व तामसिक )जातक विशेष को मोह माया के बंधन चक्र मे बांधते हैं
भारतीय समाज मे इस सात्विक काम को नियंत्रित करने के लिए विवाह करने का विधान रखा
गया हैं जिससे जातक विशेष की यौन संबंधी इच्छाओ की तृप्ति होती हैं | कुंडली के 3,7,11
भावो को काम संबंधी भाव माना गया
हैं इन भावो मे ग्रहो का प्रभाव जातक के काम संबंधो,विचारो को उसके जीवन मे परिलक्षित करता हैं |
मोक्ष –जीवन की अंतिम अवस्था को मोक्ष अवस्था कहा जाता हैं इस
अवस्था मे जातक की सभी इच्छाओ की पूर्ति हो चुकी होती हैं अथवा उसकी इच्छाए समाप्त
हो चुकी होती हैं व्यक्ति धर्म के मार्ग पर चलते हुये संसार से मुक्त होना चाहता
हैं,समाज हेतु अच्छे कार्य करना पसंद करता हैं,सबका भला चाहता हैं तथा सभी इच्छाओ,कर्मो का त्याग कर इस धरती पर दोबारा जन्म ना लेने की अभिलाषा
रखता हैं प्रत्येक वस्तु,पदार्थ आदि से मोह नष्ट करना अथवा मोह का क्षय करना
ही मोक्ष कहलाता हैं जातक की कुंडली के 4,8, व 12
भाव मोक्ष भाव कहलाते हैं | इन भावो मे ग्रहो का प्रभाव जातक को मोक्षता की और
प्रेषित करता हैं जिसके अनुसार जातक जीवन भर अपने अच्छे बुरे कर्म कर मोक्ष पाना
चाहता हैं |
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