शुक्रवार, 26 अक्तूबर 2012

मधुमेह


मधुमेह

वर्तमान समय मे तेजी से बढ़ते हुये रोगो मे से एक “डायबिटिस” अर्थात मधुमेह नामक रोग हैं यह रोग “साइलेंट किलर” की भाति धीरे धीरे प्रत्येक 10 मे से 4 व्यक्तिओ को अपने कब्जे मे लेता जा रहा हैं | आजकल के इस भागदौड़ वाले समय मे हमारी अनियमित दिनचर्या ने भी इस रोग को तेजी से बढ़ने मे मदद की हैं |

दैनिक जीवन मे शक्ति प्राप्त करने के लिए मानव शरीर की कोशिकाओ को ग्लूकोज नामक अवयव चाहिए होता हैं जो हमारे भोजन से प्राप्त होता हैं इस ग्लूकोज को विभिन्न कोशिकाओ मे पहुचाने हेतु अग्नाशय (पेंक्रियाज़ )द्वारा एक हारमोन “इंसुलिन” निकाला जाता हैं जो रक्त कोशिकाओ मे ग्लूकोज पहुँचाता हैं जिससे शरीर को शक्ति प्राप्त होती हैं जब यह इंसुलीन किसी भी कारण से ठीक से निर्मित नहीं हो पाता हैं तब हमारे शरीर मे रक्त शर्करा का चय-अपचय(मेटाबौलिज़्म ) सही ढंग से ना हो पाने से रक्त मे ग्लूकोज की मात्रा बढ़ जाती हैं जिसे उचित मात्रा मे गुर्दे अवशोषित नहीं कर पाते हैं और हमारे शरीर मे ग्लूकोज की अधिकता के कारण यह मधुमेह नामक रोग जन्म ले लेता हैं |

यह रोग दो प्रकार का होता हैं डी-वन तथा डी-टू

डी-वन -इस प्रकार का मधुमेह बचपन से होता हैं व इंसुलिन पर आधारित होता हैं इसमे रोगी को प्यास ज़्यादा लगती हैं तथा पसीना भी ज़्यादा आता हैं |

डी-टू इस प्रकार के मधुमेह का जन्म अन्य बाहरी कारणो से होता हैं जैसे अनुचित खानपान आदि  यह भी दवाइयो व इंसुलिन द्वारा संतुलित किया जाता हैं यह थोड़ा गंभीर किस्म का होता हैं जिससे व्यक्ति के कई आवशयक अंगो पर दुसप्रभाव पड़ने लगता हैं |

आईए ज्योतिषीय दृस्टी से इस रोग के होने की संभावना का पता लगाते हैं |
पेंक्रियाज़ (अगनाशय) आमाशय के नीचे तथा पेट के ऊपरी भाग मे होती हैं ज्योतिषीय दृस्ति से यह  कुंडली मे पंचम भाव द्वारा देखी जाती हैं जिस भाव का कारक गुरु ग्रह माना जाता हैं | गुरु ग्रह ही यक्रत(लीवर ),गुर्दो तथा पेंक्रियाज़ का कारक भी हैं | पेंक्रियाज़ का कुछ हिस्सा शुक्र ग्रह के हिस्से मे भी आता हैं जो शरीर मे बनने वाले हार्मोन्स को संतुलित करता हैं | हमारे शरीर मे रक्त का कारक मंगल ग्रह माना गया हैं जो इस बीमारी मे एक अहम भूमिका निभाता हैं (रक्त की जांच से ही मधुमेह की पुष्टि की जाती हैं )

इस प्रकार मुख्यतः पंचम भाव,पंचमेश,गुरु,मंगल व शुक्र ग्रह को इस रोग की पहचान हेतु अध्ययन किया जाता हैं |समान्यत:किसी भी रोग हेतु हमें अन्य भाव जैसे लग्न,द्वितीय (खानपान)षष्ठ  (रोग) तथा अस्टम भाव (दीर्घ रोग) भी देखने पड़ते हैं परंतु इस लेख मे हम केवल मधुमेह रोग होने की संभावना की चर्चा कर रहे हैं अत: यहाँ हम सिर्फ उसी से संबन्धित भावो एवं ग्रहो का अध्ययन करेंगे |

शुक्र गृह की भूमिका –पेंक्रियाज़ के कुछ हिस्से का कारक होने के साथ साथ शुक्र मूत्र का कारक भी हैं (उत्तर कालामृत मे ऐसा कहाँ गया हैं ) तथा शरीर मे अत्यधिक शर्करा की मात्रा का पता मूत्र के द्वारा ही चलता हैं इसलिए इस रोग मे शुक्र का शामिल होना अवश्यंभावी प्रतीत होता हैं (शुक्र मूत्रेन्द्रिय का कारक भी हैं और इस रोग से पीड़ित व्यक्ति बहुमूत्र से पीड़ित भी रहता हैं )
अत:निश्चित रूप से शुक्र गृह का नीच राशि मे होना,दोषयुक्त होना,पाप प्रभाव मे होना,6,8,12,भावो मे होना इस रोग का एक कारण हो सकता हैं |

गुरु ग्रह की भूमिका-यह रोग मिठास या सर्करा से संबन्धित हैं जिसका ज्योतिषीय दृस्टी से कारक ग्रह गुरु हैं इसके अलावा गुरु यक्र्त,गुर्दो एवं पेंक्रियाज़ का कारक भी हैं वही यह विस्तारता हेतु भी जाना जाता हैं और यह रोग विस्तारता लिए ही दिन प्रतिदिन बढ़ता रहता हैं यानि फैलता रहता हैं अत:कहाँ जा सकता हैं गुरु का किसी भी रूप मे पीड़ित होना,नीच राशि मे होना,वक्री होना 6,8,12 भावो मे होना इस रोग को जन्म दे सकता हैं |

मंगल ग्रह की भूमिका –चूंकि यह रोग रक्त मे सर्करा की मात्रा लिए होता हैं तथा इस रोग की पुष्टि रक्त की जांच द्वारा ही की जाती हैं  और रक्त का हमारे शरीर मे कारक मंगल ग्रह माना जाता हैं इसलिए मंगल ग्रह की भी स्थिति का अध्ययन ज़रूरी हो जाता हैं पहले प्रकार के मधुमेह (डी वन)के रोगियो हेतु मंगल ग्रह को हमने कई पत्रिकाओ मे पीड़ित पाया |
इन सबके अतिरिक्त कुछ और ज्योतिषीय योग भी हैं जो शरीर मे इस रोग की पुष्टि करते हैं जिनमे कुछ निम्नलिखित हैं|

-गुरु व शनि का किसी भी प्रकार से संबन्धित होना |
-तुला राशि पर पाप प्रभाव होना (कालपुरुष की कुंडली मे यह सप्तम भाव की राशि हैं जिसका कारक शूक्र माना गया हैं यही भाव गुर्दो से भी संबन्धित होता हैं )
-लग्नेश,पंचमेश,पंचम भाव,गुरु,शुक्र का राहू-केतू प्रभाव मे होना |
-शुक्र षष्ठ भाव मे तथा गुरु द्वादश भाव मे होना |
-नीच शुक्र का केंद्र मे होना |
-लग्न या लग्नेश का राहू-केतू अक्ष मे होना |(हमने इसे लगभग 60%कुंडलिओ पर सही पाया )
-के पी पद्दती के अनुसार भाव संधि का उपस्वामी शुक्र,गुरु या चन्द्र होकर लग्न या षष्ठ भाव या कर्क,तुला,वृश्चिक,मीन राशि से संबंध रखते हो यह रोग होता हैं |

आइये` अब  कुछ कुंडलियो मे इस रोग की पुष्टि करते हैं |

1) (23/11/1964 23 :15 दिल्ली)प्रस्तुत कर्क लग्न की कुंडली मे पंचम भाव राहू-केतू अक्ष मे हैं तथा पंचमेश मंगल शनि द्वारा द्र्स्ट हैं शनि पंचम भाव को भी देख रहा हैं |गुरु वक्री अवस्था मे हैं,शुक्र मंगल के नक्षत्र मे हैं तथा मंगल स्वयं पंचमेश होकर शनि के प्रभाव मे हैं |इस प्रकार सभी कारक व भाव पीड़ित होने से मधुमेह की पुष्टि होती हैं जातक पिछ्ले 10 वर्षो से इस रोग से पीड़ित हैं |

2) (15/8/1954 5:00 दिल्ली )कर्क लग्न की इस कुंडली मे पंचमेश मंगल राहू-केतू अक्ष मे छठे भाव मे हैं पंचम भाव पापकत्री मे हैं गुरु12वे भाव मे राहू केतू प्रभाव मे हैं तथा शुक्र अपनी नीच राशि मे हैं यह जातक काफी समय से इस रोग से पीड़ित हैं

3) (11/9/1996 21:45 तिरुचिल्लापिल्लई ) मीन लग्न की कुंडली मे लग्न राहु-केतु अक्ष मे हैं पंचमेश चन्द्र छठे भाव मे हैं पंचम भाव मे मंगल नीच राशि का हैं गुरु शनि द्वारा द्रस्ट हैं तथा शुक्र मंगल से पीड़ित हैं इस प्रकार सभी अवयव पीड़ित होने से यह बच्ची जन्म के कुछ समय बाद से ही इस रोग से पीड़ित हो गयी हैं व इसका  दवाइयो व इंसुलिन द्वारा इलाज़ चल रहा हैं |

4)(3/9/1964  20:59 चेन्नई ) मेष लग्न की इस पत्रिका मे पंचम भाव व पंचमेश सूर्य पर वक्री शनि की दृस्टी हैं लग्नेश मंगल राहू केतू अक्ष मे हैं तथा गुरु व शुक्र दोनो मृतावस्था मे हैं इन सब कारणो से जातिका काफी समय से इस रोग से पीड़ित हैं |

5) (1/10/1970 6:00 रोहतक) कन्या लग्न की इस कुंडली मे लग्नेश बुध 12वे भाव मे मंगल संग राहू-केतू अक्ष मे हैं |पंचमेश शनि नीच राशि मे अष्टम भाव से पंचम भाव व दूसरे भाव को देख रहे हैं जहां गुरु व शुक्र हैं गुरु स्वाति तथा शुक्र विशाखा नक्षत्र मे हैं अत: सभी अवयव पीड़ित होने से जातक पिछ्ले सात सालो से मधुमेह से पीड़ित हैं |

6) (8/11/1962 5:00 दिल्ली) कन्या लग्न की इस पत्रिका मे पंचमेश शनि राहू केतू प्रभाव मे हैं और इस भाव पर मंगल की दृस्टी भी हैं गुरु छठे भाव मे हैं व शुक्र वक्री अवस्था मे दूसरे भाव मे मंगल द्वारा द्रस्ट भी हैं |इस जातक को भी काफी समय से मधुमेह हैं |
प्रस्तुत सभी कुंडलिओ मे डी-वन प्रकार का मधुमेह हैं |

आइए अब डी-टू प्रकार के मधुमेह की कुछ कुंडलिओ को देखते हैं |
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(  1) 17/8/1940 11:30 आगरा) तुला लग्न की इस पत्रिका मे पचमेश शनि नीच राशि का गुरु संग सप्तम भाव मे हैं जिसकी लग्न व शुक्र दोनों पर दृस्टी हैं पंचम भाव पर सूर्य मंगल दोनों की दृस्टी हैं अत: इस रोग की पुष्टि हो रही हैं इस व्यक्ति की मृत्यु इस रोग के कारण गुर्दे खराब होने से ही हुयी |

2 2)  (29/1/1939 5:00 दिल्ली)धनु लग्न की इस पत्रिका मे पंचमेश मंगल 12वे भाव मे शुक्र संग हैं पंचम भाव राहू-केतू अक्ष मे हैं गुरु शतभिषा नक्षत्र मे होकर तीसरे भाव मे मंगल द्वारा द्रस्ट हैं |जातक मधुमेह से काफी समय से पीड़ित रहे तथा हृदय रोग से इनकी मृत्यु हुयी |

3 3)  (25/7/1976 4:00 दिल्ली)मिथुन लग्न की इस पत्रिका मे पंचम भाव राहू-केतू अक्ष मे हैं पंचमेश शुक्र सूर्य शनि व लग्नेश बुध संग दूसरे भाव मे अस्त अवस्था मे हैं तथा गुरु 12वे भाव मे हैं |जातक करीब 6 सालो से मधुमेह से पीड़ित हैं |

4 4)  (14/7/1958 00:50 कलकत्ता)मेष लग्न की इस कुंडली मे पंचमेश सूर्य मृतावस्था मे तीसरे भाव मे हैं ,पंचम भाव पर शनि की दृस्टी हैं गुरु छठे भाव मे हैं शुक्र पर शनि का प्रभाव हैं तथा लग्नेश मंगल व लग्न पर राहू केतू अक्ष हैं | जातक 2003 से मधुमेह से पीड़ित हैं |

5 5)  (13/1/1956 14:21 गाजियाबाद) वृष लग्न की इस पत्रिका मे पंचम भाव पर केतू प्रभाव हैं पंचमेश बुध पर शनि की दृस्टी हैं गुरु वक्र अवस्था मे हैं शुक्र पर मंगल की दृस्टी हैं तथा लग्न पर राहू केतू अक्ष हैं |जातक मधुमेह से पीड़ित हैं तथा प्रतिदिन इन्हे इंसुलिन लेनी पड़ती हैं |
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6 6)  (24/7/1964 11:30 कानपुर) कन्या लग्न की इस कुंडली मे पंचमेश शनि छठे भाव मे वक्र अवस्था मे हैं पंचम भाव पापकत्री मे द्वादशेश सूर्य के प्रभाव मे भी हैं गुरु अष्टम भाव पर शनि का प्रभाव हैं तथा शुक्र नवम भाव मे मंगल के नक्षत्र मे हैं मंगल स्वयं राहू केतू अक्ष मे हैं लग्नेश बुध पर भी शनि षष्ठेश की दृस्टी  हैं  इस प्रकार सभी अवयवो पर प्रभाव होने से जातिका को कई सालो से यह रोग लगा हुआ हैं |

इस प्रकार हमने अन्य कुंडलियो मे भी इसी तरह के परिणाम पाये हैं जिनका उल्लेख हमने चार्ट के रूप मे प्रस्तुत किया हैं |

हमने लगभग 1100 कुंडलिओ का अध्ययन कर कुछ इस प्रकार के नतीजे प्राप्त  किए |
मधुमेह नामक यह रोग ग्लूकोज की मात्रा रक्त तथा शरीर के तंतुओ मे बढ जाने से उत्पन्न होता हैं जिससे पेंक्रियाज़ से निकालने वाला हारमोन ग्लूकोज को ठीक से पचा नहीं पाता हैं और यह रोग जन्म ले लेता हैं जिसके लिए मुख्य अवयव पंचम भाव,पंचमेश,गुरु,शुक्र व मंगल ग्रह होते हैं |




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