ज्योतिष शास्त्र में अनेक स्थानों पर लिखा गया है कि यदि मंगल ग्रह जन्मकुंडली मे प्रथम,चतुर्थ,सप्तम,अष्टम और द्वादस भावो में हो तो व्यक्ति विशेष को मांगलिक दोष होता हैं | दक्षिण भारत में दुसरे भाव स्थित मंगल ग्रह को भी मंगल दोष में रखा गया हैं |
मांगलिक दोष प्राय: लग्न कुंडली से देखा जाता हैं परन्तु शास्त्रों में इसे चन्द्र कुंडली से भी देखने के लिए कहाँ गया हैं | कुंडली में इस प्रकार देखने पर मंगल दोष लगभग आधी कुंडलियो में प्राप्त होता हैं जिससे अधिकाँश मेलापक कुंडलियो में मांगलिक दोष मिलना स्वाभाविक हो जाता हैं | शास्त्रों में इसी आधार पर मांगलिक दोष होने पर उसके परिहार सम्बन्धी नियम भी बताये गए हैं जिनसे मंगलदोष समाप्त अथवा प्रभावहीन माना जाता हैं | ऐसे नियम या योग हैं जो मांगलिक दोष को भंग कर देते हैं ऐसे ही कुछ योग निम्न हैं |
१) यदि मंगल स्वराशी अथवा ऊँच राशी का हो |
२) यदि मंगल गुरु ग्रह की राशी में हो अथवा राहू के साथ हो |
३) केंद्र त्रिकोण में शुभ ग्रह,तीसरे,छठे,ग्यारहवे भावो में पाप ग्रह तथा सप्तमेश सप्तम में हो |
४) सप्तमस्थ मंगल पर गुरु की दृष्टी हो |
५) यदि एक कुंडली में मंगली योग हो तथा दुसरे की कुंडली में उन्ही भावो में पाप ग्रह(राहू,शनि ) हो |
६) यदि अधिक गुण मिलते हो |
७) वर या कन्या की कुंडली में से एक मंगली हो और दुसरे की कुंडली में ३,६,११,भावो में मंगल,राहू या शनि हो |
८) यदि १२ भाव में मंगल,शुक्र व बुध स्वराशि का हो |
९) यदि मंगल वक्री,नीच या अस्त हो |
१०) ४ तथा ७ भाव में मेष अथवा कर्क का मंगल हो |
११) यदि गुरु बली हो और शुक्र ऊँच अथवा स्वराशी का होकर सप्तम भाव में हो |
१२) मंगल,सूर्य,राहू या शनि संग स्थित हो |
१३)चन्द्र मंगल् का योग हो(केंद्र व धन स्थान में ) |
१४) मंगल गुरु की युति हो अथवा गुरु मंगल पर दृष्टी ड़ाल रहा हो |
१५) कुंडली में गुरु व शनि अधिक बलवान हो | ............................................
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