शुक्रवार, 11 दिसंबर 2009

ज्योतिष एवं स्वाइन फ्लू

मार्च २००९ में पुरी दुनिया में एक नई बीमारी का जन्म हुआ जिसे" स्वाइन फ्लू "नाम दिया गया कुछ समय बाद ही यह बीमारी तेजी से फैली व महामारी के रूप में देखी जाने लगी,वैज्ञानिको व डॉकटरो ने इसके इलाज़ हेतु दवा तो खोज ली परन्तु तब तक इसने लगभग १०,००० लोगो को संक्रमित कर डाला व २५०० से ज़्यादा व्यक्ति मौत के घाट उतार दिए |आईये इस बीमारी का ज्योतिषीय कारणों से विश्लेषण करते हैं |

सर्वप्रथम यह देखते हैं की हमें ग्रहों के कारण रोग होते कैसे हैं |ज्योतिष में ग्रहों को निम्न तत्वों में बांटा गया हैं |
अग्नि तत्त्व -सूर्य,मंगल व केतु
वायु तत्त्व-शनि व राहू
जल तत्व-चंद्र, शुक्र व राहू
पृथ्वी तत्त्व-बुध
आकाश तत्त्व -गुरु व केतु
स्पष्ट हैं की कुछ ग्रह दो तत्वों में बंटे हैं तथा इन तत्वों का परस्पर सम्बन्ध भी विविध प्रकार का होता हैं |अग्नि तत्त्व हेतु पृथ्वी व वायु तत्त्व मित्र किंतु जल तत्त्व शत्रु हैं |पृथ्वी तत्त्व हेतु अग्नि व जल तत्त्व मित्र किंतु वायु तत्त्व शत्रु हैं |जल तत्त्व हेतु पृथ्वी व वायु तत्त्व मित्र तथा अग्नि तत्त्व शत्रु हैं |
इन्ही तत्वों में विराजित ग्रहों के प्रतिकूल होने पर उस ग्रह से सम्बन्ध तत्त्व गड़बड़ा जाता हैं जिससे उसका प्रकोप व प्रतिकूलता होने से रोग जन्म ले लेता हैं |चूँकि धरती पर ग्रहों का प्रभाव उनकी गति,पृथ्वी से निकटता व दुरी पर भी निर्भर होता हैं अतः उन्ही अवसथाओ में रोगों का जन्म होता हैं और मनुष्य प्रभावित होते हैं |

स्वाइन फ्लू का जन्म -इस भयंकर रोग के शुरुआत "मेक्सिको" नामक देश में एक सूअर पालन केंद्र से हुई जहाँ १८ मार्च २००९ को इस बीमारी का पहला मरीज़ मिला,इससे पहले की इस बीमारी का कोई ठोस इलाज़ मिल पाता इसने अमरीका व एशिया में अपने पाँव तेजी से फैला दिए और जुलाई माह में इसने भारत वर्ष पर अपना पहला शिकार पूना शहर की एक १४ वर्षीया बालिका को बनाया जिससे भारत में इस बीमारी की शुरुआत हो गई |
वास्तव में यह बीमारी सूअर में पाए जाने वाले" इन्फ़्लुएन्ज़ा" नामक बीमारी के वाइरस" एच १ एन१ "का ही बिगड़ा हुआ रूप हैं |

ज्योतिष शास्त्र रोग -ज्योतिष शास्त्र में छठा भाव रोग का माना जाता हैं जिसके कारक शनि व मंगल ग्रह माने जाते हैं |यह भी इत्तेफाक ही हैं की इस बीमारी का सम्बन्ध भी मंगल व शनि से ही हैं|मंगल हमारे शरीर में कान आँख, नाक, खून, फेफड़े व मष्तिष्क पर नियंत्रण रखता हैं तथा बुखार, अग्नि, रक्तचाप, पीलिया, चेचक, दुर्घटना चोट व सर्जरी का पता बताता हैं वही शनि शरीर में वायु, पित्त, सर, गर्दन, दांत व हड्डियों पर नियंत्रण तथा प्रदुषण से होने वाली संक्रमित बीमारियो, वायु विकार, गठिया तथा जोड़ो के दर्द का पता बताता हैं |
जब भी आकाश में भ्रमण करते समय मंगल व शनि ग्रह युति या दृष्टी सम्बन्ध बनाते हैं पृथ्वी वासियो पर महामारी दुर्घटनाए व प्राकतिक आपदाये आती हैं ऐसा हम पहले से जानते हैं कारण इन दोनों ग्रहों में परस्पर शत्रुता का होना, मार्च २००९ की कुंडली देखे तो पता चलता हैं की उस समय मंगल कुम्भ व शनि सिंह राशी में विराजित थे जिससे उनमे पूर्ण दृष्टी सम्बन्ध बना हुआ था इसी दौरान इस बीमारी का जन्म हुआ |
२२ जुलाई २००९ को जब स्वतंत्र भारत की राशी कर्क पर जब सूर्य ग्रहण पड़ा तब इस बीमारी ने भारत में दस्तक दी परन्तु तब तक यह अन्य पूर्वी एशियायी देशो में अपना प्रसार कर चुकी थी यहाँ ध्यान देने योग्य तथ्य यह हैं की इस दौरान भी कर्क राशी नक्षत्र पुष्य (स्वामी शनि )पर मंगल शनि का दृष्टी सम्बन्ध बना हुआ था |
जुलाई माह से ही मंगल भारतीय जन्म राशी कर्क के नजदीक आ रहा हैं जिससे इस बीमारी को बढने का पुरा अवसर मिला परन्तु कर्क राशी में ही मंगल नीच का हो जाता हैं (पृथ्वी से दूर चला जाता हैं )जिससे इस रोग में जबरदस्त रूप से कमी आएगी |

कब तक रहेगा स्वाईन फ्लू -अक्तूबर माह तक मंगल शनि का सम्बन्ध बना रहेगा अक्तूबर ५ तारीख को मंगल जब कर्क राशी में प्रवेश करेगा तब इस बीमारी में कमी देखी जाएगी परन्तु असली छुटकारा १३ अक्तूबर को गुरु ग्रह के मार्गी होने से मिलेगा |गुरु कर्क राशी के समसप्तक मकर राशी में राहू संग होकर चंडाल योग बना रहा हैं जो भारत हेतु कुछ न कुछ परेशानिया लगाकर रखे हुए हैं |

मेरे द्वारा प्रस्तुत यह लेख "आप का भविष्य" नामक मासिक पत्रिका में भी प्रकाशित हुआ हैं |

1 टिप्पणी:

vijay kumar sappatti ने कहा…

very interesting kishore ji . is lekh ke liye abhaar