धनतेरस
यह पर्व मुख्यत:धन्वन्तरी की जयंती के रूप तथा अकाल मृत्यु से रक्षा हेतु मनाया जाता हैं |पौराणिक कथानुसार समुद्र मंथन के दौरान १४ रत्नों में एक आयुर्वेद के जनक धन्वन्तरी भी थे जो अमृतकलश लेकर प्रगट हुए थे|धनतेरस के दिन रोगमुक्त जीवन और दीर्घायु की प्राप्ति हेतु धन्वन्तरी के चित्र के समक्ष उनकी पूजा आराधना करनी चाहिए और पूजा अर्चना के बाद श्लोक का यथा शक्ति पाठ करना चाहिए |
एक अन्य मत के अनुसार यह पर्व काल मृत्यु से रक्षा की कामना से भी मनाया जाता हैं|इसी उद्देश्य से इस दिन लोग आटे का चौमुखी दिया बनाकर घर के बाहर अन्न की ढेरी पर रखकर दक्षिण दिशा की और मुख कर श्लोक पाठ करते हैं|
इस दिन नए बर्तन खरीदना शुभ माना जाता हैं|मान्यता हैं की इस दिन बर्तन खरीदने से घर पर लक्ष्मी का वास होता हैं इसलिए समाज के अमीर गरीब सभी वर्गों के लोग इस दिन एक न एक बर्तन ज़रूर खरीदते हैं|
एक अन्य मत के अनुसार यह पर्व काल मृत्यु से रक्षा की कामना से भी मनाया जाता हैं|इसी उद्देश्य से इस दिन लोग आटे का चौमुखी दिया बनाकर घर के बाहर अन्न की ढेरी पर रखकर दक्षिण दिशा की और मुख कर श्लोक पाठ करते हैं|
इस दिन नए बर्तन खरीदना शुभ माना जाता हैं|मान्यता हैं की इस दिन बर्तन खरीदने से घर पर लक्ष्मी का वास होता हैं इसलिए समाज के अमीर गरीब सभी वर्गों के लोग इस दिन एक न एक बर्तन ज़रूर खरीदते हैं|
नरक चतुर्दशी
इस पर्व को रूप चतुर्दशी भी कहा जाता हैं |यह पर्व नरक की यातना से बचने और सन्मार्ग पर चलने की कामना से मनाया जाता हैं |इस दिन सूर्योदय से पूर्व स्नान करने वाले लोगो के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और नरक की यातना से उनकी रक्षा होती हैं |स्नान से पूर्व अपामार्ग की लकड़ी को ७ बार सिर के चारो और घुमाकर श्लोक का पाठ किया जाता हैं |स्नान के बाद अपामार्ग की लकड़ी को दक्षिण दिशा में विसर्जित कर दिया जाता हैं |शाम को पूर्व की और मुख कर चौमुखी दीप का दान किया जाता हैं |
हनुमान जी का अवतार भी इसी दिन हुआ था इसलिए श्रदालुजन इस दिन हनुमान मन्दिर में चोला चढाते हैं और हनुमान चालीसा और सुन्दरकाण्ड का पाठ करते हैं |
हनुमान जी का अवतार भी इसी दिन हुआ था इसलिए श्रदालुजन इस दिन हनुमान मन्दिर में चोला चढाते हैं और हनुमान चालीसा और सुन्दरकाण्ड का पाठ करते हैं |
दीपावली
दीपो के यह पर्व लक्ष्मी प्राप्ति का सबसे बड़ा दिन माना जाता हैं|दीपावली से अनेक कथाये जुड़ी हैं एक कथा के अनुसार इस दिन भगवान विष्णु ने वामनावतार लेकर बड़े कौशल से दैत्यराज बलि से लक्ष्मी को आज़ाद कराया
दीपो के यह पर्व लक्ष्मी प्राप्ति का सबसे बड़ा दिन माना जाता हैं|दीपावली से अनेक कथाये जुड़ी हैं एक कथा के अनुसार इस दिन भगवान विष्णु ने वामनावतार लेकर बड़े कौशल से दैत्यराज बलि से लक्ष्मी को आज़ाद कराया
था दैत्यराज को यह वरदान दिया था की कृष्ण पक्ष की त्रियोदशी,चतुर्दशी व अमावस्या के दिन पृथ्वी पर उसका राज्य रहेगा और इन तीन दिनों में जो कोई भी दीपदान कर लक्ष्मी का आह्वान करेगा लक्ष्मी उस पर अवश्य कृपा करेगी |दीपावली पर्व के अवसर पर कमला जयंती मनाई जाती हैं|
इसके अतिरिक्त इस दिन गणेश,लक्ष्मी,इन्द्र,कुबेर,सरस्वती,बहीखाता,तुला और दीपमालिका का पूजन व आरती करने का विधान हैं|इससे लक्ष्मी की से वर्ष भर कृपा बनी रहती हैं |
प्रतिवर्ष गोवेर्धन पूजा करने से घर में धन,धान्य,समृधि आदि की कमी नही होती तथा अकाल नही पड़ता |इसे अन्नकूट पूजन भी कहा जाता हैं|
इस पर्व को यम द्वितीया भी कहा जाता हैं|पौराणिक कथानुसार इस दिन यमराज अपनी बहन यमुना के निमंत्रण पर उनके घर गए,उनके हाथ से बना भोजन किया तथा उनसे वर मांगने को कहा |यमुना ने वर माँगा की जो भाई आज के दिन अपनी बहन के घर जाकर भोजन करे उसकी रक्षा हो अर्थात वह काल मृत्यु को प्राप्त नही हो |यमराज ने उन्हें वरदान दिया और चले गए |तभी से यह पर्व भाई बहनों के पर्व के रूप में में मनाया जाता हैं |इस दिन प्रत्येक व्यक्ति को पवित्र नदी में स्नान अवश्य करना चाहिए तथा यमराज के दस नामो का स्मरण करना चाहिए |स्नान के बाद बहन के घर जाकर भोजन करे व उसे यथा शक्ति भेंट इत्यादि दे |यह पर्व वस्तुत भाई बहन के प्रेम का प्रतीक हैं|इससे दोनों के बीच प्रेम प्रगाढ़ होता हैं और बहन का सौभाग्य तथा भाई की आयु बढती हैं|
इस प्रकार दीपावली के ये पाँच पर्व विधिपूर्वक मनाने से सभी मनोकामनाये पूर्ण होती हैं |अतःये पांचो पर्व हर्षौल्लास से मनाने चाहिए |
इसके अतिरिक्त इस दिन गणेश,लक्ष्मी,इन्द्र,कुबेर,सरस्वती,बहीखाता,तुला और दीपमालिका का पूजन व आरती करने का विधान हैं|इससे लक्ष्मी की से वर्ष भर कृपा बनी रहती हैं |
गोवेर्धन पूजा
इस दिन भगवान कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को उठाकर समस्त गोकुलवासियो को इन्द्र के प्रकोप से बचाया था | तभी की गोवर्धन पूजा की शुरुआत हुई|इस दिन विशेषकर गाय ,बैल आदि पशुओ की सेवा व पूजा अर्चना की जाती हैं तथा गोबर से आँगन लीपकर गोवेर्धन पर्वत व श्री कृष्ण भगवान् की मुर्तिया बनाकर उनका पूजन कर प्रार्थना की जाती हैं और उन्हें भोग लगाया जाता हैं |प्रतिवर्ष गोवेर्धन पूजा करने से घर में धन,धान्य,समृधि आदि की कमी नही होती तथा अकाल नही पड़ता |इसे अन्नकूट पूजन भी कहा जाता हैं|
भाई दूज
इस पर्व को यम द्वितीया भी कहा जाता हैं|पौराणिक कथानुसार इस दिन यमराज अपनी बहन यमुना के निमंत्रण पर उनके घर गए,उनके हाथ से बना भोजन किया तथा उनसे वर मांगने को कहा |यमुना ने वर माँगा की जो भाई आज के दिन अपनी बहन के घर जाकर भोजन करे उसकी रक्षा हो अर्थात वह काल मृत्यु को प्राप्त नही हो |यमराज ने उन्हें वरदान दिया और चले गए |तभी से यह पर्व भाई बहनों के पर्व के रूप में में मनाया जाता हैं |इस दिन प्रत्येक व्यक्ति को पवित्र नदी में स्नान अवश्य करना चाहिए तथा यमराज के दस नामो का स्मरण करना चाहिए |स्नान के बाद बहन के घर जाकर भोजन करे व उसे यथा शक्ति भेंट इत्यादि दे |यह पर्व वस्तुत भाई बहन के प्रेम का प्रतीक हैं|इससे दोनों के बीच प्रेम प्रगाढ़ होता हैं और बहन का सौभाग्य तथा भाई की आयु बढती हैं|
इस प्रकार दीपावली के ये पाँच पर्व विधिपूर्वक मनाने से सभी मनोकामनाये पूर्ण होती हैं |अतःये पांचो पर्व हर्षौल्लास से मनाने चाहिए |
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