ब्लावटस्की
ने
कहा,
मेरे इस झोले
में
फूलों
के
बीज
हैं ।
इन्हीं को मैं बाहर
फेंक
रही
हूं
।
उन्होंने
कहा,
हम
अर्थ
नहीं
समझे !
इसका
क्या
सार?
ब्लावटस्की
ने
कहा,
सार!
आकाश
में
बादल
घिरने
लगे
हैं।
आषाढ़
आ
गया।
जल्दी
ही
वर्षा
होगी।
ये
बीज
फूल
बन
जाएंगे।
अब उन
लोगों
ने
कहा
कि
क्या
आपको
बार-बार
इसी
ट्रेन
में
सफर
करनी
पड़ती
है?
क्या
इसी
रास्ते
से
आप
बार-बार
गुजरती
हैं?
ब्लाक्टरकी
ने
कहा
कि
नहीं,
मैं
पहली
बार
गुजर
रही
हूं
और
शायद
दुबारा
कभी
मौका
न
आए।
तो उन्होंने कहा, हम
फिर
समझे
नहीं !
तो
फिर
बीज
फेंकने
से
आपको
क्या
फायदा?
बीज
अगर
फूल
बने भी, तो
आप
तो
कभी
देख
भी
न
सकेंगी।
ब्लावटस्की
ने
कहा,
यह
थोड़े
ही
सवाल
है
कि
मैं
देख
सकूं।
कोई
तो
देखेगा!
सब
आंखें
मेरी
हैं।
किसी
के
नासापुटों
में
तो
सुगंध
भरेगी !
सब
नासापुट
मेरे
हैं।
कोई
तो
प्रसन्न
होगा,
आनंदित
होगा ।
रोज
हजारो यात्री
इस
ट्रेन
से
आते-जाते
हैं और भी बहुत सी ट्रेनें निकलती
हैं
इस
रास्ते
से लाखों
लोग
उन
फूलों
को
नाचते
देखेंगे
हवा
में,
सूरज
में और देखकर प्रसन्न होंगे।
एक
ने
कहा,
लेकिन
उनको
तो
पता
भी
नहीं
चलेगा
कि
आपने
ये
फूल
बोए
हैं!
ब्लावटस्की
ने
कहा,
इससे
क्या
फर्क
पड़ता
है
कि
वे
जानें
कि
किसने
फूल
बोए
हैं;
कि
वे
मेरे
नाम
का
स्मरण
करें,
कि मुझे धन्यवाद
दें।
वे
प्रसन्न
होंगे,
इसमें
मेरी
प्रसन्नता
है।
वे
आनंदित
होंगे,
मुझे
आनंद
मिल जाएगा।
आनंद
दो तो आनंद मिलता है। आनंद बांटो और तुम्हारे भीतर
आनंद
के
नये नये
झरने
फूटेंगे।
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