इस पौधे की कच्ची जड़ से अश्व जैसी गंध आती है,इसलिए इसे अश्वगंधा अथवा असगंध भी कहते हैं और इसे बराहकर्णी, आसंध, बाजिगंधा आदि नामों से भी पुकारा जाता है । यह अश्वगंधा लगभग सारे भारत में पायी जाती है ।
अश्वगंधा एक बलवर्धक रसायन है । वैद्यों, हकीमों और आयुर्वेद चिकित्सकों ने पुरातन काल से इसके गुणों को सराहा है । आचार्य चरक ने जहाँ इसे उत्कृष्ट औषधियुक्त गुणों वाला माना है वही आचार्य सुश्रुत के मतानुसार किसी भी प्रकार की दुर्बलता और कृशता को दूर करने में यह निहायत ही गुणकारी होती है । शरीर की पुष्टि और बलवर्धन के लिए आयुर्वेद में इससे श्रेष्ठ औषधि अन्य कोई नहीं है ऐसा माना जाता हैं |
अश्वगंधा मूलतः
कफ - वात नाशक और बलवर्धक है । इसे सभी प्रकार के जीर्ण रोगों, क्षय,शोथ आदि के लिए श्रेष्ठ माना गया है । यह कायाकल्प योग की एक प्रमुख औषधि है ।
अश्वगंधा के
उपयोग
वात विकार :
अश्वगंधा चूर्ण में सोंठ तथा मिस्री, क्रमशः 2:1:3
अनुपात में मिला कर, सुबह - शाम भोजन के पश्चात गर्म जल से
सेवन करने से वात विकार में आराम मिलता है
।
दुर्बलता :
दुर्बल शरीर वालों को 6 ग्राम की मात्रा में अश्वगंधा को
मिस्री मिला कर दूध के साथ या शहद में मिला कर देने से शरीर की
दुर्बलता दूर होती हैं ।
ओज क्षय : ओज
क्षय में अश्वगंधा का चूर्ण, शतावर के चूर्ण के साथ बराबर मात्रा
में मिला कर, थोड़ा गुड़ मिला कर, दूध
के साथ सुबह और शाम लेने से ओज क्षय में लाभ होता है और खोयी हुई ताकत वापिस आती
है ।
स्त्री रोग में : अश्वगंधा के 2 ग्राम चूर्ण के साथ आधा ग्राम वंशलोचन मिला कर सेवन करने से श्वेत प्रदर में लाभ होता है । जिन स्त्रियों के स्तनों का विकास न होता हो, उन्हें शतावरी चूर्ण के साथ इसका सेवन करना चाहिए, जिससे स्तन सुडौल और विकसित हो जाते हैं |
सूखा रोग :
अश्वगंधा के चूर्ण को गुड मे पकाकर,क्षीर पाक बना कर दूध के साथ सूखा रोग ग्रस्त
बालक को देने से लाभ होता है । बच्चे का शरीर हृष्ट-पुष्ट हो जाता है और उसका वजन
बढ़ता है ।
नपुंसकता और शुक्राणु की दुर्बलताः अश्वगंधा चूर्ण दूध के साथ, या घी के साथ नियमित लेने से नपुंसकता दूर होती है और शुक्राणु की संख्या बढ़ती है और उनकी दुर्बलता दूर होती है ।
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