प्रश्न : कृष्णमूर्ति पद्धति में नक्षत्र स्वामी और नक्षत्र उप स्वामी को महत्व दिया गया जबकि वैदिक पद्धति में राशि स्वामी को ऐसा क्यों?
उत्तर :
कृष्णमूर्ति पद्धति की यही विशेषता है कि उसमें नक्षत्र स्वामी और नक्षत्र उप
स्वामी तक की गणना होती है । यही सूक्ष्मता है । ज्योतिष में हम नवग्रहों के मानव
पर पड़ने वाले प्रभाव का अध्ययन करते हैं । ग्रह भचक्र में घूमते हैं, भचक्र
पूरे 360° का होता है । कोई ग्रह किस अंश पर है, इसकी
पूर्ण जानकारी के लिए भचक्र को 12 राशियों में बांटा गया है । इस प्रकार
प्रत्येक राशि 30° की होती है । ग्रह राशि के जिस अंश पर
रहेगा उस अंश पर किस ग्रह का अधिकार होगा यह जानने के लिए नक्षत्र का प्रयोग किया
जाता है । प्रत्येक नक्षत्र 13°20′. का होता है ।
प्रत्येक नक्षेत्र का भी ग्रह स्वामी होता है । नक्षत्र को आगे नौ भागों में
विभक्त कर यह जाना गया कि किस अंश पर किस ग्रह का अधिंकार होगा। उस अंश पर जिस
ग्रह का अधिकार होता है वही उसी का प्रभाव जातक पर पड़ता है |
प्रश्न :
कृष्णमूर्ति पद्धति में नक्षत्र उप स्वामी के अतिरिक्त और किस का महत्व होतां है?
उत्तर :
कृष्णमूर्ति पद्धति में नक्षत्र उप स्वामी के अतिरिक्त भावों के कारक ग्रहों का
महत्व होता है । कौन सा ग्रह किस भाव के लिए शुभाशुभ कार्य करेगा यह भाव के कारक
ग्रहों पर निर्भर करता है । कारक ग्रह जितना बली होगा, उसका
प्रभाव भी उस भाव पर उतना ही अधिक होगा ।
प्रश्न : भाव
कारक का बल किस पर निर्भर करता
है?
उत्तर : भाव
कारक का बल भाव में स्थित ग्रह, भाव में स्थित ग्रह के नक्षत्र में
स्थित ग्रह, भाव के स्वामी, भाव के स्वामी
के नक्षत्र में स्थित ग्रह जैसे-गुरु अपनी मीन राशि में, अपने
ही नक्षत्र में स्थित और गुरु के नक्षत्र में और भी ग्रह स्थित हों तो गुरु का बल
बढ़ जाता है अर्थात गुरु जिस भाव में स्थित होगा उस भाव का शुभाशुभ फल देगा | यदि गुरु शुभ
है, तो शुभ फल और यदि अशुभ है, तो
अशुभ फल देगा ।
प्रश्न :
विभिन्न कार्यों के लिए किस-किस भाव को देखना चाहिए?
उत्तर : विभिन्न
कार्यों के लिए अलग–अलग भाव को देखना चाहिए । जैसे आयु की
जानकारी के लिए भाव 1, 8, 12 स्वयं जातक के लिए - 2, 9, 4
पिता की आयु के लिए 3, 9, 6. 10 माता की आयु के लिए 2, 5, 10
तथा भाई की आयु के लिए कार्य करते हैं । इसी प्रकार· शादी के लिए 2,
7, 11, तलाक के लिए 2, 6, 12 भावों का विश्लेषण करना चाहिए, बच्चों के लिए 2,
5, 11, व्यवसाय या नौकरी के लिए 2, 6, -10, 11, अचल
संपत्ति के लिए 4, 11, 12 और विद्या के लिए 4, 8, 9, 11
भावों का विश्लेषण करना चाहिएं।
प्रश्न : प्रश्न
ज्योतिष के लिए कृष्णमूर्ति पद्धति का क्या महत्व है?
उत्तर :
कृष्णमूर्ति पद्धति विशेष कर प्रश्न फलकथन करने में सक्षम है । प्रश्न फल कथन के
लिए कृष्णमूर्ति पद्धति में रूलिंग ग्रहों और गोचर को विशेष स्थान दिया जाता है ।
जन्मपत्रिका न होने पर यदि जातक के मन में कोई प्रश्न हो, तो
उसका उत्तर कृष्णमूर्ति पद्धति से उतना ही
सही दिया जा सकता है जितना जन्मपत्रिका से ।
प्रश्न :
प्रश्नों के उत्तर देने में कृष्णमूर्ति पद्धति किस आधार पर कार्य करती है?
उत्तर :
प्रश्नों के उत्तर देने के लिए 1 से 249 अंकों का
कृष्णमूर्ति पद्धति में अपना एक विशेष स्थान है | 249
अंक में प्रत्येक अंक पर नक्षत्र उप स्वामी का अधिकार होता है । इसके अतिरिक्त
पूछे गए प्रश्न के समय के अनुसार प्रश्न लग्न, गोचर ग्रहों की
स्थिति और रूलिंग ग्रह इन तीनों के आधार पर प्रश्न का उत्तर दिया जाता है ।
प्रश्न : 249
अंक क्या है?
उत्तर : जंब
प्रत्येक नक्षत्र को नौ भाग: में विंशोत्तरी अनुपात के अनुसार बांटा गया, तो
पूरे भचक्र के 27 नक्षत्रों के विभाजन 249
हुए अर्थात पूरे भचक्र को 249 भागों में विभक्त करने पर यह अंक प्राप्त हुए और प्रत्येक अंक नौ ग्रहों
में से किसी का प्रतिनिधित्व करता है |
प्रश्न : यदि
प्रत्येक नक्षत्र के नौ भाग किए जाएं, तो कुल 27
नक्षत्रों में 243 भाग होते हैं, लेकिन
अंक 249 हैं, कैसे?
उत्तर : यह बात
ठीक है कि यदि प्रत्येक नक्षत्र के नौ भाग हों तो 27 नक्षत्रों के
कुल 243 भाग होते हैं। और यह 6 भाग
अंतिरिक्त कैसे हुए जब प्रत्येक नक्षत्र को नौ भाग में विभक्त किया गया तो
नक्षत्रों की भांति नक्षत्र उप भाग क्षेत्र में दो राशियों में चला गया अर्थात कुछ
भाग पहली राशि में तो कुछ भाग दूसरी राशि में । इसलिए जिस उप नक्षत्र का क्षेत्र
दूसरी राशि में गया,उसे दो भागों में बांट दिया गया। इस
प्रकार उस नक्षत्र सब को एक अतिरिक्त अंक प्राप्त हुआ। क्योंकि यह बटवारा सभी 27
नक्षत्रों में 6 बार हुआ, इसलिए 6
भाग अतिरिक्त हुए और कुल भाग 249 |
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें