योग का अर्थ होता है – जोड़ । भारत में योग विद्या प्राचीन काल से प्रचलित है । प्रश्न उठता है कि योग तो गणित विज्ञान का शब्द है, जो जोड़ने का शास्त्र है । आत्मा और परमात्मा को जोड़ने की विद्या ही योग है । प्रणायाम के माध्यम से अपने प्राण को अनन्त के महाप्राण से जोड़ना ही योग है । प्रकृति से हमारी सांस को एक लय मिली हुई है । उस लय के बिगड़ने से ही हम अस्वस्थ्य हो जाते है, शरीर में विद्युत ऊर्जा और चुम्बकीय ऊर्जा का जो प्रवाह हो रहा है उसमें गड़बड़ी आ जाती है । योग विज्ञान में प्राण ऊर्जा को ब्रम्ह ऊर्जा से योग द्वारा जोड़ा जाता है । अतः योग जोड़ का विज्ञान है ।
ज्योतिष विज्ञान
में भी योग का वही स्वरूप अन्तर्निहित है । अष्टांग योग में यम (नैतिक संयम),
नियम (आध्यात्मिक अभ्यास), आसन (आध्यात्मिक
स्वास्थ्य), प्राणायाम (सांस पर नियंत्रण), प्रत्याहार
(इन्द्रिय और कर्म इन्द्रियों से सम्बन्ध विच्छेद), जहां भौतिक
विधानों द्वारा जातक को आत्म संयोग के लिए प्रेरित करता है वहीं ध्यान (आध्यात्मिक
लक्ष्य पर ध्यान का केन्द्रियकरण), धारणा (गहरी एकाग्रता), समाधि
(परम चेतना में लीन), के आध्यात्मिक विधान द्वारा आत्मा का
परम चेतना से संयोग कराता है ।
उसी प्रकार ज्योतिष में चन्द्र, बुध, शुक्र, गुरू, सूर्य-यम नियम आसन प्राणायाम और प्रत्याहार के अधिकारी ग्रह है । जो भौतिक बाधाओं को संकेतित करते हुए क्रियमाण कर्मों के माध्यम से आत्मदर्शन के लिए शारीरिक अनुकूलता प्रदान करते हैं ।
वहीं शनि, मंगल, राहु
- केतु क्रमशः ध्यान धारणा और समाधि के अधिकारी ग्रह है जो प्रारब्ध फल के भोग
को घोषित करते हुए संचित की विवशता के विनाश का मार्गदर्शन करते हुए आत्म दर्शन का
बोध कराते है ।
इन दोनों वर्गों के ग्रहों के योग कुण्डली में अष्टांग योग के परिणामों की सफलता को सुनिश्चित करते है अर्थात जब हम अष्टांग योग में यम का अभ्यास करते है तो जन्म कुण्डली के चन्द्रमा की शुभता को बढ़ाना चाहिए, जब हम नियम का अभ्यास करते है तो हमें कुण्डली में बुध को बालान्वित कर लेना चाहिए । जब आसन का अभ्यास करते है तो कुण्डली में शुक्र को बलान्वित करना चाहिए और जब प्राणायाम का अभ्यास करें तो बृहस्पति को, प्रत्याहार के लिए सूर्य को, बलान्वित करने से योग अभ्यास में पूर्ण सफलता मिलती है ।
इस प्रकार आत्म साक्षात्कार के
लिए हम भौतिक रूप से सक्षम हो जाते है तत्पश्चात आत्म साक्षात्कार के लिए ध्यान
धारणा समाधि के अधिकारी ग्रह क्रमशः ध्यान के अधिकारी ग्रह शनि, धारणा
के अधिकारी ग्रह मंगल तथा समाधि के अधिकारी ग्रह (राहु-केतु) को कुण्डली में ज्योतिष
सिद्धान्तों के अनुसार शुभता बढ़ाते हुए अभ्यास करने से आत्म साक्षात्कार सहजता से
प्राप्त हो जाता है अर्थात अष्टांग योग के परम लक्ष्य को हम प्राप्त हो जाते है ।