मंगलवार, 15 अक्तूबर 2024

पंचम भाव व संतान योग

 

इस संसार में कोई ऐसा दंपति नहीं होगा, जो संतान सुख ना चाहता हो | गरीब हो या अमीर सभी के लिए संतान सुख होना अवश्य महत्व ता है । संतान चाहे खूबसूरत हो या बदसूरत, लेकिन होनी ज़रूर चाहिए फिर चाहे वह संतान चाहे माता - पिता के लिए सहारा बने या न बने ।

अक्सर देखा जाता हैं की किसी - किसी दंपति की संतान होती है और फिर गुजर जाती है । ऐसा क्यों होता है ? यहाँ पर हम इन्हीं सब बातों की जानकारी दें रहे हैं, जिससे आप जान सकें कि संतान होगी या नहीं ।

सभी जानते हैं की ज्योतिष अनुसार कुंडली का पंचम भाव संतान का होता है । पंचम स्थान कारक गुरु और पंचम स्थान से पंचम स्थान (नवम स्थान) पुत्र सुख का स्थान होता है । पंचम स्थान गुरु का हो तो हानिकारक होता है, यानी पुत्र होने मे बाधा आती है ।

पंचम स्थान का स्वामी भाग्य स्थान में हो तो प्रथम संतान के बाद पिता का भाग्योदय होता है । यदि ग्यारहवें भाव में सूर्य हो तो उसकी पंचम भाव पर पूर्ण दृष्टि होने के कारण पुत्र अत्यंत प्रभावशाली होता है । इसी प्रकार यदि मंगल की यदि चतुर्थ, सप्तम, अष्टम दृष्टि पंचम भाव पर पड़ रही हो तो पुत्र अवश्य होता है ।

पुत्री संततिकारक चँद्र, बुध, शुक्र यदि पंचम भाव पर दृष्टि डालें तो पुत्री संतति होती है ।

यदि पंचम भाव पर बुध हो और उस पर चँद्र या शुक्र की दृष्टि पड़ रही हो तो संतान होशियार होती है ।

पंचम स्थान का स्वामी होकर शुक्र यदि पुरुष की कुंडली में लग्न,अष्टम या तृतीय भाव पर हो एवं सभी ग्रहों में बलवान हो तो निश्चित तौर पर लड़की ही पैदा होती है ।

पंचम स्थान पर मकर/कुम्भ का शनि होतो कन्या संतति अधिक प्राप्त होती है । पुत्र की चाह में पुत्रियाँ होती हैं। कुछ संतान नष्ट भी होती है  ।

पंचम स्थान पर स्वामी जितने ग्रहों के साथ होगा, उतनी संतान होगी । जितने पुरुष ग्रह होंगे, उतने पुत्र और जितने स्त्रीकारक ग्रहों के साथ होंगे, उतनी संतान लड़की होगी ।

सप्तमांश कुंडली के पंचम भाव पर या उसके साथ या उस भाव में कितने अंक लिखे हैं, उतनी संतान होगी ।

एक नियम यह भी है कि सप्तमांश कुंडली में चँद्र से पंचम स्थान में जो ग्रह हो एवं उसके साथ जीतने ग्रहों का संबंध हो, उतनी संतान होगी |

संतान सुख कैसे होगा, इसके लिए भी हमें पंचम स्थान का ही विश्लेषण करना होगा । पंचम स्थान का मालिक किसके साथ बैठा है, यह भी जानना होगा । पंचम स्थान में गुरु शनि को छोड़कर पंचम स्थान का अधिपति पाँचवें हो तो संतान संबंधित शुभ फल देता है । यदि पंचम स्थान का स्वामी आठवें, बारहवें हो तो संतान सुख नहीं होता । यदि हो भी तो सुख मिलता नहीं संतान नष्ट होती है या अलग हो जाती है ।

यदि पंचम स्थान का अधिपति सप्तम, नवम, ग्यारहवें, लग्नस्थ, द्वितीय में हो तो संतान से संबंधित सुख शुभ फल देता है ।

द्वितीय स्थान के स्वामी ग्रह पंचम में हो तो जातक को संतान सुख उत्तम होकर जातक लक्ष्मीपति बनता है |

पंचम स्थान का अधिपति छठे में हो तो दत्तक पुत्र लेने का योग बनता है  ।

सिंह लग्न में पंचम गुरु वृश्चिक लग्न में मीन का गुरु स्वग्रही हो तो संतान प्राप्ति में बाधा आती है, परन्तु गुरु की पंचम दृष्टि हो या पंचम भाव पर पूर्ण दृष्टि हो तो संतान सुख उत्तम मिलता है |

पंचम स्थान में मीन राशि का गुरु कम संतान देता है । पंचम स्थान में धनु राशि का गुरु हो तो संतान तो होगी, लेकिन स्वास्थ्य कमजोर रहेगा ।

पंचम स्थान पर सिंह, कन्या राशि का गुरु हो तो संतान नहीं होती । इसी प्रकार तुला राशि का शुक्र पंचम भाव में अशुभ ग्रह के साथ (राहु, शनि, केतु) के साथ हो तो संतान नहीं होती ।

पंचम स्थान में मेष, सिंह, वृश्चिक राशि हो और उस पर शनि की दृष्टि हो तो पुत्र संतान सुख नहीं होता ।

पंचम स्थान पर राहु का होना गर्भपात कराता है ।

यदि पंचम भाव में गुरु के साथ राहु हो तो चांडाल योग बनता है और संतान में बाधा डालता है या संतान नहीं होती । राहु, मंगल, पंचम भाव मे हो तो एक ही संतान होती है ।

पंचम स्थान में पड़ा चँद्र, शनि, राहु भी संतान बाधक होता है ।

यदि संतान का योग लग्न कुंडली में न हों तो चँद्र कुंडली से भी देखना चाहिए । यदि चँद्र कुंडली में ऐसे योग बने तो उपरोक्त फल जानने चाहिए

पंचम स्थान पर राहु या केतु हो तो पितृदोष, दैविक दोष, जन्म दोष होने से भी संतान नहीं होती | यदि पंचम भाव पर पितृदोष या पुत्रदोष बनता हो तो उस दोष की शांति करवाने के बाद संतान प्राप्ति संभव है ।

पंचम स्थान पर नीच का सूर्य संतान पक्ष में चिंता देता है तथा ऑपरेशन द्वारा संतान देता है ।

पंचम स्थान पर सूर्य मंगल की युति हो और शनि की दृष्टि पड़ रही हो तो संतान की शस्त्र से मृत्यु होती है ।

गुरुवार, 10 अक्तूबर 2024

नक्षत्र अनुसार रोग व दान


हमारे भारतीय ज्योतिष शास्त्रो मे जातक विशेष को जब कोई बीमारी होती हैं तो यह जानकार की वह किस नक्षत्र मे हुई हैं उसी के अनुसार दान करने से बीमारी से मुक्ति पायी जा सकती हैं यह बताया गया हैं | प्रस्तुत लेख मे हम इसी विषय पर प्रकाश डाल रहे हैं |

अश्विनी नक्षत्र में कांस्य पात्र में घी भरकर दान करने से रोग मुक्ति होती है ।

भरणी नक्षत्र में ब्राह्मण को तिल एवं गाय का दान करने से सद्गति प्राप्त होती है व कष्ट कम होता है ।

कृतिका नक्षत्र में घी और खीर से युक्त भोजन ब्राह्मण व साधु संतों को दान करने से उत्तम स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है ।

रोहिणी नक्षत्र में घी मिश्रित अन्न को ब्राह्मण व साधुजन को दान करना चाहिए ।

मृगशिरा नक्षत्र में ब्राह्मणों को दूध दान करने से किसी प्रकार का ऋण नहीं रहता व व्याधि से दूर रहते हैं ।

आर्द्रा नक्षत्र में तिल मिश्रित खिचड़ी का दान करने से सभी प्रकार के संकटों से मुक्त हो जाते हैं ।

पुनर्वसु नक्षत्र में घी के बने मालपुए ब्राह्मण को दान करने से रोग का निदान होता है ।

पुष्य नक्षत्र में इच्छा अनुसार स्वर्ण दान करने से सभी कष्ट दूर हो जाते हैं ।

अश्लेषा नक्षत्र में इच्छा अनुसार चांदी दान करने से रोग से शांति व निर्भय हो जाता है ।

मघा नक्षत्र में तिल से भरे घड़ों का दान करने से रोग से निदान व धन की प्राप्ति भी होती है ।

पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र में ब्राह्मण को घोड़ी का दान करने से सद्गति मिलती है ।

उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र में स्वर्ण कमल ब्राह्मण को दान देने से बाधाएं दूर हो जाती हैं व रोग से शांति मिलती है ।

हस्त नक्षत्र में रोग से निदान पाने के लिए ब्राह्मण को चांदी दान करना व जल सेवा लाभदायक होती है |

चित्रा नक्षत्र में ताम्रपत्र, घी का दान शुभ होता है ।

स्वाति नक्षत्र में जो पदार्थ स्वयं का प्रिय हो, उनका दान करने से शांति मिलती है |

विशाखा नक्षत्र में वस्त्रादि के साथ अपना कुछ धन ब्राह्मण को देने से सारे कष्ट दूर होते हैं साथ ही आपके पितृगण भी प्रसन्न होते हैं |

अनुराधा नक्षत्र में यथाशक्ति कम्बल ओढने तथा पहनने वाले वस्त्र ब्राह्मण को दान किये जायें तो आयु में वृद्धि होती है |

ज्येष्ठा नक्षत्र में मूली दान करने से अभीष्ट गति प्राप्त होती है ।

मूल नक्षत्र में कंद, मूल, फल, आदि देने से पितृ संतुष्ट हो जाते हैं, स्वास्थ्य में लाभ व उत्तम गति मिलती है ।

पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र में कुलीन और वेदवेत्ता ब्राह्मण को दधिपात्र देने से कष्ट दूर हो जाते हैं |

उत्तराषाढ़ा नक्षत्र में घी और मधु का दान ब्राह्मण को देने से रोग में शांति होती है ।

श्रवण नक्षत्र में पुस्तक दान करना लाभदायक रहता हैं |

धनिष्ठा में दो गायों का दान करने से रोग में शांति व जन्मों तक सुख की प्राप्ति भी होती है ।

शतभिषा नक्षत्र में अगरु व चन्दन दान करने से शरीर के कष्ट दूर हो जाते हैं |

पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र में साबुत उड़द के दान से सभी कष्ट से आराम व सुख प्राप्त होता है ।

उत्तराभाद्रपद नक्षत्र में सुन्दर वस्त्रों के दान से पितृ संतुष्ट होते हैं और उसे सद्गति प्राप्त होती है |

रेवती नक्षत्र में कांस्य पात्र दान करना लाभदायक होता है |

बुधवार, 2 अक्तूबर 2024

कुंडली मिलान के तथ्य

 

ज्योतिष ईश्वरीय गूढ भाषा का विज्ञान है जो जन्मकालीन आकाशीय स्थिति से जीवन के कई पहलुओ व परतो को खोलता है । इन्ही परतों में जीवन के प्रत्येक पहलू का अपना एक विशेष महत्व होता है जिनमे शिक्षा,व्यवसाय,संतान विवाह, रिश्ते व अध्यात्म प्रमुख हैं | विवाह का बंधन क्योकि सात जन्म का माना गया है तो इतने महत्वपूर्ण बंधन का आधार क्या है । यह हमारे ज्योतिष मे भली भांति जाना जा सकता हैं |

कुंडली मिलान

कुंडली मिलान एक ऐसी विधि है जिसके द्वारा दो अलग-अलग जातकों की मानसिक, आर्थिक से शारीरिक स्थिति का मिलान किया जाता है जिससे वह एक सुखद वैवाहिक जीवन जी सके ।

सामान्यतः विवाह के मिलान के लिए आठ कूटो (अष्टकूट) का विचार किया जाता है ।

ये आठ इस प्रकार है (1) वर्ण (2) वश्य (3) तारा (4) योनि (5) गृह मैत्री (8) गण (7) कूट (8) नाड़ी और यही क्रमानुसार 36 गुण होते है ।

1. वर्ण अर्थात व्यवसाय वर्ण मिलान से हमें यह ज्ञात करते हैं दोनों की व्यवसायिक उन्नति में एक दूसरे के सहायक होगे या नहीं ।

2. वश्य का अर्थ होता है नियंत्रण में होना अर्थात दोनी जातक एक दूसरे की परिस्थितियों में सामंजस्य स्थापित कर लेंगे या कही एक दूसरे को डोमिनेट करके एक दूसरे का जीवन कलहपूर्ण तो नही करेगे ।

3. तारा - इसमे वर के नक्षत्र से वधू के नक्षत्र तक की गणना इसलिए की जाती है कि दोनों एक दूसरे के सौभाग्य को बढ़ा सकेंगे या नहीं यह जानने हेतू की जाती है |

4. योनि - वर वधू की योनि एक दूसरे की शत्रुवत् नही होनी चाहिए। योनि कूट से भावी पति पत्नी की शारीरिक ऊर्जा तथा इच्छाए मिलती है या नही,ज्ञात होता है । यदि किसी जोड़े में योनि दोष होता है तो वे एक दूसरे की शारीरिक ऊर्जा को समझ नही पाते और आपसी मतभेद उत्पन्न होने लगता है ।

5. भकूट अथवा ग्रह मैत्री अर्थात दोनो की राशियों के स्वामी ग्रहों में मित्रता है अथवा नहीं । उदाहरण के तौर पर यदि पति का स्वामी ग्रह शनि और पत्नी का स्वामी ग्रह सूर्य है तो दोनो में हमेशा झगड़ा होगा दोनो हमेशा एक दूसरे की कमियो को निकालते रहेगें इस कूट में अधिकतम अंक 5 होते हैं जिसमे कम से कम तीन मिलने आवश्यक होते है ।

6. गण को तीन समूहों में बांटा गया:- देव, नर या मनुष्य, राक्षस गण जातक का स्वभाव होता है। यदि भावी पति के गण देव के तथा भावी पत्नी के गण राक्षस के है तो जीवन हमेशा कलहपूर्ण रहेगा। देवगण का जातक सामाजिकता निभाने में विश्वास रखता है परन्तु राक्षस गण के जातक को क्रोध बहुत जल्दी आता है और जल्दी ही झगड़ पड़ते है और जल्द ही धैर्यहीन हो जाते है। इसके अतिरिक्त मनुष्य गण के जातक न तो ज्यादा आध्यात्मिक होते है और न ही नास्तिक वे अच्छा सामजस्य स्थापित कर लेते है इसलिए देव राक्षस, राक्षस राक्षस, का निभना बहुत कठिन होता है इसलिए गण मिलान विशेष महत्व रखता है ।

7. भकूट मिलान में वर वधू की जन्म राशियों का एक दूसरे से स्थिति का विचार किया जाता है क्योंकि दोनो की मानसिक ऊर्जा अवश्य मिलनी चाहिए । यदि दोनो एक दूसरे से वैचारिक रूप से अलग होगे तो एक दूसरे की इज्जत नही कर पाएंगे और जीवन भर बस घिसटते रहेगे जब एक दूसरे को समझेंगे नही तो रिश्ता कैसे चलेगा क्योंकि सच्चा रिश्ता वही जिसमे बिना कहे इन्सान एक दूसरे के मन के भावों को समझ सके अर्थात आंखो की भाषा समझे ।

8. नाडी दोष - नाडियां तीन प्रकार की होती है - आदि, मध्य, अन्तय

जन्म नक्षत्र जातक की नाड़ी निश्चित करता है । भावी वर/वधु की नाड़ी एक नही होनी चाहिए । नाडियाँ हमारी समस्त बीमारियों के बारे में बताती है पति पत्नी में नाडी दोष होगा तो संतान होने में कष्ट होगा क्योंकि शरीर में रोग होगे । Rhesus Factor (Rh) की समस्या ही नाड़ी दोष है ।

नाडी दोष तब होता है जब दोनो लड़का-लड़की के चन्द्रमा एक ही राशि के, एक ही नक्षत्र के एक ही चरण में हो अन्यथा नाडी दोष नही होता ।

इन तथ्यों के साथ हम कुंडली मिलान की वैज्ञानिकता को समझकर विवाह के लिये यह क्यूँ आवश्यक है यह जान सकते है। कुंडली मिलान केवल पत्रा देखकर नही करना चाहिए क्योंकि पत्रे में केवल चन्द्रमा मिलाया जाता है जो कि उचित नही |

अनेक व्यक्तियों के तर्क होते है कि पहले तो सिर्फ पत्रे से ही देखा जाता था फिर अब क्यो नही ? उत्तर है देश, काल, पात्र पहले संतान अपने माता पिता के वचनो को जीवनभर निभाते थे जबकि अब ऐसा नही है इसलिए कुंडली मिलान आवश्यक है ।