बुधवार, 30 अक्तूबर 2024

अष्टांग योग एवं ज्योतिष विज्ञान


योग का अर्थ होता है – जोड़ । भारत में योग विद्या प्राचीन काल से प्रचलित है । प्रश्न उठता है कि योग तो गणित विज्ञान का शब्द है, जो जोड़ने का शास्त्र है । आत्मा और परमात्मा को जोड़ने की विद्या ही योग है । प्रणायाम के माध्यम से अपने प्राण को अनन्त के महाप्राण से जोड़ना ही योग है । प्रकृति से हमारी सांस को एक लय मिली हुई है । उस लय के बिगड़ने से ही हम अस्वस्थ्य हो जाते है, शरीर में विद्युत ऊर्जा और चुम्बकीय ऊर्जा का जो प्रवाह हो रहा है उसमें गड़बड़ी आ जाती है । योग विज्ञान में प्राण ऊर्जा को ब्रम्ह ऊर्जा से योग द्वारा जोड़ा जाता है । अतः योग जोड़ का विज्ञान है ।

ज्योतिष विज्ञान में भी योग का वही स्वरूप अन्तर्निहित है । अष्टांग योग में यम (नैतिक संयम), नियम (आध्यात्मिक अभ्यास), आसन (आध्यात्मिक स्वास्थ्य), प्राणायाम (सांस पर नियंत्रण), प्रत्याहार (इन्द्रिय और कर्म इन्द्रियों से सम्बन्ध विच्छेद), जहां भौतिक विधानों द्वारा जातक को आत्म संयोग के लिए प्रेरित करता है वहीं ध्यान (आध्यात्मिक लक्ष्य पर ध्यान का केन्द्रियकरण), धारणा (गहरी एकाग्रता), समाधि (परम चेतना में लीन), के आध्यात्मिक विधान द्वारा आत्मा का परम चेतना से संयोग कराता है ।

उसी प्रकार ज्योतिष में चन्द्र, बुध, शुक्र, गुरू, सूर्य-यम नियम आसन प्राणायाम और प्रत्याहार के अधिकारी ग्रह है । जो भौतिक बाधाओं को संकेतित करते हुए क्रियमाण कर्मों के माध्यम से आत्मदर्शन के लिए शारीरिक अनुकूलता प्रदान करते हैं । 

वहीं शनि, मंगल, राहु - केतु क्रमशः ध्यान धारणा और समाधि के अधिकारी ग्रह है जो प्रारब्ध फल के भोग को घोषित करते हुए संचित की विवशता के विनाश का मार्गदर्शन करते हुए आत्म दर्शन का बोध कराते है ।

इन दोनों वर्गों के ग्रहों के योग कुण्डली में अष्टांग योग के परिणामों की सफलता को सुनिश्चित करते है अर्थात जब हम अष्टांग योग में यम का अभ्यास करते है तो जन्म कुण्डली के चन्द्रमा की शुभता को बढ़ाना चाहिए, जब हम नियम का अभ्यास करते है तो हमें कुण्डली में बुध को बालान्वित कर लेना चाहिए । जब आसन का अभ्यास करते है तो कुण्डली में शुक्र को बलान्वित करना चाहिए और जब प्राणायाम का अभ्यास करें तो बृहस्पति को, प्रत्याहार के लिए सूर्य को, बलान्वित करने से योग अभ्यास में पूर्ण सफलता मिलती है । 

इस प्रकार आत्म साक्षात्कार के लिए हम भौतिक रूप से सक्षम हो जाते है तत्पश्चात आत्म साक्षात्कार के लिए ध्यान धारणा समाधि के अधिकारी ग्रह क्रमशः ध्यान के अधिकारी ग्रह शनि, धारणा के अधिकारी ग्रह मंगल तथा समाधि के अधिकारी ग्रह (राहु-केतु) को कुण्डली में ज्योतिष सिद्धान्तों के अनुसार शुभता बढ़ाते हुए अभ्यास करने से आत्म साक्षात्कार सहजता से प्राप्त हो जाता है अर्थात अष्टांग योग के परम लक्ष्य को हम प्राप्त हो जाते है ।

 

 

वशीकरण के 11 टोटके

 

1)सफेद गुंजा की जड़ को घिस कर माथे पर तिलक लगाने से सभी लोग वशीभूत हो जाते हैं ।

2)सूर्य ग्रहण के समय सहदेवी की जड़ और सफेद चंदन को घिस कर व्यक्ति तिलक करे तो देखने वाली स्त्री वशीभूत हो जाएगी ।

3)शनिवार के दिन सुंदर आकृति वाली एक पुतली बनाकर उसके पेट पर इच्छित स्त्री का नाम लिखकर उसी को दिखाएं जिसका नाम लिखा है । फिर उस पुतली को छाती से लगाकर रखें इससे स्त्री वशीभूत हो जाएगी ।

4)नागकेसर को खरल में कूट छान कर शुद्ध घी में मिलाकर यह लेप माथे पर लगाने से वशीकरण की शक्ति उत्पन्न हो जाती है |

5)नागकेसर, चमेली के फूल, कूट, तगर,कुंकुंम और देशी घी का मिश्रण बनाकर किसी प्याली में रख दें । लगातार कुछ दिनों तक नियमित रूप से इसका तिलक लगाते रहने से वशीकरण की शक्ति उत्पन्न हो जाती है ।

6)रवि पुष्य योग (रविवार के दिन पुष्य नक्षत्र) में गूलर के फूल एवं कपास की रूई मिलाकर बत्ती बनाएं तथा उस बत्ती को मक्खन से जलाकर जलती हुई बत्ती की ज्वाला से काजल निकालें । इस काजल को रात में अपनी आंखें में लगाने से समस्त जग वश में हो जाता है ।

7)कड़वी तूंबी(लौकी) के तेल और कपड़े की बत्ती से काजल तैयार कर आंखों में लगाकर देखने से वशीकरण हो जाता है ।



8)कपूर तथा मैनसिल को केले के रस में पीसकर तिलक लगाने से साधक को जो भी देखता है, वह वशीभूत हो

जाता है |

9)केसर, सिंदूर और गोरोचन तीनों को आंवले के साथ पीसकर तिलक लगाने से देखने वाले वशीभूत हो जाते हैं ।

10)अमावस्या की रात्रि को मिट्टी की एक कच्ची हंडिया मंगाकर उसके भीतर सूजी का हलवा रख दें। इसके अलावा उसमें साबुत हल्दी का एक टुकड़ा, 7 लौंग तथा 7 काली मिर्च रखकर हँडिया पर लाल कपड़ा बांध दें । फिर घर से कहीं दूर सुनसान स्थान पर वह हंडिया ज़मीन में गाड़ दें और वापस आकर अपने हाथ-पैर धो लें ऐसा करने से प्रबल वशीकरण होता है |

11)प्रातःकाल काली हल्दी का तिलक लगाएं तिलक के मध्य में अपनी कनिष्ठिका उंगली का रक्त लगाने से प्रबल वशीकरण होता है |

गुरुवार, 17 अक्तूबर 2024

उच्च विद्या प्राप्ति के ग्रह योग


ऊंच शिक्षा प्राप्ति में सूर्य चंद्र, बुध, गुरु, मंगल व शनि ग्रह की विशेष भूमिका है । इसके अतिरिक्त लग्नेश, पंचमेश व नवमेश तथा इन भावों का विश्लेषण भी उच्च शिक्षा प्राप्ति हेतु करना चाहिए । लग्नेश निर्बल हुआ तो बुद्धि व भाग्य व्यर्थ हो जाएंगे, यदि पंचम भाव निर्बल हुआ तो शरीर और भाग्य क्या करेंगे और यदि भाग्य कमजोर हुआ तो शरीर व बुद्धि व्यर्थ होंगे ।

प्रस्तुत आज के लेख मे हम ऐसे ही कुछ सूत्र ज्योतिष के अनुसार बता रहे हैं जिनसे आसानी से जाना जा सकता हैं की कोई भी जातक कितनी व कैसी शिक्षा प्राप्त कर सकता हैं |

लग्न अनुसार ऊंच शिक्षा

यदि मेष लग्न हो और पंचम में बुध तथा सूर्य पर गुरु की दृष्टि पड़े तो जातक उच्च शिक्षा पाता है ।

यदि वृष लग्न हो और उसमें सूर्य बुध की युति लग्न, चतुर्थ या अष्टम में हो तो जातक उच्च शिक्षा पाता है ।

यदि मिथुन लग्न हो और लग्न में शनि, तृतीय में शुक्र तथा नवम में गुरु होतो जातक उच्च शिक्षा पाता है ।

यदि कर्क लग्न हो और उसमें लग्न में बुध, गुरु व शुक्र की युति हो तो जातक उच्च शिक्षा पाता है ।

यदि सिंह लग्न हो और मंगल-गुरु की युति चतुर्थ, पंचम या एकादश भाव में हो तो जातक उच्च शिक्षा पाता है ।

यदि कन्या लग्न हो और उसमें एकादश भाव में गुरु, चंद्र तथा नवम भाव में बुध स्थित हो तो जातक उच्च शिक्षा पाता है ।

यदि तुला लग्न हो और अष्टम में शनि गुरु द्वारा दृष्ट हो तथा नवम में बुध स्थित हो तो जातक उच्च शिक्षा पाता है ।

यदि वृश्चिक लग्न हो और उसमें सूर्य बुध हो तथा नवम भाव में गुरु चंद्र हो तो जातक उच्च शिक्षा पाता है ।

यदि धनु लग्न हो और उसमें गुरु हो तथा पंचम में मंगल व चंद्र स्थित हो तो जातक उच्च शिक्षा पाता है ।

यदि मकर लग्न हो और उसमें शुक्र - मंगल की युति हो तथा पंचम भाव में चंद्र गुरु द्वारा दृष्ट हो तो जातक उच्च शिक्षा पाता है ।

यदि कुंभ लग्न और एकादश भाव में चंद्र तथा षष्ठ भाव में गुरु स्थित हो तो जातक उच्च शिक्षा पाता है ।

यदि मीन लग्न हो और उसमें गुरु षष्ठ, शुक्र अष्ठम, शनि नवम तथा मंगल - चंद्र एकादश भाव में हों तो जातक उच्च शिक्षा पाता है ।

 

पंचमेश शुभ ग्रह हो और पंचमेश का नवांशपति भी शत्रु ग्रहों से युत व दृष्टा न हो तो उच्च शिक्षा प्राप्त होती है ।

गुरु केंद्र या त्रिकोण में होकर शनि, राहु, केतु से युत या दृष्ट होतो जातक उच्च शिक्षा प्राप्त कर विद्वान बनता है ।

लग्नेश, पंचमेश, नवमेश में परस्पर युति या दृष्टि संबंध हो तो जातक उच्च शिक्षा प्राप्त करता है ।

इनके अतिरिक्त कुछ अन्य सूत्र भी हैं जो बताते हैं की जातक शिक्षा अनुसार किस प्रकार का हो सकता हैं |

गुरु व चंद्रमा एक-दूसरे के घर में हो तो चंद्रमा पर गुरु की दृष्टि हो तो सरस्वती योग होता है, जिससे जातक साहित्य, कला व काव्य में उच्च शिक्षा प्राप्त करता है ।

गुरु लग्न में हो तथा चंद्र से तृतीय सूर्य, मंगल, बुध हो तो जातक विज्ञान विषय में उच्च शिक्षा पाकर वैज्ञानिक बनता है ।

पंचम भाव व पंचमेश बुध व मंगल के प्रभाव में हो तो जातक व्यापार संबंधी ऊंच शिक्षा प्राप्त करता है ।

यदि गुरु केंद्र (1,4,7व 10) में हो तो जातक बुद्धिमान होता है । गुरु उच्च अथवा स्वग्रही हो तो और अच्छा फल देता है ।

बुध पंचम में हो तथा पंचमेश बली होकर केंद्र में हो तथा शुभ ग्रहों से दृष्ट हो तो जातक बुद्धिमान होता है ।

पंचमेश उच्च का केंद्र या त्रिकोण में स्थित हो तो जातक पूर्ण शिक्षा पाता है ।

पंचम भाव में सूर्य सिंह राशि में हो तो जातक मनोनुकूल शिक्षा पूर्ण करता है ।

गुरु शुक्र व बुध यदि केंद्र व त्रिकोण में एक साथ या अलग-अलग स्थित हों तथा गुरु उच्च, स्वग्रही या मित्र क्षेत्र में हो तो सरस्वती योग बनता है। ऐसे जातक पर सरस्वती की विशेष कृपा होती है ।

दशमेश व पंचमेश का स्थान परिवर्तन अर्थात् दशम भाव का स्वामी पंचम में तथा पंचम भाव का स्वामी दशम में हो तो व्यक्ति अच्छी शिक्षा प्राप्त करता है ।

बुध, चंद्रमा व मंगल पर शुक्र या गुरु की दृष्टि हो तो भी जातक बड़ा बुद्धिमान होता है ।

पंचम भाव में गुरु हो तो जातक अनेक शास्त्रों का ज्ञाता पुत्र व मित्रों से समृद्ध, बुद्धिमान व धैर्यवान होता है ।

लग्नेश यदि 12वें या 8वें भाव में हो तो जातक सिद्धि प्राप्त करता है और वह विद्या विशारद होता है ।

चतुर्थेश सप्तम व लग्न में हो तो जातक बहुत सी विद्या का ज्ञाता होता है ।

चंद्रमा से गुरु त्रिकोण में हो, बुध से मंगल त्रिकोण में और गुरु से बुध एकादश स्थान में हो तो जातक अच्छी शिक्षा प्राप्त करके बहुत सा धन अर्जन करता है ।

 

गुरु द्वितीयेश होकर बलवान सूर्य व शुक्र से दृष्ट हो तो जातक व्याकरण शास्त्र का ज्ञाता होता है ।

धन भाव में मंगल शुभ ग्रहों से दृष्ट हो या धनभाव में चंद्र, मंगल की युति हो व बुध द्वारा दृष्ट हो तो जातक गणित विषय का ज्ञाता होता है ।

यदि द्वितीयेश से 8वें, 12वें शुभ ग्रह हों तो जातक प्रखर विद्वान होता है ।

मंगलवार, 15 अक्तूबर 2024

पंचम भाव व संतान योग

 

इस संसार में कोई ऐसा दंपति नहीं होगा, जो संतान सुख ना चाहता हो | गरीब हो या अमीर सभी के लिए संतान सुख होना अवश्य महत्व ता है । संतान चाहे खूबसूरत हो या बदसूरत, लेकिन होनी ज़रूर चाहिए फिर चाहे वह संतान चाहे माता - पिता के लिए सहारा बने या न बने ।

अक्सर देखा जाता हैं की किसी - किसी दंपति की संतान होती है और फिर गुजर जाती है । ऐसा क्यों होता है ? यहाँ पर हम इन्हीं सब बातों की जानकारी दें रहे हैं, जिससे आप जान सकें कि संतान होगी या नहीं ।

सभी जानते हैं की ज्योतिष अनुसार कुंडली का पंचम भाव संतान का होता है । पंचम स्थान कारक गुरु और पंचम स्थान से पंचम स्थान (नवम स्थान) पुत्र सुख का स्थान होता है । पंचम स्थान गुरु का हो तो हानिकारक होता है, यानी पुत्र होने मे बाधा आती है ।

पंचम स्थान का स्वामी भाग्य स्थान में हो तो प्रथम संतान के बाद पिता का भाग्योदय होता है । यदि ग्यारहवें भाव में सूर्य हो तो उसकी पंचम भाव पर पूर्ण दृष्टि होने के कारण पुत्र अत्यंत प्रभावशाली होता है । इसी प्रकार यदि मंगल की यदि चतुर्थ, सप्तम, अष्टम दृष्टि पंचम भाव पर पड़ रही हो तो पुत्र अवश्य होता है ।

पुत्री संततिकारक चँद्र, बुध, शुक्र यदि पंचम भाव पर दृष्टि डालें तो पुत्री संतति होती है ।

यदि पंचम भाव पर बुध हो और उस पर चँद्र या शुक्र की दृष्टि पड़ रही हो तो संतान होशियार होती है ।

पंचम स्थान का स्वामी होकर शुक्र यदि पुरुष की कुंडली में लग्न,अष्टम या तृतीय भाव पर हो एवं सभी ग्रहों में बलवान हो तो निश्चित तौर पर लड़की ही पैदा होती है ।

पंचम स्थान पर मकर/कुम्भ का शनि होतो कन्या संतति अधिक प्राप्त होती है । पुत्र की चाह में पुत्रियाँ होती हैं। कुछ संतान नष्ट भी होती है  ।

पंचम स्थान पर स्वामी जितने ग्रहों के साथ होगा, उतनी संतान होगी । जितने पुरुष ग्रह होंगे, उतने पुत्र और जितने स्त्रीकारक ग्रहों के साथ होंगे, उतनी संतान लड़की होगी ।

सप्तमांश कुंडली के पंचम भाव पर या उसके साथ या उस भाव में कितने अंक लिखे हैं, उतनी संतान होगी ।

एक नियम यह भी है कि सप्तमांश कुंडली में चँद्र से पंचम स्थान में जो ग्रह हो एवं उसके साथ जीतने ग्रहों का संबंध हो, उतनी संतान होगी |

संतान सुख कैसे होगा, इसके लिए भी हमें पंचम स्थान का ही विश्लेषण करना होगा । पंचम स्थान का मालिक किसके साथ बैठा है, यह भी जानना होगा । पंचम स्थान में गुरु शनि को छोड़कर पंचम स्थान का अधिपति पाँचवें हो तो संतान संबंधित शुभ फल देता है । यदि पंचम स्थान का स्वामी आठवें, बारहवें हो तो संतान सुख नहीं होता । यदि हो भी तो सुख मिलता नहीं संतान नष्ट होती है या अलग हो जाती है ।

यदि पंचम स्थान का अधिपति सप्तम, नवम, ग्यारहवें, लग्नस्थ, द्वितीय में हो तो संतान से संबंधित सुख शुभ फल देता है ।

द्वितीय स्थान के स्वामी ग्रह पंचम में हो तो जातक को संतान सुख उत्तम होकर जातक लक्ष्मीपति बनता है |

पंचम स्थान का अधिपति छठे में हो तो दत्तक पुत्र लेने का योग बनता है  ।

सिंह लग्न में पंचम गुरु वृश्चिक लग्न में मीन का गुरु स्वग्रही हो तो संतान प्राप्ति में बाधा आती है, परन्तु गुरु की पंचम दृष्टि हो या पंचम भाव पर पूर्ण दृष्टि हो तो संतान सुख उत्तम मिलता है |

पंचम स्थान में मीन राशि का गुरु कम संतान देता है । पंचम स्थान में धनु राशि का गुरु हो तो संतान तो होगी, लेकिन स्वास्थ्य कमजोर रहेगा ।

पंचम स्थान पर सिंह, कन्या राशि का गुरु हो तो संतान नहीं होती । इसी प्रकार तुला राशि का शुक्र पंचम भाव में अशुभ ग्रह के साथ (राहु, शनि, केतु) के साथ हो तो संतान नहीं होती ।

पंचम स्थान में मेष, सिंह, वृश्चिक राशि हो और उस पर शनि की दृष्टि हो तो पुत्र संतान सुख नहीं होता ।

पंचम स्थान पर राहु का होना गर्भपात कराता है ।

यदि पंचम भाव में गुरु के साथ राहु हो तो चांडाल योग बनता है और संतान में बाधा डालता है या संतान नहीं होती । राहु, मंगल, पंचम भाव मे हो तो एक ही संतान होती है ।

पंचम स्थान में पड़ा चँद्र, शनि, राहु भी संतान बाधक होता है ।

यदि संतान का योग लग्न कुंडली में न हों तो चँद्र कुंडली से भी देखना चाहिए । यदि चँद्र कुंडली में ऐसे योग बने तो उपरोक्त फल जानने चाहिए

पंचम स्थान पर राहु या केतु हो तो पितृदोष, दैविक दोष, जन्म दोष होने से भी संतान नहीं होती | यदि पंचम भाव पर पितृदोष या पुत्रदोष बनता हो तो उस दोष की शांति करवाने के बाद संतान प्राप्ति संभव है ।

पंचम स्थान पर नीच का सूर्य संतान पक्ष में चिंता देता है तथा ऑपरेशन द्वारा संतान देता है ।

पंचम स्थान पर सूर्य मंगल की युति हो और शनि की दृष्टि पड़ रही हो तो संतान की शस्त्र से मृत्यु होती है ।

गुरुवार, 10 अक्तूबर 2024

नक्षत्र अनुसार रोग व दान


हमारे भारतीय ज्योतिष शास्त्रो मे जातक विशेष को जब कोई बीमारी होती हैं तो यह जानकार की वह किस नक्षत्र मे हुई हैं उसी के अनुसार दान करने से बीमारी से मुक्ति पायी जा सकती हैं यह बताया गया हैं | प्रस्तुत लेख मे हम इसी विषय पर प्रकाश डाल रहे हैं |

अश्विनी नक्षत्र में कांस्य पात्र में घी भरकर दान करने से रोग मुक्ति होती है ।

भरणी नक्षत्र में ब्राह्मण को तिल एवं गाय का दान करने से सद्गति प्राप्त होती है व कष्ट कम होता है ।

कृतिका नक्षत्र में घी और खीर से युक्त भोजन ब्राह्मण व साधु संतों को दान करने से उत्तम स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है ।

रोहिणी नक्षत्र में घी मिश्रित अन्न को ब्राह्मण व साधुजन को दान करना चाहिए ।

मृगशिरा नक्षत्र में ब्राह्मणों को दूध दान करने से किसी प्रकार का ऋण नहीं रहता व व्याधि से दूर रहते हैं ।

आर्द्रा नक्षत्र में तिल मिश्रित खिचड़ी का दान करने से सभी प्रकार के संकटों से मुक्त हो जाते हैं ।

पुनर्वसु नक्षत्र में घी के बने मालपुए ब्राह्मण को दान करने से रोग का निदान होता है ।

पुष्य नक्षत्र में इच्छा अनुसार स्वर्ण दान करने से सभी कष्ट दूर हो जाते हैं ।

अश्लेषा नक्षत्र में इच्छा अनुसार चांदी दान करने से रोग से शांति व निर्भय हो जाता है ।

मघा नक्षत्र में तिल से भरे घड़ों का दान करने से रोग से निदान व धन की प्राप्ति भी होती है ।

पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र में ब्राह्मण को घोड़ी का दान करने से सद्गति मिलती है ।

उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र में स्वर्ण कमल ब्राह्मण को दान देने से बाधाएं दूर हो जाती हैं व रोग से शांति मिलती है ।

हस्त नक्षत्र में रोग से निदान पाने के लिए ब्राह्मण को चांदी दान करना व जल सेवा लाभदायक होती है |

चित्रा नक्षत्र में ताम्रपत्र, घी का दान शुभ होता है ।

स्वाति नक्षत्र में जो पदार्थ स्वयं का प्रिय हो, उनका दान करने से शांति मिलती है |

विशाखा नक्षत्र में वस्त्रादि के साथ अपना कुछ धन ब्राह्मण को देने से सारे कष्ट दूर होते हैं साथ ही आपके पितृगण भी प्रसन्न होते हैं |

अनुराधा नक्षत्र में यथाशक्ति कम्बल ओढने तथा पहनने वाले वस्त्र ब्राह्मण को दान किये जायें तो आयु में वृद्धि होती है |

ज्येष्ठा नक्षत्र में मूली दान करने से अभीष्ट गति प्राप्त होती है ।

मूल नक्षत्र में कंद, मूल, फल, आदि देने से पितृ संतुष्ट हो जाते हैं, स्वास्थ्य में लाभ व उत्तम गति मिलती है ।

पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र में कुलीन और वेदवेत्ता ब्राह्मण को दधिपात्र देने से कष्ट दूर हो जाते हैं |

उत्तराषाढ़ा नक्षत्र में घी और मधु का दान ब्राह्मण को देने से रोग में शांति होती है ।

श्रवण नक्षत्र में पुस्तक दान करना लाभदायक रहता हैं |

धनिष्ठा में दो गायों का दान करने से रोग में शांति व जन्मों तक सुख की प्राप्ति भी होती है ।

शतभिषा नक्षत्र में अगरु व चन्दन दान करने से शरीर के कष्ट दूर हो जाते हैं |

पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र में साबुत उड़द के दान से सभी कष्ट से आराम व सुख प्राप्त होता है ।

उत्तराभाद्रपद नक्षत्र में सुन्दर वस्त्रों के दान से पितृ संतुष्ट होते हैं और उसे सद्गति प्राप्त होती है |

रेवती नक्षत्र में कांस्य पात्र दान करना लाभदायक होता है |