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उद्घाटन तिथि - 22:01:2024 समय:12:20 दोपहर। (11:10-12:45)
उद्घाटन का
पक्ष - शुक्ल पक्ष,द्वादशी तिथि,अभिजित
मुहूर्त,मृगशिरा 2 नक्षत्र।
उद्घाटन के समय मेष लग्न बना हैं भाग्येश गुरू
लग्न में हैं और लग्नेश मंगल भाग्य स्थान में प्रराक्रमेश एवं षष्ठेश बुध तथा धनेश
एवं सप्तमेश शुक्र के साथ विनिमय परिवर्तन योग कर रहा हैं |
राज्येश एवं लाभेश शनि अपनी मूल-त्रिकोण राशि कुंभ में लाभ स्थान में है। सुखेश
चन्द्रमा द्वितीय भावगत
है।पंचमेश सूर्य दशम भाव में मकर राशिगत है जो दिग्बली है।राहु मीन राशिगत द्वादश
भावगत है एवं केतु षष्ठ भावगत है।
हम जानते हैं कि
मेदिनी ज्योतिष
में प्रथम भाव गृह मंत्रालय का प्रतीक होता है जिससे जनसाधारण और देश की सामान्य
स्थिति तथा देशवासियों का सामान्य चरित्र पता चलता है,प्रथम भाव में
स्थित शुभ ग्रह अच्छा स्वास्थ्य सुख और समृद्धि देते हैं यहां स्पष्ट रूप से हम
देख रहे हैं कि अत्यधिक शुभ ग्रह गुरु नवम भाव का स्वामी होकर लग्न में स्थित है,कर्मेश व लाभेष शनि की लग्न पर दृष्टि भी है जो पाप ग्रह होने के
कारण थोड़ा बहुत परेशानियों को भी बता रहा है|
गुरू के लग्नगत होने तथा नवम स्थान
(त्रिकोणाधिपति) के स्वामी होने से व्ययेश
का दोष नहीं लगता है। भाग्येश के लग्नगत होने के कारण से बृहस्पति लग्न में
दिग्बली होता है । जो सूर्य के बाद दूसरे नंबर का बली ग्रह है जो षड़बल में बली है
इसलिए समस्त दोषों को हरण करने में सक्षम है।
एको जीवो यदा
लग्ने,सर्वयोगस्तदा शुभा।
दीर्घजीवी
महाप्रज्ञो,जातको नायको भवेत्। । (मानसागरी,श्लोक-32)
इस श्लोकानुसार
यह गुरू (बृहस्पति) भारत का नाम सम्पूर्ण विश्व में रोशन करेगा और सबका प्यारा
होगा। बृहस्पति की दृष्टि पंचम संतान भाव,सप्तम भाव एवं
भाग्य भाव पर पर पड़ रही है इसलिए विश्व की समस्त संतानों पर पूर्ण अमृत वर्षा
दर्शन करने से होगी।
दूसरा भाव वित्त
मंत्रालय का होता है जो देश की आर्थिक स्थिति मुद्रा स्थिति राष्ट्रीय राजकोष और
देश की संपदा को बताता है इसी भाव से हम देश का सामान्य लाभ एवं हानि भी देखते हैं
तथा देश का खजाना भी इसी से देखा जाता है इस भाव में चंद्रमा चौथे भाव का स्वामी
होकर स्थित है जो कि चौथे भाव मानव संसाधन से संबंधित का स्वामी बनता है जिस भाव
से देश की जमीन खनिज तथा उद्योग आदि को देखा जाता है इसी भाव से राजा का सिंहासन
वह राजमुकुट भी देखा जाता है क्योंकि इस चतुर्थ भाव का स्वामी उच्च का होकर दूसरे
भाव में है जो स्पष्ट रूप से बता रहा है कि जनता अपने राजा से बहुत खुश है तथा देश
के प्रति देशभक्ति भी दर्शा रही है क्योंकि यह संसाधन से संबंधित है अतः यह मंदिर
एक बहुत ही बेहतरीन धन संबंधी संसाधन के रूप में भविष्य में जाना जाएगा|
तीसरा भाव जो कि
संचार मंत्रालय को बताता है जिससे हम यातायात एवं संचार साधु को देखते हैं प्रेस
अथवा समाचार आदि को भी इसी भाव से देखा जाता है जिसका स्वामी बुध भाग्य स्थान में
बैठकर अपने भाव को दृष्टि दे रहा है तथा यह दर्शा रहा है कि दूर-दूर तक मंदिर का
गुणगान एवं संचार होता रहेगा तथा इससे देश में व्यापार भी आएगा| इसी भाव पर मंगल
की दृष्टि भी है जो नियमों को कड़ाई से पालन करवाएगी तथा अनुशासन संबंध व्यवहार भी
बताएगी
चतुर्थ भाव पर
पंचमेश सूर्य की दृष्टि है हम सब जानते हैं की पंचम भाव शिक्षा का भाव माना गया है
जिससे आने वाली पीढ़ी अथवा देश के बच्चे मनोरंजन सभी प्रकार का आनंद आमोद प्रमोद
इत्यादि देखा जाता है उसका स्वामी सूर्य जब चतुर्थ भाव पर दृष्टि डाल रहा है तो यह
स्पष्ट रूप से देखा जा रहा है की आने वाली पीढ़ी एवं देश की शिक्षा भी इस चतुर्थ
भाव को अपना महत्व प्रदान करेगी वह आने वाली पीढ़ी इससे अपने गौरव मित्र इतिहास से
रबरी हो पाएगी अवनीश मंगल की भी दृष्टि इस भाव पर होने से गृह मंत्रालय भी इस भाव
पर अपनी पहली नजर गड़ा कर रखेगा यह प्रतीत होता है|
पंचम भाव अर्थात
शिक्षा भाव पर नवमेश गुरु
और कर्मेश शनि की दृष्टि होने से आने वाले समय में सरकार द्वारा राम मंदिर निर्माण
से संबंधित जानकारियां शिक्षा में उपलब्ध कराए जाने की ओर इशारा मिलता है|
छठा भाव जो कि
देश की रक्षा का भाव होता है षष्ठ भावगत केतु शत्रुओं पर विजय पाने में सक्षम होता
है तथा सेवा भावना से ओतप्रोत होता है परंतु समय-समय पर कुछ परेशानियां भी खड़ा
करेगी तथा कुछ गुप्त रूप से परेशानियां भी खड़ी करता नजर आ रहा है | भाव के स्वामी
बुध का नवे भाव में बैठना स्पष्ट रूप से इस मंदिर के निर्माण में परेशानियों को
सर्वोच्च न्यायालय की ओर जोड़ता दिखाई दे रहा है हम सभी जानते हैं कि फैसला न्याय
लेकर अनुसार ही आया है|
सप्तम भाव से
अंतर्राष्ट्रीय मामले युद्ध इत्यादि को देखा जाता है इस भाव पर गुरु नवमेश की
दृष्टि होना तथा भाव स्वामी शुक्र का 9वे भाव में जाना विदेश से व्यापार व्यापार
व्यापारिक समझौते एवं धर्म की स्थापना को दर्शा रहा है यही भाव सरकार द्वारा भूमि
अधिनियम का प्रयोग भी बता रहा है इस सप्तम भाव पर नवमी शुरू की दृष्टि होना तथा
सप्तम भाव के स्वामी का 90 भाव में बैठना विदेश से बहुत से श्रद्धालुओं का आना भी
बता रहा है क्योंकि यहां पर गुरुद्वारा भाव का स्वामी भी है अतः पूरे विश्व में इस
मंदिर का जबरदस्त प्रभाव देखने में आएगा और यह एक अंतरराष्ट्रीय पर्यटन स्थल के
रूप में भी प्रसिद्ध होगा |
अष्टम भाव जैसा
कि हम सब जानते ही हैं देश के मूलधन पर आए टैक्स छुपी हुई वस्तुएं अथवा प्राकृतिक
आपदाओं को बताता है उसका स्वामी शुक्र नवे भाव में है जो छुपी हुई वस्तुओं को
धर्म से जोड़ रहा है हम सब जानते हैं कि यह मंदिर प्राचीन समय से छुपा हुआ था जिसे
लग्नेश अर्थात गृह मंत्रालय के द्वारा बाहर किया गया है जिसमें भाग्य भाव के
स्वामी बृहस्पति का अहम भूमिका रही है इसी भाव पर कामेश एवं एकादश शनि की दृष्टि
भी है जो आने वाले समय में इससे संबंधित गुप्त आई के बारे में भी बता रही है
नवम भाव में
लग्नेश मंगल का बैठना तथा सप्तमेश एवं तृतीय एवं षष्ठेश भाव के स्वामी के साथ बैठना न्यायालय
संधि एवं समझौता तथा विदेशी व्यापार एवं हवाई अड्डे इत्यादि को दर्शाता है यही भाव
परिवहन के साधनों को भी दर्शाता है तो हम सब जानते हैं कि अब अयोध्या को पूरे
विश्व से हवाई जहाज एवं अन्य वाहन इत्यादियों से जोड़ दिया गया है और भविष्य में भी
इसे और बड़े पैमाने पर किया जाएगा|
शुक्र के नवमस्थ
होने से भृगुसूत्र के अनुसार-
"धार्मिकः
तपस्वी अनुष्ठान परः सुतदारवान् "
इस मंदिर को
अपनी संतानों(भक्तों) का भरपूर सहयोग प्राप्त होगा एवं सुखी होंगे ।
नवम स्थान में
मंगल,शुक्र
और बुध की युति इस मंदिर को विश्व में प्रथम स्थान पर ले जाएगी। यह सबसे धनी मंदिर
होगा एवं इस मंदिर के द्वारा तमाम व्यवसायिक एवं धार्मिक गतिविधियों का संचालन
किया जाएगा ।
भृगुसूत्र के
अनुसार नवमस्थ बुध धार्मिक कार्यों में लिप्त तथा तमाम परोपकार के कार्य किए
जाएंगे । वेदशास्त्रविशारद् संगीतपाठकः दाक्षिण्यवान् '। जिसके कारण से
इस सूत्र के अनुसार यह मंदिर धर्मशास्त्र,नीति,संगीत का ज्ञान देने वाला होगा,तथा अपने भक्तों
का प्रिय होगा यहां पर मंगल उच्चाभिलाषी है जिससे महत्वाकांक्षी एवं
महापराक्रमी यह ट्रस्ट होगा ।
दसवां भाव राजा
अथवा नैतिकता का होता है जिससे हम प्रधानमंत्री भी देखते हैं इसका स्वामी शनि लाभ
स्थान से बैठकर लगन को देख रहा है जो राधा की निश्चित जीत की और इशारा करता है तथा
पंचमी सूर्य का स्थान पर बैठना जनता एवं जनता के धन एवं शिक्षा का राजा से जुदा
होना दर्शा रहा है देशके सभी देश के इस सम्मान में बराबर के हिस्सेदार बनेंगे और
सट्टा सीन डाल को इससे बेहद लाभ होगा तथा आने वाली पीढ़ी भी राजा से जुड़ेगी ऐसा
दिखाई देता है राजा के रूप में सूर्य का स्थान पर बैठना प्रधानमंत्री एवं सरकार का
इस मंदिर के निर्माण में जबरदस्त प्रभाव दर्शा रहा है |
सत्यजातकम् के
अनुसार पंचमेश सूर्य यदि दशम भाव में हो तो
पुत्रेशे
दशमयाते पुण्यकृतस् भविष्यति।
धर्मशालामन्दिराणां
जीर्णोद्धारमाचरेत्। ।
ऐसा जातक किसी मंदिर,धर्मशाला एवं
परोपकार के महान कार्य अपने हाथ से करता है। यहाँ पर सूर्य
अपनी शत्रु राशि मकर में है किन्तु षड़बल में सबसे बली ग्रह है ।इसलिए अपने
शत्रुओं के मध्य में होने के बावजूद लाभकारी ही सिद्ध होगा।
11वां भाव जैसा
कि हम सब जानते हैं राष्ट्रीय मुद्रा से संबंधित होता है जहां शनि स्वराशि के होकर
बैठा हैं जो
आने वाले समय में देश को इससे बहुत अधिक मुद्रा का लाभ होता दर्शा रहे हैं इस शनि
के स्वराशि होने
से और इस मंदिर से जबरदस्त धन संचय होने
से राष्ट्र के लक्ष्य और योजनाएं भी सफलता की और बढ़ेगी ऐसा नजर आता है | शनि कुम्भ राशि (मूल-त्रिकोणी)
है जिसके कारण से यह भाग्यशाली एवं किस्मत वाला होगा । अपनी विरासत को बचाकर
रखेगा।
भृगुसूत्र के
अनुसार,
"बहुधनी विघ्नकरः भूमिलाभः राजपूजकः "
राजा से,सरकार से राज
सम्मान,लाभ
पाने वाला,भूमिलाभ
वाला,लिखे
विधाता,स्वंय
विधाता। अपनी मूल-त्रिकोण राशि में होने से लाभेश शनि बहुत रूपया कमाएगा एवं बहुत
धनी मंदिर होगा।
12वीं भाव में
गुप्त योजनाओं के घर पर गुप्त राहु का बैठना भविष्य में थोड़ा बहुत गुप्त शत्रुओं
से भय भी इसको दर्शा
रहे हैं वहीं एक जाति विशेष वर्ग के असंतुष्ट होना भी दर्शा रहे हैं द्वादशेष गुरु का लग्न में होना बताता है कि देश
में विदेशी गुप्तचर भी सक्रिय हैं एवं देश की नीतियों को प्रभावित करने का प्रयास
कर रहे हैं |
द्वादश का मीन
राशिगत राहु अध्यात्म ज्ञान एवं संन्यास के लिए शुभ होता है । यह राहु बहुत बड़े परिवार को
पालने वाला,धनवान व सुखी बनाता है ।
उपरोक्त
ग्रहयोगों के कारण यह हमारा मंदिर पूरे विश्व के लिए कल्याणकारी होगा । इस ट्रस्ट
के द्वारा सनातन धर्म के मठ,मंदिरों के उद्धार के लिए ऐतिहासिक
कार्य किए जाएंगे ।
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