हमारे शरीर मे मस्तिष्क के भीतर, कपाल के नीचे एक छिद्र होता है,जिसे ब्रह्मरन्ध्र कहा जाता है । वहां से सुषुम्ना नाड़ी रीढ़ के अन्दर से होती हुई मूलाधार तक जाती है । मुख्य दो नाड़ियां होती हैं । इड़ा (चन्द्र, ठंडी) नाड़ी शरीर के बायीं तरफ स्थित है तथा पिंगला (सूर्य,गर्म) नाड़ी शरीर के दायीं ओर स्थित है । ये हर घंटे में बदलती रहती हैं । जब श्वास दोनों नासिकाओं से बहता है, तब चेतना अन्तर्मुखी होती है । तब ध्यान करना उपयोगी होता है । जिससे मन शांत बना रहता हैं शून्यता का अनुभव होने लगता हैं । हम इसे दिव्य दृष्टि प्राप्त करना भी कह सकते हैं ।
छठी इन्द्रिय की उपयोगिता -
1)अतीत में जाकर
घटना की सच्चाई का पता लगाया जा सकता है ।
2)व्यक्ति को
भविष्य में झांकने की क्षमता प्राप्त हो जाती है ।
3)मीलों दूर
बैठे व्यक्ति की बात सुनी जा सकती है ।
4)किसके मन में
क्या चल रहा है, वह आसानी से जाना जा सकता है ।
5)किसी के मन
में अपने अनुकूल विचार उत्पन्न किए जा सकते हैं ।
6)दूर से ही
रोगी को ठीक किया जा सकता है ।
7)स्मृति तेज
बनी रहती है ।
छठी इन्द्रिय जागरण विधिः
1) सुषुम्ना चलाना –
पश्चिमोत्तानासन, जानुशिरासन, सिद्धासन
के अभ्यास से दोनों नासिकाओं से श्वास प्रवाहित होने लगता है । काकी मुद्रा
अर्थात् दाएं हाथ के अंगूठे को बायीं काख में तथा बाएं हाथ के अंगूठे को दायीं काख
(बगल) में रखने से भी सुषुम्ना चलने लगती है । भस्त्रिका,
कपालभाति तथा अनुलोम - विलोम प्राणायाम
करने से भी सुषुम्ना सक्रिय हो जाती है ।
2) ध्यान - आज्ञाचक्र
ज्ञान का केन्द्र है । भ्रूमध्य (दोनों भौहों के बीच ध्यान) प्रातः
- सायं ध्यान करें
। सहस्रार चक्र भी छठी इन्द्रिय जागरण में सहायक है । ध्यान का
नियमित अभ्यास करते रहें । श्वासप्रश्वास पर भी ध्यान कर सकते हैं । श्वास के साथ
सोऽहं मंत्र का जाप कर सकते हैं । प्रकाश या नाद प्रकट होगा । मन को स्थिर व
नीरव करना आवश्यक है । अभ्यास 40 मिनट तक करें ।
3) त्राटक -
एकाग्रता व मन को स्थिर करने के लिए आन्तरिक व बाहरी त्राटक काफी मददगार सिद्ध
होता है ।
किसी त्राटक यंत्र या सर्दी में दीपक मोमबत्ती पर अथवा शाम्भवी मुद्रा पर त्राटक
करने का अभ्यास करें । दो मिनट से 45 मिनट तक बढ़ाएं
। मेरा शाम्भवी मुद्रा का अभ्यास 45 मिनट रहा । जिसके नेत्र
कमजोर हों, वे बाहरी त्राटक न करें ।
4)गायत्री मंत्र
का जाप - यह महामंत्र प्रज्ञा - प्रदायक है, सुप्त शक्तियों
को जगाता है ।
साधना व सिद्धियों को प्राप्त करने में सहायक है । मन की शक्ति
को बढ़ाता है ।
तीन से तीस माला तक जपें ।
5)दिनचर्या के
उल्टे क्रम का चिंतन करें - सोने से पहले नींद आने से लेकर सवेरे तक की घटनाओं का
स्मरण करें। इसी तरह पीछे ही पीछे स्मरण करें । यहां तक कि
पिछले जन्म के संकेत मिलने लगेंगे । सोई शक्ति व प्रज्ञा जागेगी ।
जब सपनो मे अनायास ही पूर्वाभ्यास होने लगे,
तरल कंठ से स्वतः ही कोई बात मुख से फूटना चाहे, तो
जानें कि जो कुछ अनुभव हो रहा है, यदि वह सच हो रहा है तो आपकी छठी
इन्द्रिय जाग रही है ।
यदि लगे कि
संकल्प मन में उठते ही मनचाही बात पूरी हो रही है तो मानें कि आपकी सिक्स्थ सेंस
जाग्रत होने वाली है ।
साधना शुद्ध वातावरण में, नियमित,
दृढ़ संकल्प के साथ निष्ठापूर्वक सम्पन्न करें ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें