आत्मकारक ग्रह का आठवे भाव/अष्टमेश से संबंध महान ज्योतिषी बनाता हैं |
जैमिनी ज्योतिष
के अंतर्गत आत्मकारक ग्रह का आठवे भाव/अष्टमेश से संबंध जातक विशेष को ज्योतिष का
बहुत अच्छा ज्ञान दिलाता है |
ज्योतिष अध्ययन
मे कई कुंडलियों के देखने के बाद यह पता चलता हैं कि अधिकतर अच्छे ज्योतिषियों की
पत्रिका में आत्मकारक ग्रह का आठवे भाव अथवा अष्टमेष से कोई ना कोई संबंध आवश्यक
रूप से है |
1)जगन्नाथ भसीन
जी की कर्क लग्न की पत्रिका में गुरु आत्मकारक होकर लग्न में है जिसकी अष्टमेश शनि पर
दृष्टि है |
2)बी वी रमन जी
की कुम्भ लग्न की पत्रिका में देखे तो चन्द्र आत्मकारक होकर मंगल के नक्षत्र मे है
जो अष्टमेश बुध के साथ सप्तम भाव सिंह राशि मे हैं |
3)शंकर हेगडे जी
की पत्रिका में देखे तो आत्मकारक मंगल लग्नेश व अष्टमेश भी है तथा उच्च का होकर
राहू संग दसम भाव मे हैं
|
4) श्री दामोदर
भट्ट जी की कर्क लग्न की पत्रिका में आत्म कारक सूर्य मंगल के नक्षत्र में है तथा
मंगल अष्टम भाव को देख रहा है|
5)पंडित हरदेव
शर्मा का आत्मकारक चंद्रमा दूसरे भाव से अष्टम भाव को देख रहा है |
6)निरंजनभट्ट जी
की मिथुन लग्न पत्रिका में शुक्र आत्मकारक हैं जिस पर अष्टमेश शनि का दृस्टी
प्रभाव है |
7)के एन राव जी
की तुला लग्न की पत्रिका में सूर्य आत्मकारक (द्वादश भाव मे) हैं लग्नेश - अष्टमेश
शुक्र लग्न मे हैं दोनों सूर्य व
शुक्र एक ही ग्रह मंगल के नक्षत्र मे हैं |
8)पी वी आर की कन्या लग्न की पत्रिका
में आत्मकारक मंगल आठवें भाव में ही है |
9)संथानम जी की
वृश्चिक लग्न की पत्रिका में आत्मकारक शुक्र अष्टमेश बुध के साथ में है |
10)संजय रथ जी
की मीन लग्न की पत्रिका में आत्मकारक शनि ग्यारहवें भाव से अष्टमेश शुक्र को देख
रहा हैं |
11)सुनील जॉन जी
की मिथुन लग्न की पत्रिका में आत्मकारक सूर्य 11वे भाव में मेष राशि मे हैं
जिसके स्वामी मंगल के नक्षत्र मे अष्टमेश
शनि है |
12)वेमुरी
शास्त्री जी की मिथुन लग्न की पत्रिका में शुक्र आत्मकारक बुध संग हैं जिसके
नक्षत्र मे अष्टमेश शनि है |
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