बुधवार, 14 मार्च 2018

कुंडली के शुभाशुभ ग्रहो का विश्लेषण

सर्वप्रथम कुंडली के शुभ अशुभ व सम ग्रहों का निर्धारण करें |

इसके बाद कुंडली में ग्रहों का भाव व अन्य ग्रहों पर प्रभाव का मूल्यांकन करें |

इसके बाद भाव पर पड़ने वाले शुभ अशुभ प्रभाव का अध्ययन करें |

इसके बाद नवांश कुंडली का अध्ययन करें |

दोनों कुंडलियों के प्रभावों को देख कर ही फलादेश दें |

कुंडली संख्या 1)5/11/1970 2:25 दिल्ली स्त्री की पत्रिका कुंभ लग्न की है सर्वप्रथम शुभ अशुभ ग्रहों का निर्धारण करते हैं |

सूर्य सप्तम भाव का स्वामी होने से शुभ है तथा साथ में मारकेश भी है जिससे हम विवाह,जीवन साथी व्यापार आदि का अध्ययन करेंगे | मारकेश से हमारा मुख्य तात्पर्य उस ग्रह से है जिसकी दशा अंतर्दशा में जातक को मृत्यु तुल्य कष्ट हो सकते हैं यह तभी संभव होता है जब मारकेश (दूसरे अथवा सातवें भाव का स्वामी ) निर्बल पीड़ित हो |

चंद्र छठे भाव का स्वामी होने से अशुभ है |

मंगल सम राशि दशम भाव में व मूल त्रिकोण राशि तीसरे भाव में होने से शुभ है अर्थात इसका संबंध व प्रभाव अन्य ग्रह व भाव पर शुभ होगा |

बुसम राशि पंचम में व मूल त्रिकोण राशि अष्टम में होने से अशुभ ग्रह है परंतु पंचम भाव के फल भी देगा इस स्थिति में पंचम भाव संबंधी फलों की जानकारी के लिए बुध व गुरु भाव कारक का अध्ययन भी करना पड़ेगा |

गुरु मूल त्रिकोण राशि लाभ स्थान व सम राशि दूसरे भाव में होने से सम ग्रह हैं और इसकी स्थिति पर ही इसका प्रभाव निर्भर करेगा,अशुभ ग्रहों के प्रभाव में अशुभ ग्रह के प्रभाव में अशुभ फल देगा और स्वतंत्र रुप से कोई फल नहीं दे पाएगा |

शुक्र मूल त्रिकोण भाग्यस्थान व सम राशि चतुर्थ में होने से अत्यंत शुभ और योगकारक हैं |

शनि मूल त्रिकोण लग्न में व सम राशि 12 भाव मे होने से शुभ है |

नोट- मंगल की भी एक राशि केंद्र दूसरे सम भाव में है परंतु शनि के मूल त्रिकोण राशि केंद्र में है जबकि मंगल की मूल त्रिकोण राशि समभाव में होने से शनि मंगल से अधिक शुभ ग्रह है |

इस प्रकार कुंडली में शुक्र,सूर्य,शनि मुख्य शुभ ग्रह हैं,मंगल साधारण शुभ,गुरू सम तथा चंद्र,बुध अशुभ ग्रह बनते है |

राहु केतु की शुभता का निर्धारण मुख्य रूप से उन पर पड़ने वाले प्रभाव अथवा उनकी स्थिति पर निर्भर करता है |

प्रस्तुत कुंडली में जन्म समय जातक के द्वारा ही दिया गया है इसलिए इसका सत्यापन करना ज़रूरी नहीं हैं इसके लग्न पर राहु में गुरु की दृष्टि का मालूम प्रभाव पड़ता है पर वास्तव में ऐसा नहीं है क्यूंकी राहु लग्न के अंशो मे करीब 9 अंश और गुरु व लग्न के अंशो मे करीब 7 अंशो का अंतरा हैं | लग्न कुंडली के भावो पर प्रभाव डालने वाले मंगल और सूर्य ही हैं | ग्रहो के आपसी संबंधो की बात करे तो  निम्नलिखित तथ्य मिलते हैं |

1)लग्नेश शनि पर भाग्य स्थान में बैठे चारों ग्रहों की दृष्टि है जिनमें शुक्र,सूर्य का प्रभाव शुभ तथा बुध का अशुभ है,गुरू सम व अस्त भी है अत:गुरु का कोई शुभ प्रभाव शनि पर नहीं हैं |

2)सप्तमेश सूर्य अन्य ग्रहों का प्रभाव इस प्रकार से है बुध सूर्य के अंशो मे 5:30 अंशो का अंतर होने से सूर्य बुध से सुरक्षित है शुक्र सूर्य के अंशों में करीब 8 अंशो का अंतर होने से शुक्र का भी सूर्य पर प्रभाव नहीं है गुरु सम ग्रह होकर सूर्य को प्रभावित कर रहा है | इस प्रकार गुरु के ऊपर 
बुध और सूर्य का प्रभाव है तथा शुक्र के ऊपर भी बुध और सूर्य का ही प्रभाव है |

सबसे पहले सूर्य सप्तमेश सूर्य नीच में होने राशि में होने से निर्बल है परंतु कुंडली में भाग्य स्थान में बैठने से बली है | सूर्य शुक्र की राशि में बैठा है इसलिए शुक्र के बल का भी विचार करना होगा शुक्र भाग्येश होने से बली हैं | साधारण बल के अनुसार अस्त व वृद्दावस्था में हैं इस प्रकार शुक्र साधारण रहता हैं | तीसरे भाव में शनि की दृष्टि शुक्र को विशेष बल प्रदान कर रही है इस प्रकार शुक्र बली हुआ शुक्र के बली होने के कारण शुक्र की राशि में बैठे अन्य 3 ग्रहो को विशेष बल प्राप्त कर रहे हैं |
इस प्रकार सूर्य गुरु बुध को विशेष बल प्राप्त हुआ और उनके फल प्रदान करने की क्षमता बढ़ गई | ग्रहों के बल का महत्व उनसे संबंधित फलों के लिए ही होता है | अशुभ फल प्रदान करने के लिए ग्रह का बल कोई महत्व नहीं रखता |

इस पत्रिका में नवांश वर्गोत्तम है इस कारण नवांश कुंडली में शुभ अशुभ ग्रहों का निर्धारण दोबारा नहीं करना पड़ेगा |

हम शुरुआत करते हैं सप्तम भाव से साधारण धारणा के अनुसार सप्तम भाव में केतु अनिष्टकारी होता है सप्तमेश सूर्य अपनी नीच राशि मे और भाग्य स्थान में तीन ग्रह के साथ बैठा है सूर्य पर शनि और राहु की दृष्टि है तिकारक गुरु अस्त है कुंडली में विवाह संबंधी दोष नजर आते हैं | अष्टम में बैठा मंगल इन दोषो को और भी बढ़ा रहा है अतः साधारण धारणा के अनुसार कन्या की विवाह में देरी,एक से अधिक विवाह नजर आते हैं |
परंतु ध्यान से देखें तो इस पत्रिका में सप्तम भाव पर केतु का प्रभाव लागू नहीं है | सूर्य के ऊपर सिर्फ गुरु का ही प्रभाव है जोकि सम भव का स्वामी होने से स्वतंत्र रूप से भक संबंधी फल ना देकर अपना स्वाभाविक फल ही देगा यह गुरु स्त्री कुंडली में प्रतिकारक होने से सूर्य पर प्रभाव डाल रहा है अस्तगत  होने बुसे पीड़ित होने से लाभ व धन स्थान का सुख नहीं दे पाएगा | इस प्रकार सप्तम भाव सुरक्षित,सप्तमेश सूर्य पर शुभ प्रभाव सूर्य की स्थिति सप्तम भाव को सुरक्षित और बली बना रही है  नवांश कुंडली में सप्तम भाव पर मंगल व गुरु की दृष्टि है लग्नेश शनि दशम भाव में बैठा सप्तम भाव को देखता है नवांश में सप्तम भाव बली हुआ | सप्तम भाव पर चंद्रमा की दृष्टि शुभ प्रभाव को कम कर रही है अत: 3 प्रभाव शुभ और एक अशुभ प्रभाव के कारण सप्तम भाव बली हुआ सप्तमेश सूर्य दूसरे भाव में बैठा दशम भाव के राहु से दृष्ट है जो एक अशुभ स्थिति है |जिससे हमें निम्न प्रकार की बातें पता चलती है

1)सप्तम भाव लग्न कुंडली सव सुरक्षित |

2)सप्तम भाव व नवांश कुंडली बली व सुरक्षित |

3)सप्तमेश लग्न कुंडली साधारण बली |

4)सप्तमेश नवांश कुंडली सम स्थान में राहु द्वारा दूषित |

सप्तमेश के नवांश में पीड़ा विवाहोपरांत भाग्य संबंधी कष्ट देगी जो दशा पर निर्भर होंगे |


इस जातिका का विवाह 18-19 वर्ष की आयु में हुआ जब दशा मंगल में केतु की थी और अब तक इसे विवाह संबंधी कोई विशेष कष्ट नहीं मिला है इसके पति के व्यवसाय में कुछ अस्थिरता आई थी जो उसकी पत्रिका मे दिखती है विवाह संपन्न परिवार में हुआ है और आर्थिक स्थिति मजबूत है |

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