9 अक्टूबर 1904 10:25 बनारस वृश्चिक लग्न सूर्य आत्मकारक,चंद्रमा अमात्यकारक,शनि भातृ कारक,शुक्र मात्र कारक,मंगल पुत्र कारक,बुध ज्ञाति कारक तथा गुरु दारा कारक है लग्न
के अंश 21 अंश 15 मिनट के है नवांश लग्न मकर,ड्रेष्कोण व होरा लग्न मेंष,घटिका लग्न धनु,आरूढ़ लग्न वृषभ,श्री लग्न वृषभ,शफूट लग्न मेष,कारकांश लग्न कर्क तथा दिव्य लग्न सिंह है | गुरु योगदा ग्रह
है क्योंकि वह कुंडली,नवांश,ड्रेष्कोण लग्नों को देखता है |
लग्नेश(मंगल) तथा योगदा ग्रह(गुरु) की डिग्री का
योग 12 से भाग देने पर दिव्य लग्न देता है यहां 12 डिग्री 29 अंश में 3 डिग्री 53 अंश
जोड़ने पर हमें 16 डिग्री 22 अंश प्राप्त होते हैं जिसे 12 से भाग देने पर 4 डिग्री 22 अंश
अथवा सिंह लग्न आता है |
लग्न व चंद्र
से चंद्र मजबूत है क्योंकि वह 22 डिग्री 39 मिनट का है | चंद्र कन्या राशि मे हैं जिसमें तीन ग्रह हैं | चंद्र लग्नेश
बुध 8 डिग्री 6 मिनट को शुक्र 18 डिग्री 5 मिनट से जोड़कर 12 से भाग देने पर तथा 5वे भाव से गिनने पर श्री लग्न आता है जो वृषभ
है |
आत्मकारक 23 डिग्री
में चंद्रमा 22 डिग्री 49 मिनट जोड़ने पर और उसे 9 से भाग देने पर मेष लग्न आता है जो स्फुट नवांश लग्न बनता
है |
आयु –
लग्न व चंद्र
स्थिर
द्विस्वभाव राशि दीर्घायु,
लग्नेश व अष्टमेश स्थिर व द्विस्वभाव राशि दीर्घायु
लग्न व आत्मकारक
स्थिर एवं द्विस्वभाव राशि दीर्घायु
आत्म कारक से
3 व 11 वा राशि चर व स्थिर राशि दीर्घायु |
लग्न व होरा लग्न स्थिर व चल राशि मध्य आयु |
अत्यधिक प्रभाव हैं
जो
जातक की दीर्घायु बताते
हैं | आयु ब्रह्म से महेश तक होती है स्थिर दशा 7 से 5 तक जाती है
जहां महेश मंगल
बनता है परंतु राशिश घटता है क्योंकि
आत्म कारक का अष्टमेष से संबंध है तथा शनि गुरु से दशम है तो आयु सिंह से कर्क तक जाती है तुला का
शेष लेने पर 2 वर्ष आते हैं क्योंकि शुक्र 18 अंश 5 मिनट का है आयु 74 वर्ष आती है
|
राजयोग
जन्म,होरा,व घटिका लग्न ग्रहों द्वारा
दृष्ट है जो राज योग बनाते हैं पर इतने शक्तिशाली नहीं जब एक ही ग्रह से दृस्ट हो |
लग्न,नवांश,ड्रेष्कोण गुरु द्वारा दृष्ट है जो राजयोग है |
लग्न व आरूढ़ लग्न केंद्र
में है |
लग्न व सप्तमेश
का दृष्टि संबंध |
लग्न में पंचमेश
का दृष्टि संबंध |
आरूढ़ लग्न से लग्नेश और सप्तमेश
संग है |
नवांश में लग्नेश
सप्तमेश संग है |
ड्रेष्कोण में लग्नेश पंचमेश
तथा पंचमेश सप्तमेश की युति है |
मंगल शुक्र केतु
का दृष्टि संबंध कुंडली में है तथा नवमांश में तीसरे भाव में वैथनिक योग है |
इन्ही सब राजयोगों
के कारण वह प्रधानमंत्री बने |
पिता की मृत्यु
वृष की निरायण शुल दशा मे हुई शुल राशि मकर है जो सप्तम से
नवम है इस मकर राशि से नवम राशि कन्या हैं जहां पिता का कारक सूर्य स्थित है तथा अंतर्दशा मेष राशि की है जो कन्या से अष्टम भाव की
राशि है पितृ राशि सिंह हैं जिसने मंगल है जो कन्या के अष्टम भाव का स्वामी है तथा
मेष सिंह से नवम राशि है | प्रत्येक दशा का समय 9 वर्ष
का है जिससे अंतर्दशा 9 माह की बनेगी जिससे वृषभ नौ माह तथा मेष नौ माह अर्थात
18
माह में अर्थात डेढ़ वर्ष मे पिता मरे |
23 वें वर्ष विवाह
कन्या की चर दशा में हुआ जो 12 वर्ष की थी कन्या राशि में आत्मकारक सूर्य है जो आरूढ़ लग्न वृष से 5वे भाव की राशि तथा नवांश
में पंचम से पंचम राशि हैं | अंतर्दशा तुला की थी विवाह
कारक शुक्र (सप्तमेश जन्म लग्न का) हैं तथा आत्मकारक
से दूसरे भाव मे भी हैं वही दारा कारक गुरु
आरूढ़ लग्न मे ही हैं
गुरु आत्मकारक से सप्तमेश भी है |
चर दशा इस प्रकार से रही हैं
|
वृश्चिक की 9
वर्ष
तुला की 12 वर्ष
कन्या की 12 वर्ष
सिंह की 11 वर्ष
कर्क की 10 वर्ष
मिथुन की 4 वर्ष
वृषभ की 5 वर्ष
मेष की 4 वर्ष
तथा
मीन की 11 वर्ष
रही
1930 में जेल
गए जोकि कन्या/मकर की चर दशा थी मकर पाप राशि की दशा है जिसमें शनि है तथा मंगल राहु
से दृष्ट है | 1947 में वह गृह मंत्री बने तब सिंह चर दशा थी जो लग्न
से दसवीं,आरूढ़ लग्न से चतुर्थ तथा ड्रेष्कोण से 5वी,नवांश से आठवीं राशि है जिस राशि में लग्नेश मंगल हैं यह राशि दिव्य
लग्न भी हैं तथा शुक्र शनि द्वारा दृष्ट भी है अंतर्दशा वृषभ राशि की जो सिंह से दसवीं राशि है लग्न से सप्तम व आरूढ़ व श्री लग्न भी है जिसको
शुक्र शनि दोनों देख रहे हैं | नवांश में वृष राशि मे गुरु केतु है तथा
4 ग्रह देख रहे हैं | जिससे वृष राशि सबसे मजबूत
तथा शुभ राशि बनी है जिसका स्वामी शुक्र स्वयं से छठे भाव में है तथा वृषभ राशि को
देख भी रहा है लग्न से
सप्तम होने से अंतरराष्ट्रीय प्रसिद्धि और गर्व भी दे रहा है |
9 जून 1964 को जब प्रधानमंत्री बने तब दशा वृषभ में कुंभ की थी कुंभ राशि वृषभ राशि अथवा आरूढ़ लग्न से दसवी तथा लग्न से चौथी
राशी
है उसमे केतु बैठा है तथा वृष राशि के स्वामी शुक्र की
उस पर दृस्टी भी हैं |
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