1)कोई ग्रह अपने से आठवे भाव मे हो तो अपने भाव के शुभ फल नहीं देता हैं
जैसे मेष लग्न की कुंडली मे शुक्र (सप्तमेश) यदि दूसरे भाव (अपने से अष्टम) मे हो
तो दाम्पत्य जीवन मे कुछ न कुछ परेशानी अवश्य होती हैं |
2)ग्रह तीन प्रकार से अपना फल प्रदान करते हैं प्रकृति अनुसार,कारक अनुसार तथा कुंडली मे स्थित अपने भाव अनुसार जैसे यदि
मंगल लग्न मे हो तो व्यक्ति गुस्सेवाला व उत्तेजित (प्रकृति अनुसार),भाईयो व मित्रो वाला (कारक अनुसार) तथा कुंडली मे जिन भावो का स्वामी हैं उन भावो के अनुसार फल देने वाला होगा |
3)जिस भाव का स्वामी छह,आठ या बारहवे भाव मे हो या जिस भाव मे इन भावो का स्वामी बैठा हो उस भाव
से संबन्धित वस्तु प्राप्त भी हो जाये तो उससे सुख की अनुभूति नहीं होती हैं जैसे
पंचमेश यदि अष्टम भाव मे हो या अष्टमेश पंचम भाव मे हो तो संतान होने पर उससे कष्ट भी प्राप्त होते हैं |
4)यदि द्वितीयेश व दूसरा भाव शुभ अवस्था मे हो तो जातक अपने कुटुंब वासियो
अर्थात माता-पिता,भाई-बहन,पत्नी व संतान सभी को सहयोग देगा व उनसे सहयोग भी प्राप्त करेगा भले ही इन सब से जुड़े हुए भाव निर्बल ही क्यू ना हो |
5) यदि दूसरा भाव व उसका स्वामी कमजोर हो तो जातक माँ-बाप, भाई-बहन,संतान,पत्नी इत्यादि का सुख सहयोग नहीं प्राप्त कर पाता हैं भले ही इन सबसे जुड़े भाव व भावेश शुभ अवस्था मे ही क्यू ना हो इन
सभी से उसे वैचारिक या देशकालज परिस्थितियो के कारण दूर रहने पड़ता हैं और वह भी
संकीर्ण दायरे मे रहने के कारण इन सबसे सुख सहयोग नहीं प्राप्त कर पाता |
6)लग्नेश जिस भाव मे जाएगा उसकी वृद्दि करेगा |
7)3,6,11 भावो मे
पाप ग्रह शुभफल प्रदान करते हैं |
8)एकादश भाव मे सभी ग्रह शुभ फल देते हैं |
9)किसी भी भाव मे स्थित ग्रह के मुक़ाबले उस भाव पर दृस्टी देने वाले ग्रह
का प्रभाव अधिक होता हैं |
10)पाप ग्रह की दृस्टी से पाप ग्रह का दुष्प्रभाव अधिक व शुभ ग्रह का शुभ प्रभाव कम हो जाता हैं |
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