विवाह में गोधूलि मुहूर्त का अपना महत्व है। धार्मिक मान्यताओं में यह पूजनीय है। ज्योतिष के अनुसार इसे शुक्र का प्रतीक भी माना गया है। जो दाम्पत्य सुख का कारक ग्रह है। संध्यासमय चारा चरकर लौटती गायों के खुरों से उड़ती धूल प्रदूषित वायु मंडल को स्वच्छ करती है इसे गोधूल कहते हैं। इस समय की सायंकाल वेला को गोधूलिकाल कहते हैं। एवं इसे गोरज भी कहते हैं। ज्योतिषशास्त्र में गोरज या गोधूलिक लग्न को परिभाषित करते हुए कहा है।
÷अर्धास्तात्यपरपूर्षतोऽर्धघरितं गोधूलिकम्'
सूर्यास्त के पूर्व १५ पल (६ मिनट) से सूर्यास्त होने के बाद ३० पल (१२ मिनट) कुल २४ मिनट का गोधूलिक काल है।
÷मुहूर्तघंटिकादयम्' दो घंटों अर्थात ४८ मिनट का मुहूर्त होता है। गोधूलिक मुहूर्त भी ४८ मिनट का ही होता है अर्थात २४ मिनट सूर्यास्त के पूर्व तथा २४ मिनट सूर्यास्त के बाद कुल ४८ मिनट का गोधूलिक मुहूर्त माना जाता है।
गोधूलिक समय के विषय में मत-मतांतर प्रचलित है। इसके अतिरिक्त कुछ वार विशेष में भी गोधूलिक समय के संबंध में विशेष नियम है।
अस्तं याते गुरु दिवसे सौर सार्के, लग्नान्मृतौ
रिपुयवने लग्ने चेन्दौ।
कन्या नाशस्तनुमद मृत्युस्थे भौमे, के दुर्लाभे धन सहजे चन्द्रे सौख्यम॥
गुरुवार में सूर्यास्त होने पर और शनिवार में सूर्य रहते गोधूलि शुभ है। लग्न से अष्टम, षष्ठम या लग्न में ही चंद्रमा हो तो कन्या का नाश होता है।
लग्न अथक सप्तम या अष्टम में मंगल हो तो वर का नाश होता है। २रे, ३रे अथवा ११वें चंद्रमा हो तो सुखदायक होता है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें