रविवार, 30 नवंबर 2025

दिसंबर 2o25 मे भारतीय बाज़ार

2 दिसंबर को सूर्य ज्येष्ठा नक्षत्र में तथा शुक्र मकर राशि में आकर मंगल एवं गुरु के साथ दृष्टि - सम्बन्ध बनाएगा,सोना, चाँदी, चावल,गेहूँ, जौं, चना, अलसी, सरसों, एरण्ड, हींग, गुग्गुल, पारा, गुड़, खाण्ड में तेजी की लाईन बनेगी जोकि एक सप्ताह तक भी चल सकती है ।

7 दिसंबर को कर्क राशिगत मंगल वक्री होगा जिससे क्रूड ऑयल, लौंग, पैट्रोल, खाण्ड, गुड़, दूध, सोना, चाँदी में अच्छी तेजी बनेगी ।

8 दिसंबर को वक्री बुध अनुराधा नक्षत्र में आने से सोना, चाँदी, सूत, सन, रूई में मन्दी बनेगी ।

11 दिसंबर को वक्री बुध पूर्व में उदय होगा तथा शुक्र श्रवण नक्षत्र में आएगा जिससे सोना, चाँदी, गुड़, खाण्ड, शक्कर, मूँग, मोठ, उड़द, अनाज पहले तेज होकर बाद में गिर जाएंगे ।

15 दिसंबर को सूर्य धनु राशि में आएगा जिससे रूई, कपास, सूत, तिल, तैल, सोना, चाँदी, ऊनी वस्त्र तेज होंगे,सोना-चाँदी एवं धातुओं मे तेजी की यह लाईन ता. 21 तक रहेगी ।

22 दिसंबर को शुक्र धनिष्ठा नक्षत्र में आएगा जिस कारण चावल, मूंग, मोठ, उड़द, ज्वार, बाजरा, चाँदी, सोना, रुई, कपास में पुन: कुछ तेजी बनेगी एवं धातुओं में नए लेवल देखने को मिलेंगे ।

23 दिसंबर को वक्री गुरु रोहिणी नक्षत्र के तृतीय चरण में आने से तिल, तैल, घी,गुड, खाण्ड, गर्म-वस्त्र, गेहूँ, जौं, चने में तेजी बनेगी |

24 दिसंबर को बुध ज्येष्ठा नक्षत्र में आकर घी, गुड़, खाण्ड, चावल, मूँग, बैंकिंग शेयर्ज़ में तेजी बनेगी |

27 दिसंबर को शनि पू.भा.(1) नक्षत्र में आने से गेहूँ आदि अनाज, अलसी, तिल, तेल, सरसों, मूँग, उड़द में तेजी बनेगी ।

28 दिसंबर को सूर्य पू.षा नक्षत्र में तथा शुक्र कुम्भ राशि में आकर शनि के साथ मेल करेगा । इन शुक्र शनि पर मंगल की दृष्टि रहेगी जिससे तिल, तैल, सरसों, बिनौला, गुड़, खाण्ड हल्दी, गुग्गुल, चमड़ा, कपूर, ऊनी वस्त्र, सन्, चाँदी, क्रूड ऑयल में तेजी बनेगी । यद्यपि अकेला शुक्र कुम्भ राशि में मन्दी करता है, परन्तु यहाँ क्रूर ग्रहयोग से तेजी का ही रुख चलेगा ।

विशेष - मासारम्भ ता. 1 से 11 दिसंबर तक शेयर बाज़ार तेजी की तरफ ही रहेगा ।

 

 

 

शनिवार, 15 नवंबर 2025

गायत्री मंत्र का अर्थ



 हिंदुओं का जो प्रसिद्ध गायत्री मंत्र है, इस संबंध में समझना होगा कि संस्कृत, अरबी जैसी पुरानी भाषाएं बड़ी काव्य-भाषाएं है । उनमें एक शब्द के अनेक अर्थ होते है । वे गणित की भाषाएं नहीं है इसलिए तो उनमें इतना काव्य है । गणित की भाषा में एक बात का एक ही अर्थ होता है । दो अर्थ हों तो भ्रम पैदा होता है । इसलिए गणित की भाषा तो बिलकुल चलती है सीमा बांधकर । एक शब्द का एक ही अर्थ होना चाहिए । संस्कृत, अरबी में तो एक-एक के अनेक अर्थ होते है ।

अबधीइसका अर्थ तो बुद्धि होता है । पहली सीढ़ी और धी से ही बनता है ध्यान वह दूसरा अर्थ, वह दूसरी सीढ़ी । अब यह बड़ी अजीब बात है । इतनी तरल है संस्कृत भाषा । बुद्धि में भी थोड़ी सा धी है । ध्यान में बहुत ज्यादा । ध्यान शब्द भी 'धी' से ही बनता है धी का ही विस्तार है । इसलिए गायत्री मंत्र को तुम कैसा समझोगे, यह तुम पर निर्भर है, उसका अर्थ कैसा करोगे ।

यह रहा गायत्री मंत्र:

ओम भूभुवः स्वः तत्सवितुर् वरेण्यं, भगोः देवस्य धी महि: धिओ नो याः प्रचोदयात् ।

वह परमात्मा सबका रक्षक है - ओम प्राणों से भी अधिक प्रिय है भूः दुखों को दूर करने वाला हैभुव:। और सुख रूप हैस्वः। सृष्टि का पैदा करने वाला और चलाने वाला है, स्वप्रेरकतत्सवितुर्। और दिव्य गुणयुक्त परमात्मा के - देवस्य । उस प्रकार, तेज, ज्योति, झलक, प्रकट्य या अभिव्यक्ति का, जो हमें सर्वाधिक प्रिय हैवरेण्यं भवोः। धीमहि: - -हम ध्यान करें ।

अब इसका तुम दो अर्थ कर सकते हो: धीमहि:--कि हम उसका विचार करें । यह छोटा अर्थ हुआ, खिड़की वाला आकाश । धीमहि:-- हम उसका ध्यान करें: यह बड़ा अर्थ हुआ । खिड़की के बाहर पूरा आकाश ।

मैं तुमसे कहूंगा: पहले से शुरू करो, दूसरे पर जाओ । धीमहि: में दोनों है। धीमहि: तो एक लहर है। पहले शुरू होती है खिड़की के भीतर, क्योंकि तुम खिड़की के भीतर खड़े हो। इसलिए अगर तुम पंडितों से पुछोगे तो वह कहेंगे धीमहि: का अर्थ होता है विचार करें, सोचें।

अगर तुम ध्यानी से पुछोगे तो वह कहेगा धीमहि; अर्थ सीध है: ध्यान करें। हम उसके साथ एक रूप हो जाएं। अर्थात वह परमात्माया:, ध्यान लगाने की हमारी क्षमताओं को तीव्रता से प्रेरित करेनधिया: प्रचोदयात् ।

अब यह तुम पर निर्भर है। इसका तुम फिर वहीं अर्थ कर सकते होन धिया: प्रचोदयात्-वह हमारी बुद्धि यों को प्रेरित करे। या तुम अर्थ कर सकते हो कि वह हमारी ध्यान को क्षमताओं को उकसाये । मैं तुमसे कहूंगा, दूसरे पर ध्यान रखना । पहला बड़ा संकीर्ण अर्थ है, पूरा अर्थ नहीं।

फिर ये जो वचन है, गायत्री मंत्र जैसे, ये संग्रहीत बचन है। इनके एक-एक शब्द में बड़े गहरे अर्थ भर है। यह जो मैने तुम्हें अर्थ किया यह शब्द के अनुसार फिर इसका एक अर्थ होता है। भाव के अनुसार, जो मस्तिष्क से सोचेगा उसके लिए यह अर्थ कहा। जो ह्रदय से सोचेगा। उसके लिए दूसरा अर्थ कहता है।

वह जो ज्ञान का पथिक है, उसके लिए यह अर्थ कहा। वह जो प्रेम का पथिक है, उसके लिए दूसरा अर्थ। वह भी इतना ही सच है और यहीं तो संस्कृत की खूबी है । जैसे की अर्थ बंधा हुआ नहीं है ठोस नहीं, तरल है। सुनने वाले के साथ बदलेगा । सुनने वाले के अनुकूल हो जायेगा । जैसे तुम पानी ढालते, गिलास में ढाला तो गिलास के रूप का हो गया लोटे में ढाला तो लोटे के रूप का गया । जैसे कोई रूप नहीं है । अरूप है, निराकार है ।

अब तूम भाव का अर्थ समझो:

मां की गोद में बालक की तरह मैं उस प्रभु की गोद में बैठा हूं - ओम, मुझे उसकी असीम वात्सल्य प्राप्त हेभू: मैं पूर्ण निरापद हूं-भुवः। मेरे भीतर रिमझिम-रिमझिम सुख की वर्षा हो रही है और मैं आनंद में गदगद हूंस्व:। उसके रुचिर प्रकाश से, उसके नूर से मेरा रोम-रोम पुलकित है तथा सृष्टि के आनंद सौंदर्य से मैं परम मुग्ध हूंतत्स् वितुर, देवस्य । उदय होता हुआ सूर्य, रंग बिरंगे फूल, टिमटिमाते तारे, रिमझिम वर्षा, कलकलनादिनी नदिया, ऊंचे पर्वत, हिमाच्छादित शिखर, झरझर करते झरने, घने जंगल, उमड़ते-घुमड़ते बादल, अनंत लहराता सागर,--धीमहि:। ये सब उसका विस्तार है । हम इसके ध्यान में डूबे यह सब परमात्मा है । उमड़ते-घुमड़ते बादल, झरने फूल, पत्ते, पक्षी, पशु सब तरफ वहीं झाँक रहा है । इस सब तरफ झाँकते परमात्मा के ध्यान में हम डूबे; भाव में हम डूबे । अपने जीवन की डोर मैंने उस प्रभु के हाथ में सौंप दीया: न धिया: प्रचोदयात् । अब मैं सब तुम्हारे हाथ में सौंपता हूं । प्रभु तुम जहां मुझे ले चलों में चलूंगा ।

भक्त ऐसा अर्थ करेगा ।

और मैं यह नहीं कह रहा हूं कि इनमें कोई भी एक अर्थ सच है और कोई दूसरा अर्थ गलत है । ये सभी अर्थ सच है । तुम्हारी सीढ़ी पर, तुम जहां हो वैसा अर्थ कर लेना लेकिन एक खयाल रखना, उससे ऊपर के अर्थ को भूल मत जाना, क्योंकि वहां जाना है बढ़ना है यात्रा करनी है ।

 

 

गुरुवार, 13 नवंबर 2025

युद्ध होने बंद नहीं हो सकते

आज का मनुष्य अंतिम जगह आ गया है पुरुषो की बनाई सभ्यता कगार पर आ गई है । स्त्री का मुक्त होना जरूरी हो गया है । स्त्री के जीवन में क्रान्ति होनी जरूरी है ताकि वह स्वयं को भी बचा सके और सभ्यता भी बचा सके । अगर स्त्री अपनी पूरी हार्दिकता, अपने पूरे प्रेम,अपने पूरे संगीत, अपने काव्य, अपने व्यक्तित्व के पूरे फूलों को लेकर छा जाए तो इस जगत से युद्ध बंद हो सकते है लेकिन जब तक पुरूष हावी है इस दुनिया पर, तब तक युद्ध होने बंद नहीं हो सकते क्यूंकी हर पुरूष के भीतर युद्ध छिपा हुआ है ।

मां के पेट में जैसे ही बच्चा निर्मित होता है तो बच्चे को चौबीस सेल मां से मिलते है और चौबीस सेल पिता से मिलते है । पिता के सेल्स में दो तरह के सेल होते है । एक में चौबीस और एक में तेईस अगर तेईस सेल वाला अणु मां के चौबीस सेल वाले अणु से मिलता है तो पुरूष का जन्म होता हे । पुरूष के हिस्से में सैंतालीस सेल होते है और स्त्री के हिस्से में अड़तालीस सेल होते है । स्त्री की जो व्यक्तित्व है यह सिमैट्रिकल है, पहली ही बुनियाद से उसके दोनों तत्व बराबर है चौबीस – चौबीस ।

जीव विज्ञान अर्थात बायो लाजी कहती है कि स्त्री में जो सुघडता, जो सौंदर्य, जो अनुपात, जो परफोरशन है वह उन चौबीस - चौबीस के समान अनुपात होने के कारण है और पुरूष में एक इनर तनाव अथवा टेंशन है जो उसमें एक तरफ चौबीस अणु और दूसरी तरफ तेईस अणु होने की वजह से है । उसका तराजू थोड़ा उपर नीचे होता रहता है । उसके भीतर एक बेचैनी जिंदगी भर उसे धेरे रहती है जिस कारण वह जीवन मे कुछ ना कुछ उपद्रव करता ही रहेगा । इस तनाव या टेंशन की वजह से वह कोई न कोई विवाद खड़े करता ही रहेगा और अगर पुरूष के हाथ में संसार की सभ्यता है पूरी की पूरी तो युद्ध कभी बंद नहीं हो सकते ।

यह जान कर आपको हैरानी होगी कि महावीर, बुद्ध, राम और कृष्ण को आपने दाढ़ी - मूंछ के नहीं देखा होगा । क्योंकि जैसे ही पुरूष को व्यक्तित्व धीरे - धीरे स्त्री के करीब आता है वह जैसे हार्दिक होते है, वे स्त्री के करीब आने लगते है । मूर्ति कारों ने बहुत सोच कर यह बात निर्मित की है । उनका सारा व्यक्तित्व स्त्री के इतने करीब आ गया होगा कि दाढ़ी - मूंछ बनानी उचित नहीं मालूम पड़ी होगी । व्यक्तित्व इतना समानुपात हो गया होगा ।

 

 

शुक्रवार, 7 नवंबर 2025

क्या है स्वप्न का विज्ञान ?

दि काल से ही मानव मस्तिष्क अपनी इच्छाओं की पूर्ति करने के प्रयत्नों में सक्रिय है परंतु जब किसी भी कारण इसकी कुछ अधूरी इच्छाएं पूर्ण नहीं हो पाती (जो कि मस्तिष्क के किसी कोने में जाग्रत अवस्था में रहती है) तो वह स्वप्न का रूप ले लती हैं ।

आधुनिक विज्ञान में पाश्चात्य विचारक सिगमंड फ्रायड ने इस विषय में कहा है कि "स्वप्न" मानव की दबी हुई इच्छाओं का प्रकाशन करते हैं जिनको हमने अपनी जाग्रत अवस्था में कभी - कभी विचारा होता है अर्थात स्वप्न हमारी वो इच्छाएं हैं जो किसी भी प्रकार के भय से जाग्रत् अवस्था में पूर्ण नहीं हो पाती हैं व स्वप्नों में साकार होकर हमें मानसिक संतुष्टि व तृप्ति देती है |

सपने या स्वप्न आते क्यों है? इस प्रश्न का कोई ठोस प्रामाणिक उत्तर आज तक खोजा नहीं जा सका है। प्रायः यह माना जाता है कि स्वप्न या सपने आने का एक कारण 'नींद' भी हो सकता है । विज्ञान मानता है कि नींद का हमारे मस्तिष्क में होने वाले उन परिवर्तनों से संबंध होता है, जो सीखने और याददाश्त बढ़ाने के साथ-साथ मांस पेशियों को भी आराम पहुंचाने में सहायक होते हैं । इस नींद की ही अवस्था में न्यूरॉन (मस्तिष्क की कोशिकाए) पुनः सक्रिय हो जाती हैं ।

वैज्ञानिकों ने नींद को दो भागों में बांटा है पहला भाग आर ई एम अर्थात् रैपिड आई मुवमेंट है । (जिसमें अधिकतर सपने आते हैं) इसमें शरीर शिथिल परंतु आंखें तेजी से घूमती रहती हैं और मस्तिष्क जाग्रत अवस्था से भी ज्यादा गतिशील होता है । इस आर ई एम की अवधि 10 से 20 मिनट की होती है तथा प्रत्येक व्यक्ति एक रात में चार से छह बार आर ई एम नींद लेता है । यह स्थिति नींद आने के लगभग 1.30 घंटे अर्थात 90 मिनट बाद आती है । इस आधार पर गणना करें तो रात्रि का अंतिम प्रहर आर ई एम का ही समय होता है (यदि व्यक्ति समान्यतः 10 बजे रात सोता है तो ) जिससे सपनों के आने की संभावना बढ़ जाती है ।

सपने बनते कैसे हैं :

दिन भर विभिन्न स्रोतों से हमारे मस्तिष्क को स्फुरण (सिगनल) मिलते रहते हैं । प्राथमिकता के आधार पर हमारा मस्तिष्क हमसे पहले उधर ध्यान दिलवाता है जिसे करना अति जरूरी होता है, और जिन स्फुरण संदेशों की आवश्यकता तुरंत नहीं होती उन्हें वह अपने में दर्ज कर लेता है । इसके अलावा प्रतिदिन बहुत सी भावनाओं का भी हम पर प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है । जो भावनाएं हम किसी कारण वश दबा लेते हैं (गुस्सा आदि) वह भी हमारे अवचेतन मस्तिष्क में दर्ज हो जाती हैं । रात को जब शरीर आराम कर रहा होता है मस्तिष्क अपना काम कर रहा होता है। (इस दौरान हमें चेतनावस्था में कोई स्कुरण संकेत भावनाएं आदि नहीं मिल रही होती) उस समय मस्तिष्क दिन भर मिले संकेतों को लेकर सक्रिय होता है जिनसे स्वप्न प्रदर्शित होते हैं । यह वह स्वप्न होते हैं जो मस्तिष्क को दिनभर मिले स्फुरण, भावनाओं को दर्शाते हैं जिन्हें दिनमें हमने किसी कारण वश रोक लिया था । जब तक यह प्रदर्शित नहीं हो पाता तब तक बार-बार नजर आता रहता है तथा इन पर नियंत्रण चाहकर भी नहीं किया जा सकता |

यह लेख जून 2010 के फ्यूचर समाचार के अंक मे हमारे द्वारा लिखा गया था |

बुधवार, 5 नवंबर 2025

रोग और रत्नों का प्रभाव

माणिक्य

माणिक्य धारण करने से सिरदर्द, बुखार, नेत्रपीड़ा, पित्तविकार, मुर्च्छा, चक्कर आना, दाह (जलन), हृदय रोग, अतिसार, अग्निशास्त्र, विषजन्य विकार, पशु व शत्रु व भय, आदि कष्ट की शांति होती है । यदि माणिक्य जातक के लिए शत्रुवर्ग का हो, तो ऊपर लिखे सभी कष्ट जातक को सूर्य की दशा में प्राप्त होते हैं

मोती :

मोती धारण करने से चंद्रमा की शांति होती है । क्रोध शांत होता है तथा मानसिक तनाव भी दूर होते हैं । इसके विपरीत यदि मोती जातक के लिए शत्रुवर्ग का रत्न हो तो जातक में आलस्य, कंधों में पीड़ा, तेजहीनता,सर्दी का बुखार, नशा करने की आदत, अनिद्रा आदि होती है

मूंगा :

मूंगा धारण करने से रक्त साफ होता नजरदोष का नाश होता है, रक्त में वृद्धि होती है, भूतभय व प्रेतबाधा मिटती है, तथा मंगल जनित कष्ट क्षीण होते हैं । इसके विपरीत यदि मूंगा जातक के लिए शत्रुवर्ग का रत्न हो तो जातक में पेशाब का विकार, विकारी स्वभाव, क्रोध, मस्तिष्क की अस्थिरता, सर्पभय, आदि होते हैं ।

पन्ना :

पन्ना धारण करने से नेत्ररोग का नाश, ज्वरशांति, सन्निपात, दमा, शोध आदि का नाश होता है तथा वीर्य में वृद्धि होती है । इसे धारण करने से बुध - कोप की शांति होती है । इससे जातक के काम, क्रोध, आदि विकार भी शांत रहते हैं तथा तांत्रिक अभिचार, टोने-टोटके से भी ये मुक्ति देता है ।

पुखराज :

पुखराज धारण करने से ज्ञान, शक्ति, सुख, धन, आदि में वृद्धि होती है । गुरु जनित कष्टों का अंत होता है । जिन जातकों के विवाह में दिक्कत हों, तो वह पुखराज धारण करें । इसके विपरीत यदि ये जातक के लिए शत्रुवर्ग का रत्न हो तो जातक के घुटने में दर्द, पेट की बीमारी, भी हो जाती है ।

हीरे :

हीरा धारण करने से जातक को सुख ऐश्वर्य, राजसम्मान, वैभव, विलासिता, आदि प्राप्त होते हैं । इसके विपरीत यदि हीरा जातक के लिए शत्रुवर्ग का रत्न हो तो जातक को मूत्र विकार, नेत्रविकार, मैथुनशक्ति का नाश, असत्यवाचन, कफ रोग, आदि देता है । जो स्त्री पुत्र की कामना करे, उन्हें हीरा धारण नहीं करना चाहिए |

नीलम :

नीलम धारण करने से भूत-प्रेतबाधा निवारण, सर्प विष निवारण, रक्त प्रवाह को रोकना आदि कर्म होते हैं । नीलम शनि कृत कष्टों को शांत कर देता है । नीलम आंतरिक शांति देता है । श्वास, पित्त, खांसी की बीमारी दूर करता है । प्रेम में प्रगाढ़ता, दोष निवारण, दुख-दारिद्रय नाश, रोग नाश, सिद्धियों का दाता है नीलम रत्न । यही नीलम राजा को रंक तथा रंक को राजा बनाने की क्षमता रखता है ।

गोमेद :

गोमेद धारण करने से भ्रम नाश, निर्णय शक्ति, आत्मबल का संचार, दरिद्रता का नाश, शत्रु की हार, नशे की आदत का नाश, सफलता, विवाह-बाधा नाश, पाचन शक्ति की प्रबलता, अजातशत्रुता, आत्म संतुष्टि, संतान बाधा का नाश, सुगम विकास शक्ति प्राप्त होती है वात व कफ की बाधा भी शांत होती है ।

लहसुनिया :

लहसुनिया धारण करने से दुखों का नाश, केतु की शांति, भूत-बाधा निवारण, व्याधि नाश तथा नेत्र रोग का नाश, स्वस्थ काया की प्राप्ती होती है सरकारी कार्यों में सफलता तथा दुर्घटना का नाश करने वाला रत्न लहसुनिया पित्तज रोगों का नाश करने वाला, केतु कृत समस्त रोगों व कष्टों का निवारण करता है ।

 गर्म रत्न (माणिक, मूंगा, पुखराज एवं हीरा) 

पुरुष जातक दायां हाथ की तर्जनी एवं अनामिका में धारण करें क्योंकि अंगुलियों में भी दायें हाथ की ये अंगुलियां तर्जनी एवं अनामिका गर्म होती है । अतः गर्म हाथ की गर्म अंगुलियों में गर्म रत्न धारण करने पर परिणाम 100 प्रतिशत शुभ एवं शुद्ध प्राप्त होता है । स्त्री जातक, इन रत्नों को बायां हाथ की गर्म अंगुलियां तर्जनी, अनामिका में ही धारण करें

ठंडे रत्न (मोती, पन्ना, नीलम, गोमेद, लहसुनिया) 

पुरुष जातक बांये हाथ की मध्यमा एवं कनिष्ठिका अंगुली में धारण करें । क्योंकि पुरुष जातक के बांये ठंडे हाथ की भी अंगुलियां मध्यमा एवं कनिष्ठका ठंडी होती है । अतः ठंडे हाथ की ठंडी अंगुलियों में ठंडे रत्न धारण करने पर फल 100 प्रतिशत शुभ एवं अच्छे प्राप्त होते हैं ।