दस महाविद्या व उनके कार्य
श्री देवी भागवत पुराण के अनुसार महाविद्याओं
की उत्पत्ति भगवान शिव और उनकी पत्नी सती के बीच एक विवाद के
कारण हुई । जब शिव और सती का
विवाह हुआ तो सती के पिता दक्ष प्रजापति दोनों के विवाह से खुश नहीं थे । उन्होंने शिव का अपमान करने के उद्देश्य से एक विशाल
यज्ञ का आयोजन किया,जिसमें
उन्होंने सभी देवी - देवताओं को आमन्त्रित किया लेकिन उन्होंने अपने जामाता
भगवान शिव और अपनी पुत्री सती को निमन्त्रित नहीं किया । सती,पिता
के द्वारा आयोजित यज्ञ में जाने की जिद करने लगीं जिसे शिव ने अनसुना कर दिया,इस पर सती ने स्वयं को एक भयानक रूप में परिवर्तित
(महाकाली का अवतार) कर लिया ।
जिसे देख भगवान शिव भागने लगे ।
अपने पति को डरा हुआ जानकर माता सती उन्हें रोकने लगीं तो शिव जिस दिशा में गये उस
दिशा में माँ का एक अन्य विग्रह प्रकट होकर उन्हें रोकता है । इस प्रकार दसों दिशाओं में माँ ने जो दस रूप लिए थे वे ही दस
महाविद्या कहलाईं ।
इस प्रकार देवी दस रूपों में विभाजित हो गयीं जिनके नाम क्रमश: इस प्रकार से हैं | ये सभी दस महाविद्याये निम्न
प्रकार से संसार के विभिन्न प्राणियों की जीवन मे प्रभाव डालती हैं |
माँ काली - बुरी शक्तियों से बचाने वाली हैं |
माँ तारा - जन्म चक्र के बंधन को पार करने वाली हैं |
माँ त्रिपुर भैरवी – पीड़ाओ का अंत करने वाली हैं |
माँ भुवनेश्वरी - दुनिया की सभी वस्तुएं देने वाली हैं |
माँ छिन्नमस्तिका - ज्ञान का लाभ देने वाली हैं |
माँ धूमावती – शत्रुओ का नाश करने वाली हैं |
माँ बगलामुखी - मोहन क्षमता देने वाली हैं |
माँ त्रिपुर सिंदूरी - सब कुछ प्रदान करने वाली हैं |
माँ कमला (कमलात्मिका)
- आंतरिक
और बाहरी आराम देने के लिए हैं |
माँ मातंगी - सभी प्रकार की कला प्रदान करने वाली हैं |
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