सोमवार, 28 मार्च 2022

शुक्र और अष्टलक्ष्मी

 शुक्र और अष्टलक्ष्मी

हमारी जन्म पत्रिका मे शुक्र ग्रह "देवी लक्ष्मी" का प्रतीक बनता है | इस शुक्र पर जब विभिन्न ग्रहो का प्रभाव पड़ता हैं तो जीवन मे हमे प्राप्त होने वाली लक्ष्मी का रूप भी बदल जाता हैं | आइए इस लेख मे जाने की शुक्र पर विभिन्न ग्रहो के प्रभाव से कौन सी अष्टलक्ष्मी का योग बनता हैं |  

हमारे शास्त्रो मे अष्टलक्ष्मी का उल्लेख इस प्रकार से है |

शुक्र सूर्य विजय लक्ष्मी |

शुक्र चन्द्र धन लक्ष्मी |

शुक्र मंगल – धैर्य लक्ष्मी |

शुक्र बुध - विद्या लक्ष्मी |

शुक्र गुरु - संतान लक्ष्मी |

शुक्र शनि - आदि (प्रसिद्दि) लक्ष्मी |

शुक्र राहु  - धन लक्ष्मी |

शुक्र केतु गज (वाहन) लक्ष्मी |

दस महाविद्या साधना

 दस महाविद्या साधना

वैसे तो शास्त्रों में हजारों प्रकार की साधनाएँ दी हुई है, हमारे ऋषियों ने उनमें से चुन कर इन दस महत्वपूर्ण साधनाओं को जीवन की पूर्णता के लिए आवश्यक स्थान दिया हैं | जो जातक इन दसों महाविद्याओं की साधना को पूर्णता के साथ सम्पन्न कर लेता हैं वह निश्चित ही जीवन मे ऊंचाई मे पहुँच जाता हैं |

प्रिय पाठको, दस महाविद्यायों में महाकाली,तारा,त्रिपुरसुंदरी,भुवनेश्वरी,छिन्नमस्ता,त्रिपुर भैरवी,धूमावती,बगलामुखी, कमला और मातंगी दस महाविद्या में आती हैं |

1) श्री महाकाली - आज के युग में शीघ फलदायी एवं साधक की समस्त कामनाओं की पूर्ति में सहायक है । जब भी जीवन में प्रबल पुण्योदय होता है तब ही साधक ऐसी घोर शत्रुहन्ता,महिषासुरमर्दिनी,वाकसिदि प्रदायक महाकाली देवी की साधना सम्पन्न करता है ।

2) श्री तारा - आर्थिक उन्नति एवं अन्य आर्थिक बाधाओं के निवारण हेतु 'तारा महाविद्या का स्थान बहुत ही महत्वपूर्ण है । इस देवी की साधना के सिद्ध होने पर जातक की आमदनी के नित नये रास्ते खुलने लगते है और वह पूर्ण ऐश्वर्यशाली जीवन व्यतीत कर के जीवन में पूर्णता को प्राप्त कर लेता हैं |

3) श्री त्रिपुर सुन्दरी - इस का स्थान दस महाविद्याओं में सबसे मुख्य हैं क्यूंकी इस देवी स्वरूप मे शान्त स्वरूप व उग्र स्वरूप दोनों ही स्वरूपों की साधना हैं यह साधना जीवन में काम, दे,सुख व सौभाग्य के साथ साथ लक्ष्मी सिद्दी,सरस्वती सिद्दी व आरोग्य सिद्दी की प्राप्ति हेतु की जाती हैं | 

4) श्री भुवनेश्वरी – श्री भुवनेश्वरी को 10 महाविद्या को आध्य शक्ति अर्थात मूल प्रकृति कहा गया है और इसलिए तांत्रिक ग्रंथो मे स्पष्ट कहा गया है कि जिसने अपने जीवन मे भगवती श्री भुवनेश्वरी महाविद्या सिद्दी नहीं की वह साधक नहीं हो सकता ।

5) श्री छिन्नमस्ता – श्री छिन्नमस्ता साधना दस महाविद्या साधना मे जहाँ जीवन में पूर्णता उमेग देने में समर्थ है, वहीं साधक की बायुगमन प्रक्रिया हेतु सर्वश्रेष्ठतम साधना माना गया है। इस प्रकार की साधना के लिए दृढ़  संकल्प तथा शक्ति का जरुरत होती हैं और साधक जीवन में अपने निश्चय से ही साधनाओं में सफलताओं को प्राप्त करता है ।

6) श्री त्रिपुर मैरवी - शत्रु संहार एवं तीव्र तंत्र बाधा की काट के लिए श्री त्रिपुर भैरवी महाविद्या साधना अत्यन्त महत्वपूर्ण प्रभावी मानी गयी है । इस साधना की पथ्य विशेषता यह है कि यह साधना साधक के सौन्दर्य में चार चांद लगा देती है । इससे साधक अत्यधिक सुंदर दिखने लगता है । संभवत: इसी कारण इस साधना को स्त्रीया खूब करती हैं |

7) श्री धूमावती - इस साधना की करने वाले साधक अपने जीवन में निश्चित एवं निर्भीक और निरन्तर उन्नति प्राप्त करते हैं । इस महाविद्या के सिद्ध होने के बाद साधक की. ख्याति दूर-दूर तक फैलती है और यश मान प्रतिष्ठा देती है ।

8. श्री बगलामुखी - यह साधना शत्रु बाधा को समाप्त करने के लिये बहुत ही महत्वपूर्ण है । "रुद्रयामल तंत्र में बड़े साफ शब्दों में बताया गया है कि बगलामखी साधना की पद्धति अपने आप में सर्वाधिक दुर्लभ और महत्वपूर्ण है।

9) श्री कमला - श्री कला विशेष रूप से माँ लक्ष्मी साधना का ही आधार है और जिन जातको के घरों में दरिद्रता का वास होता है या घर पर अशान्ति रहती हैं, आय के पर्याप्त साधन ना बन पा रहे हो उन साधकों के लिए यह साधना धनलक्ष्मी प्रदान कर सौभाग्य के सारे द्वार खोलती हैं ।

10. श्री मातंग - इस साधना के सम्पन्न होने से साधक अपने जीवन के सभी यामों को छूते हुए बहाण्ड का अद्वितीय महापुरुष बनने का गौरव प्राप्त कर लेता हैं

 

 

गुरुवार, 24 मार्च 2022

ग्रहों के दोष निवारण में काम आने वाले रसायन |

ग्रहों के दोष निवारण में सबसे अधिक काम करने वाले रसायन |

सूर्य महादशा में रक्त चंदन का तिलक करें |

चंद्र महादशा में कपूर का धूप व सप्ताह में एक बार तुलसी व मिश्री मिलाकर जल ले |

मंगल महादशा में अनंतमूल का सेवन खैर की लकड़ी की धूलगाएं |

बुध महादशा में कामिया सिंदूर गोरोचन का तिलक करें |

गुरु महादशा में केसर का तिलक केसर का सेवन करें |

शुक्र महादशा में सफेद चंदन का तिलक करें |

शनि महादशा में कस्तूरी का तिलक सेवन करें,चीटियों को अन्न दान करें |

राहू महादशा में गर तगर की धूप व हींग का अधिक सेवन करें |

केतु महादशा में गणपति को चुटकी भर सिंदूर चढ़ाएं या स्वयं सिंदूर का तिलक करें |

 

दस महाविद्या व उनके कार्य

 दस महाविद्या व उनके कार्य 

श्री देवी भागवत पुराण के अनुसार महाविद्याओं की उत्पत्ति भगवान शिव और उनकी पत्नी सती के बीच एक विवाद के कारण हुई । जब शिव और सती का विवाह हुआ तो सती के पिता दक्ष प्रजापति दोनों के विवाह से खुश नहीं थे । उन्होंने शिव का अपमान करने के उद्देश्य से एक विशाल यज्ञ का आयोजन किया,जिसमें उन्होंने सभी देवी - देवताओं को आमन्त्रित किया लेकिन उन्होंने अपने जामाता भगवान शिव  और अपनी पुत्री सती को निमन्त्रित नहीं किया । सती,पिता के द्वारा आयोजित यज्ञ में जाने की जिद करने लगीं जिसे शिव ने अनसुना कर दिया,इस पर सती ने स्वयं को एक भयानक रूप में परिवर्तित (महाकाली का अवतार) कर लिया । जिसे देख भगवान शिव भागने लगे । अपने पति को डरा हुआ जानकर माता सती उन्हें रोकने लगीं तो शिव जिस दिशा में गये उस दिशा में माँ का एक अन्य विग्रह प्रकट होकर उन्हें रोकता है । इस प्रकार दसों दिशाओं में माँ ने जो दस रूप लिए थे वे ही दस महाविद्या  कहलाईं । इस प्रकार देवी दस रूपों में विभाजित हो गयीं जिनके नाम क्रमश: इस प्रकार से हैं | ये सभी दस महाविद्याये निम्न प्रकार से संसार के विभिन्न प्राणियों की जीवन मे प्रभाव डालती हैं |

माँ काली - बुरी शक्तियों से बचाने वाली हैं |

माँ तारा - जन्म चक्र के बंधन को पार करने वाली हैं |

माँ त्रिपुर भैरवी पीड़ाओ का अंत करने वाली हैं |

माँ भुवनेश्वरी - दुनिया की सभी वस्तुएं देने वाली हैं |

माँ छिन्नमस्तिका - ज्ञान का लाभ देने वाली हैं |

माँ धूमावती शत्रुओ का नाश करने वाली हैं |

माँ बगलामुखी - मोहन क्षमता देने वाली हैं |

माँ त्रिपुर सिंदूरी - सब कुछ प्रदान करने वाली हैं |

माँ कमला (कमलात्मिका) - आंतरिक और बाहरी आराम देने के लिए हैं |

माँ मातंगी - सभी प्रकार की कला प्रदान करने वाली हैं |

 

शुक्रवार, 18 मार्च 2022

जब कोई ग्रह किसी भाव/घर में होता है |

जब कोई ग्रह किसी भाव/घर में होता है |

पहला घर - यह ग्रह आपके व्यक्तित्व का हिस्सा बन जाता है |

दूसरा घर – ग्रह इस घर को असुरक्षित बना देता है |

तीसरा घर - यह ग्रह आपके संचार कारको में व्यक्त किया जाता है |

चौथा घर - इस ग्रह को निजी बना दिया जाता है |

पांचवा घर - यह ग्रह आपकी आत्म अभिव्यक्ति/रचनात्मकता को रंग देता है |

छठा घर – इस ग्रह को दैनिक काम करने की जरूरत है |

सातवा घर - इसे दूसरों पर प्रक्षेपित किया जाता है |

आठवा घर - इसे गुप्त रखा जाता है |

नौवां घर - यह आपके विश्वदृष्टि को रंग देता है |

दसवां घर - इसे सार्वजनिक किया जाता है |

एकादश घर - इसमें सुधार होता रहेगा |

बारहवा घर - यह उपेक्षित रहेगा |

राशि अनुसार बुरी आदते जो आपको छोड़नी चाहिए |


राशि अनुसार बुरी आदते जो आपको छोड़नी चाहिए |

प्रत्येक राशि मे कुछ ऐसी कमियाँ अथवा आदते होती हैं जिन्हे यदि वो छोड़ दे तो भावी जीवन मे सफलता थोड़ी आसानी से मिल जाती हैं |  

मेष राशि - आपका अहंकार |

वृष राशि - चीजों को कभी न बदलने की आपकी इच्छा |

मिथुन राशि - आपके पास जो है उसकी सराहना न करने की आपकी प्रवृत्ति |

कर्क राशि - आपकी निष्क्रिय आक्रामक प्रवृत्तियाँ |

सिंह राशि - दूसरों के प्रति अपनी ईर्ष्या को अनियंत्रित रहने देना |

कन्या राशि - यह विश्वास करना कि आप किसी और से बेहतर जानते हैं |

तुला राशि - किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाने की आपकी इच्छा |

वृश्चिक राशि - अपनी प्रेम रुचि और दोस्तों का परीक्षण करके देखना कि क्या वे भरोसेमंद हैं |

धनु राशि - अपने वादे तोड़ना |

मकर राशि - खुलने से आपका इंकार करना |

कुंभ राशि - अपने मे संचार व सम्प्रेषण की कमी रखना |

मीन राशि - अपनी सोच मे शिथिलता की प्रवृत्ति रखना |

शनिवार, 5 मार्च 2022

मुहूर्त ज्ञात करने की विधि

 


हमारे विद्वानो ने ज्योतिष ग्रंथो मे किसी भी कार्य को करने के लिए मुहूर्त देखने के लिए कहा हैं जिससे उस कार्य मे सफलता प्राप्ति हो | प्रस्तुत लेख मे हम मुहूर्त ज्ञात करने का एक आसान सा तरीका बता रहे जिससे आप सब स्वयं मुहूर्त निकालकर जान सकेंगे की जो कार्य आप करने जा रहे हैं वो सफल होगा की नहीं | इसके लिए हमे कार्य किए जाने वाले दिन के निम्न अवयवो की आवश्यकता पड़ेगी |

वार,नक्षत्र,तिथि व लग्न 

अब इन वार,नक्षत्र,तिथि एवं लग्न का योग करे जो योग आए उसे 9 से भाग दे,अब जो शेष आए उसका फल देखे जो इस प्रकार से होगा |

1) व्यवधान,भय,पीड़ा से ग्रसित होना पड़ेगा |

2) प्राकृतिक घटनाओ से विघ्न पड़ेगे |

3) सफलता मिलेगी |

4) असफलता व अशुभता प्राप्त होगी |

5) शुभफल मिलेंगे |

6) अशुभ फल मिलेंगे |

7) सफलता व सिद्दी प्राप्त होगी |

8) रोग शोक संभावित होंगे |

9) शुभ फल की सूचना प्राप्त होगी |

नोट - 1) वार - रविवार से क्रम अनुसार गिने (1-7)

2) नक्षत्र - अश्विनी से रेवती (1-27)

3) तिथि - प्रथमा से पुर्णिमा (1-14) तथा अमावस्या 30 मानी जाएगी |

4) लग्न - मेष से मीन (1-12)

आइए इसे अब उदाहरण से समझते हैं |

सोमवार,कृतिका नक्षत्र,प्रथमा तिथि और मेष लग्न होने पर मुहूर्त हुआ = 2+3+1+1=7 आया जो की कार्य मे  सफलता व सिद्दी मिलेगी बता रहा हैं |