शुक्रवार, 3 दिसंबर 2021

विभिन्न श्राप और संतान जन्म

 


मनुष्य सदा अपूर्ण है । उसे पूर्णता प्राप्त होती है अत्री यानि पत्नी से और संपूर्णता प्राप्त होती है संतति अथवा संतान के  आगमन से । पति पत्नी हमेशा गुणवान,चरित्रशील, और अभ्यास में परिपूर्णता वाले संतान की कामना करते है। इनमें से कई दंपत्तियों की मनोकामना परिपूर्ण होती है और कई दंपति ऐसे भी होते है कि पूर्ण स्वस्थ होने के बावजूद भी उन्हें संतान नसीब नहीं होती हैं |

जन्म कुंडली में स्थित ग्रहों के विभिन्न स्थान,दृष्टि, युति प्रतियुति या संबंध से कुछ ऐसे अनुठे योग बनते है जिनके कारण बनने वाले विविध शाप योगो से जातक को संतान सुख प्राप्त नहीं होता है । प्रस्तुत लेख मे हम ऐसे ही कुछ शापित योगो के बारे मे जानकारी दे रहे हैं जिनके कारण संतान का जन्म नहीं हो पाता हैं |

1)सर्प श्राप योग

1)सुते राहो भीमदृष्टे सर्पशापात विपुत्र:

पंचम भाव में राहु स्थित हो और उसे मंगल देखता हो तो जातक संतान हीन रहता है |

2). मे सुते चन्द्रदृष्टे सुतेशे राहु युते सर्पशापात् विपुत्र:

पंचम भाव मे शनि हो,पंचमेश राहु से युत हो तथा चन्द्रमा उसे देखता हो तो जातक संतान हीन रहता रहता हैं |

3)लग्नेशे राहुयुते पुत्रेशे भौमयुते सर्पशापात् विपुत्र:  

पंचमेश व लग्नेश निर्बल हो,पंचमेश मंगल से युत हो एवं लग्नेश राहू से युत हो तो जातक संतानहीन रहता है।

4). स्वांशे भौमे पुत्रेशे ज्ञे पापयुते सर्पशापात् विपुत्र:

पंचमेश मंगल हो या मंगल अपने ही नवमांश में हो,पंचम भाव से युत या दृष्ट हो,पंचम में यदि राहू ग्रह हो तो जातक संतानहीन रहता है।

5). सुतेशे भौमसुते राहौ सौम्यादृष्टे सर्पशापात् विपुत्र:

मंगल पंचम भाव में स्वगृही हो, और अन्य किसी ग्रह से युत या दृष्ट राहू पंचम भाव में हो तो जातक संतान हीन रहता है।

6). सुताअंगेशौ बिबलो सुते पापा: सर्पशापात् विपुत्रः

लग्नेश और पंचमेश निर्बल हो और पापग्रह पंचम भाव में हो तो जातक संतान हीन रहता है।

7). सुतकारक युतौ राहुवंगेशयुते पुत्रेशे त्रिके सर्पशापात् विपुत्र:

पंचमभाव का कारक गुरू मंगल से युत हो: लग्नेश राहु से युत हो या लग्न में राहु हो तथा पंचमेश त्रिक स्थानो में (6, 7, 12) हो तो जातक संतान हीन रहता है।

 

2)पित्रश्राप योग

ज्योतिष में सूर्य को पिता का कारक माना गया,सूर्य का अन्य ग्रहों से बनता योग पितृ शाप योग कहलाता है । कुछ उदाहरण पेश है।

1)पुत्रषेअर्क क्रूरान्तरे त्रिकोणे पाप दृष्टे पितृशापात् विपूत्र:-

मिथुन लग्न हो सूर्य पंचम में तुला राशि में नीच का हो और मकर या कुंभ नवमाश में पाप पीडित हो तो जातक नि:संतान रहता है।

2)सुते अर्क पापान्तरे मन्दारो नीचगौ पितृशापात् विपुत्रः –

सूर्य पंचम भाव में पाप कर्तरी योग में हो, शनि और मंगल नीच के हो तो जातक नि:संतान रहता है।

3)सिंहेज्ये पुत्रेशेअर्कयुते पुत्राअंगौ पापी पितृशापात् विपुत्र:

 गुरू पंचम भाव में हों, पंचमेश सूर्य के साथ हो, और पाप ग्रह पंचम और लग्न में हो तो जातक नि:संतान रहता है।

4). सूर्य रन्ग्रे सते मंदे पुत्रेशे राहुयुते पितृशापात विपुत्र:-

सूर्य अष्टम स्थान में हो शनि पंचम स्थान हो और पंचमेश राहु से युत हो जातक पितृ के शाप से नि:संतान रहता हैं |

5). न्ययये अंगे रन्य पे पुत्रे, खपे रन्प्रे पितृशापात विपुत्र:-

बारहवे स्थान का स्वामी लग्न में हो, अष्टमेश पंचम भाव हो एवं दशमेश अष्टम स्थान में हो तो जातक पितृ शाप से नि:संतान रहता है ।

 

3) मातृशापयोग - ज्योतिष में चन्द्र को माता का कारक माना गया है। चन्द्र से सम्बंधित अन्य ग्रहों से बनता योग मातृशाप योग कहलाता है। कुछ उदाहरण पेश हैं |

1)पुत्र पे चन्द्रेनीचगे वा पापान्तरे सुताम्बुगौ' पापीमातृशापात विपुत्र:

पंचमेश चन्द्र हो पाप ग्रहों के बीच में हो या पंचम मे चन्द्र नीच का हो उसके साथ पंचम मे पाप ग्रह हो और चौथे स्थान में भी पाप ग्रह होतो जातक माता के शाप से संतान हीन रहता है |

2). अल्यंगे मंदे तुर्ये पापा: पुत्रे चन्द्रे मातृशापात् विपुत्र:-

वृश्चिक लग्न हो वृश्चिक लग्न में शनि हो, चतुर्थ स्थान में पाप ग्रह विद्यमान हो एवं पंचम भाव में चन्द्रमा हो तो जातक माता के शाप से नि:संतान हो, रहता है।

3)सुतेशे त्रिके, लग्नेशे नीचे, पापयुते चन्द्रे मातृशापात् विपुत्र:-

पंचमभाव का स्वामी 6, 8 या 12 वे स्थान में हो, लग्नेश नीच का हो और चन्द्रमा पाप ग्रहों से युत होतो जातक माता के शाप से संतान हीन रहता है।

4)सुतेशे चन्द्रे मन्दराहबारयुते मातृशापात् विपुत्र:-

चन्द्रमा पंचम स्थान में अधिपति हो और वह शनि, राहु या मंगल के साथ हो तो जातक माता के शाप से संतानहीन रहता है।

5). सुखेशे भौमे राहु अर्कजयुते लग्ने पुष्पवन्तौ मातृशापात् विपुत्र:-

चतुर्थ भाव का स्वामी होकर मंगल राहु और शनि से युत हो, लग्न में सूर्य और चन्द्र हो तो जातक माता के शाप से नि:संतान रहता है।

6). सुखेशे अष्टमे पुत्रांमेशौ षष्ठे, खारीशौ लग्ने मातृशापात् विपुत्रः-

चतुर्थ स्थान का स्वामी अष्टम में हो, पंचमाधिपति और लग्नेश दोनो छठे स्थान में हो, लग्नेश दुस्थान में हो तो जातक मातृशाप से नि:संतान रहता है। .

7). पुत्रा अंगाष्टारिगा राहवर्कार मन्दा लग्नेशे त्रिके मातृशापात् विपुत्र:-

राहु पंचम भाव में हो, सूर्य लग्न में हो, मंगल अष्टम स्थान में हो और शनि छठे स्थान में हो, और लग्नेश दुस्थान में हो तो जातक मातृशाप से नि:संतान रहता है।

 

(4) पत्नी शापयोग

सप्तमभाव का स्वामी पापग्रहो से युत हो तो पत्नीशापयोग होता है|

1) यदि सप्तमेश आठ में स्थान में हो, व्ययेश पंचम भाव में हो और पंचम भाव का कारक गुरू पापग्रह से युक्त हो तो पत्नी शाप योग से संतान नष्ट होती है।

2) पंचम भाव में शुक्र हो, सप्तमेश आठवें स्थान में हो, और पंचम भाव कारक गुरू पापग्रह युत हो तो पत्नी शाप योग से संतान नष्ट होती है।

3) द्वितीय स्थान में पापग्रह हो, सप्तमेश आठवे स्थान में हो और पंचम भाव में पापग्रह होतो पत्नी शाप योग से संतान नष्ट होती हैं |

4) भाग्येश शुक्र हो, पंचमेश शत्रु राशि में हो तथा गुरू, लग्नेश और सप्तमेश 6,8 और 12 वे स्थान में गए होतो पत्नी शाप योग से संतान नष्ट होती है।

5) सप्तमभाव में शनि, केतु और शुक्र का योग हो, अष्टमेश पंचम में और लग्न में सूर्य तथा राह का योग हो तो पत्नी शाप से संतान नष्ट होती है।

 

5) कुलदेव दोषात् विपुत्र योग

1) छठे स्थान में शनि बुध, चन्द्र सूर्य से दुष्ट हो, लग्न में पापग्रह हो तो कुलदेवदोष से संतान प्राप्त नहीं होती है।

2) मकर या कुंभ राशि का सूर्य पाप ग्रह से दृष्ट हो अथवा लग्न में दो पापग्रह हो तो  कुलदेव दोष से संतान प्राप्त नहीं होती

 

6)भ्रातृ शापात्सुतक्षय योग

1. लग्नेश तृतीय भाव में, तृतीयेश पंचम भाव में हो और लग्न तृतीय व पंचम भाव में पापग्रह हो तो भाई के शाप से जातक की संतान नष्ट होती हैं |

2. अष्टमेश पंचम में तृतीयेश से युक्त हो,और आठवें स्थान में मंगल शनि हो तो भाई के शाप से जातक की संतान नष्ट होती हैं |

 

7)ब्रह्म शापात्सुत क्षय योग

1. धनु या मीन में राह हो, और पंचम भाव में गुरू, मंगल या शनि हो तथा नवमेश अष्टम में गया हो तो किसी ब्राह्मण शाप से संतान नष्ट होती है।

2. नवमेश पंचम में हो, पंचमेश आठवें स्थान में हो और गुरू के साथ मंगल और राहु हो तो किसी ब्राह्मण के शाप से संतान नष्ट होती है।

3. नवमेश नीच राशि का हो, व्ययेश पंचम में राहु से युत या दृष्ट हो तो किसी ब्राह्मण के शाप से संतान नष्ट होती है ।.

4)लग्न में शनि पापग्रह से युक्त हो, राहु भाग्य में गया हो और गुरु बारहवे स्थान में गया हो तो किसी ब्राह्मण के शाप से संतान नष्ट होती हैं |

 

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