जब किसी जातक का लग्न संधि काल में हो और निर्णय करना कठिन हो कि किस लग्न को स्वीकार किया जाए,तब लग्न को शुद्ध करने के लिए आधान लग्न की सहायता ली जा सकती है और इसके आधार पर विशेष जानकारी प्राप्त की जा सकती है |
यहां
जातक ग्रंथों से आधान लग्न के कुछ चुने हुए योग प्रस्तुत हैं जिनकी सहायता से
विद्वान ज्योतिषाचार्य लग्न निर्णय कर सकते हैं
आधान ज्ञान - प्रति मास मंगल और चंद्रमा की राशि स्थिति के योग से
स्त्रियों को ऋतु धर्म हुआ करता है | जिस समय चंद्रमा स्त्री जातिका की राशि से
नेष्ट स्थान में हो और शुभ पुरुष ग्रह बृहस्पति से देखा जाता हो तथा पुरुष की राशि
से दृस्ट उपचय स्थान में हो और बृहस्पति से दृष्ट होतो उस स्त्री को पुरुष का
संयोग प्राप्त होगा आधान लग्न से सप्तम भाव पर पाप ग्रह का योग या दृष्टि हो तो
रोषपूर्वक और शुभ ग्रह का योग या दृष्टि हो तो प्रसन्नता पूर्वक अपने पति पत्नी का
संयोग होता है |
आधानकाल में जिस द्वादशांश में चन्द्रमा हो उससे उतनी ही संख्या की
अगली राशि मे चंद्रमा के जाने पर बालक का जन्म होता हैं |
आधान काल में शुक्र,
रवि,चन्द्रमा और मंगल अपने-अपने नवमांश में हो,गुरू लग्न अथवा केन्द्र या त्रिकोण में हो तो वीर्यवान पुरुष को निश्चय ही संतान प्राप्त
होती हैं |
यदि मंगल और शनि सूर्य से सप्तम भाव में हों तो वे पुरुष के लिए तथा चन्द्रमा से सप्तम में हों तो स्त्री के
लिये रोगप्रद होते हैं।
सूर्य से 12/2 में शनि और मंगल हों तो पुरुष के लिये और
चन्द्रमा से 12-2
में ये दोनों हों तो स्त्री
के लिये घातक योग
होता है अथवा इन शनि, मंगल में से एक युत और अन्य से दृष्ट रवि हो तो वह पुरुष के लिये और चंद्रमा यदि एक से युत
तथा अन्य से दृस्ट होतो स्त्री के लिए घातक होता हैं |
दिन में गर्भाधान हो तो शुक्र,मातृग्रह और सूर्य पितृग्रह होते हैं । रात्रि में गर्भाधान होतो चन्द्रमा मातृग्रह और शनि पितृग्रह
होते हैं।
पितृग्रह यदि विषम राशियों में हो तो पिता के लिये मातृग्रह सम राशि में हो
तो माता के लिये शुभ कारक होता है यदि पापग्रह बारहवें राशि में स्थित होंकर पाप ग्रहो से
देखा जाता हो और शुभ ग्रहो से ना देखा जाता हो अथवा लग्न मे शनि हो तथा उस पर
क्षीण चंद्रमा और मंगल की दृस्टी हो तो उस समय गर्भाधान होने से स्त्री का मरण
होता हैं |
लग्न और चन्द्रमा दोनों या उनमें से एक भी दो पापग्रहों के बीच में हो तो
तो गर्भाधान होने पर स्त्री गर्भ के सहित मृत्यु को प्राप्त होती है |
लग्न अथवा चन्द्रमा से चतुर्थ स्थान में पापग्रह हो,मंगल अष्टम भाव में हो अथवा लग्न से 4/12वें स्थान में मंगल और शनि हो तथा चंद्रमा
क्षीण होतो गर्भवती स्त्री का मरण होता हैं |
गर्भाधान काल मे मास का स्वामी अस्त हो, तो गर्भ का स्त्राव होता है. इसलिये इस प्रकार
के लग्न को गर्भाधान हेतु त्याग देना चाहिये।
आधानकालिक लग्न या चन्द्रमा के साथ अथवा इन दोनों से 5-6-7-4-10वें स्थान में सब शुभ ग्रह हो और 3-6-10वें भाव में सब पापग्रह हों तथा लग्न और चन्द्रमा पर सूर्य की दष्टि हो तो
गर्भ सुखी रहता है।
रवि,गरू,चंद्रमा और लग्न - ये विषम राशि एवं नवमांश मे हो अथवा रवि और गरू विषम राशि मे स्थित हो तो पुत्र
का जन्म होता हैं |
उक्त
सभी ग्रह यदि सम राशि और सम नवांश में हो अथवा मंगल,चंद्रमा और शुक्र सम राशि में होतो कन्या का
जन्म समझना चाहिए |
ये सब
द्विस्वभाव राशि में हो और बुध से देखे जाते हो तो अपने-अपने पक्ष के यमल (जुड़वा)
संतान के जन्म कारक होते हैं अर्थात पुरुष ग्रह दो पुत्रों को और स्त्री ग्रह दो
कन्याओं के जन्म दायक होते हैं यदि दोनों प्रकार के ग्रह हो तो एक कन्या एवं एक
पुत्र होना चाहिए |
लग्न
में विषम स्थानों में स्थित शनि भी पुत्र जन्म का कारक होता है | क्रमशः विषम एवं सम
राशि में स्थित सूर्य एवं चंद्र अथवा बुध और शनि एक दूसरे को देखते हो अथवा सम
राशि सूर्य को विषम राशि लग्न एवं चंद्रमा पर मंगल की दृष्टि हो अथवा चंद्रमा सम
राशि और लग्न विषम राशि में हो तथा उन पर मंगल की दृष्टि हो अथवा लग्न,चंद्रमा और शुक्र तीनों
पुरुष राशियों के नवांश में हो तो इन सब योगों में नपुंसक का जन्म होता है | शुक्र और चन्द्र सम राशि मे हो तथा बुध,मंगल,लग्न और बृहस्पति विषम
राशि में स्थित होकर पुरुष ग्रह से देखे जाते हो अथवा लग्न एवं चंद्रमा सम राशि
में हो पूर्वोक्त बुध,मंगल,लग्न एवं गुरु सम राशियों में हो तो यमल संतान को जन्म देने वाले होते हैं |
यदि
बुध अपने नवांश में स्थित होकर द्विस्वभाव राशिस्थ ग्रह और लग्न को देखता हो तो
गर्भ में तीन संतान की स्थिति समझनी चाहिए | इनमें से दो तो बुध नवांश के जैसे होंगे और एक
लग्नांश के जैसा,यदि बुध और लग्न दोनों तुल्य नवांश में हो तो तीनों संतानों को एक सा ही
समझना चाहिए |
यदि
धनु राशि का अंतिम नवांश लग्न मे हो और उसी अंश मे बली ग्रह हो और बलवान बुध या
शनी से देखे जाते हो तो गर्भ में बहुत सी संतानों की संभावना समझनी चाहिए |
गर्भ
मास के ग्रहो के अनुसार आधान समय में जो ग्रह बलवान या निर्बल होता है उसके मास
में उसी प्रकार शुभ या अशुभ फल होता है |
बुध
त्रिकोण में हो और अन्य ग्रह निर्बल हो तो गर्भस्थ शिशु के दो मुख,चार पैर और चार हाथ
होते हैं
चंद्रमा
वृष मे हो और अन्य सब पाप ग्रह संधि राशि में हो तो बालक गूंगा होता है |
यदि
उक्त ग्रहों पर शुभ ग्रहो की दृष्टि हो तो बालक अधिक दिनों में बोलता है |
मंगल
और शनि यदि बुध की राशि नवांश में हो तो शिशु गर्भ में ही दांतो से युक्त होता है |
चंद्रमा
कर्क राशि में होकर लग्न में हो तथा उस पर शनि और मंगल की दृष्टि हो तो गर्भस्थ
शिशु कुबड़ा होता है |
मीन
राशि लग्न में हो और उस पर शनि चंद्र मंगल की दृष्टि हो तो बालक पंगु होता है |
मकर
का अंतिम अंश लग्न में हो और उस पर शनि चंद्रमा तथा सूर्य की दृष्टि हो तो गर्भ का
बच्चा बौना होता है |
गर्भाधान
के समय यदि सिंह लग्न में सूर्य चंद्र हो तथा उन पर शनि मंगल की दृष्टि हो तो शिशु
नेत्रहीन अथवा नेत्र विकार से युक्त होता है |
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