जब कभी किसी भी जातक का
जन्मपत्रिका मे जन्मकालीन चंद्रमा अश्विनी,भरणी,पुष्य,आश्लेषा,मघा,उत्तराफाल्गुनी,स्वाति,विशाखा,ज्येष्ठा,मूल,पूर्वाषाढ़ा,उत्तराषाढ़ा,श्रवण और पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र का होता है
तो ऐसे जातक की पुरूष योनि कही जाती है इस में पुरुष की भांति यौन आकर्षण व इच्छाए होता है जबकि बाकी के बचे 13 अन्य नक्षत्रों में जन्मा जातक स्त्री
योनि का कहलाता है जिसमें स्त्री की भांति यौन आकर्षण व इच्छाएं होती हैं कुंडली मिलान
के समय यदि इन बातों का ध्यान ना दिया
जाए तो पति पत्नी मे दांपत्य अथवा भोग जीवन में असंतुष्टि कारण तनाव बना रहता है |
पुरुष जातक का पुरुष योनि में होना तथा स्त्री जातिका का स्त्री योनि में
होना सबसे अधिक शुभ माना जाता है यदि दोनों की एक ही योनि होतो भी यह मिलान ठीक रहता है यदि दोनों ही पुरुष वर्ग के हो तो भी काम चल जाता है परंतु पुरुष का स्त्री वर्ग में तथा स्त्री का पुरुष वर्ग में होना
शुभ नहीं होता |
इसी प्रकार गणों को तीन भागों में बांटा गया है जिनमें
देव,मनुष्य और असुर रखे गए हैं इन तीनों वर्गों के भांति
ही प्रत्येक वर्ग में अलग अलग प्रकार की
यौन इच्छाएं होती हैं जिनको सही प्रकार से कुंडलियों में
देखा जाना चाहिए |
अश्वनी,मृगशिरा,पुनर्वसु,पुष्य,हस्त,स्वाति,अनुराधा,श्रवण तथा
रेवती नक्षत्र मे जन्मे जातक देवगण के होते हैं |
भरणी,रोहिणी,आर्द्रा,पूर्वाफाल्गुनी,उत्तराफाल्गुनी,पूर्वाषाढ़ा,उत्तराषाढ़ा,पूर्वभाद्रपद
और उत्तराभाद्रपद नक्षत्रो मे जन्मे जातक मनुष्यगण के होते हैं तथा कृतिका,अश्लेषा,मघा,चित्रा,विशाखा,ज्येष्ठा,मूल,धनिष्ठा
और शतभिषा नक्षत्रो मे जन्मे जातक असुर गण के होते
हैं |
वर और वधू के नक्षत्र एक ही गण के हो सकते हैं,वर का देवगण होना तथा स्त्री का मनुष्य गण होना अथवा वर का असुर तथा स्त्री का मनुष्य
होना भी ठीक होता है परंतु मनुष्य गण के वर का देवगण की कन्या से मिलान ठीक नहीं होता इसी प्रकार असुर
गण की कन्या का मनुष्य गण के व्यक्ति से मिलना ठीक नहीं होता |
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