बुधवार, 22 फ़रवरी 2017

पंचम गुरु



वेदो मे गुरु ग्रह को जीवन देने वाला ग्रह कहा गया हैं | इस गुरु ग्रह को अंग्रेजी मे ज्यूपिटर कहा जाता हैं जो संस्कृत के शब्द द्वि-पित्र से लिया गया हैं जिसका अर्थ आकाश का पिता होना होता हैं जो पिता के समान ही रक्षा करता हैं | प्राचीन शास्त्र इस गुरु ग्रह के बिना धरती पर जीवन संभव होना असंभव अथवा नामुमकिन बताते हैं संभवत; इसी कारण इसे जीव का कारक समझा व कहा जाता रहा हैं | 

गुरु जब भी गोचर मे स्वराशि का,ऊंच का या अपने नक्षत्र का होता हैं तो उस वर्ष धरती पर जन्मदर ने वृद्दि,अच्छी फसल व अच्छी वर्षा होती हैं और इसके विपरीत जब गुरु गोचर मे नीच,शत्रु राशि का अथवा शत्रु नक्षत्र मे होता हैं तब उस वर्ष धरती पर मृत्यु दर अधिक,अकाल व सूखा जैसे हालात उत्पन्न होते हैं परंतु जब यह नीच राशि मे वक्री होता हैं तब बहुत से लोग आश्चर्य जनक रूप से बच जाते हैं और फसल भी भारी वर्षा तथा बाढ़ से बच जाती हैं |

दक्षिण भारत मे कुंडली देखते समय लग्नेश की स्थिति देखने से पहले गुरु ग्रह की स्थिति देखी जाती हैं यदि गुरु शुभ स्थान मे होतो जातक भाग्य शाली समझा जाता हैं लग्न मे गुरु होना बहुत ही भाग्यवान माना जाता हैं वही यदि गुरु 4थे अथवा 11वे भाव मे होतो जातक की सभी इच्छाओ की पूर्ति जातक को उसके जीवन मे हों जाती हैं ऐसा माना गया हैं |

पंचम भाव मे गुरु होने से गुरु की सम्पूर्ण परोपकारिता जातक को प्राप्त होती हैं ऐसे जातक समाज मे भलाई के लिए किसी भी सीमा को पार कर देते हैं तकदीरवाले होने के साथ साथ यह जातक विशाल व्यक्तित्व वाले व अपने समाज मे लोकप्रिय होते हैं इनके जीवन का सरलता भरा दृस्टिकोन परिस्थितियो के विरोध के बावजूद समाज मे इन्हे ऊंच स्थान की प्राप्ति करवाता हैं | जीवन के प्रति सकारात्मक नज़रिया इन्हे किसी की भी शिकायत नहीं करने देता तथा ऐसे लोग अपनी मानसिक दृढ़ता के कारण यह हर कठिन परिस्थिति का हल आसानी से पा लेते हैं |

आइए देखते हैं की प्रत्येक लग्न मे पंचम भाव के गुरु का क्या परिणाम होता हैं ?

मेष लग्न के लिए गुरु नवम व द्वादश भाव के स्वामी बनते हैं जो राजसिक व सात्विक भाव हैं इनका पंचम भाव मे सिंह राशि मे होना राजयोग का निर्माण करता हैं क्यूंकी सिंह राशि एक राजकीय राशि हैं | इस पंचम भाव से गुरु नवम,एकादश व लग्न भाव को दृस्टी देते हैं पंचम भाव को पूर्व जन्म का भाव भी कहा जाता हैं जिसका स्वामी सूर्य होता हैं जो जातक को जीवन मे अच्छा स्थान देता हैं भले ही ऐसे मे सूर्य की स्थिति कैसी हो चूंकि गुरु लग्न पर दृस्टी दे रहा होता हैं जातक के सम्मान व स्थिति मे कोई फर्क नहीं पड़ता हैं सात्विक गृह गुरु के राजसिक राशि सिंह मे होने से जातक को ईश्वरीय मार्ग से शुभता प्राप्त होती हैं | ऐसे मे जातक की कन्या संतान या कम संतान होती हैं |( मुकेश अंबानी )

वृष लग्न मे गुरु अष्टमेश व एकादशेश होकर अशुभ होता हैं इसका पंचम भाव कन्या राशि मे होना जातक को मंदगति से ब्रह्मज्ञान प्रदान कर दुनियादारी से दूर करता है यदि नवमेश दशमेश शनि जो की आयुकारक भी हैं सहायता ना करे तो आयु मे शंका रहती हैं जातक को अपने बच्चो से लाभ रहता हैं क्यूंकी वह उसकी इच्छित वस्तु की प्राप्ति मे उसके सहायक होते हैं |

मिथुन लग्न एक दार्शनिक लग्न हैं और गुरु इसके लिए सप्तमेश व दशमेश बनते हैं जिसे केन्द्राधिपत्य दोष लगता हैं पंचम भाव तुला राशि का होता हैं जिसका स्वामी शुक्र होता हैं इस कारण जातक की कन्या संतान ज़्यादा होती है जो उसे उसके जीवन मे अपने अच्छे कर्मो से मान सम्मान दिलाती हैं | जातक का वैवाहिक जीवन ज़्यादा अच्छा नहीं रहता हैं |

कर्क लग्न मे गुरु छठे व नवे भाव का स्वामी बनकर मंगल राशि के पंचम भाव मे होता हैं चूंकि मंगल गुरु का मित्र होने के साथ साथ इस लग्न मे दशमेश भी बनता हैं ऐसे जातक को जीवन के सभी सुख प्राप्त होते हैं तथा वो समाज के लोगो का मददगार भी होता हैं | यदि ऐसा गुरु वक्री होतो जातक का आत्मिक कारणो से उत्थान होता हैं |

सिंह लग्न मे गुरु पंचमेश व अष्टमेश होकर स्वयं की ही राशि मे होता हैं जो जातक को होनहार संतति प्रदान करता हैं बहुधा ऐसे जातक की कन्या संतान ज़्यादा होती हैं |

कन्या लग्न हेतु गुरु चतुर्थेश व सप्तमेश होने से दो केन्द्रो का स्वामी बनकर केन्द्राधिपत्य दोष से प्रभावित होता हैं तथा पंचम भाव मे अपनी नीच राशि मे भी होता हैं जिससे यह जातक को उसके जीवन मे बहुत थोड़ी सी शुभता देता हैं | ( ऐश्वर्या राय 1/11/1973 4:05 मंगलोर )

तुला लग्न मे तृतीयेश व षष्ठेश होकर यह पंचम गुरु शनि की कुम्भ राशि का होता हैं जो जातक को उसके जीवन मे आत्मिक दृस्टी से मदद प्रदान करता हैं |

वृश्चिक लग्न मे गुरु द्वितीयेश व पंचमेश होता हैं यह पंचम गुरु स्वराशि मीन का होकर जातक को उसके जीवन मे बहुत लाभ देता हैं यदि यह गुरु वक्री होतो जातक को आत्मिक ज्ञान प्राप्त करा सभी का भला करने की प्रेरणा देता हैं |

धनु लग्न मे गुरु केन्द्राधिपत्य दोष से प्रभावित होने के बावजूद यह मेष राशि का पंचम गुरु जातक को एक ऐसा पुत्र प्रदान करता हैं जो जातक को जीवन के सभी सुख प्राप्त करवाता हैं |

मकर लग्न मे गुरु द्वादशेश व तृतीयेश बनकर पंचम भाव मे वृष राशि का होता हैं जो जातक को बुद्दिमान कन्या संतान देकर भविष्य की बहुत सी उम्मीदे प्रदान करता हैं |

कुम्भ लग्न मे गुरु एकादशेव द्वितीयेश बनता हैं तथा पंचम भाव मे मिथुन राशि का होकर जातक को संत रूपी संतान प्रदान करता हैं यदि ऐसा गुरु वक्री होतो जातक स्वयं भी सन्यासी प्रवृति का होता हैं |

मीन लग्न मे गुरु दशमेश व लग्नेश होकर पंचम भाव मे अपनी ऊंच राशि का होता हैं ऐसा गुरु जातक को मान सम्मान,अच्छी संतान,शांत दिमाग व ऊंच शिक्षा प्रदान करता करता हैं (रवीन्द्रनाथ टेगोर 7/5/1861 2:51 )

कुछ विद्वान पंचम भावस्थ गुरु को कारक भावो नाशय सिद्दांत के अनुसार पुत्र संतान हेतु शुभ नहीं मानते जो की अनुभव मे कुछ हद तक सही भी जान पड़ता हैं |

आत्मिक दृस्टी से देखे तो हिन्दू धर्म के विद्वान यह मानते हैं की व्यक्ति के कई जन्म तब तक होते रहते हैं जब तक वह स्वयं के होने का ज्ञान ना प्राप्त कर ले | पंचम भावस्थ गुरु जातक के पिछले जन्म मे भगवान पर उसके अटूट विश्वास का होना बताता हैं जिसका अनुभव उसे इस जन्म मे भी होता रहता हैं यदि ऐसा जातक इस जन्म मे ध्यान लगाकर धार्मिक जीवन जीने लगे तो उसे इस ध्यान द्वारा ही उसके पिछले जन्म का भान हो जाता हैं यदि ऐसा गुरु वक्री होतो यह ध्यान उसे उसके कई जन्मो का ज्ञान करवा देता हैं जिससे वह अपने पिछले कई जन्मो के बारे मे जान जाता हैं |

वक्री गुरु स्वराशि का बुध संग होकर अथवा बुध के नक्षत्र का होकर जब पंचम भाव मे होता हैं तब   जातक पुरानी खोई हुयी वस्तुओ को खोजकर समाज व देश को एक नई दिशा प्रदान करता हैं | जिससे समाज व देश का बहुत भला होता हैं |

पंचम भाव मे वक्री गुरु जब किसी गृह को दृस्टी दे रहा होता हैं तो जातक का उस दृस्ट ग्रह से संबन्धित कारक से पिछले जन्म का संबंध होता हैं जैसे यदि यह गुरु शुक्र को देख रहा हो तो जातक को उसके पिछले जन्म की स्त्री ही इस जन्म मे पत्नी के रूप मे प्राप्त होती हैं ऐसा ही उसके संतान व वातावरण पर भी लागू होता हैं |

यदि जातक का पंचम भावस्थ गुरु स्तंभित होतो जातक को इस जन्म मे ईश्वर की प्राप्ति थोड़े से ही प्रयास से केवल ध्यान लगाने मात्र से हो जाती हैं | यह ध्यान उन्हे सूर्योदय से एक घंटा पहले अथवा सूर्यास्त के एक घंटा बाद खाली पेट लगाना चाहिए | अंत मे यह कहा जा सकता है की कोई भी अवस्था हो पंचम भाव का गुरु जातक को हमेशा ईश्वर के होने का गुमान उसके हृदय मे देता रहता हैं | पंचम भाव के गुरु वाले जातको को यह समझ लेना चाहिए की उन्हे धरती पर ईश्वर ने किसी खास कार्य के लिए भेजा हुआ होता हैं यदि वह ऐसा नहीं समझ पाते तो उन्हे फिर से अगला जन्म प्राप्त होता हैं जिसमे उनके पंचम भाव मे फिर से गुरु ही होता हैं यह चक्र उनके सत्य जानने तक चलता ही रहता हैं और जब जीवन का यह वास्तविक सत्य जान लिया जाता हैं तो जीवन बहुत ही आसान हो जाता हैं |




4 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

Mera Guru vakri hai Pancham bhav me sinhg rashi me hai mesh lagna kundli ....Apne jo likha sab sach hai ....Mai govt job ke liye prepare kar Raha hu .. failure as rahe hai kya karu .
Dob28/04/1992 time 5.30 Am Aurangabad Maharashtra

Unknown ने कहा…

Namaskar....ji haa aapki hi tarah meri bhi janmakundali mein guru vakri hokar pancham bhav mein sthith hain aur mein bhi govt job ke liye try karta hu but hota hi nahi

H.Dixit ने कहा…

This placement is not related to govt. job, although govt. job & many other big achievements could also be possibly achieved. But mainly this placement is about rising above whatever a normal person keeps striving for, because real happiness comes when we stop fighting & start loving whatever we are. And this is only possible when the person get to know the secret. So that the source of true happiness & pleasure could be known & praised by all through him.

Carpe Diem ने कहा…

I have retrograde Jupiter and retrograde Saturn in 5th house in Aires for sag Asc. Mercury in Libra, sun in Virgo.. Rahu in cancer, moon and Venus in Leo and Mars in scorpio..i am facing lot of problems and obstacles in education, my dad died all of a sudden..
Can you please tell me why is this so?