शुक्रवार, 31 जुलाई 2015

दशा संधि क्या होती हैं क्या इससे डरना चाहिए ?



दशा संधि क्या होती हैं क्या इससे डरना चाहिए ?

किसी भी जातक की पत्रिका मे वह समय जब जातक की एक दशा समाप्त होकर दूसरी दशा आरंभ होने वाली होती हैं दशा संधि कहलाता हैं बहुत से विद्वान इस समय को अशुभ बताते हैं इसी विषय पर हम यह लेख अपने पाठको हेतु प्रस्तुत कर रहे हैं |
हमारे अनुभव मे जो इस विषय मे तथ्य प्राप्त हुये हैं वह निम्न हैं |

1)जिस गृह की दशा आरंभ होने वाली होती हैं यदि वह पहली दशा स्वामी के नक्षत्र मे होतो जातक को ज़्यादा बदलाव का सामना नहीं करना पड़ता अर्थात उसकी स्थिति मे कोई खास बदलाव नहीं आता भले ही उसकी स्थिति कैसी भी हो | जैसे गुरु मे राहू दशा मे यदि किसी ने नौकरी आरंभ की हो तो शनि दशा आने पर उसे लाभ ही प्रात होता रहेगा यदि शनि उसका गुरु के किसी भी नक्षत्र मे हो ऐसे मे शनि की जन्मकालीन स्थिति उसकी पत्रिका मे कैसी भी हो इससे ज़्यादा फर्क नहीं पड़ेगा ऐसे मे स्पष्ट रूप से कहा जा सकता हैं किसी भी दशा का अंत व आरंभ हानी ही देगा यह ज़रूरी नहीं हैं |

2)जिस गृह की दशा आरंभ हो रही हैं यदि वह शुभ भावो का स्वामी हो,शुभ भाव मे स्थित हों,शुभ गृह के नक्षत्र मे हो तो जातक को शुभता अवश्य प्राप्त होती हैं तथा उसके जीवन मे सुखद बदलाव आता हैं |

3)अधिकतर जातको को दशा के आरंभ अथवा अंत के समय ज़्यादा परेशानियों का सामना नहीं करना पड़ता बल्कि दशा के मध्य मे ज़्यादा परेशानियाँ होती हैं |

अत: हमारा मानना हैं की दशा संधि से डरना नहीं चाहिए यह जीवन मे अच्छा व बुरा दोनों प्रभाव देने मे सक्षम होती हैं |


रविवार, 26 जुलाई 2015

एक दशा



एक दशा

जब पति पत्नी की एक ही ग्रह की दशा चल रही होतो उसे एक दशा कहते हैं बहुत से विद्वान इस दशा को हानी कारक मानते हैं इस विषय पर बहुत से प्रश्न हैं जिन पर ध्यान नहीं दिया जाता हैं जिनमे से कुछ प्रश्न निम्न हो सकते हैं |

1)जब दोनों जातको की पत्री अलग अलग होगी तो ग्रह जिसकी दशा हैं वो भी अलग अलग भावो का स्वामी होगा जिस कारण परिणाम भी अलग ही प्राप्त होंगे |

2)लग्न अथवा चन्द्र लग्न से देखने पर ग्रह भी अलग भावो का स्वामी होगा जिससे परिणाम भी अलग प्राप्त होंगे |

3)दशास्वामी संग बैठा ग्रह व उसको दृस्टी देता ग्रह भी भिन्न परिणाम दर्शाएगा |

4)ग्रह यदि अलग अलग नक्षत्र मे होगा तो उसका फल भी अलग ही आएगा |
विद्वान कहते हैं की पति पत्नी के संबंध बहुत अच्छे रहेंगे यदि पति का जन्म नक्षत्र पत्नी के जन्म नक्षत्र से 9,18,27(यदि 27वा नक्षत्र एक ही राशि मे हो ) हो | इसे एक उदाहरण से देखते हैं लड़के का नक्षत्र रोहिणी हैं लड़की का नक्षत्र मृगशिरा हैं जिससे दोनों का चन्द्र वृष राशि का होगा लड़की की मंगल दशा 6 वर्ष की शेष हैं जबकि लड़के की चन्द्र दशा 5 वर्ष शेष हैं 5वर्ष का होने पर उसे मंगल की दशा आरंभ होगी जब वह एक वर्ष मंगल दशा के गुजार चुका होगा तब यदि लड़की का जन्म हुआ हो तो अब दोनों की दशा मंगल की होगी जो बराबर होगी ऐसे मे यह दशा अशुभ कैसे हो सकती हैं जबकि 9,18,27वा नक्षत्र शुभ माना गया हैं और राशि भी एक ही हो |
दशा एक होने पर भी अन्य ग्रह कुंडली मे अलग अलग होने से परिणाम अलग ही होंगे यह स्पष्ट हैं - जैसे

1)पत्नी यदि गहने खरीदेगी तो पति का बैंक जमा कम होगा और यदि गहने बेचकर पैसे पति को देगी तो बैंक जमा ज़्यादा होगा ऐसे मे एक की हानी दूसरे का लाभ होगा जबकि दशा दोनों की एक ही ग्रह की होगी |

2)पति जब पढ़ने विदेश जाएगा तो पत्नी घर पर रहेगी दोनों का विछोह होगा दशा दोनों की एक ही ग्रह की होगी |

3)पत्नी कष्ट सहकर संतान को जन्म देगी पति खुशी मनाएगा एक की पीड़ा दूसरे का हर्ष होगा |
यह सब बातें एक ही ग्रह की दशा मे संभव नहीं हो सकती हैं यहाँ ग्रह की स्थिति,भाव,संगत,दृस्टी का प्रभाव भी देखा जाएगा | ऐसा ही जुड़वा बच्चो कुंडलियों मे भी देखा जाता हैं जहां सब कुछ समान होने पर भी परिणाम अलग अलग होते हैं |इसलिए हमारा मानना हैं की एक दशा हानी ही करती हैं ऐसा कहना ग़लत हैं | 

रविवार, 19 जुलाई 2015

पूर्व जन्म मे क्या थे आप



पूर्व जन्म मे क्या थे आप

भारतीय ज्योतिष के विख्यात ग्रंथ बृहद जातक मे वराहमिहिर ने लिखा हैं की जातक अपने पूर्व जन्म मे क्या था इसका पता निम्न सूत्रो द्वारा जाना जा सकता हैं |

1)जन्म के समय सूर्य या चन्द्र मे से जो बली हो और वह जिस द्रेसकोण मे हो उस द्रेसकोण का स्वामी यदि गुरु होतो जातक पूर्व जन्म मे स्वर्गलोक मे रहता था |

2)यदि ड्रेसकोण का स्वामी चन्द्र या शुक्र होतो जातक पित्रलोक मे था |

3)यदि ड्रेसकोण स्वामी सूर्य या मंगल हैं तो जातक मृत्युलोक मे था

4)यदि ड्रेसकोण स्वामी शनि या बुध हैं तो जातक नरकलोक मे था |

5)यदि कुंडली मे 4 गृह ऊंच या स्वरशी के हैं तो जातक पुर्ञ्जंम मे उत्तमयोनि मे था |

6)लग्न मे गुरु होतो जातक पूर्वजन्म मे ब्राह्मण था |

7)8,10,व 12 लग्नों मे ऊंच का गुरु जातक पूर्वजन्म मे ब्राह्मण था तथा ब्राह्मण कार्य करता था |

8)वृष लग्न हो तथा लग्न मे निर्दोष चन्द्र होतो जातक जातक पूर्वजन्म मे व्यापारी था |

9)कर्क लग्न हो तथा निर्दोष चन्द्र लग्न मे होतो जातक पूर्वजन्म मे प्रसिद्द व्यापारी था |

10)मिथुन व कन्या लग्न हो तथा लग्न मे निर्दोष बुध होतो जातक पूर्वजन्म मे व्यापारिक कामो मे रत था |

11)मकर या मेष लग्न हो तथा लग्न मे निर्दोष मंगल होतो जातक पूर्वजन्म मे क्षत्रिय था |

12)लग्न से 6,8,12 भाव मे नीच का सूर्य होतो जातक पूर्वजन्म मे शूद्र था | इसी प्रकार से शनि यदि 1,4,7,11  
भावो मे होतो जातक पूर्व मे शूद्र परिवार से संबन्धित था |

13)लग्न अथवा सप्तम भाव मे राहू होतो जातक की पूर्वजन्म मे अकाल मृत्यु हुयी होती हैं |

14)इसी प्रकार लग्न निर्बल हो तथा 4 गृह नीच के होतो जातक की पूर्व मे अकाल मृत्यु हुयी होती हैं |

15)कुंडली मे सूर्य 11वे,गुरु 5वे तथा शुक्र 12वे होतो जातक पूर्वजन्म मे दान पुण्य करने वाला था |

बुधवार, 15 जुलाई 2015

लाल किताब के उपाय किस तरह से करे |



लाल किताब के उपाय किस तरह से करे |

पहला तरीका हैं ग्रह को नष्ट कर देना –यदि कोई ग्रह कुंडली मे अशुभ भाव मे बैठकर अशुभ प्रभाव दे रहा हो तो उस ग्रह से संबन्धित वस्तुए ज़मीन मे गाड़ देने से उस ग्रह से संबन्धित परेशानिया समाप्त हो जाती हैं | जैसे पत्रिका मे अशुभ शनि छठे भाव मे स्थित होकर स्वास्थ संबंधी कष्ट दे रहा हो तो सरसो के तेल को मिट्टी के बर्तन मे भरकर ढक्कन को अच्छी तरह बंदकर खड़े पानी मे अथवा तालाब के किनारे वाली ज़मीन मे गाड़  देने से राहत प्राप्त हो जाती हैं  | इसी प्रकार यदि शुक्र ग्रह अष्टम भाव मे बैठकर खराबी दे रहा हो तो शुक्र की वस्तु ज्वार को लेकर ज़मीन मे दबा दे जिससे शुक्र अपना अशुभ प्रभाव नही दे पाएगा |

दूसरा तरीका ग्रह की अशुभता को दूर करने हेतु उस ग्रह की वस्तु को पानी मे बहाना हैं जैसे यदि राहू अष्टम भाव मे बैठकर पेट संबंधी रोग,कार्य बाधा व धनहानी कर रहा हो तो राहू की वस्तु रांगा धातु अथवा जौ 100ग्राम प्रतिदिन आठ दिनो तक जलप्रवाह करने से राहू अशुभ फल प्रदान करना छोड़ देता हैं | इसी प्रकार यदि मंगल बारहवे भाव स्थित होकर अशुभता दे रहा हो तो मंगल वस्तु गुड की रेवड़िया जलप्रवाह करने से राहत पायी जा सकती हैं 

तीसरे तरीका मे हम अशुभ ग्रह के मित्र द्वारा सहायता प्राप्त करते हैं जैसे यदि छठे भाव मे केतू यदि अशुभता दे रहा हो तो सबसे छोटी अंगुली(बुध) मे सोने(गुरु) की अंगूठी पहनने से केतू अपना दुष्प्रभाव नहीं दे पाएगा क्यूंकी बुध छठी राशि का स्वामी तथा गुरु केतू के मित्र हैं जो अब केतू पर अंकुश रख देते हैं | इसी तरह यदि छठे घर मे सूर्य शनि बैठकर अशुभता दे रहे हो घर पर बुध ग्रह की वस्तु फूल वाले पौधे लगाने से राहत पायी जा सकतीय हैं क्यूंकी बुध सूर्य शनि दोनों ग्रहो का मित्रा होता हैं जिससे अब वह इन दोनों का झगड़ा होने नहीं देता |

चौथा तरीका शुभ ग्रह को स्थापित करना होता हैं इस के अंतर्गत जो ग्रह शुभ होता हैं उसकी वस्तुए अपने पास रखने से लाभ प्राप्त किया जा सकता हैं जैसे चन्द्र यदि दूसरे भाव मे शुभ बैठा हो तो चावल अपनी मटा से लेकर अपने पास रहने चाहिए जिससे चन्द्र के और भी शुभफल मिलने लगते हैं |

पांचवा तरीका अशुभ ग्रह को शांत रखने के लिए उसके शत्रु ग्रह की वस्तु संग रखना होता हैं जैसे अष्टम भाव के मंगल को शांत रखने के लिए हाथी दाँत से बनी वस्तु अपने संग रखनी चाहिए |

छठा तरीका ग्रह की अशुभता कम करने के लिए उस ग्रह की वस्तु को उसके दूसरे कारक को अर्पित करना होता हैं जैसे गुरु ग्रह की अशुभता को कम करने के लिए चने की दाल धर्मस्थान मे रखनी चाहिए परंतु पहले कुंडली मे अवश्य देख ले की कही दूसरे भाव(धर्म स्थान)मे गुरु का शत्रु ग्रह ना बैठा हो | इसी प्रकार यदि शुक्र अशुभ प्रभाव दे रहा हो तो गाय को हरा चारा (ज्वार)खिलाने से शुक्र अपना शुभ फल देने लगता हैं |

सातवा तरीका ग्रह के प्रभाव को बदलकर उसे शुभ बनाने का होता है जैसे राहू यदि पंचम भाव मे बैठकर संतान विशेषकर पुत्र को अशुभता दे रहा हो तो चाँदी का ठोस हाथी घर पर रखने से लाभ पाया जा सकता हैं |

आठवा तरीका ग्रह के इष्ट देवता की पुजा करने का हैं जैसे छठे भाव मे राहू यदि न समझ मे आने वाला रोग दे रहा हो तो नीले फूलो(राहू की वस्तु) से सरस्वती(राहू की इष्ट देवी) की पुजा करने से राहू अपना कुप्रभाव छोड़ देता हैं | इसी तरह से यदि शुक्र खराब प्रभाव दे रहा हो तो माँ लक्ष्मी की पुजा करनी चाहिए |

नवम तरीके मे जो ग्रह जिस भाव मे बैठकर खराबी कर रहा हो उस के सामने वाले भाव (सप्तम) मे उसके शत्रु ग्रह की वस्तुए डालने से लाभ पाया जा सकता हैं |जैसे बुध ग्रह बारहवे घर मे बैठकर कुप्रभाव दे रहा हो तो छठे घर यानि कुएं मे बुध के शत्रु ग्रह(मंगल शनि) की वस्तुए डालने से लाभ पाया जा सकता हैं |

ध्यान रखे यदि कुंडली मे दूसरा भाव खाली हो और शनि अष्टम भाव मे हो तो मंदिर ना जाकर बाहर से ही नमस्कार करना चाहिए| इसी प्रकार 6,8,12 मे शत्रु ग्रह हो और दूसरा भाव खाली हो तो भी मंदिर नहीं जाना चाहिए |