दशा संधि
क्या होती हैं क्या इससे डरना चाहिए ?
किसी भी
जातक की पत्रिका मे वह समय जब जातक की एक दशा समाप्त होकर दूसरी दशा आरंभ होने
वाली होती हैं दशा संधि कहलाता हैं बहुत से विद्वान इस समय को अशुभ बताते हैं इसी
विषय पर हम यह लेख अपने पाठको हेतु प्रस्तुत कर रहे हैं |
हमारे
अनुभव मे जो इस विषय मे तथ्य प्राप्त हुये हैं वह निम्न हैं |
1)जिस
गृह की दशा आरंभ होने वाली होती हैं यदि वह पहली दशा स्वामी के नक्षत्र मे होतो
जातक को ज़्यादा बदलाव का सामना नहीं करना पड़ता अर्थात उसकी स्थिति मे कोई खास
बदलाव नहीं आता भले ही उसकी स्थिति कैसी भी हो | जैसे गुरु मे राहू दशा मे यदि किसी ने नौकरी आरंभ की हो तो शनि दशा आने
पर उसे लाभ ही प्रात होता रहेगा यदि शनि उसका गुरु के किसी भी नक्षत्र मे हो ऐसे
मे शनि की जन्मकालीन स्थिति उसकी पत्रिका मे कैसी भी हो इससे ज़्यादा फर्क नहीं
पड़ेगा ऐसे मे स्पष्ट रूप से कहा जा सकता हैं किसी भी दशा का
अंत व आरंभ हानी ही देगा यह ज़रूरी नहीं हैं |
2)जिस
गृह की दशा आरंभ हो रही हैं यदि वह शुभ भावो का स्वामी हो,शुभ भाव मे स्थित हों,शुभ गृह के नक्षत्र मे हो तो
जातक को शुभता अवश्य प्राप्त होती हैं तथा उसके जीवन मे सुखद बदलाव आता हैं |
3)अधिकतर
जातको को दशा के आरंभ अथवा अंत के समय ज़्यादा परेशानियों का सामना नहीं करना पड़ता
बल्कि दशा के मध्य मे ज़्यादा परेशानियाँ होती हैं |
अत:
हमारा मानना हैं की दशा संधि से डरना नहीं चाहिए यह जीवन मे अच्छा व बुरा दोनों
प्रभाव देने मे सक्षम होती हैं |