शुक्रवार, 30 अगस्त 2013

कौन बनेगा ज्योतिषी

कौन बनेगा ज्योतिषी

–ज्योतिष शास्त्र अध्यात्म,दर्शन,धर्म व विज्ञान का सम्मिलित रूप हैं | आकाश मे भ्रमण  करते हुये ग्रह अपने अपने मार्गो मे जब विभिन्न राशियो व नक्षत्रो से गुजरते हैं तो धरती पर प्रत्येक प्राणी व वस्तु पर इनका कुछ न कुछ प्रभाव पड़ता 
हैं जिसका पता हमारे प्राचीन विद्वानो ने अपने ज्ञान व शोध द्वारा हमे ज्योतिषीय ज्ञान के रूप मे दिया चूंकि भारत वर्ष हमेशा से ही ज्ञान,ध्यान,अध्यात्म,धर्म व दर्शन की भूमि रहा हैं यहाँ यह ज्योतिष शास्त्र ना सिर्फ पवित्र कार्य के रूप मे देखा जाता हैं बल्कि भविष्य हेतु मार्गदर्शक भी माना जाता हैं | इस विधा की लोकप्रियता को देखते हुये बहुत से लोग इसका विधि विधान से अध्ययन कर सफल ज्योतिष बनना पसंद कर रहे हैं हमने इसी विषय को केन्द्रित कर यह जानने का प्रयास किया की किसी की जन्म कुंडली मे ऐसे कौन से योग होते हैं जो व्यक्ति विशेष को इस गूढ विदया का अध्ययन करने को प्रेरित व मजबूर करते हैं |
एक सफल ज्योतिषी बनने के लिए गणितज्ञ,दार्शनिक व मनोवैज्ञानिक होना आवशयक हैं इसके अतिरिक्त जातक विशेष मे वाकसिद्दि का होना व भविष्य देखने की कला (दूरदर्शिता) का होना अत्याधिक ज़रूरी हैं चूंकि यह सभी विषय गुरु व बुध ग्रहो के अंतर्गत आते हैं अत; कुंडली मे इन दोनों का बलवान होना आवशयक हैं इसके अतिरिक्त हमें निम्न इन अवयवो का भी अध्ययन करना चाहिए |
भाव-लग्न,पंचम,अष्टम,नवम व दशम
राशीय-वृश्चिक व कुम्भ
ग्रह –गुरु,बुध व शनि
लग्न भाव- इस भाव से व्यक्तित्व,मस्तिष्क,स्वभाव,रुचि,शरीर, आजीविका व कार्य के प्रति समर्पण भावना का विचार किया जाता हैं | यह भाव शारीरिक रूप से कोई भी कार्य करने के लिए देखा जाता हैं यह भाव निजता अर्थात स्वयं का होता हैं |
पंचम भाव-इस भाव से विधा, बुद्दि,निर्णय क्षमता,योजना अनुसार कार्य,विचार,गंभीरता,विवेक व पसंद नापसंद  देखी जाती हैं | जिससे शिक्षा,पढ़ाई,सिद्दी व अध्ययन का पता चलता हैं |
अष्टम  भाव-यह भाव गुप्तता व गुप्त विषय की जानकारी का होता हैं ज्योतिष का कार्य गुप्तता भरा होता हैं जिसमे भविष्य मे छुपी गुप्तता का पता लगाना होता हैं यह भाव सामान्य ज्ञान(कौमन सेंस),साधना व शोध का भी होता हैं |      
नवम भाव-यह भाव भाग्य सौभाग्य,प्रसिद्दि,धर्म व परंपरा का माना जाता हैं जो की हमे ज्योतिष जैसे धार्मिक व परंपरागत विषय का अध्ययन करने की प्रेरणा प्रदान करता हैं यही भाव पिता का भी माना जाता हैं और यह विधा आज भी बहुदा क्षेत्रो मे पैतृक विधा के रूप मे ही अध्ययन की जाती हैं |
दशम भाव-इस भाव से हम कार्यक्षेत्र का पता लगाते हैं व्यक्ति विशेष के कर्मो मे सात्विकता या तामसिकता का होना इस भाव से जाना जा सकता हैं इस भाव से गुरु अथवा शनि का संबंध व्यक्ति को ज्योतिष जैसी पवित्र व आध्यात्मिक विद्या मे अवश्य लगाव रखवा सकता हैं |
वृश्चिक राशि-यह राशि कालपुरुष की पत्रिका मे अष्टम भाव की राशि मानी जाती हैं जो गूढ़ता व गुप्तता की प्रतीक मानी गयी हैं चूंकि यह विधा गुप्त व अज्ञात की खोज से संबन्धित हैं इसलिए इस राशि का व इस राशि पर प्रभाव अवश्य ही देखा जाना चाहिए |
कुम्भ राशि –यह राशि दार्शनिकता,तत्वज्ञान व रहस्यता भरी राशि हैं जो व्यापकता को दर्शाती हैं जिसका स्वामी शनि गूढता व पराज्ञान को देनेवाला ग्रह हैं |
गुरु ग्रह –यह ग्रह विधा,विवेक,विस्तारता, परंपरागत व धार्मिक शिक्षा प्रदान करने वाला माना जाता हैं इसके शुभ या बली होने पर व्यक्ति धर्म कर्म व सबका भला चाहने वाला होता हैं इस ग्रह का केंद्र या त्रिकोण से संबंध व्यक्ति को ज्योतिष शास्त्र मे रुचि प्रदान करता हैं जिससे व्यक्ति धर्म प्रचारक,शिक्षक,व पुजारी बन सकता हैं |
बुध ग्रह – इस ग्रह के बिना बुद्दि प्राप्त नहीं हो सकती जिसके बिना गणितज्ञ बन पाना नामुमकिन हैं बिना गणित के अच्छा ज्योतिषी नहीं बना जा सकता हैं | बलवान बुध ग्रह का केंद्र व त्रिकोण से संबंध जातक को ऊंच दर्जे की मानसिक शक्ति,तर्क शक्ति व कल्पना शक्ति प्रदान करता हैं जिससे जातक किसी भी निर्णय को ले पाने मे सफल हो पाता हैं |
शनि ग्रह- यह ग्रह अष्टम भाव का कारक ग्रह होता हैं जो गुप्त वस्तुओ, प्रयोगो,व रहस्यो का भाव माना जाता हैं | इसके शुभ अवस्था मे होने से व्यक्ति विशेष का दृस्टि कोण व्यापकता लिए हुये होता हैं जिसकी ज्योतिष विधा मे बहुत आवशयकता होती हैं साथ ही साथ शोध इत्यादि करने के लिए भी शनि ग्रह का शुभ होना ज़रूरी होता हैं | ज्योतिषी बनने के लिए इस शनि ग्रह का प्रभाव लग्न,अष्टम व दशम भाव या लग्नेश,अष्टमेश या दशमेश पर अवश्य देखा जाना चाहिए |
ज्योतिष के महान ग्रंथ बृहद पाराशर होरा शास्त्र के एक श्लोक मे ज्योतिषी की योग्यताओ के विषय मे कहा गया हैं की “एक ज्योतिषी को गणित मे निपुण होना चाहिए | उसे शब्द शास्त्र का पूर्ण ज्ञान होना चाहिए | उसे

न्यायविद,बुद्दिमान,जितेंद्रिय, देश,काल,पात्र का ज्ञाता और विवेकवान होना चाहिए | उसमे परस्पर विरोधी फल दृस्टी गोचर होने पर उनका सही विश्लेषण करने की क्षमता और अपनी बात को अच्छी तरह समझाने की योग्यता होनी चाहिए | जिस व्यक्ति को होरा स्कन्द का पूर्ण ज्ञान हो उसकी बातों पर अन्य जनो को संशय नहीं करना चाहिए” | यदि इन सभी बातों पर ध्यान से देखे तो यह सभी प्रभाव जातक विशेष पर उक्त तीन ग्रहो के द्वारा ही प्राप्त होते हैं |    
इस प्रकार यह स्पष्ट कहाँ जा सकता हैं की ज्योतिषी बनने के लिए उपयुक्त निम्न अवयवो का होना अनिवार्य हैं | आइए अब इन्ही अवयवो को विभिन्न कुंडलिओ मे परखते हैं |
1)प्रस्तुत कुंडली कुम्भ लग्न व वृश्चिक राशि की हैं लग्नेश शनि का प्रभाव लग्न,कर्म भाव व अष्टमेश(बुध) पर हैं गुरु का प्रभाव पंचम भाव व नवमेश दोनों पर हैं | अष्टम भाव राहू केतू अक्ष मे हैं  | इस प्रकार हमारे सभी अवयवो की पूर्ति इस कुंडली मे होती हैं यह कुंडली 10/8/1913 को मथुरा मे जन्मे प्रसिद्द ज्योतिषी “श्री भगवान दास मित्तल” की हैं |

2)वृषभ लग्न की इस पत्रिका मे कुम्भ राशि मे पंचमेश(बुध) व अष्टमेश(गुरु) कर्मभाव मे ही हैं नवमेश कर्मेश शनि का प्रभाव लग्नेश व अष्टम भाव दोनों पर हैं  वृश्चिक राशि के स्वामी मंगल का प्रभाव लग्न पर हैं वही गुरु का प्रभाव कर्मभाव व कर्मेश शनि पर भी हैं | इस प्रकार सभी अवयव लागू हो रहे हैं यह पत्रिका 12/2/1856 को जन्मे  विश्व विख्यात ज्योतिषी “श्री सूर्य नारायण राव जी” की हैं |
3)कुम्भ लग्न की इस पत्रिका मे लग्न पर लग्नेश शनि के अतिरिक्त कर्मेश मंगल,पंचमेश-अष्टमेश बुध व नवमेश शुक्र का प्रभाव हैं वृश्चिक राशि (कर्मभाव) मे स्वयं गुरु विराजित हैं अष्टम भाव राहू केतू अक्ष मे हैं यहाँ भी सभी अवयव लग रहे हैं | यह पत्रिका 8/8/1912 को जन्मे विश्व विख्यात ज्योतिषी “श्री बी॰वी॰रमन” की हैं जिन्होने भारत वर्ष मे ज्योतिष की स्थापना करने के लिए बहुत से कार्य किए जिनमे अग्रेज़ी मे ज्योतिष पत्रिका निकालना प्रमुख हैं |
4)सिंह लग्न की इस पत्रिका मे अष्टमेश गुरु की अष्टम व दशम भाव पर दृस्टी हैं | बुध पंचम भाव मे वाणी कारक होकर स्थित हैं,शनि की दशम भाव व लग्न पर दृस्टी हैं,अष्टम भाव मे मंगल भाग्येश होकर स्थित हैं यह पत्रिका “फ्यूचर पॉइंट” व ज्योतिष संस्थान “आइफास” के संस्थापक व कम्प्युटर ज्योतिष मे अग्रणी विश्व विख्यात ज्योतिषी “श्री अरुण बंसल जी” की हैं |

5)वृश्चिक लग्न मे 1/11/1866 को आयरलैंड मे जन्मे इस जातक की कुंडली मे अष्टमेश बुध लग्न मे ही हैं शनि व गुरु दोनों ग्रहो का प्रभाव नवम भाव व लग्नेश मंगल पर हैं पंचम भाव राहू केतू अक्ष पर हैं पंचमेश गुरु नवम को दृस्टी दे रहा हैं दशमेश सूर्य शनि के साथ द्वादश भाव मे हैं वही कुम्भ राशि पर नवमेश चन्द्र का प्रभाव हैं इन सभी प्रभावों के कारण जातक विश्व विख्यात ज्योतिषी व भविष्य वक्ता के रूप मे आज भी जाना जाता हैं यह पत्रिका “कीरो” की हैं |

6)वृषभ लग्न की यह पत्रिका 17/7/1909 को उदयपुर मे जन्मे प्रसिद्द ज्योतिषी “श्री हरदेव शास्त्री जी” की हैं   जिसमे अष्टमेश गुरु का प्रभाव दशमेश व दशम भाव(कुम्भ राशि) दोनों पर हैं,कर्मेश व दशमेश शनि की नवम भाव व पंचमेश बुध पर दृस्टी हैं जो वाणी भाव मे स्थित हैं वही वृश्चिक राशि मे केतू विराजित हैं |
7)6/12/1892 को बेलगाँव कर्नाटक मे जन्मे जातक की इस धनु लग्न की पत्रिका मे पंचमेश मंगल(वृश्चिक राशि) का अष्टमेश चन्द्र पर प्रभाव हैं वही नवमेश(सूर्य) कर्मेश(बुध) की दृस्टी अष्टम भाव मे हैं शनि दशम भाव मे ही हैं तथा गुरु कुम्भ राशि से भाग्य भाव को देख रहा हैं | इन सभी प्रभावों के कारण जातक ज्योतिष के क्षेत्र मे काफी अच्छा नाम रखते थे यह पत्रिका प्रसिद्द ज्योतिषी “श्री एच॰एन॰ काटवे जी” की हैं | इन्होने शनि की साढ़े साती का वैज्ञानिक स्वरूप का बहुत शोध कार्य किया हैं |

8)प्रस्तुत मिथुन लग्न की इस कुंडली मे अष्टमेश शनि नवम भाव(कुम्भ राशि) मे कर्मेश गुरु से पंचम भाव से द्रस्ट हैं गुरु की दृस्टी लग्न पर भी हैं, लग्नेश बुध दशम भाव मे अपनी नीच राशि मीन मे हैं शनि की दृस्टी वृश्चिक राशि पर हैं जिसका स्वामी मंगल कर्म भाव व लग्नेश दोनों पर प्रभाव डाल रहा हैं | यह पत्रिका 20/4/1935 को जोधपुर मे जन्मे ज्योतिष के प्रकांड विद्वान व लेखक श्री नारायण दत्त श्रीमाली जी की हैं जिन्होंने ज्योतिष की कई पुस्तकों का लेखन किया हैं |

9)कन्या लग्न की इस कुंडली मे अष्टमेश व वृश्चिक राशि स्वामी मंगल लग्न मे हैं जो अष्टम भाव मे स्थित चन्द्र पर दृस्टी डाल रहा हैं शनि पंचमेश होकर द्वादश भाव से कुम्भ राशि व नवम भाव पर दृस्टी दे रहा हैं लग्नेश दशमेश बुध व नवमेश शुक्र पंचम भाव मे गुरु संग स्थित हैं जिसका प्रभाव नवम भाव व लग्न पर हैं | यह पत्रिका 30/12/1949 को जोगिंदरनगर हिमाचल प्रदेश मे जन्मे प्रसिद्द ज्योतिषी श्री लेखराज शर्मा जी की हैं  जिन्हे हाथ देखकर कुंडली निर्माण करने मे महारत हासिल हैं |

10)मकर लग्न की यह कुंडली प्रसिद्द ज्योतिषी श्रीमती सुमन शर्मा जी की हैं इनकी पत्रिका मे लग्नेश शनि का लग्न व अष्टम भाव पर प्रभाव हैं,गुरु दशम भाव मे ही हैं बुध नवमेश होकर ऊंच अवस्था मे पंचमेश शुक्र संग नवम भाव मे ही हैं वृश्चिक राशि मे शनि लग्नेश व कुम्भ राशि स्वामी होकर स्थित हैं | इन सभी कारणो से 1/10/1958 मे इलाहाबाद मे जन्मी श्रीमति सुमन शर्मा ज्योतिष क्षेत्र मे काफी सराहनीय काम कर रही हैं |

11)24/8/1957 को हीराकुंड उड़ीसा मे जन्मी इस जातिका की पत्रिका मे लग्नेश कर्मेश बुध नवमेश शुक्र संग लग्न मे ऊंच अवस्था मे हैं लग्न मे ही गुरु स्थित हैं | अस्टमेश मंगल का पंचमेश शनि पर दृस्टी प्रभाव हैं जिसकी वृश्चिक राशि से नवम भाव व अष्टमेश मंगल पर दृस्टी हैं वही कुम्भ राशि पर मंगल की दृस्टी हैं यह पत्रिका श्रीमती प्रोमिला गुप्ता जी की हैं जो ज्योतिष क्षेत्र मे एक जाना माना नाम हैं |
12)धनु लग्न की इस पत्रिका मे कर्मेश बुध नवमेश सूर्य संग लग्न मे ही हैं | पंचमेश मंगल व लग्नेश गुरु  की अष्टम भाव मे दृस्टी हैं कर्म भाव पर भी गुरु की दृस्टी हैं कुम्भ राशि पर अष्टमेश चन्द्र का प्रभाव हैं तथा वृश्चिक राशि स्वामी मंगल लग्न मे है हैं इन्ही सब कारणो से 27/12/1961 को दिल्ली मे जन्मी श्रीमती मीना गोदियाल जी ज्योतिष क्षेत्र मे अपना नाम कर रही हैं |

इनके अतिरिक्त हमने लगभग 200 अन्य ज्योतिष के क्षेत्र मे जाने माने ज्योतिषियो की कुंडली का अवलोकन किया जिनमे से कुछ कुण्डलिया इस प्रकार से हैं |
18/8/1944 21:35 कानपुर(उत्तर-प्रदेश),8/2/1971 3:20 देहरादून(उत्तरांचल),4/9/1977 17:45 फाजिल्का(पंजाब),27/11/1956 19:46(अमृतसर),31/7/1968 12:20 मोगा(पंजाब),5/10/1972 1:10 जयपुर,7/8/1951 4:35 दिल्ली,20/3/1946 8:00 टोंक(राजस्थान),11/3/1956 17:25 फ़तेहपुर(पंजाब),6/2/1952 16:20 रोहतक,26/9/1957 20:05 सुनाम(पंजाब),5/5/1955 8:18 दिल्ली        

निष्कर्ष – हमने यह पाया की जब भी शनि,बुध,गुरु व अष्टमेश शुभ व बली अवस्था मे होते हैं व्यक्ति का रुझान ज्योतिष विद्या की और होता हैं साथ ही जब शनि व गुरु ग्रह का प्रभाव लग्न,अष्टम,नवम या दशम भाव मे होता हैं तो व्यक्ति विशेष ज्योतिष ज्ञान की अच्छी समझ रखता हैं व ऊंच कोटी का ज्योतिषी होता हैं यह बात अलग है की वह इस विद्या से धनार्जन करता हो या न करता हो | हमने यह भी पाया की जब आत्मकारक ग्रह (अंशो मे सबसे ज़्यादा) का प्रभाव अष्टम भाव पर होता हैं तब व्यक्ति का रुझान ज्योतिष जैसी गुढ एवं गुप्त विद्या की और अवश्य होता हैं एक अन्य रोचक तथ्य यह भी ज्ञात हुआ की महिला ज्योतिषियो मे शुक्र ग्रह पीड़ित पाया जाता हैं |

डॉ॰किशोर घिल्डियाल(ज्योतिषाचार्य)
92 डी पौकेट डी वन
मयूर विहार फेस 3
दिल्ली 110096

फोन -9818564685

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