सर्वप्रथम १९३९ में लाल किताब के सिद्धांतों को उन्होंने एक पुस्तक के रूप में प्रकाशित किया, जिसमें लेखक एवं प्रकाशक के स्थान पर पं. गिरधारी लाल शर्मा का नाम छपा था। पं. रूपचंद्र जोशी सेना में काम करते थे, इसलिए उर्दू में किताब लिखने से उन्हें अंग्रेज सरकार से उत्पीड़न की आशंका थी। उन्होंने अपने किसी रिश्तेदार के नाम से इस पुस्तक का प्रकाशन कराया। पं. रूपचंद्र जोशी ने लाल किताब कैसे लिखी? इस बारे में कहा जाता है कि सेना में नौकरी के दौरान जब वे हिमाचल प्रदेश में तैनात थे, तो उनकी मुलाकात एक ऐसे सैनिक से हुई जिसके खानदान में पीढ़ी दर पीढ़ी ज्योतिष का कार्य होता था। उसने एक अंग्रेजी अफसर को अपने पुश्तैनी ग्रंथ के आधार पर कुछ महत्वपूर्ण घटनाएं बतायीं। इनसे प्रभावित होकर अंग्रेज अफसर ने उस जवान से उसके द्वारा बताई गई बातों के सिद्धांतों वाली पुस्तक लाने को कहा तथा उस जवान से उस पुस्तक के सिद्धांतों को नोट करवा लिया। जब यह रजिस्टर अंग्रेज अफसर को मिला तो रूपचंद्रजी को उसे पढ़ने के लिए बुलवाया गया। उन्होंने उन सिद्धांतों को पढ़कर पृथक-पृथक रजिस्टरों में नकल कर लिया। बाद में रूपचंद्र जोशी ने इस पुस्तक के सिद्धांत एवं रहस्य को पूर्ण रूप से समझकर प्रथम बार १९३९ ई. में एक पुस्तक के रूप में प्रकाशित किया। अमृतसर' के कलकत्ता फोटो हाउस द्वारा प्रकाशित लाल किताब के प्रकाशक के स्थान पर शर्मा गिरधारी लाल लिखा था, यही नाम लेखक के लिये प्रयुक्त किया गया था।
दूसरी किंवदंती के अनुसार सदियों पहले भारत से अरब देश गए, एक महान ज्योतिर्विद ने वहां की संस्कृति और परिवेश के अनुरूप इसकी रचना की थी जबकि सच्चाई के लिये विविध मत् प्रचलित है। फिर भी 'लाल किताब' में गुह्य व गहन-टोटका -ज्योतिष एवं उपचार विधि-विधान की अतिन्द्रिय शक्ति छिपी हुई है, जो जातक या मानव मन की गहराई में झांककर विभिन्न गोपनीय रहस्यों को भविष्य कथन के रूप में प्रकट करती है। अतः भविष्य के गर्भ में छिपे रहस्यों को इस विधा द्वारा सहजता से जाना जा सकता है।
3 टिप्पणियां:
सुदर
लाल किताब विषयक जानकारी के लिए आभार.
आप का धन्यवाद
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