आयुर्वेद में रुद्राक्ष को महा औषधि की संज्ञा दी गई है। इसके विभिन्न औषधीय गुणों के कारण रोगोपचार हेतु इसका उपयोग आदिकाल से ही होता आया है। जानकारी के अभाव में आम जन उसके इस लाभ से वंचित रह जाते हैं। पाठकों के लाभार्थ, किस रोग के उपचार में कौन-सा रुद्राक्ष उपयोगी होता है इसका एक विशद विश्लेषण यहां प्रस्तुत है।
वात, पित्त और कफ जन्य रोगों के
शमन हेतु
रुद्राक्ष के विषय में कहा गया है कि यह उष्ण और अम्लीय होता है। अपने इस गुण के कारण यह त्रिदोष जन्य रोगों का शमन करता है। अम्ल और विटामिन सी युक्त होने के कारण यह रक्त-शोधक तथा रक्त-विकार नाशक है। उष्ण होने के कारण यह सर्दी और कफ के असंतुलन से होने वाले सभी रोगों को दूर करने में उपयोगी है।
रक्तचाप को सामान्य रखने और हृदय
रोग से मुक्ति हेतु
रुद्राक्ष की माला धारण करने से उच्च रक्तचाप सामान्य होता है और हृदय रोगों से मुक्ति मिलती है। माला इस तरह धारण करें कि यह वक्षस्थल को स्पर्श करती रहे।
रुद्राक्ष और स्वर्ण भस्म बराबर मात्रा में १-१ रत्ती सुबह और शाम नियमित रूप से मलाई के साथ सेवन करें, रक्तचाप सामान्य हो जाएगा।
रुद्राक्ष घिसकर आधा चम्मच प्याज के रस तथा शहद मिलाकर खाएं और फिर लौकी का रस पीएं। यह क्रिया नियमित रूप से करें, हृदयाघात से रक्षा होगी।
चेचक जन्य पीड़ा से मुक्ति हेतु
रुद्राक्ष और काली मिर्च समान भार में लेकर दोनों को पीस लें और मिश्रण का कपड़-छान कर चेचक के रोगी को बासी पानी के साथ पिलाएं। ऐसा तीन दिनों तक करें, रोगी को जलन और बेचैनी से मुक्ति मिलेगी।
कच्चे नारियल के तेल में रुद्राक्ष का एक दाना तीन घंटे तक रखें। फिर दाने को चम्मच या किसी अन्य उपकरण से निकाल लें। ध्यान रहे, हाथ से कदापि न निकालें। फिर उस तेल से रोगी की मालिश करें, चेचक के दाग भर जाएंगे और चेहरे पर कांति आ जाएगी। यह प्रयोग एक से डेढ़ मास तक नियमित रूप से करें।
स्मरण शक्ति की कमी, खांसी और
दमा रोग से मुक्ति के लिए
रुद्राक्ष को दूध में उबालकर पीने से स्मरण शक्ति तीव्र होती है।
दस मुखी रुद्राक्ष को गाय के ताजे दूध के साथ घिसकर दिन में तीन बार उसका सेवन करें। यह क्रिया नियमित रूप से करते रहें, कुछ ही दिनों में पुरानी से पुरानी खांसी से मुक्ति मिलेगी।
पांच मुखी रुद्राक्ष के कुछ दानें फोड़कर उबाल लें और उस पानी का सेवन करें। ऐसा नियमित रूप से करें, दमे व श्वास रोग से राहत मिलेगी।
रुद्राक्ष को घिसकर शहद के साथ दिन में ३ बार लें, खांसी से मुक्ति मिलेगी।
एक भाग छह मुखी रुद्राक्ष और चार भाग सितोपलादि का चूर्ण मिलाकर शहद के साथ नियमित रूप से लें, श्वास रोग से बचाव होगा।
कोलेस्टेरॉल के स्तर को सामान्य
करने के लिए
एक कप दूध उबालकर उसमें एक रुद्राक्ष तथा लहसुन की फांक रखें। कुछ देर छोड़ दें और फिर रुद्राक्ष को निकाल कर दूध का सेवन करें और लहसुन की फांक खा लें। ऐसा तीन महीने तक नियमित रूप से करते रहें, कोलेस्टेरॉल का स्तर सामान्य हो जाएगा।
मानसिक शांति हेतु
गाय के दूध में ४ रुद्राक्ष उबालकर दूध का सेवन करें, मानसिक रोग से मुक्ति मिलेगी और मन शांत रहेगा। यह क्रिया तीन माह तक करें।
बवासीर एवं गुर्दे के रोग से बचाव
के लिए
एक रुद्राक्ष और उसके चार गुने भार के बराबर अपामार्ग के बीज सवा लीटर पानी में खौलाएं। जब पानी का लगभग दसवां भाग रह जाए, तो उसमें गाय का दो गुना घी मिला दें। फिर इसकी १२ से १५ बूंदों की मात्रा का प्रतिदिन सेवन करें, बवासीर और गुर्दे की बीमारी से राहत मिलेगी।
प्रदर रोग से मुक्ति हेतु
प्रदर रोग से ग्रस्त स्त्रियां एक भाग रुद्राक्ष, दो भाग चौलाई की जड़ और दो भाग रसौत का चूर्ण बनाकर चार गुने पानी में मिलाएं और उसे मिट्टी के पात्र में रात भर रखें। सुबह उसे छान लें और चावल के धोवन के साथ दस ग्राम की मात्रा में सेवन करें, प्रदर रोग से मुक्ति मिलेगी।
रुद्राक्ष धारण से लाभ
शिखा में अथवा मस्तक पर रुद्राक्ष धारण करें, सिर-दर्द, आंखों के धुंधलेपन, नजला-जुकाम, दिमाग की कमजोरी, स्मरण शक्ति में कमी आदि से रक्षा होगी।
कंठ में रुद्राक्ष धारण करें, टॉन्सिल अपनी सामान्य स्थिति में रहेगा, स्वर का भारीपन दूर होगा तथा हकलाहट कम होगी।
वात रोग के प्रकोप से मुक्ति हेतु दायीं भुजा तथा स्नायविक विकारों से मुक्ति हेतु बायीं भुजा पर रुद्राक्ष धारण करें। दोनों भुजाओं पर रुद्राक्ष धारण करने से ऊपर वर्णित रोगों से मुक्ति के साथ-साथ पक्षाघात से भी बचाव होता है।
कमर में रुद्राक्ष धारण करने से कमर दर्द, रीढ़ की हड्डी के रोग, पेट की बीमारी आदि से मुक्ति मिलती है। महिलाओं के लिए कमर में रुद्राक्ष धारण करना अत्यधिक लाभप्रद होता है। इससे उनका प्रदर रोग तथा अनियमित रजोधर्म से बचाव होता है। साथ ही, प्रसव भी सरलता से होता है। ध्यान रहे, रुद्राक्ष कमर में नाभि के ऊपर ही धारण करें।
ग्रह जन्य रोगों से मुक्ति तथा बचाव
में रुद्राक्ष का उपयोग
ब्रह्मांड में फैले ग्रह विभिन्न रोगों के कारक हैं। विभिन्न मुखों वाले रुद्राक्ष विभिन्न ग्रहों का प्रतिनिधित्व करते हैं। यहां किस ग्रह के कारण उत्पन्न रोग से मुक्ति हेतु कौन सा रुद्राक्ष धारण करना चाहिए, इसका एक संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत है।
सूर्य मस्तिष्क ज्वर, शरीर में जलन, पित्त रोग, हृदय रोग, नेत्र-पीड़ा, हड्डी के रोग आदि का कारक है। इन रोगों से मुक्ति हेतु एक और बारह मुखी रुद्राक्ष धारण करें।
मिर्गी, अपस्मार, नींद की कमी या नींद न आना, कफ, सर्दी, जुकाम, नजला, छाती में बलगम जमना, अतिसार, संग्रहणी, स्त्रियों के रजोधर्म में अनियमितता, निमोनिया, सर्दी के कारण बुखार आदि चंद्र के कारण होते हैं। इनसे मुक्ति के लिए दो मुखी रुद्राक्ष धारण करें।
मंगल ग्रह जनित रोगों जैसे उच्च रक्तचाप, रक्ताल्पता अथवा रक्त विकार, मज्जा के रोग, गुल्म रोग आदि से बचाव हेतु तीन मुखी रुद्राक्ष धारण करें।
बुध मस्तिष्क की बीमारियों, स्नायु रोग, स्मरण शक्ति की कमी, नाड़ियों से संबंधित रोग, सांस की नली, गले एवं फेफडे+ के रोग, नर्वस बे्रक-डाउन, चर्म रोग आदि का कारक है। इन रोगों से बचाव हेतु चार मुखी रुद्राक्ष धारण करें।
जंघा एवं लीवर की बीमारियां, शरीर में चर्बी एवं कोषिकाओं की वृद्धि से उत्पन्न रोग, अंतड़ियों का ज्वर, पीलिया, गुर्दे की बीमारी आदि गुरु के कारण होते हैं। इनसे बचाव हेतु पांच मुखी रुद्राक्ष धारण करें।
शुक्र ग्रह मूत्र रोग, प्रमेह, मधुमेह, जननेंद्रिय रोग, शरीर के सूखने, गुर्दे के रोग, आंखों की ज्योति की कमी आदि का कारक है। इन रोगों के शमनार्थ तीन तथा तेरह मुखी रुद्राक्ष धारण करें।
शनि के कारण उत्पन्न रोगों जैसे वायु विकार, जोडो+ं के दर्द, पक्षाघात, हड्डियों की कमजोरी, टांगों के दर्द, लड़खड़ाहट, निम्न रक्तचाप आदि से मुक्ति हेतु सात और चौदह मुखी रुद्राक्ष धारण करें।
विषादि जन्य रोग, कोढ़ आदि राहु के कारण उत्पन्न रोगों से मुक्ति हेतु आठ मुखी रुद्राक्ष धारण करें।
केतु गुप्त रोगों का कारक है। इन रोगों से मुक्ति तथा बचाव के लिए नौ मुखी रुद्राक्ष धारण करें।
रुद्राक्ष-जल चिकित्सा
स्वच्छ जल में रुद्राक्ष डुबाकर उस जल का सेवन करने से भी कुछ बीमारियां दूर होती हैं। किंतु रुद्राक्ष को जल में ज्यादा से ज्यादा तीन दिनों तक रखना चाहिए। आवश्यकता पड़ने पर पुनः नया रुद्राक्ष-जल तैयार कर लेना चाहिए। यहां कुछ रोगों से बचाव हेतु रुद्राक्ष-जल के उपयोग की विधि का विवरण प्रस्तुत है।
रात को सोने से पहले रुद्राक्ष के कुछ दानें स्वच्छ जल में डाल दें। प्रातः काल खाली पेट उस जल का सेवन करें, कब्ज तथा अन्य विभिन्न रोगों से मुक्ति मिलेगी।
अकारण ही बेचैनी या घबराहट महसूस होती हो, या मितली आती हो, तो रुद्राक्ष-जल के दो-तीन चम्मच थोड़ी-थोड़ी देर पर पीएं, आराम मिलेगा।
आंखों में जलन, धुंधलापन आदि से बचाव के लिए रुद्राक्ष-जल के छींटे मारें और फिर उन्हें पोंछकर कुछ पलों के लिए बंद कर लें। यह क्रिया नियमित रूप से करते रहें, लाभ होगा।
आंखों में दर्द या पीड़ा हो, अथवा किसी कारणवश सूजन आ गई हो, तो पांच मुखी रुद्राक्ष को घिसकर काजल की तरह लगाएं, आश्चर्यजनक लाभ मिलेगा।
नाक के दोनों छिद्रों से रुद्राक्ष-जल खींचें, सर्दी, जुकाम और नजले से राहत मिलेगी।
कान पक गया हो, मवाद आता हो, कम सुनाई पड़ता हो, तो रुद्राक्ष-जल की कुछ बूंदें कान में डालें, लाभ मिलेगा।
सरसों के तेल में पांच मुखी रुद्राक्ष उबालकर उसे ठंडा होने के लिए कुछ देर छोड़ दें। फिर उसकी एक से दो बूंदें कान में डालें, दर्द दूर होगा।
घाव, पके फोडे+-फुंसियों आदि को रुद्राक्ष-जल से धोएं, राहत मिलेगी।
पांच मुखी रुद्राक्ष की भस्म को गोमूत्र अथवा गोबर और गंगाजल में मिलाकर चर्म रोग से ग्रस्त स्थान पर लगाएं, लाभ होगा।
जिह्वा के चटक जाने, स्वर में भारीपन आ जाने अथवा गले में किसी प्रकार का रोग हो जाने पर रुद्राक्ष-जल के गरारे करें, आराम मिलेगा।
रुद्राक्ष-भस्म, लेप तथा चूर्ण चिकित्सा
ब्राह्मण जाति के नौ मुखी रुद्राक्ष की भस्म बना लें और तुलसी के पत्तों के रस के साथ उसका लेप बनाकर कुष्ठग्रस्त अंग पर लगाएं। लेप नियमित रूप से लगाते रहें, कुछ ही सप्ताहों में आराम मिलेगा।
रुद्राक्ष को नीम की पत्तियों के साथ घिसकर खुजलीग्रस्त अंग पर उसका लेप करें। यह क्रिया नियमित रूप से करते रहें, खुजली से मुक्ति मिलेगी।
रुद्राक्ष को जल के साथ चंदन की तरह घिस लें। फिर इस लेप को फोडे+-फुंसियों पर लगाएं, लाभ होगा। यह लेप रक्त-दोष या एलर्जी के चकत्तों को भी दूर करता है।
रुद्राक्ष और बावची का एक-एक भाग हरताल और गोमूत्र के साथ पीसकर सफेद कुष्ठ से ग्रस्त स्थान पर उसका नियमित रूप से लेप करें, लाभ होगा।
रुद्राक्ष और बावची को समभाग में नीम के पत्तों के साथ पीसकर लेप लगाने से खुजली तथा अन्य चर्म रोग दूर होते हैं।
रुद्राक्ष, हल्दी और हरी दूब को समान भाग में छाछ के साथ पीसकर लेप बनाएं और दाद, खाज, खुजली पर लगाएं, लाभ होगा।
रुद्राक्ष, आंवले, यवक्षार और राल का समान मात्रा में कंजी के साथ लेप बनाकर सेहुंआ के सफेद दागों पर लगाएं, कुछ ही दिनों में दाग दूर होने लगेंगे।
चोट या मोच आ गई हो, या किसी अन्य कारण से शरीर के किसी भाग में सूजन आ गई हो, तो रुद्राक्ष, साठी, सोंठ, देवदारु, सहजन और सफेद सरसों समान मात्रा में लेकर कंजी के साथ पीसकर उसका प्रभावित भाग पर लेप करें, राहत मिलेगी।
किसी जहरीले जानवर के काट लेने पर रुद्राक्ष को घिसकर कटे हुए भाग पर लगाएं, विष का प्रभाव दूर हो जाएगा।
विषैले बरसाती कीड़े, बिच्छू, ततैया आदि के काट लेने पर उसका विष बड़ी+ पीड़ा देता है। ऐसी स्थिति में रुद्राक्ष, कलिहारी, मूली के बीज, अतीस, कडुवी, तुंबी तथा तोरई के बीज समान मात्रा में लेकर कंजी के साथ पीसकर उसका लेप प्रभावित भाग पर लगाएं, विष का प्रभाव तुरत दूर हो जाएगा।
आग से जलने पर रुद्राक्ष और चंदन को पीसकर जले हुए स्थान पर लेप करें, शीतलता मिलेगी और घाव शीघ्र भर जाएगा।
रुद्राक्ष, गेरु, गिलोय, लाल चंदन तथा वंशलोचन का समान मात्रा में चूर्ण बनाकर उसमें गोघृत मिलाकर लेप बना लें। फिर यह लेप नियमित रूप से शरीर पर लगाते रहें, घाव शीघ्र भर जाएंगे और चेहरे पर पडे+ दाग, मुहांसे आदि मिट जाएंगे।
रुद्राक्ष के चूर्ण और मोती तथा मूंगे की भस्म का समान रूप से मिश्रण तैयार कर २ ग्राम की मात्रा का नियमित रूप से सेवन करें, स्नायु की गड़बड़ी से मुक्ति मिलेगी।
रुद्राक्ष के चूर्ण को तुलसी की डंडी के चूर्ण में मिलाकर शहद के साथ नियमित रूप से सुबह खाली पेट सेवन करें, खांसी दूर होगी।
दो ग्राम रुद्राक्ष के चूर्ण को शहद में मिलाकर दो महीने तक भोजन के बाद नियमित रूप से सेवन करें, शरीर की ऊर्जा बनी रहेगी।
मिर्गी और अपस्मार की प्रारंभिक स्थिति में 1 ग्राम रुद्राक्ष के चूर्ण को २ ग्राम सरस्वती के साथ मिलाकर १०-१५ दिनों तक दिन में २ बार सेवन करें, लाभ होगा। इस दौरान मछली, मांस, अंडे, अचार, अमचूर आदि न खाएं।
छह मुखी रुद्राक्ष को जल के साथ घिसकर उसका लेप माथे पर नियमित रूप से लगाएं, मूर्च्छा नहीं आएगी।
रुद्राक्ष चूर्ण की पिट्ठी में नींबू का रस और चंदन का चूर्ण मिलाकर चेहरे पर कुछ दिनों तक नियमित रूप से लेप करें, काले धब्बे दूर हो जाएंगे।
२ ग्राम शुद्ध रुद्राक्ष का चूर्ण और आधा ग्राम मूंगे की भस्म को शहद के साथ मिलाकर जीभ पर लेप करें। यह क्रिया २१ दिनों तक नियमित रूप से करते रहें, जीभ की लड़खड़ाहट, तुतलाहट, हकलाहट, जलन आदि से मुक्ति मिलेगी। ध्यान रहे, यह लेप करने के बाद तीस मिनट तक कुछ भी ग्रहण नहीं करें।
रुद्राक्ष के १०-१५ दानों को तिल के २०० मिली ग्राम तेल में आधे घंटे तक उबालें। फिर नीचे उतारकर ठंडा कर लें और छान लें। अब निमोनियाग्रस्त व्यक्ति की छाती पर इस तेल की मालिश करें, उसे राहत मिलेगी। इसकी मालिश से छाती के दर्द से भी बचाव होता है।
घुटनों तथा शरीर के किसी अन्य जोड़ पर सूजन आ गई हो, तो रुद्राक्ष और सीताफल के पत्तों के चूर्ण समान रूप से मिलाकर सरसों के तेल के साथ मालिष करें, सूजन कम होगी।
स्वर्णमाक्षिक और दो मुखी रुद्राक्ष की भस्मों को बराबर की मात्रा में मिला लें और दूध, दही या मलाई के साथ 1 रत्ती सुबह और 1 रत्ती षाम नियमित रूप से लें, रक्तचाप सामान्य रहेगा।
एक ग्राम रुद्राक्ष तथा एक ग्राम स्वर्ण भस्मों को मिलाकर २१ दिनों तक दिन में दो बार नियमित रूप से गाय के दूध के मट्ठे या मक्खन के साथ सेवन करें, अनिद्रा दूर होगी। इस दौरान उष्ण पदार्थों से परहेज करें। शीघ्र लाभ हेतु दवा के सेवन के साथ-साथ रोज शाम को टहलें।
सुंदरता में निखार की कमी को दूर
करने हेतु
रुद्राक्ष, दालचीनी, लाल चंदन, कुल्थी और कूठ समान भाग में लेकर पानी मिलाकर उबटन बनाएं तथा उसका शरीर पर लेप करें। लेप सूखने के पष्चात स्वच्छ जल से इसे धो दें या स्नान करें। साबुन, षैंपू आदि का प्रयोग नहीं करें। ऐसा नियमित रूप से करते रहें, कुछ ही दिनों में शरीर से दुर्गंधयुक्त पसीने का निकलना बंद हो जाएगा और सौंदर्य में निखार आएगा।
रुद्राक्ष से चार गुना बादाम की गिरी और मसूर की दाल इतने ही गुलाब जल के साथ पीसकर चेहरे पर लेप करें और लेप के सूख जाने पर धो डालें। यह क्रिया नियमित रूप से करते रहें, चेहरा कांतिमय और आभायुक्त हो जाएगा।
रुद्राक्ष, काली मिर्च और वंषलोचन समान मात्रा में लेकर लेप बना लें और उसका नियमित रूप से चेहरे पर लेप करें, कुछ ही दिनों में कील-मुहांसे मिट जाएंगे।
गुलाब जल में आठ मुखी रुद्राक्ष व बादाम की गिरी का चूर्ण मिलाकर चेहरे पर लगाएं और एक घंटे बाद धोएं। यह क्रिया नियमित रूप से करते रहें, सुंदरता में वृद्धि होगी।
गुप्त रोगों से मुक्ति हेतु
रुद्राक्ष की मात्रा का दोगुना हर्रे, रसौत और सिरस की छाल चार गुना की मात्रा में लेकर कूट-पीसकर चूर्ण बनाएं और कपडे+ से छान कर शहद मिलाकर घावों पर लगाएं। यह लेप नियमित रूप से करते रहें, उपदंष शीघ्र दूर होगा।
तीन मुखी रुद्राक्ष को पत्थर पर घिसकर नाभि पर लगाने से धातु रोग से बचाव होता है ।
१४ मुखी रुद्राक्ष का जल के साथ लेप बनाकर प्रतिदिन रात्रि को मस्तक पर लगाएं, कामशक्ति का विकास होगा।
अन्य बीमारियों से मुक्ति हेतु रुद्राक्ष
का उपयोग
रुद्राक्ष को प्याज के रस के साथ घिसकर सिर के गंजे भाग पर लगाएं, गंजापन दूर होगा।
दस ग्राम दूब के रस के साथ एक ग्राम रुद्राक्ष की भस्म सुबह-शाम नियमित रूप से लें, बवासीर से राहत मिलेगी।
रुद्राक्ष को नीम की छाल के साथ घिसकर शरीर के कुष्ठग्रस्त भाग पर लेप करें, कुष्ठ का बढ़ना रुक जाएगा।
रुद्राक्ष के दाने को बकरी के दूध में घिसकर सेवन करें तथा शरीर के प्रभावित भाग की सिकाई करें। यह क्रिया नियमित रूप से करें, गठिये का दर्द कम होगा।
तुलसी के रस के साथ रुद्राक्ष की भस्म दो माह तक नियमित रूप से लें, शरीर में शर्करा की मात्रा सामान्य हो जाएगी और मधुमेह से मुक्ति मिलेगी।
चार मुखी रुद्राक्ष को उबालकर उस जल सेवन करें। यह क्रिया नियमित रूप से करें, पेशाब की जलन से मुक्ति मिलेगी।
चौदह मुखी रुद्राक्ष को घिसकर सफेद चंदन के साथ माथे पर लगाएं, अवसाद से मुक्ति मिलेगी।
रुद्राक्ष के कुछ दानों को पानी से भरे तांबे के लोटे में रात भर छोड़ दें। सुबह उस जल का सेवन करें। यह क्रिया नियमित रूप से करें, थाइरॉइड से रक्षा होगी। शीघ्र लाभ हेतु रुद्राक्ष के १२ दानों की माला गले पर बांधें।
रुद्राक्ष चूर्ण २ ग्राम, सौंफ ४ ग्राम तथा मिश्री ८ ग्राम पानी से भरे तांबे के लोटे में भिगोकर पानी में ही मसल लें और उसका सेवन करें, एसिडिटी दूर होगी।
रुद्राक्ष की भस्म 1 ग्राम, वंश लोचन 1 ग्राम और भृंग श्रृंग की भस्म 1 ग्राम शहद में मिलाकर ६ माह तक सेवन करें, तपेदिक से मुक्ति मिलेगी।
बार-बार हिचकी आती हो, तो एक-एक ग्राम रुद्राक्ष व मोर पंख की भस्म शहद के साथ सेवन करें।
एक भाग रुद्राक्ष तथा चार भाग शुद्ध घी में भुने आंवले के चूर्ण को कांजी के साथ पीसकर नियमित रूप से मस्तक पर लेप करें, नकसीर से छुटकारा मिलेगा।
शूद्र वर्ण का रुद्राक्ष स्त्री की कमर में बांध दें, गर्भ की रक्षा होगी।
पांच मुखी रुद्राक्ष को तुलसी के रस में घिसकर उसमें नींबू का रस मिलाकर चेहरे पर क्रीम की तरह लगाएं। लेप नियमित रूप से करें, कुछ ही दिनों में त्वचा में निखार आएगा और दाग-धब्बे मिट जाएंगे।
एक भाग रुद्राक्ष और चार भाग तिल के फूलों का चूर्ण बनाकर छान लें। फिर शहद के साथ मिलाकर बालों की जड़ों में लगाएं और एक घंटे बाद धो लें। यह क्रिया नियमित रूप से करते रहें, बाल शीघ्र ही बढ़ने लगेंगे।
रुद्राक्ष के काढ़े से रोग निवारण
रुद्राक्ष का काढ़ा भी बनता है जो अनेक रोगों का शमन करता है। यह शरीर को स्वस्थ रखता है और खून साफ करता है। इसके सेवन से चुस्ती और फुर्ती बनी रहती है। रुद्राक्ष का काढ़ा बनाने की विधि और उसके सेवन का विवरण यहां प्रस्तुत है।
रुद्राक्ष, किशमिश, हर्रे और अडू+से की जड़ की छाल समान मात्रा में लेकर बत्तीस गुना जल में मिलाकर खौलाएं और १/८ अंश रह जाने पर उतार लें। फिर २ से ३ ग्राम की मात्रा में शहद मिलाकर प्रातः काल नियमित रूप से सेवन करें, सांस की बीमारी, खांसी और पित्त जन्य रोग दूर होंगे।
रुद्राक्ष, शुष्ठी, कुटकी, गिलोय, दारुहल्दी, पुनर्नवा और नीम की छाल को समान मात्रा में लेकर पीस लें और ऊपर वर्णित विधि के अनुसार जल में मिलाकर काढ़ा बनाएं। फिर उतारकर थोड़ी देर के लिए छोड़ दें। जब थोड़ा गुनगुना रह जाए, तो उसका सेवन करें। यह क्रिया नियमित रूप से करते रहें, श्वास, पीलिया, पेट तथा पसलियों के दर्द से मुक्ति मिलेगी। यह काढ़ा शोथ को भी दूर करता है।
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It is a good article, very informative
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