शनिवार, 5 नवंबर 2016

विशोन्तरी दशा और ग्रह

विशोन्तरी दशा और ग्रह

हम हिन्दुओ के पवित्र ग्रंथ गीता मे भगवान श्री कृष्ण कहते हैं की इस भौतिक जगत मे प्रत्येक प्राणी अपनी बालावस्था से जवान होते हुये बुढ़ापे को प्राप्त करता हैं तथा इन तीनों अवस्थाओ मे वह निरंतर ज्ञान अर्जन कर अपना जीवन यापन करता रहता हैं | ज्योतिषीय परिपेक्ष मे इन तीनों अवस्थाओ का यदि ग्रहो से निर्धारण करे तो यह हमे क्रमश: बुध, मंगल व शनि ग्रह से संबन्धित अवस्थाए प्राप्त होती हैं | इन ग्रहो को विशोन्तरी दशा मे सूर्य का सबसे तेज भ्रमण करने वाले ग्रह बुध से तथा सबसे धीमे भ्रमण करने वाले ग्रह शनि से एक प्रकार का संबंध बना हुआ दिखाई देता हैं चूंकि हमारे मानव शरीर मे आत्मा भी तेज चलने वाले पिंड से धीमे चलने वाले पिंड की और जाती हैं इसी कारहमारे शास्त्रो मे दिया जाने वाला ग्रहो का दशा क्रम भी हमारे विद्वानो द्वारा इससे काफी समानता रखता दर्शाया गया हैं |

सूर्य से देखे तो दूरी के अनुसार बुध,शुक्र,पृथ्वी,मंगल,गुरु तथा शनि ग्रह का क्रम आता हैं चूंकि हम स्वयं पृथ्वी से यह क्रम देख रहे होते हैं और पृथ्वी का अपना एक उपग्रह चन्द्र भी हमारे चारो और भ्रमण कर रहा होता हैं इसलिए उसे भी इस ग्रह प्रणाली मे शामिल कर लिया गया | जहां चन्द्र हमारी पृथ्वी के अक्ष को काटता हैं उन दो बिन्दुओ को राहू व केतू की संज्ञा दी गयी हैं आंतरिक ग्रहो की तरफ होने वाले कटान को केतू व बाहरी ग्रहो की तरफ होने वाले कटान को राहू की संज्ञा दी गयी हैं |


इन सभी को क्रमानुसार रखने पर व पृथ्वी से देखने पर आंतरिक ग्रहो (सूर्य,चन्द्र,बुध,शुक्र व केतू ) की दशा अवधि 60 वर्ष बन जाती हैं ठीक इसी प्रकार बाहरी ग्रहो की दशा अवधि भी 60 वर्ष बन जाती हैं जिससे कुल दशा अवधि 120 वर्ष की हो जाती हैं | जिसे हमारे विद्वानो ने विशोन्तरी दशा क्रम का नाम दिया हैं जिसके अनुसार प्रत्येक व्यक्ति के जीवन मे ग्रहो से संबन्धित दशा चलती रहती हैं और फल प्राप्ति होती हैं  

कोई टिप्पणी नहीं: