रविवार, 5 जुलाई 2015

पति कारक



पति कारक

ज्योतिष शास्त्र मे कुछ महत्वपूर्ण व आधारभूत सिद्धांतों पर हमेशा से एक से अधिक मत रहे हैं कहीं कहीं तो एक ही सिद्धांत को अलग अलग तरीके से लिखा गया हैं | ऐसा ही एक सिद्धांत हैं जिसमे स्त्रीजातक हेतु पति के कारक के विषय मे कहा गया हैं जिसमे सबसे महत्वपूर्ण जानकारी हिन्दू ज्योतिष के बृहद पाराशर होरा शास्त्र के 32वे अध्याय के 20वे श्लोक मे पाराशर जी ने लिखा हैं की “शुक्रात पति” स्त्री की पत्रिका मे शुक्र पति हैं अर्थात यह कहा जा सकता हैं की स्त्री की कुंडली मे पति या पति से संबंध शुक्र द्वारा देखा जाना चाहिए जिसे लग्न व नवांश द्वारा भी जाँचना चाहिए | इसके विपरीत जैमिनी सूत्रो मे प्रथम अध्याय प्रथम पद मे लिखा गया हैं की “पितामाह,पति,पुत्र इति गुरूर मुखत एषा जानियत“ अर्थात दादा,पति व पुत्र को स्त्री की कुंडली मे गुरु की स्थिति द्वारा देखे या यू कहें की गुरु को इन सबका कारक माना गया हैं | फलदीपिका मे भी गुरु को ही स्त्री के पति का कारक कहा गया हैं और लिखा गया हैं कि गुरु ज्ञान,मान- सम्मान तथा पति का कारक हैं “वैदूश्यम,विजीतेंद्रियम सूखा सम्माना भीजत आदि “

फलित के एक अन्य दक्षिण भारतीय सिद्धांत नाड़ी ग्रंथो मे पति के कारक के रूप मे मंगल को प्रधानता दी गयी हैं जो इस कलयुग मे काफी सटीक जान पड़ती हैं | इस प्रकार देखे तो पाराशर,जैमिनी तथा फलदीपिका जैसे ग्रंथो के रचयिता जो की ज्योतिष के प्रकांड विद्वान रहे हैं उन सबके बावजूद नाड़ी ग्रंथो के लेखक इस विषय मे काफी सही पाये गए हैं इन सबके मिश्रित प्रभाव के कारण ज्योतिष के छात्र हमेशा से भ्रमित होते आए हैं और होते रहेंगे |

एक अन्य मत से गौर करने पर देखा जाए तो कालपुरुष के अंगो के कारक इस विषय पर ज़्यादा प्रकाश  डालते हैं जिसमे कालपुरुष की पत्रिका मे अलग अलग ग्रहो के अनुसार उसकी राशियाँ रखी गयी हैं | मेष राशि कालपुरुष को दिखाती हैं जिससे 180 अंश की दूरी पर तुला राशि बनती हैं जो विपरीत लिंगी राशि अर्थात स्त्री जातक को दर्शाएगी (अब पुरुष यदि मेष राशि का प्रतीक हैं जिसका स्वामी मंगल बना हैं जो लड़ाकूपना,गुस्सा व अधिकारपना लिए होता हैं तो तुला राशि स्त्री की राशि बनेगी जिसका स्वामी शुक्र हैं जो सुंदरता,सौम्यता,व आकर्षण लिए होता हैं जो स्त्रीयों हेतु सही प्रतीत होता हैं ) अब इसी आधार पर यदि स्त्री के भाव को लग्न बना लिया जाये अर्थात काल स्त्री की पत्रिका बनाए जाये तो इससे सातवी राशि मेष पड़ेगी जिसका स्वामी मंगल हैं जो स्त्री के लिए उसका पति बना संभवत: इसी कारण मंगल से सातवी राशि शुक्र की ही पड़ती हैं जिसे कलत्र कारक अथवा स्त्रीकारक कहा गया हैं जिससे देखने पर पति कारक मंगल ही बनता हैं | यहाँ यह भी ध्यान रखे की स्त्रीयों मे मासिक धर्म इस मंगल के कारण ही होता हैं जो स्त्री के स्त्री होने का प्रमाण दर्शाता हैं |

पुरुष हेतु शुक्र यकीनन कलत्रकारक हो सकता हैं परंतु स्त्री के लिए गुरु पति का कारक प्रतीत नहीं होता यह अनुभवो मे भी सही नहीं दिखता हैं | प्राचीन समय मे स्त्री को वैवाहिक सुख केवल उसके पति से ही प्राप्त हो सकता था जो स्त्री के लिए गुरु अथवा मार्गदर्शक का कार्य करता था क्यूंकी तब विवाह छोटी आयु मे हो जाते थे तथा स्त्रीयाँ ज़्यादा शिक्षित नहीं होती थी तथा अधिकतर पुरुष शिक्षित व विद्वान होते थे संभवत: इसी कारण हमारे विद्वान ऐसा लिखते हैं की स्त्री पत्रिका मे पति कारक गुरु होता हैं |

नाड़ी ज्योतिष के अन्य सूत्र मे देखे “जीवाह जीवो अंगिराश:” जिसके द्वारा हम आसानी से कह सकते हैं की गुरु जिस राशि मे होगा वह राशि लग्न होगी क्यूंकी जीव अर्थात जीवन का आनंद गुरु द्वारा देखा जाता हैं | गुरु जब भी शुक्र अथवा शुक्र के भावेश से कोण मे आता हैं उसी वर्ष जातक का विवाह होता हैं अर्थात जीव पत्नी पाता हैं इसी प्रकार कुंवारी अवस्था मे स्त्री चन्द्र द्वारा फिर उसके बाद शुक्र द्वारा देखी जाती हैं युवावस्था आने पर स्त्री का विवाह उस वर्ष होता हैं जब उसके जन्मकालीन मंगल से अथवा मंगल के भावेश से शुक्र का  कोणीय गोचर होता हैं | जो यह स्पष्ट करता हैं की विवाह के लिए स्त्री पुरुष मे शुक्र व मंगल की क्या उपयोगिता हैं यहाँ जीव अर्थात गुरु पत्नी अर्थात शुक्र पाता हैं जबकि स्त्री शुक्र मंगल अर्थात पुरुष पाती हैं अब यह पुरुष ही उसका पति होता हैं या नहीं यह आज के संदर्भ मे सही प्रकार से कहा नहीं जा सकता हैं क्यूंकी आज के इस भौतिकतावादी युग मे स्त्रीयाँ बिना पति अर्थात गुरु के भी वैवाहिक सुख अपने पुरुष साथी से प्राप्त कर सकती हैं अथवा करती हैं ऐसे मे गुरु को पति कारक मानना तर्क संगत प्रतीत नहीं होता हैं |

स्त्री की पत्रिका मे वैवाहिक सुखो को देखने पर अनुभव मे यह आता हैं की गुरु ग्रह से ज़्यादा यदि मंगल किसी भी प्रकार से पीड़ित या अशुभ अवस्था मे हो तो स्त्री के लिए विवाह मात्र नाममात्र का ही रह जाता हैं अधिकतर स्त्री के विवाह से संबन्धित परेशानी वाली पत्रिकाओ मे गुरु को सही पाया गया जबकि अन्य कारक शुक्र व मंगल अशुभ पाये गए | इस कारण हमारा ऐसा मानना हैं की नाड़ी ज्योतिष के लेखक अपने मत मे काफी हद तक सही हैं जो आज के संदर्भ मे स्त्री की पत्रिका मे पति कारक गुरु को ना मानकर मंगल ग्रह को मानते हैं |   

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