राहु और केतु
ज्योतिष शास्त्र के दो ऐसे ग्रह हैं जिनका कोई भौतिक अस्तित्व नहीं है, लेकिन
फिर भी वे हमारे जीवन को प्रभावित करते हैं । जन्म कुंडली में राहु और केतु की दशा
या उनका प्रभाव व्यक्ति के जीवन को एक नई दिशा दे सकता है । राहु और केतु की दशा
में लोग ऐसे अनुभवों से गुजरते हैं जिनकी उन्होंने कभी कल्पना भी नहीं की होती हैं
। वैदिक ज्योतिष में राहु केतु की तुलना सर्प से की गई है । राहु को उस सर्प का
सिर और केतु को उसका पूंछ माना है । राहु और केतु छाया ग्रह हैं क्योंकि उनका कोई
भौतिक अस्तित्व नहीं है, वे आत्मा रूप में जीवित रहते हैं । ये
वो आत्माएं हैं जिनकी बहुत सी अधूरी इच्छाएं होती हैं और ये इच्छाएं किसी भी
प्रकार की हो सकती हैं, वे भौतिकवादी इच्छाएं हो सकती हैं,
जो भौतिक शरीर से संबंधित हैं जैसे कि किसी विशेष व्यक्ति से प्यार
करना, विशेष प्रकार का भोजन करना, एक
विशेष जीवनशैली जीना, या ऐसे कोई भी इच्छा हो सकती है जिसे
शारीरिक स्तर पर व्यक्ति महसूस करता है । यूं तो राहु और केतु दोनों ही राक्षसी
एवं पाप प्रवृत्ति के हैं, पर फिर भी दोनों के स्वभाव और प्रभाव
में काफी अंतर है । ज्योतिष में राहु और केतु को शनि देव का अनुचर माना जाता है ।
लाल किताब ज्योतिष के अनुसार शनि के आदेश पर
राहु-केतु अपना फल
देते हैं । सिर राहु है तो केतु धड़ है । राहु बुद्धि भ्रष्ट करता है, तो
केतु दिमाग रहित होने के कारण बिना सोचे-समझे काम करने को प्रेरित करता है,
जो कई बार नुकसानदायक साबित हो जाता है । राहु ज्ञानेन्द्रियों से
जुड़ा है, तो केतु कर्मेन्द्रियों से राहु के तीन नक्षत्र
वायु तत्व, राशि मिथुन, तुला और कुंभ
में आते हैं । राहु सुख चाहता है और उसकी प्राप्ति के लिए अनैतिक तरीकों का भी
सहारा लेता है । वैदिक ज्योतिष में राहु को शनि के समान फल देने वाला माना गया है
। इसलिए शनि की राशि मकर और कुंभ में होने पर राहु बुरा फल नहीं देता कुंडली के
एकादश भाव एवं कुंभ राशि में शुभ फलदायी माना जाता है । एकादश भाव में स्थित राहु अचानक
धन प्राप्ति व व्यक्ति की इच्छाओं की पूर्ति करता है ।
शुभ स्थिति में
राहु धन लाभ कराने के साथ विदेश यात्रा भी करा देता है, तो
वहीं अशुभ स्थिति में राहु की दशा दिमाग में भ्रम और संशय की स्थिति पैदा करती है
और व्यक्ति कल्पनाओं के जाल में फंस जाता है । राहु की अशुभ स्थिति में व्यक्ति को
बीमारियां अचानक से घेर लेती है, वहीं शुभ स्थिति व्यक्ति को फर्श से
अर्श पर भी ले जाती है । जीवन में अचानक से होने वाली हर शुभ- अशुभ घटना के पीछे
राहु ग्रह का हाथ होता है । राहु विदेश का कारक है इसलिए अगर राहु प्रभावित
व्यक्ति विदेश में जाकर रहने लगे या किसी ऐसे दूर स्थान पर चला जाए जो उसके जन्म
स्थान से एक अलग संस्कृति को दर्शाता है तो राहु निश्चित तौर से अपनी दशा में
व्यक्ति को शुभ परिणाम देने लगता है ।
केतु ग्रह की
बात करें तो वैदिक ज्योतिष में केतु को एक सौम्य ग्रह माना गया है । केतु
आध्यात्मिकता का प्रतीक ग्रह है, केतु को योगसाधना, अध्यात्म,
वैराग्य, मोक्ष, तंत्र-मन्त्र व
ज्योतिष का कारक माना गया है, किसी चीज़ को बारीकी से समझना और आत्म
चिंतन केतु की सबसे प्रमुख प्रवृत्ति है ।
केतु के तीन
नक्षत्र अग्नि तत्व, राशि मेष, सिंह
और धनु में स्थित होते हैं, जो नैतिकता को दर्शाती है । इन राशि और
नक्षत्र से प्रभावित केतु हमेशा नैतिक तरीके से कार्य करेगा । केतु की दशा में
व्यक्ति के कार्य करने का तरीका बड़ा ही सीधा सपाट (Straightforward) होता
है । ज्योतिष शास्त्रों में कहा गया है 'कुजवत केतु'
अर्थात नैसर्गिक रूप से केतु मंगल के समान फल देता है । राहु के समान
केतु किसी भी भाव में ग्रह के साथ बैठा हो तो उस भाव और साथी ग्रह के प्रभाव तथा
शुभ-अशुभ फल में चार गुना की वृद्धि कर देता है । केतु ग्रह को अशुभ माना जाता है
लेकिन यह शुभ फल भी देता है । कुंडली के धर्म त्रिकोण भाव 1,5,9 में सदैव अच्छा फल
प्रदान करता है । इसके साथ मोक्ष त्रिकोण यानि अष्टम एवं द्वादश भाव का केतु भी
अच्छे फल प्रदान करता है । ऐसा केतु व्यक्ति को मुक्ति के मार्ग पर लेकर जाता है
अगर केतु गुरु ग्रह के साथ स्थित हो तो राजयोग का निर्माण होता है, गुरु
केतु युति कुंडली में हो तो व्यक्ति बहुत आध्यात्मिक व धार्मिक प्रवृत्ति का होता
है, अगर कुंडली में केतु बली हो तो यह जातक के
पैरों को मजबूत बनाता है व पैरों से संबंधित कोई रोग नहीं होता । शुभ मंगल के साथ
केतु की युति जातक को साहस प्रदान करती है ।
व्यक्ति के जिस
भाव में जिस ग्रह के साथ बैठा होगा उसे ग्रह से जुड़े चीजों को प्रदान करने में
बहुत सारी रूकावटें देगा । केतु एक मात्र ऐसा ग्रह है, जिसकी
दशा में व्यक्ति एक प्रकाश, एक गुरु की खोज में लगता है, जो
जीवन में उनका मार्गदर्शन कर सके । नवग्रहों में केतु ही अकेला एक ऐसा ग्रह है जो
सांसारिक मोह माया से दूर ले जाकर व्यक्ति को शांति का
अनुभव कराता है । केतु चाहता है कि आप सबसे अलग होकर अपना अस्तित्व खोजें, खुद
के साथ कुछ समय बिताएं, ध्यान करें, आध्यात्मिक
रुचि बढ़ाएं । आध्यात्मिकता और वैराग्य के प्रतिनिधि ग्रह केतु की दशा अंतर्दशा
व्यक्ति को आध्यात्मिक प्रगति के साथ-साथ सफलता के शिखर पर पहुंचाती है । आमतौर पर
केतु की दशा को असाध्य रोग और समस्याओं का कारण माना जाता है, लेकिन
अगर केतु की दशा में भी एक बार व्यक्ति अपने अकेलेपन का आनंद लेना शुरु कर दें तो
यकीन माने केतु की दशा ही जीवन की आनंदमय दशा बन जाती है ।
इनकी दशा में
सकारात्मकता पाने के लिए कुछ ऐसे कार्य एवं उपाय किए जाएं तो मायावी ग्रह राहु
केतु भौतिक और आध्यात्मिक उन्नति के मार्ग पर पहुंचाने की सीढ़ी बन जाते हैं
क्योंकि मजबूत राहु चतुराई और एकाग्रता देता है, जबकि मजबूत केतु
अंर्तज्ञान शक्ति और आध्यात्मिकता विकसित करता है । व्यक्ति विशेष की एक विशेष
उम्र पर राहु-केतु का प्रभाव देखने को मिलता है |राहु का प्रभाव
व्यक्ति विशेष की 42 वर्ष की आयु पर दिखाई देता है, जो अचानक भाग्य
का निर्माण करता है । राहु 42 से 48 वर्ष की आयु के दौरान होने वाली अचानक अच्छी
या बुरी घटनाओं के लिए जिम्मेदार ग्रह है । केतु राहु से भी देरी से भाग्योदय करते
हैं । केतु 49 से 50 वर्ष की उम्र में भाग्यफल देते हैं । केतु शिखर और ऊंचाई का प्रतीक
है, इसलिए केतु के समय में किसी ऊंचे स्थान पर बने
धार्मिक स्थल और मंदिर के दर्शन करें । केतु परिवर्तन का प्रतीक है, इसलिए
एक ही स्थान पर बैठने के बजाय यात्रा करें । केतु आत्म-साक्षात्कार देता है,
इसलिए केतु के समय में ध्यान करें । केतु ऊंचाई से संबंधित है,
जो चीज आपको ऊंचाई पर ले जाती है वह केतु का प्रतिनिधित्व करती है |
राहु और केतु की
महादशा में शुभ फल प्राप्त करने के लिए बुध और चंद्रमा को मजबूत करना चाहिए । बुध
बुद्धि और विवेक का कारक है, जबकि चंद्रमा भावनाओं और मन का कारक है
। इन दोनों ग्रहों को मजबूत करके राहु से मिलने वाले वहम और संशय की स्थिति से
निपटा जा सकता है । राहु और केतु बुरी आत्माओं के प्रतीक हैं और इनके दुष्प्रभावों
को दूर करने के लिए महाकाल शिव, भैरव जी और देवी सरस्वतीजी की आराधना
करनी चाहिए । अमावस्या शनिवार और पितृपक्ष राहु और केतु से जुड़ी पूजा-पाठ और दान-
पुण्य के लिए विशेष रूप से प्रभावी होते हैं । राहु और केतु के नक्षत्र विशेष में
किए गए दान से इनसे बनने वाले सभी दोष दूर हो जाते हैं । राहु और केतु के
दुष्प्रभावों को दूर करने के लिए जरूरतमंदों को भोजन और वस्त्र दान करें, पक्षियों
को सप्त धान्य खिलाए, मछलियों और काली चीटियों को भोजन रोटी
खिलाएं |
योग, साधना, ध्यान, प्राणायाम,
मंत्र साधना, ज्योतिष और मां दुर्गा, हनुमान
जी और गणेश जी की आराधना करें, गूढ़ विधाओं का अध्ययन करें । पाप ग्रह
राहु-केतु के दुष्प्रभाव को जीवन में से समाप्त करने का आज के समय में सबसे उत्तम
उपाय है जरूरतमंद और भूखे प्राणियों को तृप्त करना । इसके लिए प्रतिदिन पक्षियों
को भोजन व सतनाजा
डालें । किसी अपंग अपाहिज या गरीब, जरूरतमंद व्यक्ति को अपने हाथ से भोजन
और वस्त्र का दान करें । अगर केतु ग्रह की समस्या से जूझ रहे हों तो मां दुर्गा,
हनुमान जी और गणेश जी की आराधना करें । दो रंगी कुत्ते को रोटी
खिलाएं । योग, साधना, ध्यान एवं
प्राणायाम मंत्र साधना ज्योतिष एवं गुण विधाओं का अध्ययन व्यक्ति को केतु की दशा
समय में आध्यात्मिक उन्नति एवं प्रगति के चरमशिखर पर पहुंचा देता है । राहु की 18
वर्ष और केतु के 7 वर्ष की दशा व्यक्ति को सही दिशा, श्रेष्ठ अनुभव
और मार्गदर्शन प्रदान करती है |