हमारे कर्मों
को दर्शाने वाले ग्रह मुख्य रूप से शनि,राहु और मंगल
होते हैं | सबसे ज्यादा प्रारब्ध कर्म दिखाने वाले यह तीनों ग्रह
जब चंद्र और बुध को प्रभावित करते हैं तो हमें इस जीवन में किसी ना किसी प्रकार से कष्ट मिलता
ही है अधिकतर पिछले जन्मो के कर्मों को दर्शाने वाले यह ग्रह हमें
हमारे पिछले जन्मो मे किए गलत कर्मों के कारण ही इस जन्म मे अशुभ प्रभाव प्रदान करते हैं |
महाभारत में संजय
धृतराष्ट्र से कहते हैं कि यह कर्म ही है जो व्यक्ति विशेष की बुद्धि हर कर उससे पागल
की भांति काम करवा कर उसके जीवन का नाश कर देते हैं | शनि का प्रभाव मंगल और राहु से कम बुरा होता है जैसे यदि किसी की पत्रिका में
शनि चंद्र का संबंध होतो वह यह बताता है कि जातक का बचपना खराब गुजरा होगा तथा
उसके आसपास के लोगों ने उसे बहुत सा मानसिक तनाव दिया होगा परंतु यदि इस पर शुभ ग्रह
का प्रभाव होतो ऐसा जातक सभी कठिनाइयों को दूर करता हुआ जीवन में जैसे-जैसे उम्र बढ़ेगी
तरक्की करता जाएगा |
चंद्र राहु की
युति ज्यादा तनाव बताती है एक विशेष प्रकार का भय जातक को बचपन से ही
उसके पूर्वजन्म कृत कर्मों के द्वारा लगा हुआ होता है जो उसे इस जीवन मे उम्रभर सताता रहता है उसकी
कुछ मानसिक आदतें खराब होती हैं जो उसे पिछले जन्म के कर्मों द्वारा इस
जीवन में भयभीत करती रहती है जिससे वह ठीक प्रकार से इस जीवन में सोच विचार नहीं कर
पाता,यदि ऐसा जल तत्व राशि में होतो भावनात्मक
असुरक्षा के कारण ऐसा जातक गलत तरीके से प्रेम पाने अथवा चाहत पाने के लिए दूसरों का
ध्यान आकर्षित करता रहता है यदि वायु तत्व राशि में यह युति होतो ऐसा जातक बहुत ज्यादा
बुद्धिमान होता है परंतु दूसरों की भावनाओं को ठीक से समझ नहीं पाता हैं और नाही दूसरों को अपनी भावनाए समझा पाता हैं | पृथ्वी तत्व राशि में चंद्र राहु की यह युति जातक
विशेष के अंदर शक्ति अथवा धन प्राप्ति की हवस देती है जबकि अग्नि तत्व राशि में यह युति प्रत्येक कार्य से और प्रत्येक व्यक्ति से जातक को असंतुष्टि प्रदान करती है जिससे उसका जीवन असहनीय हो जाता है |
शुभ ग्रह का दृष्टि
प्रभाव अथवा शुभ ग्रह का त्रिकोण में बैठना जातक को आध्यात्मिक जीवन
की ओर ढकेलता है तथा उसके अनजाने भय से उसे मुक्त करने का प्रयास करता है ऐसे मे जप और प्राणायाम
उसे काफी हद तक मदद करते हैं |
चंद्र मंगल
की युति जातक विशेष को ना थकने वाला दिमाग,गुस्से बाज तथा परेशानी
खड़ा करने वाला बनाती हैं उसका यह दर्द जो उसे आंतरिक शांति पाने नहीं देता
केवल वही समझ सकता है,शुभ ग्रह का
प्रभाव यह बताता है कि उपाय द्वारा इसको सही किया जा सकता है जबकि अशुभ ग्रह का
प्रभाव जातक को हमेशा के लिए वहमी बना कर रखता है | इस प्रकार से कहा जा सकता है कि कर्म प्रधान इन ग्रहों की स्थिति जातक के दिमाग
को परेशान करती है तथा यह दिमाग ही जातक के जीवन को नष्ट कर देता
है |
कार्मिक
बंधनों को देखने के लिए पंचम भाव उतना ही महत्वपूर्ण है
जितना कि चंद्र | पंचम भाव ना सिर्फ बुद्धिमता के बारे में बताता
है बल्कि पूर्वपुण्य स्थान भी होता है जो जातक के इस जीवन मे जन्म लेने की प्रेरणा के बारे में बताता
है | जो कर्म जातक में सबसे ज्यादा बचे हैं जिसकी वजह
से उसे सामाजिक नैतिक और आध्यात्मिक दृष्टि से देखा जाता है उसका पता इस भाव में स्थित
ग्रह से चलता है,पंचम भाव में
अशुभ ग्रह बहुत ही अशुभता देते हैं तथा जातक विशेष के नवे भाव
अर्थात भविष्य को भी प्रभावित करते हैं,उदाहरण के
लिए यदि किसी का पंचम भाव में मंगल हो और उस पर कोई शुभ ग्रह
का प्रभाव ना होतो ऐसा जातक हमेशा तनावग्रस्त रहेगा अथवा यह
सोचेगा कि वह जो कर रहा है उसे नहीं करना था अर्थात जो उसे करना पड़
रहा है उसे नहीं करना था जिससे उसकी इच्छा पूर्ति नहीं होगी तथा वह सीखने की इच्छा
नहीं रखेगा जातक इस कर्म को दोबारा से सीख कर या सुधार कर अपने आप को सफल बना सकता
है परंतु उसका स्वयं को श्रेष्ठ समझना उसे ऐसा करने नहीं देगा यदि इसके विपरीत
शनि पंचम भाव में होतो वह यह बताता है कि उसके पिछले जन्मों
का ये लेखा रहा है की जातक के पास बहुत ज्यादा
जिम्मेदारियों रही होंगी परंतु वह इनसे हमेशा भागने का प्रयास करता रहा होगा इस जन्म
मे वह ज़्यादा आजादी पसंद करना चाहेगा ताकि उसे जिम्मेदारियां कम से
कम मिले यह वही पूर्व जन्म कृत लेख है जो उसे कंधे पर जिम्मेदारी को उठाने के लिए मजबूर
कर रहा है और इनसे भाग पाना उसके लिए मुश्किल हो रहा है उसका यह जान पाना ही उसे
अपने कर्मों में खुशी प्रदान करेगा |
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें