मंगलवार, 21 मार्च 2017

विशोन्तरी दशा के वर्ष निर्धारण



सूर्य की दशा 6 वर्ष पृथ्वी को ध्यान मे रखकर ली गयी होगी महादशा का प्रचलन पृथ्वी पर जीवन मे होने वाले बदलाव पर आधारित हैं कालीदास अपने ग्रंथ मेघदूतम मे ऐसा लिखते हैं |

कौन सा ऐसा मुख्य बदलाव हैं जो इस गृह पृथ्वी पर सबको प्रभावित करता हैं वह हैं ऋतु परिवर्तन जिसके बदलने से पृथ्वी पर बदलाव जान पड़ता हैं चूंकि ऋतुए संख्या मे 6 होती हैं जिनके नाम क्रमश: बसंत,ग्रीष्म,वर्षा,शरत,हेमंत व शिशिर हैं जो धरती पर बदलाव दर्शाती हैं और इस बदलाव मे सूर्य का अहम योगदान एवं प्रभाव रहता हैं इसी कारण सूर्य को 6 वर्ष की महादशा हमारे विद्वानो ने प्रदान की होगी |

आदिकाल से ही चन्द्र धरती पर मापने का कारक रहा हैं जिसकी पुष्टि महीने अथवा माह करते हैं जबसे शून्य का आविष्कार हुआ हैं जिसकी पूर्ण चन्द्र से काफी समानता रहती हैं 10 का अंक प्रचलन मे आया जो चन्द्र के कार्यो को काफी अच्छी तरह से बताता हैं | प्राचीन समय मे पालि भाषा के भित्ति चित्रो मे उल्लेख मिलता हैं की उस समय के लोग चन्द्र की 10 पूर्णता से माँ के गर्भ मे पालने वाले शिशु का जन्मसमय का निर्धारण करते थे संभवत; इसी कारण चन्द्र का एक नाम संस्कृत मे माँ भी रखा गया हैं आधुनिक विज्ञान भी यह कहता हैं शिशु गर्भ मे 10 माह ही रहता हैं इसी कारण चन्द्र को 10 वर्ष की महादशा दी गयी होगी |

पृथ्वी व गुरु सूर्य का भ्रमण एक वर्ष मे करते हैं पृथ्वी का एकमात्र उपग्रह होने के कारण चन्द्र भी पृथ्वी का भ्रमण करता हैं इसी कारण गुरु को सूर्य व चन्द्र दोनों की दशा वर्षो का योग 10+6=16 वर्ष प्रदान किए गए |

यह ध्यान रखे की ग्रह पृथ्वी के दोनों तरफ हैं जिन्हे आंतरिक व बाहरी ग्रह कहा जाता हैं आंतरिक ग्रहो मे बुध व शुक्र ग्रह आते हैं जबकि बाहरी ग्रहो मे मंगल,गुरु व शनि ग्रह आते हैं | चन्द्र जिन दो कटान बिन्दुओ पर पृथ्वी को काटता हैं उन्हे राहू-केतू की संज्ञा दी गयी हैं जिनका ग्रह ना होने पर भी अपना ही गणितीय महत्व होता हैं जिनमे राहू, मंगल व गुरु के तथा केतू, शुक्र व बुध के मध्य माने गए हैं |

अब ऐसे मे हमारी पृथ्वी से देखने पर आंतरिक ग्रह समूह बुध,केतू,शुक्र,सूर्य व चन्द्र का बनता हैं जबकि बाहरी ग्रह समूह मंगल,राहू,गुरु व शनि का बनता हैं यदि हमारी पृथ्वी पर मानव का जीवन 120 वर्ष माना जाये तो आंतरिक व बाहरी ग्रहो का प्रभाव 60-60 वर्ष बराबर होना चाहिए (यदि हम महादशा क्रम देखे तो वास्तव मे ऐसा ही हैं आंतरिक ग्रहो सूर्य,चन्द्र,केतू,शुक्र,व बुध के महादशा के वर्षो का योग 6+10+7+20+17=60 वर्ष ही बनता हैं | इसी प्रकार बाहरी ग्रहो का महादशा वर्षो का योग भी 60 वर्ष ही आता हैं ) जो हमारे कथन की पुष्टि करता हैं |

बाहरी ग्रहो के समूह के महादशा वर्षो 60 मे चन्द्र के 10 वर्ष जोड़ने पर 70 आता हैं जिसे चन्द्र के मापक वर्षो 10 से भाग देने पर 7 आता हैं जो की बाहरी ग्रहो के समूह के पहले ग्रह मंगल का महादशा वर्ष बनता हैं,इसी प्रकार 60 वर्षो मे चन्द्र व सूर्य के 10+6 वर्ष जोड़ने पर योग 76 आता हैं जिसका चौथाई करने पर 19 प्राप्त होता हैं जो बाहरी ग्रह समूह के चौथे ग्रह शनि की महादशा वर्ष बनता हैं | अब मंगल के 7 वर्ष गुरु के 16 वर्ष तथा शनि के 19 वर्षो का योग 42 बनता हैं जो की कुल योग से 18 वर्ष कम हैं यही वह 18 वर्ष हैं जो की इस समूह के अंतिम ग्रह अथवा राहू को प्रदान किए गए हैं |

आंतरिक ग्रह समूह के 60 वर्षो मे सूर्य चन्द्र के 16 वर्ष के आधे जोड़ने पर हमें 60+8=68 वर्ष प्राप्त होते हैं जिसका चौथाई करने पर 17 प्राप्त होता हैं जो की आंतरिक ग्रह समूह के पहले ग्रह बुध के महादशा वर्ष हैं | शुक्र सूर्य चन्द्र के बाद सबसे ज़्यादा चमकने वाला ग्रह हैं जिसकी आकृति पृथ्वी से देखने पर चन्द्र के समान प्रतीत होती हैं यह कुछ महीने प्रात: सूर्योदय के समय तथा कुछ समय सूर्यास्त के समय दिखाई पड़ता हैं जिससे दिन रात के होने का पता चलता हैं इसी दोहरेपन व चन्द्र के सम्मान दिखने के कारण इसे चंन्द्र से दुगुने  अथवा 20 वर्ष के महादशा वर्ष प्रदान किए | अब इन सभी आंतरिक ग्रहो का जोड़ 53 वर्ष हो जाता हैं जो की 60 से घटाने पर 7 वर्ष बनता हैं यही वह 7 वर्ष हैं जो की केतू ग्रह को प्रदान किए गए |

इस प्रकार देखे तो विशोतरी दशा वर्षो का निर्धारण ग्रहो की प्रकृति व उनके द्वारा धरती पर पड़ने वाले प्रभावों के आधार पर किया गया प्रतीत होता हैं |

   

कोई टिप्पणी नहीं: