प्रसन्नता
पूर्वक
जीवन जीने का सबसे बड़ा कारण अच्छे स्वास्थ्य का होना होता हैं
कहावत भी हैं की “स्वास्थ्य
ही धन हैं” अच्छी
सेहत हेतु लग्न,लग्नेश,चन्द्र,चंद्रेश,व सूर्य को सभी
पाप प्रभावों से मुक्त होना चाहिए या शुभ प्रभावों मे होना चाहिए | दूसरी अवस्था प्रसन्न होने की संतोष का होना हैं व्यक्ति के पास सभी सुख सुविधाए हो परंतु वह और
भी चाहने की इच्छा रखता होतो तो वह व्यक्ति कभी भी प्रसन्न नहीं रह सकता इसके
विपरीत एक गरीब व्यक्ति जिसके पास भले ही सुख सुविधाए कम हो परंतु वह संतुष्ट होतो प्रसन्न हो सकता
हैं |
आज के
युग मे प्रत्येक व्यक्ति ज़्यादा से ज़्यादा कमाई कर धन कमाना चाहता हैं जिससे वह सुखी व प्रसन्न रह सके परंतु अच्छे स्वास्थ्य से
बड़ा कोई धन नहीं होता संभवत:इसी कारण
हमारे प्राचीन
शास्त्र पहला सुख निरोगी काया बताते हैं |
आइए
ज्योतिषीय दृस्टी से जानने का प्रयास करते
हैं की ऐसे कौन कौन से कारण हैं जिनसे व्यक्ति प्रसन्न अथवा सुखी रह सकता हैं |
सर्वाधिक
शुभ ग्रह गुरु को प्रकृतिनुसार सात्विक माना जाता हैं क्यूंकी यह राजयोग धनयोग व
ज्ञान योग तीनों प्रदान करने वाला होता हैं इसके अतिरिक्त यह गुरु ज्ञान,संतोष व विवेक का कारक भी हैं इस गुरु की स्थिति जातक के
लिए उसके जीवन का स्तर तय करती हैं इसलिए विद्वान कहते हैं किसी भी कुंडली मे गुरु को निर्बल अथवा अशुभ नहीं होना चाहिए चाहे उसका
स्वामित्व पत्रिका मे 3,6,8,11 या 12
भाव का ही क्यू ना हो | अष्टम भाव का गुरु 50 वर्ष की आयु
देता हैं परंतु यह जातक के परिवार के लिए शुभ नहीं होता हालांकि यह गुरु अपनी दशा
मे जातक को शुभ परिणाम ही देता हैं चाहे वह 3रे,12वे
का स्वामी होकर अष्टम भाव मे हो
या 3रे,6थे का स्वामी होकर बैठा हो (मकर व तुला लग्न)परंतु अष्टम गुरु जातक को छोटी व संकुचित
मानसिकता वाला बनाता हैं |
चन्द्र चूंकि हमारी
मानसिकता,सोच,मन व सुख का कारक माना जाता हैं इसलिए इस चन्द्र
का बलवान होना तथा किसी भी पाप प्रभाव मे ना होना किसी भी जातक के लिए खुश
रहने के लिए बहुत ही ज़रूरी होता हैं | इस चन्द्र का किसी भी प्रकार से पीड़ित या अशुभ होना जातक को किसी ना किसी रूप
से परेशानी अथवा तनाव प्रदान करता ही हैं जिससे जातक के स्वभाव मे भी बहुत असर
पड़ता हैं |
इसी प्रकार बुध व शुक्र का भी शुभ
अवस्था मे होना जातक की प्रसन्नता के लिए अवश्यंभावी हैं क्यूंकी जिसके पास अच्छी
बुद्दि,विद्वता,कलाक्षमता व सभी सुख-सुविधाए,भोग ऐश्वर्या हो वो जातक अवश्य ही खुश अथवा प्रसन्न रह सकता हैं तथा औरों को भी प्रसन्नता
प्रदान कर सकता हैं |
प्रसन्नता के लिए कुंडली के कुछ भावो को
भी मजबूत होना चाहिए जिनमे लग्न चतुर्थ,पंचम सप्तम,अष्टम,दसम व एकादश भाव प्रमुख हैं अन्यथा सबकुछ होते
हुये भी जातक सुखी नहीं रह सकता हैं | इनमे से कोई भी एक भाव यदि अशुभ अवस्था मे हुआ तो जातक को कोई
ना कोई दुख लगा रहेगा जिससे जातक नाखुश ही रहेगा चाहे वो दुख पत्नी संबन्धित हो,चाहे संतान संबन्धित हो अथवा धन व लाभ
से संबन्धित हो जातक दुखी ही रहेगा और उसे प्रसन्नता नहीं रहेगी |
जातक हेतु पंचमेश का 1,4,10 भाव मे तथा जातिका हेतु पंचमेश का 5,9,11 भावो मे होना शुभ रहता हैं परंतु लग्नेश
का पंचमेश से 6/8व 2/12 मे होना अशुभता देता हैं | यहाँ यह तथ्य ध्यान
मे रखे कि संतान के लिए गुरु का पंचम भाव मे होना भाव नाशक सिद्धान्त अनुसार शुभ
नहीं होता हैं |
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