प्रश्न : जातक की कुंडली से कैसे जानें कि उसकी विद्याध्ययन में रुचि होगी तथा वह मेधावी छात्र होगा या नहीं? शिक्षा में अवरोध उत्पन्न करने वाले कारण एवं उनके उपाय क्या हैं? उच्च शिक्षा में सफलता प्राप्ति हेतु क्षेत्र का चयन कैसे करें? | |
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मानव जीवन के सर्वांगीण विकास में शिक्षा की भूमिका अहम होती है। ऐसे में वह चाहे स्त्री हो या पुरुष - शिक्षा सब के लिए जरूरी है। किसी व्यक्ति के व्यक्तित्व के विकास में वर्तमान युग शिक्षा का युग है। ज्योतिष शास्त्र सिद्धांतों के अनुसार शिक्षा का विचार द्वितीय एवं पंचम भावों तथा इनके भावेशों की स्थिति पर किया जाता है। साथ ही वाणी एवं स्मरण शक्ति के कारक बुध एवं ज्ञान के कारक गुरु का भी जातक की शिक्षा में योगदान रहता है। बुध जहां जातक को किसी ज्ञान को अपने में समाहित करने की विशेष क्षमता प्रदान करता है, वहीं गुरु नीर-क्षीर विवेक में जातक की सहायता करता है। विद्या अध्ययन में रुचि किसी जातक की विद्या अध्ययन में रुचि जानने के लिए निम्नलिखित योगों पर विचार करना चाहिए। गुरु का द्वितीय, चतुर्थ व नवम् भाव से अथवा चतुर्थेश का नवमेश से संबंध हो, तो जातक की विद्याध्ययन में गहरी रुचि होती है। लग्न व लग्नेश तथा चतुर्थ भाव व चतुर्थेश और बुध की भूमिका विद्याध्ययन में महत्वपूर्ण होती है। इन भावों तथा भावेशों से बुध का संबंध जातक की विद्या में विशेष रुचि दर्शाता है। शनि का प्रभाव चतुर्थ भाव, चतुर्थेश, द्वितीय भाव, द्वितीयेश तथा गुरु पर हो, तो जातक की विद्या में विशेष रुचि होती है। शनि व गुरु की युति नवम् भाव में हो, तो जातक को विद्या में विशेष रुचि होती है। पंचमेश शुभ ग्रह होकर केंद्र में उच्च का हो या मित्रक्षेत्री हो, तो जातक अध्ययन के लिए विदेश जाता है। पंचम भाव में शुक्र जातक को विद्या अध्ययन के लिए शुभ योग प्राप्त करता है। जातक ग्रंथकार भी बनना है। कर्क लग्न में लग्नेश पंचम भाव में या लग्न में हो तो जातक को विद्वान बनाता है। नवमेश पंचम भाव में हो या नवमेश की युति बुध के साथ हो, तो जातक विद्याभिलाषी होता है। एकादश भाव में बुध व गुरु या शुक्र और गुरु की स्थिति के फलस्वरूप जातक की विद्याध्ययन में गहरी रुचि होती है और उसकी शिक्षा उसकी आजीविका का साधन भी बन जाती है। द्वितीय भाव में वर्गोत्तम गुरु या शुक्र की स्थिति के फलस्वरूप जातक अनेक विद्याओं का ज्ञाता होता है। पंचमेश शुभ ग्रह होकर केंद्र भावस्थ या मित्रक्षेत्री हो, तो जातक विदेश में विद्या प्राप्त करता है। यदि लग्नेश उच्च या शुभ ग्रह युक्त व दृष्ट हो, तो इस स्थिति में भी वह विदेश में विद्या प्राप्त करता है। लग्न में चंद्र और बुध का योग जातक को आचार्य या वैज्ञानिक बनाता है। बुध, गुरु या चंद्र लग्न में उच्च का हो, तो जातक उच्च कोटि का विद्वान होता है। चतुर्थेश लग्न में वर्गोत्तम हो, तो उच्च शिक्षा का योग होता है। बुध और शुक्र एकादश या द्वितीय भाव में हों, तो जातक वेदांती होता है। पंचमेश नवम या दशम भाव में हो, तो जातक विद्या का धनी होता है। मेष लग्न में पंचम भाव सूर्य हो, तो जातक बुद्धिमान होता है। नवमेश पंचम भाव में हो, तो जातक विद्याभिलाषी एवं बुद्धिमान होता है। नवमेश की बुध के साथ युति जातक को विद्याभिलाषी एवं बुद्धिमान बनाती है। दशम भावस्थ सूर्य दशमेश से दृष्ट हो, तो जातक विद्याभिलाषी होता है। बुध एकादश भाव में शुभ ग्रहों से युत या दृष्ट हो, तो जातक की विद्या तथा काव्यकला में विशेष रुचि होती है। तृतीय भावस्थ बुध बुद्धि के साथ पराक्रम भी देता है। पंचमेश बली हो या केंद्र में हो और बुध पंचम में हो, तो जातक की शिक्षा उच्च कोटि की होती है और वह बुद्धिमान होता है। पंचमेश उच्च राशिस्थ हो अथवा शुभ ग्रहों के प्रभाव में हो, तो व्यक्ति बुद्धिमान तथा शिक्षित होता है। पंचम भाव में शुभ ग्रह शुभ राशि में हो, तो जातक विद्वान होता है। पंचम भाव पर शुभ ग्रहों की दृष्टि हो, तो इस स्थिति में भी जातक विद्वान होता है। पंचमेश की दशम या एकादश भाव में स्थिति के फलस्वरूप भी जातक विद्वान होता है। गुरु केंद्र में हो, तो जातक की शिक्षा उच्च कोटि की होती है। जातक इस स्थिति में बुद्धिमान भी होता है। पंचमेश बली होकर केंद्र या त्रिकोण में बनाती है। गुरु पंचम भाव में हो, तो जातक की स्मरण शक्ति तीव्र होती है और शिक्षा उच्च कोटि की होती है। गुरु, शनि व राहु शुक्र से दृष्ट हों और गुरु, शनि तथा केतु की युति हो, तो साधारण परिवार में जन्म होने पर भी जातक उच्च शिक्षा ग्रहण करता है। बुध से त्रिकोण में मंगल तथा चंद्र से त्रिकोण में गुरु हो, तो जातक एकाधिक विषयों का ज्ञाता होता है। चंद्र राशीस तथा चंद्र से पंचम भाव के स्वामी के बीच राशि परिवर्तन हो और चंद्र पर शुभ ग्रह की दृष्टि हो, तो व्यक्ति बहुत विद्वान होता है। द्वितीयेश केंद्र या त्रिकोण में हो, तो जातक अनेक विद्याओं का ज्ञाता होता है। पंचमेश लग्न में हो, तो जातक विद्वान होता है। इस तरह यह स्पष्ट हो जाता है कि जातक के बुद्धिमान एवं शिक्षित होने में बुध, गुरु, पंचम भाव, द्वितीय भाव, द्वितीयेश तथा पंचमेश की भूमिका अहम होती है। दूसरे शब्दों में उक्त भाव, भावेश, बुध और गुरु बली हों, पाप प्रभाव में नहीं हों, तो जातक की विद्याध्ययन में रुचि होती है और वह बुद्धिमान विद्वान होता है। शिक्षा में अवरोध उत्पन्न करने वाले कारण राहु अगर पंचम भाव में पंचमेश से युत या दृष्ट नहीं हो और पाप पीड़ित हो, तो विद्या ग्रहण में बाधा आती है। पंचमेश पंचम भाव से अष्टम अर्थात लग्न से द्वादश भाव में हो, अस्त हो या नीच राशि में हो, या अन्य प्रकार से निर्बल हो, तो भी शिक्षा प्राप्ति में रुकावटें आती हैं। द्वितीय भाव का स्वामी अपने भाव से अष्टम में निर्बल हो, पाप पीड़ित हो तो विद्याध्ययन में व्यवधान उत्पन्न होता है। द्वितीय, पंचम और पंचम से पंचम, नवम भाव पाप मध्य हों, पाप पीड़ित हों, त्रिकेश इन भावों में हो, सर्वाष्टक वर्ग में इन भावों में शुभ रेखा अल्प हो, तो भी शिक्षा ग्रहण करने में व्यवधान आता है। इसके अतिरिक्त बुद्धि का कारक बुध एवं ज्ञान का कारक ग्रह गुरु निर्बल हो, त्रिक भाव में हो, अस्त हो, नीच राशि में हो, पाप पीड़ित हो, तो विद्याध्ययन में बाधा आती है। जातक की शिक्षा उच्च कोटि की नहीं होती है। ऊपर वर्णित जितने अधिक घटक पाप प्रभाव में होंगे, निर्बल होंगे जातक की शिक्षा में उतना ही अधिक व्यवधान आएगा। इसके अतिरिक्त शिक्षा ग्रहण काल खंड में अशुभ ग्रह की दशांतर्दशा हो या शनि की नेष्ट साढ़ेसाती का प्रभाव हो, या गोचर में शिक्षा से संबंधित घटक ग्रहों की स्थिति अशुभ हो तो भी विद्याध्ययन में बाधा आती है। पंचम भाव से त्रिकोण में शनि गोचर में हो या पंचमेश से त्रिकोण में गुरु गोचर में हो, तो शिक्षा के भाव पंचम का नाश होता है और विद्याध्ययन में रुकावट आती है। पंचम भाव, बुध, गुरु, पंचमेश या तृतीयेश पर एकाधिक ग्रहों का विच्छेदात्मक प्रभाव हो, तो इस स्थिति में भी विद्याध्ययन में व्यवधान आता है और शिक्षा के प्रति जातक की रुचि कम होती है - विशेष कर जब इन विच्छेदात्मक ग्रहों की दशांतर्दशा हो। पंचम भाव के स्वामी ग्रह का अधिशत्रु ग्रह यदि अष्टक वर्ग में शुभ रेखा रहित राशि में हो, तो उसकी दशा में पंचम भाव प्रदर्शित विद्या के क्षेत्र में व्यवधान आता है। उपाय सरस्वती से संबंधित मंत्र का नियमित जप करने से विद्या में सफलता के लिए निम्नोक्त मंत्र का जप करना चाहिए। ÷÷ह्रीं श्रीं ऐं वागवादिनि भगवती अर्हनमुख निवासिनि सरस्वती ममास्ये प्रकाशं कुरू कुरू स्वाहा ऐं नमः ''। इसके साथ ही बुद्धि के देवता प्रथम पूज्य विन विनाशक श्री गणेश का ध्यान करने से विद्या और बुद्धि का विकास होता है और अध्ययन में आने वाली बाधाएं दूर होती हैं। यदि शिक्षा से संबंधित ग्रह जन्मकुंडली में शुभ हो परंतु निर्बल हो और अपने शुभ प्रभाव देने में असमर्थ हो तो उसे बल प्रदान करने के लिए उससे संबंधित रत्न भी धारण किया जा सकता है। यदि जातक शिक्षा के प्रति गंभीर नहीं हो, तो गुरु के उपाय करने चाहिए। यदि जातक की स्मरण शक्ति, तर्क शक्ति तथा विद्या में रुचि कम हो, तो बुध से संबंधित उपाय लाभदायक सिद्ध होते हैं। मंत्र शक्ति द्वारा उपचार : शिक्षा में सफलता के लिए निम्न मंत्रों का जप और दोहों आदि का पाठ भी करना चाहिए। गणेश जी को प्रसन्न करने के लिए - ¬ गं गणपतये नमः । - जेहि सुमिरत सिधि होय, गजनायक कविवर बदन। करउं अनुग्रह सोय, बुद्धि-सारी शुभगुणसदन॥ - ¬ वद् वद् वाग्वादिन्यै स्वाहा। सरस्वती के निम्न मंत्र का जप करने से विद्या में रुची बढ़ती है और ज्ञान का विकास होता है। - ¬ ह्रीं ऐं ह्रीं ¬ सरस्वत्यै नमः । स्मरण शक्ति को तेज करने के लिए - ऐं नमः भगवति वद वद वाग्देवि स्वाहा। परीक्षा में सफलता के लिए - जेहि पर कृपा करहिं जनु जानी, कवि उर अजिर नचावहिं बानी। - मोरि सुधारिहिं सो सब भांती, जासु कृपा नहिं कृपा अघाती॥ - ¬ नमः श्रीं श्रीं अहं वद वद वाग्वादिनी भगवती सरस्वत्यै नमः स्वाहा विद्यां देहि मम ह्रीं सरस्वत्यै स्वाहा। विद्या प्राप्ति के लिए - गुरु गृह गये पढ़न रघुराई, अल्प काल विद्या सब आई। ज्ञान की प्राप्ति के लिए - छिति जल पावक गगन समीरा। पंच रचित अति अधम समीरा॥ सरस्वती मंत्र - तरुण शकल मिन्दो विभ्रती शुभ्रकांति कुच भरनामितांगी सन्निषण्णा सिताब्जै। निज कर कमलोधल्लेखनी पुस्तक श्रीः, सकल विभव सिद्धयै पातु वाग्देवता नः॥ - ध्यानम - ¬ घण्टाशूलहलानि शंखमुसले चक्रं धनुः सायकं - हस्ताब्जैर्दधतींघनान्त विलसच्छी तांशुतुल्यप्रणाम्। गौरीदेह समुद्भवां त्रिजगतामाधार भूतां महापूर्वामत्र सरस्वतीमनुभजे शुम्भादिदैत्यार्दिनीम्। कुशाग्र बुद्धि हेतु - सर्वस्य बुद्धिरूपेण जनस्यहृदि संस्थिते। स्वर्गापवर्गदे देवि नारायणि नमोअस्तुते॥ - विद्यावन्तं यशश्वन्तं लक्ष्मीवन्तं जनं कुरु रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि। उत्तम ज्ञान, शिक्षा, अध्ययन हेतु - विधासु शास्त्रेषु विवेकदीपे स्वाधेषु वाक्येषु च कात्वदन्या। नमत्वगर्ते अति महान्धकारे, विभ्राभयत्येतदतीव विश्वम॥ समस्त विद्याओं हेतु - - विद्याः समस्तास्तव देवि भेदाः स्त्रिय; समस्तयासकला जगत्सु। त्वयैकया पूरितमम्बयैतत का ते स्तुतिः स्तव्यपरा परोति॥ परीक्षा में सफलता हेतु -प्रणो देवि सरस्वति वाजे भिर्वाजिनीवती। धनिभत्यवतु। नोट : मंत्र का जप प्रतिदिन एक माला करें। मंत्र जप शुरू करने से पहले स्नान आदि करके शरीर को शुद्ध कर लें। मंत्र जप के लिए ब्राह्म मुहूर्त का समय सबसे उत्तम होता है। वैसे तो जब भी खाली समय हो, मंत्र का जप कर सकते हैं। जप पूर्व की ओर मुख करके करना चाहिए। जप किसी आसन पर बैठकर करना चाहिए ताकि शरीर का सीधा संपर्क जमीन से न हो। जप यथासंभव रुद्राक्ष या तुलसी की माला पर करें। जप करते समय माला को किसी वस्त्र से ढक कर रखें। जप करते समय माला फेरने में तर्जनी का किसी भी प्रकार से इस्तेमाल न करें। जप मन ही मन भी किया जा सकता है। यदि जप करते समय मन में अन्य विचार उत्पन्न हों तो मंत्र का उच्चारण तेज आवाज में कर सकते हैं - जब तक मन से विचार निकल न जाए। मन शांत होने पर पुनः मानस जप किया जा सकता है। मंत्रोचारण शुद्ध होना चाहिए। उच्चारण में त्रुटि आने से फल की प्राप्ति में परिवर्तन की संभावना उत्पन्न हो जाती है। जप जल्दबाजी व हड़बड़ाहट में न करें। जप समाप्त होने पर ही आसन का त्याग करें। शिक्षा क्षेत्र के चयन संबंधी योग इसलिए जन्मकुंडली में ग्रहों की स्थिति को देखते हुए ही क्षेत्र का चयन करना चाहिए। अध्यापक बनने के योग : पंचमेश बली होकर पंचम भाव अथवा केंद्र में स्थित हो। बुध स्वराशिगत हो, सिंह राशि में हो, कुंडली में पंचम भाव में ही बुधादित्य योग हो, तो अध्यापक बनने के योग होते हैं। पंचम भाव का स्वामी पंचम में और बुध व गुरु एकादश भाव में हों, तो जातक कालेज अथवा विश्वविद्यालय में प्रोफेसर होता है। बुध, सूर्य और गुरु का संबंध द्वितीय, पंचम नवम या एकादश भाव में हो। बुध और गुरु सप्तम अथवा दशम भाव में और सूर्य द्वितीय भाव में हो, तो अध्यापक बनने के योग होते हैं। शुक्र सप्तम में, सूर्य पंचम में और गुरु दशम भाव में हो, तो अध्यापक बनने के योग होते हैं। गणितज्ञ योग : गुरु केंद्र में, बुध द्वितीय में और शुक्र उच्च राशि में या स्वराशिगत हो, तो जातक गणितज्ञ होता है। मंगल लग्न में और बुध मिथुन अथवा कन्या राशि में हो, तो जातक गणित का विद्वान होता है। बुध और चंद्र एकादश भाव में और सूर्य पंचम भाव में हो। लग्न में गुरु तथा एकादश भाव में सूर्य अथवा चंद्र हो। लग्न से पांचवें भाव में केतु, तथा स्वराशिगत और वृहस्पति की दृष्टि पड़ रही हो तो जातक गणितज्ञ होता है। बुध और मंगल द्वितीय भाव में, चंद्र पंचम भाव में तथा गुरु केंद्र में हो, तो जातक गणित का विद्वान होता है। चंद्र और मंगल द्वितीय भाव में, बुध पंचम भाव में तथा गुरु एकादश भाव में हो, तो जातक गणितज्ञ होता है। मंगल, चंद्र तथा गुरु का संबंध द्वितीय, दशम अथवा एकादश भाव में हो, तो जातक गणितज्ञ होता है। इंजीनियर योग : दशमेश मंगल द्वितीय भाव में सूर्य और शुक्र के साथ हो और गुरु देख रहा हो, तो जातक इंजीनियर बनता है। सूर्य और बुध की युति लग्न में, गुरु एकादश भाव में, पंचम भाव में चंद्र और केतु नवम भाव में हो, तो जातक इंजीनियर बनता है। शनि एकादश में, सूर्य और मंगल द्वितीय में और बुध पंचम भाव में हो, तो जातक इंजीनियर बनता है। मीन राशि का शुक्र द्वादश भाव में और शनि केंद्र में हो तथा मंगल की दृष्टि हो और गुरु देखता हो, तो जातक विदेश में इंजीनियर की शिक्षा प्राप्त करता है। शनि लग्न में, राहु तृतीय में, गुरु एकादश में तथा चंद्र पंचम भाव में हो, तो जातक इंजीनियर बनता है। शनि अष्टम में, गुरु द्वितीय में और मंगल पंचम भाव में हो, तो जातक इंजीनियरिंग का क्षेत्र चुनता है। शुक्र स्वराशिगत अथवा उच्च राशि का हो, और उसकी शनि और मंगल से युति हो तथा शुक्र पर गुरु की दृष्टि पड़ रही हो, तो जातक इंजीनियर बनता है। शुक्र और शनि की युति हो, गुरु की दृष्टि पड़ रही हो और मंगल दशम भाव में हो, तो जातक इंजीनियर बनता है। चिकित्सक योग : सूर्य और बुध औषधियों के कारक ग्रह हैं। चंद्र सफेद रक्त कणों का, मंगल रक्त का तथा शनि और राहु अस्थियों, चर्म व मृत शरीर के कारक हैं। दशम भाव व्यवसाय का, द्वितीय आय का, पंचम विद्या का और एकादश भाव लाभ का स्थान है। यदि उक्त ग्रहों का संबंधित भावों में युति हो या दृष्टि संबंध हो, तो जातक चिकित्सक बनता है। चंद्र दशम में तथा मंगल और शनि द्वितीय भाव में हों, तो जातक डॉक्टरी शिक्षा प्राप्त करता है। सूर्य और मंगल की दशम भाव में युति हो और शनि एकादश भाव में स्थित हो, तो जातक डॉक्टरी शिक्षा प्राप्त करता है। पंचम में मंगल, तृतीय में शनि और एकादश भाव में चंद्र व बुध हों, तो जातक डॉक्टरी शिक्षा प्राप्त करता है। बुध लग्न में, चंद्र और शनि एकादश में तथा मंगल दशम भाव में हो तो जातक डॉक्टरी शिक्षा ग्रहण करता है। शुक्र और चंद्र दशम में, सूर्य चतुर्थ में तथा मंगल द्वितीय भाव में हो, तो जातक डॉक्टरी शिक्षा प्राप्त करता है। सूर्य और मंगल पंचम में, शनि नवम में तथा गुरु लग्न में हो, तो जातक डॉक्टरी शिक्षा ग्रहण करता है। अभिनेता बनने के योग : मंगल उच्च राशि में होकर छठे भाव में चंद्र के साथ, द्वितीयेश व एकादशेश पंचम भाव में तथा दशमेश शुक्र की युति हो, तो जातक विख्यात अभिनेता बनता है। शुक्र स्वराशिगत होकर केंद्र अथवा त्रिकोण में चंद्र के साथ बैठा हो। चंद्र और शुक्र पंचम भाव में और सूर्य लग्न में स्थित हो। बुध और शुक्र द्वितीय में और चंद्र सप्तम भाव में हो, तो जातक मंच पर अभिनय करने वाला होता है। सूर्य और बुध पंचम में, शुक्र सप्तम में तथा चंद्र लग्न में हो, तो जातक विख्यात अभिनेता बनता है। राजनीतिज्ञ बनने के योग : पंचम में शनि, राहु और मंगल हों और द्वितीय भाव में मंगल हो, तो जातक दलितों की सहायता से विख्यात राजनीतिज्ञ बनता है। सूर्य लग्न में, गुरु पंचम में, शनि नवम में तथा मंगल दशम भाव में हो, तो जातक राजनीति में बाहर तरक्की करता है। गुरु व सूर्य द्वितीय में, शनि और राहु पंचम में तथा मंगल अष्टम भाव में हो, तो जातक सफल राजनीतिज्ञ होता है। मंगल द्वितीय भाव में तथा बुध, शुक्र और शनि पंचम भाव में हों, तो जातक राजनीति में दक्ष होता है। आध्यात्मिक एवं ज्योतिषी योग : सूर्य और बुध पंचम भाव में धनु राशि पर, गुरु लग्न में और शनि एकादश भाव में हो, तो जातक आध्यात्मिक प्रवृत्ति का होता है। बुध ग्रह का संबंध द्वितीयेश, पंचमेश, अथवा नवमेश के साथ हो, तो जातक आध्यात्मिक होता है। नवमेश नवम में, मंगल दशम में और बुध पंचम भाव में हो, तो जातक आध्यात्मिक होता है। बुध लग्न में, मंगल दशम में और बुध एकादश भाव में हो, तो जातक अध्यात्म और ज्योतिष विद्या में रुचि लेता है। चंद्र चतुर्थ में, गुरु एकादश भाव में और शुक्र केंद्र में स्वराशिगत हो, तो जातक ज्योतिष विद्या में गहरी रुचि लेता है। सूर्य और गुरु लग्न में, चंद्र पंचम में और शुक्र द्वितीय में हो, तो जातक ज्योतिष विद्या में निपुण होता है। उच्च शिक्षा हेतु क्षेत्र चयन उच्च शिक्षा हेतु पंचम भाव विचारणीय होता है। भौतिक शास्त्र : यह विषय हमारे ब्रह्मांड में उपस्थित पदार्थों, ऊर्जा, समय तथा अंतरिक्ष से संबंध रखता है। इसलिए ऊपर वर्णित घटकों से संबंधित ग्रह ही इस विषय में रुचि उत्पन्न करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। अतः भौतिक शास्त्र का उच्च शिक्षा में चयन करना हो, तो सूर्य मुख्य ग्रह है तथा शनि और बुध सूर्य के सहायक ग्रह सिद्ध होंगे। इन तीनों ग्रहों का संबंध जब पंचम भाव से जन्म कुंडली व नवांश कुंडली में हो तो जातक भौतिक शास्त्र का चयन अपनी उच्च अध्ययन के लिए कर सकता है। रसायन शास्त्र : रसायन शास्त्र में आपसी क्रियाओं को आधार के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। जल तत्व की राशियां (कर्क, वृश्चिक तथा मीन) व जल के कारक चंद्र की रसायन शास्त्र से संबंधित उच्च शिक्षा के चयन में मुख्य भूमिका होती है। उक्त तीनों जल तत्व राशियों में से वृश्चिक राशि व उसके स्वामी मंगल की भूमिका केमिकल प्रोसेसिंग में मुख्य रूप से देखी जाती है। इस तरह रसायन शास्त्र के मुख्य कारक ग्रह चंद्र तथा मंगल हैं। यदि तकनीकी ग्रह मंगल के साथ शनि का प्रभाव भी हो, तो प्रभाव और बढ़ सकता है। जीव विज्ञान : ज्योतिष शास्त्र में गुरु का संबंध जीव से है। पंचम भाव, गुरु व अन्य तकनीकी ग्रह से बनने वाले योग जातक को जीव विज्ञान के क्षेत्र में उच्च शिक्षा के लिए प्रेरित करते हैं। वनस्पति और जीव-जंतु : गुरु, केतु तथा शुक्र का प्रभाव यदि पंचम भाव पर हो या इन ग्रहों का उक्त भाव से संबंध हो तो जातक जीव-जंतु और वनस्पति विज्ञान की शिक्षा प्राप्त करता है। यदि जातक की जन्मकुंडली व नवांश कुंडली में पंचम गुरु, चंद्र तथा केतु का संबंध हो, तो वह उच्च शिक्षा के लिए माइक्रो बायोलॉजी के क्षेत्र का चयन कर सकता है। इसके अतिरिक्त यदि जन्मकुंडली में पंचम या पंचमेश का अष्टम या अष्टमेश से संबंध हो, तो जातक की अनुसंधान कार्य रुचि होती है। बायो टेक्नोलॉजी : यह विषय जीव विज्ञान की तकनीकों के इस्तेमाल से कुछ खास प्रयोगों को अंजाम देता है, जो पूरी मानव जाती के विकास में सहायक होते हैं। ड्रग्स, सिंथेटिक हारमोन्स, फसलों की नई-नई संकर नस्लों का आविष्कार, कनवर्जन, ऑर्गेनिक वेस्ट इत्यादि का संबंध इसी विषय से है। इस विषय के चयन, प्रवेश और सफलता हेतु निम्न ज्योतिषीय ग्रह स्थितिय अनिवार्य है। १. उक्त विषय के कारक ग्रह का जन्मकुंडली व नवांश कुंडली में बली होना अति आवश्यक है। २. तकनीकी ग्रहों (मंगल, शनि, राहु आदि) का संबंध भी पंचम भाव या पंचमेश से होना जरूरी है। केमिकल प्रोसेसिंग से संबंधित जलीय राशियों तथा जल के कारक ग्रह चंद्र का भी पंचम तथा पंचमेश से संबंध अति आवश्यक है। होटल मैनेजमेंट : शुक्र इस व्यवसाय (Hotel Industries) का मुख्य कारक ग्रह है। होटल में घर जैसी सुख सुविधा तथा उम्दा भोजन का होना अति आवश्यक है। ये दोनों बातें चतुर्थ तथा द्वितीय भावों के कारक तत्वों में शामिल हैं। इसलिए द्वितीय, चतुर्थ तथा कर्म (दशम) भावों की शुक्र के साथ स्थिति या युती व दृष्टि संबंध जातक की कुंडली में होना अति आवश्यक है। यह प्रभाव नवांश तथा दशमांश कुंडलियों में भी विचारणीय होता है। जैसा प्रत्येक उच्च शिक्षा के लिए पंचम भाव विचारणीय होता है। लेकिन इस विषय ( Hotel Management)े का सीधा संबंध व्यवसाय से होता है, इसलिए पंचम के साथ-साथ दशम भाव भी समान रूप से विचारणीय होता है। ऐसे में पंचम व दशम भाव से शुक्र के संबंधों का विश्लेषण भी अति आवश्यक होता है। पंचम व पंचमेश तथा दशम व दशमेश पर शुक्र के प्रभाव फलस्वरूप जातक की इस विषय में रुचि होती है। पंचमेश तथा दशमेश में संबंध जातक की शिक्षा का इस्तेमाल प्रयोगात्मक रूप से होने की संभावना दर्शाता है। क्योंकि इस विषय का मुख्य कारक गुरु है, इसलिए जन्मकुंडली, नवांश व दशमांश में गुरु का लग्न व लग्नेश, दशम व दशमेश तथा शुक्र से संबंध अनिवार्य रूप से विचारणीय होता है। मेकैनिकल इंजीनियरिंग : इसके अंतर्गत विभिन्न वस्तुओं का उत्पादन व निर्माण शामिल है। जैसे वायुयान, वाहन, बड़ी-बड़ी मशीनों की हीटिंग व कूलिंग प्रणाली, इमारतें, पुल, औद्योगिक जगत में इस्तेमाल होने वाले औजार व अन्य छोटे-बड़े उपकरण। अतः भौतिकी के सिद्धांतों का इसमें मुख्य रूप से प्रयोग होता है, जिसके कारण मंगल की इसमें अहम भूमिका होती है। मेकैनिकल इंजीनियरिंग की शिक्षा प्राप्त करने वाले जातक की कुंडली में - शिक्षा के भाव पंचम व पंचमेश का कर्म भाव, दशम व दशमेश में स्थिति, युति व दृष्टि संबंध होना चाहिए। सूर्य, शनि तथा मंगल का भी पंचम व पंचमेश तथा दशम व दशमेश से स्थिति, युति या दृष्टि संबंध अनिवार्य है। इंजीनियरिंग के मुख्य पैरामीटरों के साथ- साथ चतुर्थ भाव व भावेश तथा बुध का संबंध भी अनिवार्य रूप से विचारणीय होता है। केमिकल इंजीनियरिंग : जैसा कि नाम से ही पता चलता है, इसमें केमिकल्स की भूमिका अहम होती है। इसलिए इंजीनियरिंग के मुख्य पैरामीटरों के साथ-साथ जल के कारक ग्रह चंद्र तथा तीनों जलीय राशियों के संबंधों का पंचम/पंचमेश व दशम/दशमेश से pAC का विश्लेषण अति आवश्यक है। अतः चंद्र तथा तीनों जलीय राशियों के अक्षों पर स्थित ग्रहों का ज्योतिषीय विशलेषण जरूरी होता है। इलेक्ट्रिकल और इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग यदि इलेक्ट्रिकल के विषय में विचार करना हो, तो इंजीनियरिंग से संबंधित अन्य आधारभूत विश्लेषणों के साथ-साथ अग्नि तत्व राशियों (मेष, सिंह व धनु) के संबंधों का विश्लेषण जरूरी हो जाता है। यदि इलेक्टॉनिक्स इंजीनियरिंग की शिक्षा में प्रवाह के कारक ग्रह बुध का प्रभाव अहम भूमिका अदा करता है। अतः पंचम/पंचमेश, दशम/दशमेश, सूर्य, शनि व मंगल के साथ-साथ बुध की स्थिति का विचार भी आवश्यक है। कंप्यूटर साइंस इंजीनियरिंग : कंप्यूटर के क्षेत्र की शिक्षा अपने आप में इलेक्ट्रॉनिक इंजीनियरिंग को भी समाए हुए है और आजकल इसमें कंप्यूटर के क्षेत्र में इनफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी को भी शामिल किया गया है। कंप्यूटर का उपयोग व्यापार जगत, विज्ञान जगत, चिकित्सा, मनोरंजन, शिक्षा जगत, मौसम विभाग, इंजीनियरिंग आदि में विशेष रूप से देखा जा सकता है। कंप्यूटर की उच्च शिक्षा में विभिन्न विधाओं से जुड़े ग्रहों का विश्लेषण इस प्रकार है : सूर्य - विद्युत, इलेक्ट्रॉन्स तथा प्रकाश मंगल तथा शनि - इंजीनियरिंग बुध - कम्यूनिकेशन डेटा तथा इन्फॉर्मेशन प्रॉसेसिंग सभी अग्नि तत्व राशियां केतु : कंप्यूटर लैंग्वेज प्रॉसेसिंग और प्रोग्रामिंग ये पांचों घटक मिलकर कंप्यूटर के क्षेत्र में उच्च शिक्षा प्राप्ति की दिशा तय करते हैं। नोट : यहां यह बात ध्यान देने योग्य है कि कंप्यूटर की अन्य शिक्षाएं अलग है तथा कंप्यूटर भाषा और प्रोग्रामिंग की शिक्षा अलग। इसलिए कंप्यूटर भाषा और प्रोग्रामिंग की उच्च शिक्षा में मुख्य भूमिका केतु की होती है, शेष सभी ग्रहों के प्रभाव केतु के सामने गौण हो जाते हैं। केतु का पंचम और पंचमेश से दृष्टि/युति संबंध होना जातक को कंप्यूटर भाषा और प्रोग्रामिंग की शिक्षा प्राप्ति व सफलता की संभावना को प्रबल बनाता है। बुध का संबंध प्रत्येक कंप्यूटर कोर्स के लिए अनिवार्य है। राजनीति विज्ञान : सूर्य का पंचम/पंचमेश से संबंध हो। सूर्य बली हो तथा उसका दशम/दशमेश से भी संबंध हो। बुध का पंचम/पंचमेश तथा दशम/दशमेश से कोई संबंध न हो। यदि बुध निर्बल हो तो सूर्य का प्रभाव बढ़ जाता है। तकनीकी ग्रह (मंगल, सूर्य आदि) का प्रभाव भी पंचम/पंचमेश, दशम/ दशमेश तथा सूर्य पर न हो । विधि शिक्षा या कानून (वकालत) शिक्षा का यह क्षेत्र न्याय से संबंध रखता है और न्याय करने वाले जातक में निष्पक्ष निर्णय लेने की क्षमता, संतुलित दिमाग तथा समाज के विषय में व्यावहारिक ज्ञान का होना अति आवश्यक है। ये सभी बातें गुरु के कारक तत्वों में आती हैं। सच व झूठ में अंतर करने के लिए बुध ग्रह बुद्धि व विवेक कि शक्ति प्रदान करता है। तर्क शक्ति व वाद विवाद का सामर्थ्य मंगल से प्राप्त होता है और सूर्य जातक को शालीनता के साथ आधिकारिक रूप से दंड देने का अधिकार प्रदान करता है। षष्ठम भाव कानून का भाव है। इस भाव से विधि प्रवर्तन का विचार किया जाता है। उच्च शिक्षा व व्यवसाय हेतु पंचम, दशम व नवम भावों का विश्लेषण किया जाता है। मकर राशि को न्याय की राशि माना सूर्य, मंगल, बुध तथा गुरु का पंचम, दशम, द्वितीय, तृतीय और षष्ठ से संबंध विधि की उच्च शिक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। ललित कला इस क्षेत्र में शिक्षा पाने के लिए मुख्य ग्रह चंद्र तथा शुक्र का बली होना और इन तीनों का परस्पर संबंध होना अति आवश्यक है। लग्न/लग्नेश, पंचम/पंचमेश तथा दशम/दशमेश से भी ऊपर वर्णित तीनों ग्रहों का संबंध जरूरी है। तभी जातक ललित कलाओं की शिक्षा ग्रहण कर सकता है। कुछ अन्य योग जो ललित कला की शिक्षा में सहायक होते हैं, इस प्रकार हैं। जातक का जन्म मिथुन, कन्या, कर्क, वृष या तुला लग्न का हो, तो ललित कला की शिक्षा की संभावना प्रबल होती है। ऊपर वर्णित लग्नों की जन्मकुंडली में यदि गुरु और बुध बली हों तथा चंद्र व शुक्र से संबंध स्थापित हो रहा हो, तो इस क्षेत्र के दरवाजे जातक के लिए खुल जाते हैं। कर्क लग्न की कुंडली में चंद्र पूर्ण बली हो तथा शुक्र से उसका परस्पर संबंध भी हो, तो जातक की ललित कला की शिक्षा में रुचि प्रबल होती है। चतुर्थ भाव जनता का भाव होता है। अतः चतुर्थ और चतुर्थ भाव से संबंधित सभी पक्षों के शुभ होने की स्थिति में जातक को जनता के बीच लोकप्रियता मिलती है। यदि शनि और शुक्र का संबंध कुंडली में हो, तो जातक जनता के ऊपर अपना प्रभाव आसानी से जमा लेता है तथा उसके प्रशंसकों की संख्या में शनि के कारण वृद्धि होती है। यदि जातक नृत्य के क्षेत्र से जुड़ना चाहता हो, तो मीन व धनु राशि का प्रभाव भी अहम होता है। सूर्य ख्याति का कारक ग्रह है। बुध व चतुर्थ भाव वाणी का है। शनि गायक को लंबी तान खींचने में सहायता करता है। मंगल जातक के शरीर में शक्ति का संचार करता है, जो उसकी कला में जान फूंकती है। पत्रकारिता व संपादन : पत्रकारिता व संपादन के दो मुख्य आधार स्तंभ है - विषय का विश्लेषण तथा लेखन शक्ति द्वारा विषय की व्याख्या करने की क्षमता। पत्रकारिता में प्रवेश के लिए गुरु व बुध का पारस्परिक संबंध मुख्य भूमिका अदा करता है। गुरु की राशि (मीन) तथा बुध की राशि (कन्या) व इन दोनों राशियों में स्थित ग्रहों का संबंध यदि गुरु और बुध से स्थापित हो रहा हो, तो उनका विश्लेषण भी विचारणीय होता है। मन के कारक ग्रह चंद्र का संबंध गुरु व बुध से हो। अतः चंद्रमा, गुरु और बुध में पारस्परिक संबंध जातक का रुझान पत्रकारिता की ओर करता है। जातक की शिक्षा का विषय पत्रकारिता होता है। तृतीय भाव लेखन, संपादन तथा प्रकाशन का भाव है। नवम व नवमेश (भाग्य व ख्याति) का भी विशेष योगदान इस क्षेत्र में होना अति आवश्यक है। अतः गुरु व बुध तथा पंचम/पंचमेश, दशम/दशमेश के साथ-साथ तृतीय/तृतीयेश तथा नवम/नवमेश के संबंधों से बनने वाले योग ही यह बताते हैं कि जातक की रुचि पत्रकारिता की शिक्षा में होगी या नहीं। |
सोमवार, 15 फ़रवरी 2010
जातक का शिक्षा क्षेत्र
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