बुधवार, 20 नवंबर 2024

काम भावना और ज्योतिष

 मनुष्य में काम वासना एक जन्मजात प्रवृति और वह इससे आजीवन प्रभावित संचालित होता है । किसी व्यक्ति में इस भावना का प्रतिशत कम या किसी में ज्यादा हो सकता है । ज्योतिष के अनुसार यह पता लगाया जा सकता है की व्यक्ति में काम भावना किस रूप में विद्यमान है और वह उसका प्रयोग किन क्षत्रों में कितने अंशों में कर रहा हैं | 

प्रस्तुत लेख मे हम आज इसी विषय पर जानकारी देने का प्रयास कर रहे हैं |

लग्न अथवा लग्नेश

1. यदि लग्न और बारहवें भाव के स्वामी एक हो कर केंद्र/त्रिकोण में बैठ जाएँ या एक दूसरे से केंद्रवर्ती हो या आपस में स्थान परिवर्तन कर रहे हों तो पर्वत योग का निर्माण होता है । इस योग के चलते जहां व्यक्ति भाग्यशाली, विद्या प्रिय, कर्मशील, दानी, यशस्वी, घर जमीन का अधिपति होता है वहीं अत्यंत कामी और कभी कभी पर स्त्री गमन करने वाला भी होता है |

2. यदि लग्नेश सप्तम स्थान पर हो तो ऐसे व्यक्ति की रूचि विपरीत सेक्स के प्रति अधिक होती है । उस व्यक्ति का पूरा चिंतन मनन, विचार व्यवहार का केंद्र बिंदु उसका प्रिय ही होता है ।

3. यदि लग्नेश सप्तम स्थान पर हो और सप्तमेश लग्न में हो, तो जातक स्त्री और दोनों में रूचि रखता है, उसे समय पर जैसा साथी मिल जाए वह अपनी शारीरिक भूख मिटा लेता है । यदि केवल सप्तमेश लग्न में स्थित हो तो जातक में काम वासना अधिक होती है तथा उसमें रतिक्रिया करते समय पशु प्रवृति उत्पन्न हो जाती है और वह निषिद्ध स्थानों को अपनी जिह्वा से चाटने लगता हैं |

4. यदि लग्नेश ग्यारहवें भाव में स्थित हो तो जातक अप्राकृतिक सेक्स और हस्त मैथुन (मैस्टरबेशन) आदि प्रवृत्तियों से ग्रसित रहता है और ऐसी क्रियाएँ उसे आनंद और तृप्ति प्रदान करती हैं ।

5. लग्न में शुक्र की युति 2/7/6 के स्वामी के साथ हो तो जातक का चरित्र संदिग्ध ही रहता है ।

6. मीन लग्न में सूर्य और शुक्र की युति लग्न/चतुर्थ भाव में हो या सूर्य शुक्र की युति सप्तम भाव में हो और अष्टम में पुरुष राशि हो तो स्त्री,स्त्री राशि होने पर पुरुष अपनी तरकी या अपना कठिन कार्य हल करने के लिए अपने साथी के अतिरिक्त अन्य से सम्बन्ध स्थापित करते हैं ।

सप्तम भाव

1. सातवें भाव में मंगल, बुद्ध और शुक्र की युति हो इस युति पर कोई शुभ प्रभाव न हो और गुरु केंद्र में उपस्थित न हो तो जातक अपनी कामपूर्ति अप्राकृतिक तरीकों से करता है ।

2. मंगल और शनि सप्तम स्थान पर स्थित हो तो जातक समलिंगी (होमसेक्सुअल) होता है, अकुलीन वर्ग की महिलाओं के संपर्क में रहता है । अष्टम /नवम /द्वादश भाव का मंगल भी अधिक काम वासना उत्पन्न करता है, ऐसा जातक गुरु पत्नी को भी नहीं छोड़ पाता |

3. तुला राशि मे चन्द्र शुक्र की युति जातक की काम वासना को कई गुणा बढ़ा देती है । अगर इस युति पर राहु/मंगल की दृष्टि भी हो तो जातक अपनी वासना की पूर्ति के लिए किसी भी हद तक जा सकता है ।

4. तुला राशि में चार या अधिक ग्रहों की उपस्थिति भी काम संबंधो के कारण पारिवारिक कलेश का कारण बनती है ।

5. दूषित शुक्र और बुद्ध की युति सप्तम भाव में हो तो जातक काम वासना की पूर्ति के लिए गुप्त तरीके खोजता है |

चन्द्रमा

1. चन्द्रमा बारहवें भाव में मीन राशि में हो तो जातक अनेकों का उपभोग करता है ।

2. नवम भाव में दूषित चन्द्रमा की उपस्थिति गुरु/शिक्षक/मार्गदर्शक के साथ व्यभिचार करने के उकसाते हैं ।

3. सप्तम भाव में क्षीण चन्द्रमा किसी पाप ग्रह के साथ बैठा हो तो जातक विवाहित स्त्री से आकर्षित होता है ।

4. नीच का चन्द्रमा सप्तम स्थान पर हो तो जातक आपने नौकर/नौकरानी से शारीरिक सम्बन्ध बनाते हैं ।

 मंगल

1. मंगल की उपस्थिति 8/9/12 भाव में हो तो जातक कामुक होता है ।

2. मंगल सप्तम भाव में हो और उसपर कोई शुभ प्रभाव न हो तो जातक नाबालिकों के साथ सम्बन्ध बनाता है ।

3. मंगल की राशि में शुक्र या शुक्र की राशि में मंगल की उपस्थित हो तो जातक में कामुकता अधिक होती है ।

4. जातक कामांध होकर पशु सामान व्यवहार करता है यदि मंगल और एक पाप ग्रह सप्तम में स्थित हो या सूर्य सप्तम में और मंगल चतुर्थ भाव हो या मंगल चतुर्थ भाव में और राहु सप्तम भाव में हो या शुक्र मंगल की राशि में स्थित होकर सप्तम को देखता हो ।

शुक्र

1. यदि शुक्र स्वक्षेत्री, मुलत्रिकोण राशि या अपने उच्च राशि का हो कर लग्न से केंद्र में हो तो मालव्य योग बनता है । इस योग में व्यक्ति सुन्दर, गुणी,संपत्ति युक्त, उत्साह शक्ति से पूर्ण, सलाह देने या मंत्रणा करने में निपुण होने के साथ साथ परस्त्रीगामी भी होता है । ऐसा व्यक्ति समाज में अत्यंत प्रतिष्ठा से रहता है तथा आपने ही स्तर की महिला/पुरुष से संपर्क रखते हुए भी अपनी प्रतिष्ठा पर आंच नहीं आने देता है,समाज भी सब कुछ जानते हुए उसे आदर सम्मान देता रहता है ।

2. सप्तम भाव में शुक्र की उपस्थिति जातक को कामुकता प्रदान करती है ।

3. शुक्र के ऊपर मंगल /राहु का प्रभाव जातक को काफी लोगों से शरीरिक सम्बन्ध बनाने के लिए उकसाता है ।

4. शुक्र तीसरे भाव में स्थित हो और मंगल से दूषित हो, छठे भाव में मंगल की राशि हो और चन्द्रमा बारहवें स्थान पर हो तो व्यभिचारी प्रवृतियां अधिक होती है ।

5. शुक्र के ऊपर शनि की दृष्टि/युति/प्रभाव जातक में अत्याधिक हस्त मैथुन (मैस्टरबेशन) की प्रवृति उत्पन्न करते हैं ।

गुरु

1. गुरु लग्न/चतुर्थ/सप्तम/दशम स्थान पर हो या पुरुष राशि में छठे भाव में हो या द्वादश भाव में हो, जातक अपनी वासना की पूर्ति के लिए सभी सीमाओं को तोडालता है ।

2. छठे भाव में गुरु यदि पुरुष राशि में बैठा हो तो जातक काम प्रिय होता है ।

शनि

1. यदि शनि स्वक्षेत्री, मूलत्रिकोण राशि या अपनी उच्च राशि का होकर लग्न से केंद्रवर्ती हो तो शशः योग बनता है । ऐसा व्यक्ति राजा,सचिव, जंगल पहाड़ पर घूमने वाला, पराये धन का अपहरण करने वाला,दूसरों की कमजोरियों को जानने वाला,दूसरों की पती से सम्बन्ध स्थापित करने की इच्छा करने वाला होता है । कभी कभी अपने इस दुराचार के लिए उसकी प्रतिष्ठा कलंकित हो सकती है, वह दूसरों की नजरों में गिर सकता है और समाज में अपमानित भी हो सकता है ।

2. शनि लग्न में हो तो जातक में वासना अधिक होती है, पंचम भाव में शनि अपनी से बढ़ी उम्र की स्त्री से आकर्षण, सप्तम में होने से व्यभिचारी प्रवृति, चन्द्रमा के साथ होने पर वेश्यागामी, मंगल के साथ होने पर स्त्री में और शुक्र के साथ होने पर पुरुष में कामुकता अधिक होती है ।

3. दशम स्थान का शनि विरोधाभास उत्पन्न करता है, जातक कभी कभी ज्ञान वैराग्य की बात करता है तो कभी कभी कामशास्त्र का गंभीरता से विश्लेषण करता है काम और सन्यास के बीच जातक झूलता रहता है ।

4. दूषित शनि यदि चतुर्थ भाव में उपस्थित हो तो जातक की वासना उसे इन्सेस्ट (परिवार मे ही संबंध बनाने) की और अग्रसर करती है ।

5. शनि की चन्द्रमा/शुक्र/मंगल के साथ युति जातक में काम वासना को काफी बढ़ा देती है |

 

सोमवार, 18 नवंबर 2024

कैसा होगा आपका जीवनसाथी ?


जीवनसाथी जैसा कि नाम से पता चल रहा है कि इस लोक के जीवन को जीने के लिए हमें एक साथी अथवा साझेदार की आवश्यकता होती है । जन्म, मरण,परण (शादी) पूर्व निर्धारित होते हैं भले ही हमें लगे कि हमने प्रेम विवाह किया है और ईश्वर की इसमें कोइ भूमिका नहीं, तो यह मिथ्या है क्योंकि हमारा प्रेम किस व्यक्ति/महिला मे होगा ? यह भी हमारे वश में नहीं । वास्तविकता यह है कि सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड कर्म बन्धन में बंधा होता है अर्थात् हमारे इस जीवन में जीवनसाथी के रूप में केवल वही जीव (आत्मा) जुड़ेगा जिसका कि हमसे कोई पुराना लेना - देना है अर्थात् पुराने जन्म का कर्जदार अथवा पुराने जन्म का देनदार ही इस जीवन में अपने पुराने कर्मों को चुकाने के लिए जीवनसाथी बनता है । पूर्वजन्मों के हमारे कर्म ये तय करते हैं कि इस जीवन में हमें वैवाहिक सुख मिलेगा या नहीं मिलेगा और यदि मिलेगा तो उसकी प्रकृति, मात्रा, गुण कैसे होंगे ? अब प्रश्न यह उठता है कि पूर्वजन्म के कर्म तो हमें याद ही नहीं और यदि याद आ भी जाएं तो अब उसकी परिणिति किस रूप में होगी, ये कैसे जानें ?

किसी भी जातक की जन्मपत्रिका के द्वारा उसके भूत, वर्तमान और भविष्य का अनुमान लगाया जा सकता है ।  अब उसके वैवाहिक सुख और जीवनसाथी के संबंध में सूचना उसकी जन्मपत्रिका के सप्तम भाव से और सप्तमेश की प्रकृति से लगाया जा सकता है । उसका सूक्ष्म और सटीक अवलोकन सप्तम भाव, भावेश के नक्षत्रों और उपस्वामी को देखकर किया जा सकता है क्योंकि सप्तम भाव एक साझेदारी को दर्शाता है । साझेदार जिस प्रकार लाभ - हानि में हमारे साथ उत्तराधिकारी होता है ठीक वैसे ही जीवनसाथी भी सुख-दुःख में हमारा साथ देता है । यदि सप्तम भाव और सप्तमेश शुभ ग्रह के भाव हों और उनका सही भावों में बैठना हो एवं उन पर शुभ ग्रहों की दृष्टि की अधिकता हो, तो कम उम्र में ही अच्छा वैवाहिक सुख प्राप्त हो जाता है । व्यक्ति सन्तुष्टिपूर्ण तरीके से वैवाहिक जीवन गुजार लेता है किंतु यदि सप्तम भाव के स्वामी क्रूर या पापी हों और उन पर पाप ग्रहों की दृष्टि हो अथवा उनकी स्थिति सही नहीं हो, तो दाम्पत्य सुख नहीं मिलता है अथवा देर से मिलता है अथवा मिलने पर असंतुष्टि बनी रहती है । वर्तमान परिप्रेक्ष्य में अधिक पढ़ाई - लिखाई करने के कारण सबसे अधिक नकारात्मक प्रभाव यदि किसी क्षेत्र पर पड़ा है, तो वह वैवाहिक पक्ष ही है । वास्तव पुनः उत्पादन का कारक गुरु ही है । शुक्र को भी प्रजनन का कारक माना जाता है किन्तु शुक्र सिर्फ भोग व आनंद को दर्शाता है,जब तक उससे गुरु संयुक्त नहीं होगा, निषेचन नहीं होगा, क्योंकि फल का कारक गुरु है, अतः गुरु वैवाहिक जीवन के संतान उत्पत्ति उद्देश्य की पूर्ति में सहायक है । अब गुरु ग्रह का दोहन विद्याअर्जन में अधिक हुआ है, अतः वैवाहिक सुख कम होता जा रहा है । यही कारण है कि अधिक पढ़ी - लिखी स्त्रियां या दम्पत्ति कम बच्चों में विश्वास रखते हैं जबकि कम पढ़े-लिखे दम्पत्ति गुरु का प्रयोग प्रजनन से जोड़ते हैं ।

यदि सप्तम भाव में मेष या वृश्चिक राशि पड़े और इस भाव में मंगल बैठा हो अथवा दृष्टिपात करे, तो जातक का जीवनसाथी बड़ा ऊर्जावान् होगा और उसे पूर्ण सुख प्रदान करेगा । हालांकि इसे मांगलिक दोष माना जाता है जिसके कारण वैचारिक मतभेद अथवा स्वास्थ्य संबंधी परेशानी हो सकती है । जीवनसाथी का वर्ण लालिमा लिए हुए होगा गठीला शरीर और घुंघराले बाल हो सकते हैं ।

यदि सप्तम भाव में वृषभ अथवा तुला राशि पड़े तो जातक का साथी सुंदर होगा । सांसारिक विद्याओं से परिपूर्ण होगा । उसके कलात्मक गुण होने के साथ-साथ कामुकता के गुण भी पाए जा सकते हैं । उसकी चमड़ी चमकीली, बाल सीधे, मोटे होने की संभावना होती है ।

यदि सप्तम भाव में बुध अथवा कन्या राशि पड़े अथवा बुध ग्रह का निवास हो, तो जातक के दम्पत्ति में व्यावहारिकता कूट - कूटकर भरी होगी । इनका शरीर छरहरा होगा अथवा उसमें वही तेजी से परिवर्तन होता रहेगा ।

यदि सप्तम भाव में धनु अथवा मीन हो अथवा गुरु स्थित हो, तो जातक को बुद्धिमान किंतु अपनी चलाने वाला दम्पति प्राप्त होता है । ऐसे में जातक उसकी बुद्धिमत्ता का कायल होते हुए भी उसकी प्रशंसा नहीं कर पाता अधिकांशतः गौरवर्ण अथवा स्थूल शरीर वाला होगा ।

यदि सप्तम भाव में कुम्भ या अथवा शनि स्थित हो, तो जातक का जीवनसाथी धीरे किंतु ठोस कदम चलने वाला होता है किन्तु आश्चर्य की बात है कि ऐसे में लग्नेश या तो कर्क (चंद्रमा) या सिंह सूर्य होगा अतः विपरीत विचारधारा होने के कारण वैवाहिक सुख में कमी पाई जाती है । यही स्थिति सप्तम भाव में सिंह अथवा कर्क राशि की पड़ने अथवा सूर्य, चंद्रमा की स्थिति होने पर भी देखा जाता है । यद्यपि इन सभी फलों पर दृष्टि, दशा, गोचर आदि का प्रभाव अस्त, वक्री अवस्था का प्रभाव पड़ता है ।

 

गुरुवार, 14 नवंबर 2024

कब नहीं होता विवाह ?



प्रत्येक युवक - युवती का सपना होता है कि उसे सर्वश्रेष्ठ जीवनसाथी मिले । इसके लिए विवाह की उम्र होते ही  माता - पिता अपने बच्चो के वर अथवा वधू की तलाश शुरू कर देते है, परन्तु बहुत प्रयास करने के बाद भी विवाह होने में कई अड़चनें आती रहती हैं । इन विवाह अड़चनों को दूर करने हेतु अनेको उपाय करने के बाद भी कुछ जातको का विवाह नहीं हो पाता है जिससे पूरा जीवन बिना जीवनसाथी के गुजारना पड़ता है ।

जन्मपत्रिका में ऐसे कौन से योग होते हैं, जिनके कारण जातक उपाय करवाने के बाद भी अविवाहित रह जाता है । ऐसे ही कुछ योगो को यहां दिया जा रहा है ।

1. सप्तम भाव में शुक्र स्वराशि का हो और उस पर पाप ग्रह की दृष्टि हो, तो विवाह नहीं होता हैं

2. सप्तम भाव में राहु हो तथा उस पर पापग्रह का प्रभाव होतो विवाह नहीं होता और यदि विवाह हो भी जाए, तो जीवनसाथी की मृत्यु/विच्छेद होने की संभावना रहती है  ।

3. प्रथम, सप्तम, द्वादश भाव में पापग्रह तथा पापग्रह की राशि में क्षीण चन्द्रमा पंचम भाव में हो, तो जातक अविवाहित रहता है । (क्षीण चन्द्रमा कृष्णपक्ष की पंचमी से शुक्लपक्ष की पंचमी के मध्य होता है)

4. पंचम, सप्तम अथवा नवम भाव में मंगल -  शुक्र की युति विवाह में अवरोधक होती है ।

5. यदि जन्मपत्रिका में चन्द्रमा और शुक्र साथ में स्थित हों और उनसे सप्तम भाव में शनि - मंगल की युति हो, तो विवाह में अड़चन आती है । ऐसा जातक स्वयं ही संबंध को नकारता रहता है ।

6. यदि मकर लग्न हो, लग्नेश शनि सप्तम भाव में हो,सप्तमेश चन्द्रमा बारहवे भाव में स्थित हो, तो अविवाहित योग बनता है ।

7. शुक्र, बुध की सप्तम भाव में युति विवाह सुख प्रदान नहीं करती ।

8. सप्तम भाव में स्थित मंगल विवाह विच्छेद प्रदान करता है । इस पर शनि की दृष्टि एक से अधिक विवाह का योग भी प्रदान करती है ।

9. सप्तम भाव बली हो, शुभ ग्रह की दृष्टि हो, परन्तु अगर भोग भाव (द्वादश भाव) निर्बल हो, शत्रु ग्रह स्थित हों, तो विवाह होने में परेशानी आती है ।

10. लग्नेश नीच का हो तथा नवांश में शत्रु राशि में स्थित हो, तो विवाह नहीं होता अथवा स्त्री छोड़कर चली जाती है |

11. चन्द्रमा और शुक्र पापयुक्त हो, तो स्त्री सुख में कमी करता है ।

12. सप्तम भाव पापयुक्त हो एवं एक से अधिक ग्रह की दृष्टि हो, तो स्त्री प्राप्ति में व्यवधान आता है।

13. सप्तम भाव में चन्द्रमा हो, सप्तमेश व्यय स्थान में हो तथा स्त्रीकारक ग्रह शुक्र निर्बल हो, तो विवाह सुख प्राप्त नहीं होता ।

14. सप्तम भाव में पापग्रह हों एवं सप्तमेश निर्बल हो, तो स्त्री सुख में कमी प्रदान करता है ।

मंगलवार, 12 नवंबर 2024

पहले खुद को जाने

एक संन्यासी सारी दुनिया की यात्रा करके भारत वापस लौटा था । एक छोटी सी रियासत में मेहमान हुआ । उस रियासत के राजा ने जाकर उस संन्यासी को कहा स्वामी, एक प्रश्न बीस वर्षों से निरंतर पूछ रहा हूं। कोई उत्तर नहीं मिलता। क्या आप मुझे उत्तर देंगे?

स्वामी ने कहा निश्चित दूंगा ।

वह राजा हंसा, उसने कहा कि इतना निश्चय न दें, इतना आश्वासन न दें, क्योकि न मालूम कितने संन्यासियों से मैने पूछा है वहीं प्रश्न और उत्तर नहीं पाता हूं ।

उस संन्यासी ने उस राजा से कहा नहीं, आज तुम खाली उत्तर नहीं लौटोगे । पूछो ।

उस राजा ने कहा मैं ईश्वर से मिलना चाहता हूं और पहले ही बता दूं कृपा करके गीता के श्लोक पढ़कर समझाने की कोशिश मत करना, वह मैने काफी सुन लिया है । उपनिषद और वेदों की बातें सुनने की भी मेरी कोई इच्छा नहीं है, वे मैने सब पढ़ लिए हैं । ईश्वर को समझाने की कोशिश मत करना मैं तो सीधा मिलना चाहता हूं मिलवा सकते हो तो कह दें, हां, न मिलवा सकते हो तो कह दें, ; मैं वापस लौट जाऊंगा

यही उसने न मालूम कितने संन्यासियों से पूछा था हमेशा संन्यासी चौंक गए होंगे, लेकिन इस बार उस राजा को ही चौंक जाना पड़ा,उस संन्यासी ने कहा अभी मिलना चाहते हैं कि थोड़ी देर ठहर कर?

इसकी आशा भी न थी, अपेक्षा भी न थी । राजा थोड़ा चिंतित हुआ, सोचा उसने, शायद मेरी बात समझी नहीं गई । न मालूम यह कोई ईश्वर नाम वाले आदमी से मिलाने की बात तो नहीं समझ रहे? तो उसने कहाः माफ करिए, शायद आप समझे नहीं । मैं परम पिता परमात्मा की बात कर रहा हूं, किसी ईश्वर नाम वाले आदमी की नहीं, जो आप कहते हैं कि अभी मिलना है कि थोड़ी देर रुक सकते हो ?

उस संन्यासी ने कहाः महानुभाव, भूलने की कोई गुंजाइश नहीं है । मैं तो चौबीस घंटे परमात्मा से मिलाने का धंधा ही करता हूं । अभी मिलना है कि थोड़ी देर रुक सकते हैं, सीधा जवाब दें ।

उस राजा ने भी कभी सोचा नहीं था कि कोई आदमी इतनी जल्दी मिलवाने को तैयार हो जाएगा । ऐसे आपको भी कोई मिल जाए और एकदम से कह दे कि अभी मिलना है कि थोड़ी देर बाद? तो आप कहेंगे: थोड़ा मैं घर पूछ आऊं, पत्नी से, बच्चों से, इतनी जल्दी भी क्या! पता नहीं मिलने का क्या परिणाम हो । वह राजा भी थोड़ा परेशान हुआ ।

संन्यासी ने कहाः इतना परेशान क्यों होते हैं ? जब बीस साल से मिलने को उत्सुक थे और आज वक्त आ गया तो मिल लो ।

राजा ने हिम्मत की, उसने कहा अच्छा मैं अभी मिलना चाहता हूं, मिला दीजिए ।

संन्यासी ने कहा कृपा करो, इस छोटे से कागज पर अपना पता लिख दो ताकि में भगवान के पास पहुंचा दू कि आप कौन है ।

राजा ने कहा यह तो ठीक है । मुझसे भी कोई मिलता है तो पता पूछ लेता हूँ नाम, ठिकाना, परिचय । राजा ने लिखा अपना नाम, अपना महल, अपना परिचय, अपनी उपाधियां और उसे दी |

वह संन्यासी बोला कि महाशय, ये सब बातें मुझे बिल्कुल झूठ और असत्य मालूम होती है जो आपने कागज पर लिखीं |

वह राजा बोला मैं पहले ही शक में पड़ गया था कि आप आदमी कुछ गड़बड़ हो । भगवान से मिलवाने की बात इतनी आसान ! कल्पना में भी नहीं उठती थी तभी में समझ गया था कि या तो यह आदमी पागल है, और या फिर मैं पागल हूँ । यह हो क्या रहा है, यहां भगवान से मिलवाना हुआ जा रहा है ! यह मेरा ही परिचय है । मैं हूं राजा इस राज्य का । यह मेरा ही नाम है ।

उस संन्यासी ने कहा मित्र, अगर तुम्हारा नाम बदल दें तो क्या तुम बदल जाओगे ?  तुम्हारा अ नाम से ब कर दें तो फर्क पड़ जाएगा कुछ ? तुम्हारी चेतना, तुम्हारी सत्ता, तुम्हारा व्यक्तित्व दूसरा हो जाएगा ?

उस राजा ने कहा नहीं, नाम के बदलने से मैं क्यों बदलूंगा ?  नाम नाम है, मैं मैं हूँ ।

तो संन्यासी ने कहा एक बात तय हो गई कि नाम तुम्हारा परिचय नहीं है, क्योंकि तुम उसके बदलने से बदलते नहीं । आज तुम उसके बदलने से बदलते नहीं । आज तुम राजा हो, कल गांव के भिखारी हो जाओ तो बदल जाओगे ?

उस राजा ने कहा नहीं, राज्य चला जाएगा, भिखारी हो जाऊंगा, लेकिन मैं क्यों बदल जाऊंगा ? मैं तो जो हूं हूं । राजा होकर जो हूं, भिखारी होकर भी वही रहूँगा । न होगा मकान, न होगा राज्य, न होगी धन-संपत्ति, लेकिन मै? मैं तो वही रहूंगा जो मैं हूं |

तो संन्यासी ने कहाः तय हो गई दूसरी बात कि राज्य तुम्हारा परिचय नहीं है, क्योंकि राज्य छिन जाए तो भी तुम बदलते नहीं । तुम्हारी उम्र कितनी है ?

उसने कहा चालीस वर्ष ।

संन्यासी ने कहा तो पचास वर्ष के होकर तुम दूसरे हो जाओगे ?  बीस वर्ष के जब थे तब दूसरे थे ?  बच्चे जब थे तब दूसरे थे ?  जवान जब हो गए, दूसरे हो गए ?  बूढ़े जब हो जाओगे तो दूसरे ?

उस राजा ने कहा नहीं उम्र बदलती है, शरीर बदलता है, लेकिन मैं? मैं तो जो बचपन में था, जो मेरे भीतर था, वह आज भी है, कल भी रहेगा । मैं तो एक सातत्य हूं | मैं तो एक कंटीन्यूटी हूं । मेरे भीतर तो एक सतत कोई है, चेतना, जो कुछ भी कहें, जीवन कहें, वह हूं मैं ।

उस अन्यासी ने कहा फिर उम्र भी तुम्हारा परिचय नहीं रहा,शरीर भी तुम्हारा परिचय नहीं रहा फिर तुम कौन हो उसे लिख दो तो पहुंचा दू ईश्वर के पास नहीं तो मैं भी झूठा बनूँगा तुम्हारे साथ,यह कोई भी परिचय तुम्हारा नहीं है ।

राजा बोला तब तो बड़ी कठिनाई हो गई । उसे तो मैं भी नहीं जानता फिर जो मैं हूँ उसे तो मैं भी नहीं जानता । इन्हीं को मैं जानता हूँ मेरा होना ।

उस सन्यासी ने कहा फिर तो बड़ी कठिनाई हो गयी क्यूंकी जिसका मै परिचय भी न दे सकू, बता भी न सकूं कि कौन मिलना चाहता हैं तो भगवान भी क्या कहनेगे की किसको मिलाना चाहते हो ? तो जाओ पहले इसको खोज लो की तुम कौन हो और मैं तुमसे कहे देता हू कि है,जिस दिन तुम यह जान लोगे कि तुम कौन हो, उस दिन तुम आओगे नहीं भगवान को खोजने । क्योंकि खुद को जानने में वह भी जान लिया जाता हैं जो परमात्मा हैं |

वो मूर्तियों में नहीं है, और न नामों में है, और न चित्रों में, और न रूपों में, न मंदिरों में जो उसे वहां खोजता है, वह एक झूठे भगवान के पीछे दौड़ रहा है जो आदमी के द्वारा बनाया गया है । आदमी के द्वारा बनाया हुआ भगवान आदमी से बड़ा नहीं है, नहीं हो सकता है । उसमें आदमी के बनाए हुए भगवान के नाम पर झगड़े, उपद्रव, परेशानी खड़ी आदमी की सब क्षुद्रताएं, आदमी की करतूत है वह । और इसीलिए तो आदमी के बनाए हुये भगवान के नाम पर झगड़े,परेशानी खड़ी होती रही हैं हो रही हैं यह सारी जमीन बंट गई है -हिंदुओं में,मुसलमानों में, जैनों में, ईसाइयों में । आदमी - आदमी बंट गया है, खंडित हो गया है । किसके द्वारा ? आदमी के द्वारा बनाए हुए भगवान ! आदमी को तोड़ने का मार्ग बन गए हैं, जोड़ने का नहीं ।

लेकिन जो परमात्मा है, जो सत्य है, जो हम सबका जीवन है, उसे यदि हम सब जानेंगे तो मनुष्य टूटेगा नहीं, जुड़ जाएगा उसे हम जानेंगे तो प्रेम की एक धार सारे जगत में व्याप्त हो जाएगी उसे हम जानेंगे तो जीवन का अर्थ, जीवन का अभिप्राय कुछ और हो जाएगा । उस भगवान की इधर हम तीन दिनों तक बात कर रहे हैं कि उसको कैसे जाना जा सके |

लेकिन उसको हम छोड़ दे रहे हैं, इसलिए कि उसे जानने का सवाल उठता नहीं, जब तक कि हम उसे न जान लें जो हम हैं । इसलिए हम पूरी कोशिश कर रहे हैं इस बात को विचार करने की कि यह में कौन हूं? इसे कैसे जान सकूं? सच्चे धर्म का संबंध मनुष्य के सत्य को जानने से है । सच्चे धर्म की खोज, मनुष्य के भीतर जो छिपा है, उसे पहचान लेने से है और वह एक दफा पहचान लिया जाए तो वही पहचान आखिर में परमात्मा की पहचान सिद्ध होती है । उसके अतिरिक्त और कभी कहीं कोई परमात्मा न जाना गया है, न जाना जा सकता है । जो खुद को ही नहीं जानता वह और क्या जान सकेगा ?

ओशो,(अपने माहिं टटोल)