प्रश्न : रूलिंग ग्रह का प्रश्न फलकथन में क्या स्थान है ?
उत्तर : किसी भी
समय पर कुछ ग्रहों का स्वामित्व होता है। उस समय के स्वामी ग्रहों को रूलिंग ग्रह
कहते हैं। प्रश्न के कारक ग्रहों का जब-जब स्वामित्व आता है तब-तब वह घटना घटती है
। इस आधार पर प्रश्न के उत्तर का काल निकालने में रूलिंग ग्रह सहायक होते हैं |
प्रश्न के समय
के आधार पर बनाई.. गई लग्न कुंडली के अनुसार- निम्नलिखित रूलिंग ग्रह होते हैं।
• वार का स्वामी:
अर्थात जिस दिन प्रश्न पूछा गया।
• चंद्र राशि
स्वामी : प्रश्न के समय चंद्र जिस राशि में था।
• चंद्र नक्षत्र
स्वामी : प्रश्न के समय चंद्र किस नक्षत्र में था।
• लग्नेश : प्रश्न
के समय क्या लग्न था।
• लग्न नक्षत्र
स्वामी : प्रश्न समय जो नक्षत्र उदय हो रहा था ।
प्रश्न : 249
अंकों के आधार पर प्रश्न का उत्तर कैसे दें ?
उत्तर : जब भी
कोई जातक प्रश्न करता है, उस समय की गोचर स्थिति के अनुसार
सर्वप्रथम प्रश्न लग्न कुंडली बना कर- रुलिंग ग्रहों को जानें। प्रश्नकर्ता को 1 से
249 अंकों के बीच का कोई अंक बताने को कहें। वह जो अंक बताए उसका संबंध
किस राशि, नक्षत्र और उप नक्षत्र से है यह जान लें।
अब प्रश्नकर्ता के प्रश्न के विषय पर ध्यान दें और जानें प्रश्न का संबंध या विषय
के कारक भाव कौन-कौन से हैं। यदि रूलिंग ग्रह और बताए गए अंक के नक्षत्र उप स्वामी
का संबंध उन भावों से हो, तो प्रश्नकर्ता का कार्य हो जाएगा यदि
नहीं तो नहीं होगा |
प्रश्न : घटना
का समय निर्धारण कैसे करें?
उत्तर : जिस विषय
के प्रश्न की घटना के बारे में जानना हो, उस विषय का जिन
भावों से संबंध हो अर्थात जो भाव उस विषय के कारक हों और रूलिंग ग्रहों का संबंध
उन भावों से बन रहा हो, तो उन्हीं की विंशोत्तरी दशा, अंतर्दशा
और प्रत्यंतर्दशा में घटना घटित होगी।
प्रश्न : क्या कृष्णमूर्ति
पद्धति केवल प्रश्न फलकथन में ही सक्ष्म है?
उत्तर :
कृष्णमूर्ति पद्धति प्रश्न फल कथन के अतिरिक्त लग्न कुंडली से भी संपूर्ण जीवन के
फल-कथन में सक्षम है। इस पद्धति से भविष्य में होने वाली किसी भी घटना के समय का
पूर्व निर्धारण किया जा सकता है।
प्रश्न :
कृष्णमूर्ति पद्धति में भाव चलित लेना चाहिए या निरयण भाव चलित?
उत्तर :
कृष्णमूर्ति पद्धति में निरयन भाव चलित लेना चाहिए क्योंकि कृष्णमूर्ति पद्धति के
सभी नियम निरयण भाव चलित पर ही आधारित हैं।
प्रश्न :
कृष्णमूर्ति पद्धति में कौन सा अयनांश लेना चाहिए?
उत्तर :
कृष्णमूर्ति पद्धति के नियमों के अनुसार के. पी. अयनांश ही लेना चाहिए, लेकिन
क्योंकि के. पी., लहरी और चित्रापक्षीय अयनांश में कोई
विशेष अंतर नहीं है, इसलिए चित्रपक्षी अयनांश भी
लिया जा सकता है क्योंकि सब से मान्यता अधिक चित्रापक्षीय अयनांश को ही प्राप्त
है।
प्रश्न :
कृष्णमूर्ति पद्धति में विंशोत्तरी दशा के अतिरिक्त किसी अन्य दशा को भी लिया जा
सकता है?
उत्तर :
कृष्णमूर्ति पद्धति में विंशोत्तरी दशा ही मान्य है, क्योंकि
विंशोत्तरी ही के. पी. का आधार है। इसलिए विंशोत्तरी के अतिरिक्त किसी भी अन्य दशा
के आधार पर भविष्यवाणी करना 'ठीक नहीं होगा।
प्रश्न: क्या
के. पी. अन्य पद्धतियों से एक दम भिन्न है?
उत्तर : सभी
पद्धतियों का आधार एक ही है- जन्म लग्न कुंडली बना कर भविष्यवाणी करना। लेकिन
भविष्यवाणी करने के लिए-अग्रिम गणना .भिन्न हैं। इसलिए के. पी. को भी अन्य पद्धतियों
से भिन्न ही मानना चाहिए। इनमें समानता यहीं है कि सभी का आधार जन्म लग्न और नौ
ग्रह ही हैं।
प्रश्न: क्या
कृष्णमूर्ति पद्धति से वर्ष फल कथन किया जा सकता है?
उत्तर :
कृष्णमूर्ति पद्धति में वर्षफल निकालने का कोई नियम नहीं है। यह पद्धति वर्ष फल की
बात नहीं करती ।
प्रश्न: क्या
कृष्णमूर्ति पद्धति वैदिक पद्धति से अधिक सक्षम है?
उत्तर :
कृष्णमूर्ति पद्धति वैदिक पद्धति का ही नवीन रूप है, जिसके माध्यम से
फल कथन सरलता से किया जा सकता है। वैसे तो वैदिक पद्धति अपने आप में सक्षम है
लेकिन फलकथन में किसी निर्णय तक सूक्ष्मता से पहुंचने के लिए कृष्णमूर्ति पद्धति
सक्षम है, ऐसा कृष्णमूर्ति पद्धति से फलकथन करने वालों का
मानना है |