शुक्रवार, 20 दिसंबर 2024

के पी पद्दती .....3

 प्रश्न : रूलिंग ग्रह का प्रश्न फलकथन में क्या स्थान है ?

उत्तर : किसी भी समय पर कुछ ग्रहों का स्वामित्व होता है। उस समय के स्वामी ग्रहों को रूलिंग ग्रह कहते हैं। प्रश्न के कारक ग्रहों का जब-जब स्वामित्व आता है तब-तब वह घटना घटती है । इस आधार पर प्रश्न के उत्तर का काल निकालने में रूलिंग ग्रह सहायक होते हैं |

प्रश्न के समय के आधार पर बनाई.. गई लग्न कुंडली के अनुसार- निम्नलिखित रूलिंग ग्रह होते हैं।

वार का स्वामी: अर्थात जिस दिन प्रश्न पूछा गया।

चंद्र राशि स्वामी : प्रश्न के समय चंद्र जिस राशि में था।

चंद्र नक्षत्र स्वामी : प्रश्न के समय चंद्र किस नक्षत्र में था।

लग्नेश : प्रश्न के समय क्या लग्न था।

लग्न नक्षत्र स्वामी : प्रश्न समय जो नक्षत्र उदय हो रहा था

प्रश्न : 249 अंकों के आधार पर प्रश्न का उत्तर कैसे दें ?

उत्तर : जब भी कोई जातक प्रश्न करता है, उस समय की गोचर स्थिति के अनुसार सर्वप्रथम प्रश्न लग्न कुंडली बना कर- रुलिंग ग्रहों को जानें। प्रश्नकर्ता को 1 से 249 अंकों के बीच का कोई अंक बताने को कहें। वह जो अंक बताए उसका संबंध किस राशि, नक्षत्र और उप नक्षत्र से है यह जान लें। अब प्रश्नकर्ता के प्रश्न के विषय पर ध्यान दें और जानें प्रश्न का संबंध या विषय के कारक भाव कौन-कौन से हैं। यदि रूलिंग ग्रह और बताए गए अंक के नक्षत्र उप स्वामी का संबंध उन भावों से हो, तो प्रश्नकर्ता का कार्य हो जाएगा यदि नहीं तो नहीं होगा |

प्रश्न : घटना का समय निर्धारण कैसे करें?

उत्तर : जिस विषय के प्रश्न की घटना के बारे में जानना हो, उस विषय का जिन भावों से संबंध हो अर्थात जो भाव उस विषय के कारक हों और रूलिंग ग्रहों का संबंध उन भावों से बन रहा हो, तो उन्हीं की विंशोत्तरी दशा, अंतर्दशा और प्रत्यंतर्दशा में घटना घटित होगी।

प्रश्न : क्या कृष्णमूर्ति पद्धति केवल प्रश्न फलकथन में ही सक्ष्म है?

उत्तर : कृष्णमूर्ति पद्धति प्रश्न फल कथन के अतिरिक्त लग्न कुंडली से भी संपूर्ण जीवन के फल-कथन में सक्षम है। इस पद्धति से भविष्य में होने वाली किसी भी घटना के समय का पूर्व निर्धारण किया जा सकता है।

प्रश्न : कृष्णमूर्ति पद्धति में भाव चलित लेना चाहिए या निरयण भाव चलित?

उत्तर : कृष्णमूर्ति पद्धति में निरयन भाव चलित लेना चाहिए क्योंकि कृष्णमूर्ति पद्धति के सभी नियम निरयण भाव चलित पर ही आधारित हैं।

प्रश्न : कृष्णमूर्ति पद्धति में कौन सा अयनांश लेना चाहिए?

उत्तर : कृष्णमूर्ति पद्धति के नियमों के अनुसार के. पी. अयनांश ही लेना चाहिए, लेकिन क्योंकि के. पी., लहरी और चित्रापक्षीय अयनांश में कोई विशेष अंतर नहीं है, इसलिए चित्रपक्षी अयनांश भी लिया जा सकता है क्योंकि सब से मान्यता अधिक चित्रापक्षीय अयनांश को ही प्राप्त है।

प्रश्न : कृष्णमूर्ति पद्धति में विंशोत्तरी दशा के अतिरिक्त किसी अन्य दशा को भी लिया जा सकता है?

उत्तर : कृष्णमूर्ति पद्धति में विंशोत्तरी दशा ही मान्य है, क्योंकि विंशोत्तरी ही के. पी. का आधार है। इसलिए विंशोत्तरी के अतिरिक्त किसी भी अन्य दशा के आधार पर भविष्यवाणी करना 'ठीक नहीं होगा।

प्रश्न: क्या के. पी. अन्य पद्धतियों से एक दम भिन्न है?

उत्तर : सभी पद्धतियों का आधार एक ही है- जन्म लग्न कुंडली बना कर भविष्यवाणी करना। लेकिन भविष्यवाणी करने के लिए-अग्रिम गणना .भिन्न हैं। इसलिए के. पी. को भी अन्य पद्धतियों से भिन्न ही मानना चाहिए। इनमें समानता यहीं है कि सभी का आधार जन्म लग्न और नौ ग्रह ही हैं।

प्रश्न: क्या कृष्णमूर्ति पद्धति से वर्ष फल कथन किया जा सकता है?

उत्तर : कृष्णमूर्ति पद्धति में वर्षफल निकालने का कोई नियम नहीं है। यह पद्धति वर्ष फल की बात नहीं करती ।

प्रश्न: क्या कृष्णमूर्ति पद्धति वैदिक पद्धति से अधिक सक्षम है?

उत्तर : कृष्णमूर्ति पद्धति वैदिक पद्धति का ही नवीन रूप है, जिसके माध्यम से फल कथन सरलता से किया जा सकता है। वैसे तो वैदिक पद्धति अपने आप में सक्षम है लेकिन फलकथन में किसी निर्णय तक सूक्ष्मता से पहुंचने के लिए कृष्णमूर्ति पद्धति सक्षम है, ऐसा कृष्णमूर्ति पद्धति से फलकथन करने वालों का मानना है |

बुधवार, 18 दिसंबर 2024

के पी पद्दती .......2

 प्रश्न : कृष्णमूर्ति पद्धति में नक्षत्र स्वामी और नक्षत्र उप स्वामी को महत्व दिया गया जबकि वैदिक पद्धति में राशि स्वामी को ऐसा क्यों?

उत्तर : कृष्णमूर्ति पद्धति की यही विशेषता है कि उसमें नक्षत्र स्वामी और नक्षत्र उप स्वामी तक की गणना होती है । यही सूक्ष्मता है । ज्योतिष में हम नवग्रहों के मानव पर पड़ने वाले प्रभाव का अध्ययन करते हैं । ग्रह भचक्र में घूमते हैं, भचक्र पूरे 360° का होता है । कोई ग्रह किस अंश पर है, इसकी पूर्ण जानकारी के लिए भचक्र को 12 राशियों में बांटा गया है । इस प्रकार प्रत्येक राशि 30° की होती है । ग्रह राशि के जिस अंश पर रहेगा उस अंश पर किस ग्रह का अधिकार होगा यह जानने के लिए नक्षत्र का प्रयोग किया जाता है । प्रत्येक नक्षत्र 13°20′. का होता है । प्रत्येक नक्षेत्र का भी ग्रह स्वामी होता है । नक्षत्र को आगे नौ भागों में विभक्त कर यह जाना गया कि किस अंश पर किस ग्रह का अधिंकार होगा। उस अंश पर जिस ग्रह का अधिकार होता है वही उसी का प्रभाव जातक पर पड़ता है |

प्रश्न : कृष्णमूर्ति पद्धति में नक्षत्र उप स्वामी के अतिरिक्त और किस का महत्व होतां है?

उत्तर : कृष्णमूर्ति पद्धति में नक्षत्र उप स्वामी के अतिरिक्त भावों के कारक ग्रहों का महत्व होता है । कौन सा ग्रह किस भाव के लिए शुभाशुभ कार्य करेगा यह भाव के कारक ग्रहों पर निर्भर करता है । कारक ग्रह जितना बली होगा, उसका प्रभाव भी उस भाव पर उतना ही अधिक होगा

प्रश्न : भाव कारक का बल किस पर निर्भर करता है?

उत्तर : भाव कारक का बल भाव में स्थित ग्रह, भाव में स्थित ग्रह के नक्षत्र में स्थित ग्रह, भाव के स्वामी, भाव के स्वामी के नक्षत्र में स्थित ग्रह जैसे-गुरु अपनी मीन राशि में, अपने ही नक्षत्र में स्थित और गुरु के नक्षत्र में और भी ग्रह स्थित हों तो गुरु का बल बढ़ जाता है अर्थात गुरु जिस भाव में स्थित होगा उस भाव का शुभाशुभ फल देगा | यदि गुरु शुभ है, तो शुभ फल और यदि अशुभ है, तो अशुभ फल देगा ।

प्रश्न : विभिन्न कार्यों के लिए किस-किस भाव को देखना चाहिए?

उत्तर : विभिन्न कार्यों के लिए अलगअलग भाव को देखना चाहिए । जैसे आयु की जानकारी के लिए भाव 1, 8, 12 स्वयं जातक के लिए - 2, 9, 4 पिता की आयु के लिए 3, 9, 6. 10 माता की आयु के लिए 2, 5, 10 तथा भाई की आयु के लिए कार्य करते हैं । इसी प्रकार· शादी के लिए 2, 7, 11, तलाक के लिए 2, 6, 12 भावों का विश्लेषण करना चाहिए, बच्चों के लिए 2, 5, 11, व्यवसाय या नौकरी के लिए 2, 6, -10, 11, अचल संपत्ति के लिए 4, 11, 12 और विद्या के लिए 4, 8, 9, 11 भावों का विश्लेषण करना चाहिएं।

प्रश्न : प्रश्न ज्योतिष के लिए कृष्णमूर्ति पद्धति का क्या महत्व है?

उत्तर : कृष्णमूर्ति पद्धति विशेष कर प्रश्न फलकथन करने में सक्षम है । प्रश्न फल कथन के लिए कृष्णमूर्ति पद्धति में रूलिंग ग्रहों और गोचर को विशेष स्थान दिया जाता है । जन्मपत्रिका न होने पर यदि जातक के मन में कोई प्रश्न हो, तो उसका उत्तर कृष्णमूर्ति पद्धति से उतना ही सही दिया जा सकता है जितना जन्मपत्रिका से ।

प्रश्न : प्रश्नों के उत्तर देने में कृष्णमूर्ति पद्धति किस आधार पर कार्य करती है?

उत्तर : प्रश्नों के उत्तर देने के लिए 1 से 249 अंकों का कृष्णमूर्ति पद्धति में अपना एक विशेष स्थान है | 249 अंक में प्रत्येक अंक पर नक्षत्र उप स्वामी का अधिकार होता है । इसके अतिरिक्त पूछे गए प्रश्न के समय के अनुसार प्रश्न लग्न, गोचर ग्रहों की स्थिति और रूलिंग ग्रह इन तीनों के आधार पर प्रश्न का उत्तर दिया जाता है ।

प्रश्न : 249 अंक क्या है?

उत्तर : जंब प्रत्येक नक्षत्र को नौ भाग: में विंशोत्तरी अनुपात के अनुसार बांटा गया, तो पूरे भचक्र के 27 नक्षत्रों के विभाजन 249 हुए अर्थात पूरे भचक्र को 249 भागों में विभक्त करने पर यह अंक प्राप्त हुए और प्रत्येक अंक नौ ग्रहों में से किसी का प्रतिनिधित्व करता है |

प्रश्न : यदि प्रत्येक नक्षत्र के नौ भाग किए जाएं, तो कुल 27 नक्षत्रों में 243 भाग होते हैं, लेकिन अंक 249 हैं, कैसे?

उत्तर : यह बात ठीक है कि यदि प्रत्येक नक्षत्र के नौ भाग हों तो 27 नक्षत्रों के कुल 243 भाग होते हैं। और यह 6 भाग अंतिरिक्त कैसे हुए जब प्रत्येक नक्षत्र को नौ भाग में विभक्त किया गया तो नक्षत्रों की भांति नक्षत्र उप भाग क्षेत्र में दो राशियों में चला गया अर्थात कुछ भाग पहली राशि में तो कुछ भाग दूसरी राशि में । इसलिए जिस उप नक्षत्र का क्षेत्र दूसरी राशि में गया,उसे दो भागों में बांट दिया गया। इस प्रकार उस नक्षत्र सब को एक अतिरिक्त अंक प्राप्त हुआ। क्योंकि यह बटवारा सभी 27 नक्षत्रों में 6 बार हुआ, इसलिए 6 भाग अतिरिक्त हुए और कुल भाग 249 |

मंगलवार, 17 दिसंबर 2024

के पी पद्धति ......1


समय - समय पर ज्योतिष के क्षेत्र मे विभिन्न विषयों पर अनुसंधान होते आए हैं फलस्वरूप ज्योतिष की कई पद्धतियों की उत्पत्ति हुई । 20वीं सदी में कृष्णमूर्ति नामक महान ज्योतिर्विद हुए जिन्होंने ज्योतिष में अपने प्रयोगों द्वारा एक नवीन सूक्ष्म पद्धति का अविष्कार किया जो उन्हीं के नाम से प्रसिद्ध है | आज कई ज्योतिषी इसके अनुयायी है |

कृष्णमूर्ति जी ने अपनी इस पद्धति में नक्षत्र और विंशोत्तरी दशा को आधार माना है । जन्म लग्न, ग्रह स्पष्ट और विंशोत्तरी दशा निकालने का तरीका वही है जो आमतौर पर प्रयोग में लाया जाता है । जन्म लग्न स्पष्टं करने के बाद भाव स्पष्ट करने के लिए उन्होंने प्लेसिडस पद्धति का प्रयोग किया है । ग्रहों और भावों को स्पष्ट कर उनके नक्षत्र स्वामी और नक्षत्र उप स्वामी तक निकाला है |

नक्षत्र उप स्वामी निकालने के लिए प्रत्येक नक्षत्र की अंश अवधि को नौ भागों में विंशोत्तरी दशा अनुपात अनुसार विभक्त किया जाता है । प्रत्येक भाग के स्वामी नवग्रह विंशोत्तरी क्रम में ही रखे जाते हैं अर्थात् केतु, शुक्र, सूर्य, शनि और बुध आदि ।

गणना में सभी ग्रहों और भावों को स्पष्ट कर उनके नक्षत्र स्वामी और नक्षत्र उप स्वामी निकालना कृष्णमूर्ति पद्धति की विशेषता है । इसी के आधार पर कुंडली में शुभाशुभ ग्रहों को जाना जाता है ।

प्रश्न : वैदिक ज्योतिष पद्धति और कृष्णमूर्ति पद्धति में क्या अंतर है?

उत्तर : वैदिक ज्योतिष पद्धति के अनुसार फलित करते समय जन्म लग्न, भाव चलित, षोडश वर्ग, षडबल, विंशोत्तरी दशा, योगिनी दशा आदि का. प्रयोग किया जाता है और ग्रह की शुभता अशुभता की गणना ग्रहों की राशि अनुसार की जाती है जबकि कृष्णमूर्ति पद्धति में फलित करने के लिए जन्म लग्न, निरयण भाव चलित, भावों और ग्रहों के नक्षत्र स्वामी और नक्षत्र उप स्वामी की विंशोत्तरी दशांतर्दशा का प्रयोग किया जाता है और ग्रहों की शुभ्रता-अशुभता उनके नक्षत्र और नक्षत्र उप स्वामी से जानी जाती है |

वैदिक ज्योतिष के अनुसार ग्रह उस भाव का फल देता है जिसका वह स्वामी होता है, जिसमें स्थित होता है और जिस पर उसकी दृष्टि होती है। कृष्णमूर्ति पद्धति के अनुसार ग्रह उन भावों का फल देता है जिन का वह कारक होता है |

वैदिक ज्योतिष के अनुसार फलित करते समय ग्रह का गोचर कुंडली में चंद्र की स्थिति से देखा जाता है । इस पद्धति अनुसार ग्रहों का गोचरं उनकी उप नक्षत्र स्वामी की स्थिति पर निर्भर करता है ।

प्रश्न : क्या कृष्णमूर्ति पद्धति से घंटे-मिनट तक की भी भविष्यवाणी की जा सकती है?

उत्तर : हां, कृष्णमूर्ति पद्धति घंटे-मिनट तक का फलकथन करने में सक्षम है क्योंकि इस पद्धति में हर के भांव और ग्रह अंशों तक की सूक्ष्म गणना कर फलकथन करने का विधान है |

प्रश्न : कृष्णमूर्ति पद्धति का प्रयोग फलकथन में कब करना चाहिए?

उत्तर : कृष्णमूर्ति पद्धति का प्रयोग फलकथन में कभी भी किया जा सकता है लेकिन ज्योतिष के अधिकतर विद्वान प्रश्नों के उत्तर देने में इसका प्रयोग अधिक करते हैं । इसके अतिरिक्त घटना के समय निर्धारण में भी इस का प्रयोग किया जाता है । विवाह का समय, नौकरी मिलने का समय आदि की जानकारी के लिए भी कृष्णमूर्ति पद्धति विशेष सक्षम है ।

प्रश्न : क्या कुंडली मिलान भी कृष्णमूर्ति पद्धति से किया जा सकता है?

उत्तर : कृष्णमूर्ति पद्धति में कुंडली मिलान का कोई अध्याय नहीं है | कुंडली मिलान के लिए वैदिक पद्धति का ही प्रयोग करना चाहिए |

मंगलवार, 10 दिसंबर 2024

अश्वगंधा के प्रयोग

इस पौधे की कच्ची जड़ से अश्व जैसी गंध आती है,इसलिए इसे अश्वगंधा अथवा असगंध भी कहते हैं और इसे बराहकर्णी, आसंध, बाजिगंधा आदि नामों से भी पुकारा जाता है । यह अश्वगंधा लगभग सारे भारत में पायी जाती है ।

अश्वगंधा एक बलवर्धक रसायन है । वैद्यों, हकीमों और आयुर्वेद चिकित्सकों ने पुरातन काल से इसके गुणों को सराहा है । आचार्य चरक ने जहाँ इसे उत्कृष्ट औषधियुक्त गुणों वाला माना है वही आचार्य सुश्रुत के मतानुसार किसी भी प्रकार की दुर्बलता और कृशता को दूर करने में यह निहायत ही गुणकारी होती है । शरीर की पुष्टि और बलवर्धन के लिए आयुर्वेद में इससे श्रेष्ठ औषधि अन्य कोई नहीं है ऐसा माना जाता हैं |

अश्वगंधा मूलतः कफ - वात नाशक और बलवर्धक है । इसे सभी प्रकार के जीर्ण रोगों, क्षय,शोथ आदि के लिए श्रेष्ठ माना गया है । यह कायाकल्प योग की एक प्रमुख औषधि है ।

अश्वगंधा के उपयोग

वात विकार : अश्वगंधा चूर्ण में सोंठ तथा मिस्री, क्रमशः 2:1:3 अनुपात में मिला कर, सुबह - शाम भोजन के पश्चात गर्म जल से सेवन करने से वात विकार में आराम मिलता है ।

दुर्बलता : दुर्बल शरीर वालों को 6 ग्राम की मात्रा में अश्वगंधा को मिस्री मिला कर दूध के साथ या शहद में मिला कर देने से शरीर की दुर्बलता दूर होती हैं ।

ओज क्षय : ओज क्षय में अश्वगंधा का चूर्ण, शतावर के चूर्ण के साथ बराबर मात्रा में मिला कर, थोड़ा गुड़ मिला कर, दूध के साथ सुबह और शाम लेने से ओज क्षय में लाभ होता है और खोयी हुई ताकत वापिस आती है ।

स्त्री रोग में : अश्वगंधा के 2 ग्राम चूर्ण के साथ आधा ग्राम वंशलोचन मिला कर सेवन करने से श्वेत प्रदर में लाभ होता है । जिन स्त्रियों के स्तनों का विकास न होता हो, उन्हें शतावरी चूर्ण के साथ इसका सेवन करना चाहिए, जिससे स्तन सुडौल और विकसित हो जाते हैं |

सूखा रोग : अश्वगंधा के चूर्ण को गुड मे पकाकर,क्षीर पाक बना कर दूध के साथ सूखा रोग ग्रस्त बालक को देने से लाभ होता है । बच्चे का शरीर हृष्ट-पुष्ट हो जाता है और उसका वजन बढ़ता है ।

नपुंसकता और शुक्राणु की दुर्बलताः अश्वगंधा चूर्ण दूध के साथ, या घी के साथ नियमित लेने से नपुंसकता दूर होती है और शुक्राणु की संख्या बढ़ती है और उनकी दुर्बलता दूर होती है

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रविवार, 8 दिसंबर 2024

लाल किताब के अनुसार उपाय कैसे करने चाहिए ?

अनिष्ट ग्रहों का उपाय

उपाय सूर्य निकलने के बाद सूर्य छिपने तक दिन के समय करें, शनि को रात का राजा माना जाता है, इसलिए रात के समय उपाय करना कई बार अशुभ फल दे सकता है ।

उपाय शुरु करने के लिए किसी खास दिन जैसे सोमवार,मंगलवार अथवा अमावस्या,पूर्णिमा आदि का कोई विचार नहीं होगा ।

जातक का अपना कोई भाई, माता-पिता,दादा-दादी,पुत्र-पुत्री में से कोई भी खून का सम्बन्धी उपाय कर सकता है जो फलदायी होगा |

एक दिन में केवल एक ही उपाय करें,दो उपाय इकट्ठे शुरु करने से कई बार शुभ फल में खराबी हो सकती है ।

लाल किताब में कई स्थानों पर शराब न पियें, मांस-मछली न खाये, चाल-चलन ठीक रखे (झूठ न बोलें, झूठी गवाही न दे, नीयत में खोट न रखें) पर स्त्री-पुरुष से सम्बन्ध कायम न करें, आदि बाते लिखी गई है, अनिष्ट ग्रह चाल वाला जातक उपरोक्त बातों का शिकार हो जाता है अत: जन्म कुण्डली जातक को इनसे दूर रहना चाहिए ।

हर उपाय 40-43 दिन करना जरूरी है इसके बाद कभी-कभी उपाय करें । उपाय चलते समय एक दिन भूल हो जाए तो (चाहे 39 वां ही दिन क्यों न हो) किया निष्फल हो सकता है । इसलिए उपाय फिर से दुबारा करना चाहिए |

किसी कारण से चलता उपाय किसी दिन बीच में बन्द करना पड़े तो उसी दिन थोडे से बासमती चावल दूध से धोकर सफेद कपडे में बांध कर पास रख ले। फिर जिस दिन उपाय शुरु करना हो तो उन चावलों को ऐसी जगह गिरा दे जहां उनका निरादर न हो और उपाय शुरु कर दे ऐसा करने से उपाय का पूरा फल मिलेगा ।

जिस समय के लिए जो उपाय लिखा है, उस समय तक वह उपाय करें  

सोमवार, 2 दिसंबर 2024

दिसम्बर 2024 भारतीय बाज़ार


2 दिसंबर को सूर्य ज्येष्ठा नक्षत्र में तथा शुक्र मकर राशि में आकर मंगल एवं गुरु के साथ दृष्टि-सम्बन्ध बनाएगा जिससे सोना, चाँदी, चावल, गेहूँ, जौं, चना, अलसी, सरसों, एरण्ड, हींग, गुग्गुल, पारा, गुड़, खाण्ड में तेजी की लाईन बनेगी जोकि एक सप्ताह तक चल सकती है ।

7 दिसंबर को कर्क राशिगत मंगल वक्री होगा जिससे क्रूड ऑयल, लौंग, पैट्रोल, खाण्ड, गुड़, दूध, सोना, चाँदी में अच्छी तेजी बनेगी ।

8 दिसंबर को वक्री बुध अनुराधा नक्षत्र में आने से सोना, चाँदी, सूत, सन, रूई में मन्दी बनेगी ।

11 दिसंबर को वक्री बुध पूर्व में उदय होगा तथा शुक्र श्रवण नक्षत्र में आएगा जिस कारण सोना, आध चाँदी, गुड़, खाण्ड, शक्कर, मूँग, मोठ, उड़द, अनाज पहले तेज होकर बाद में गिर जाएंगे ।

15 दिसंबर को सूर्य धनु राशि में आएगा जिससे रूई, कपास, सूत, तिल, तैल, सोना, चाँदी, ऊनी मघा वस्त्र तेज होंगे । सोना-चाँदी एवं धातुओं में तेजी 21 तारीख तक रहेगी |

22 दिसंबर को शुक्र धनिष्ठा नक्षत्र में आएगा जिससे चावल, मूंग, मोठ, उड़द, ज्वार, बाजरा, चाँदी, सोना, रुई, कपास में पुन: कुछ तेजी बनेगी एवं धातुओं में नए लेवल देखने को मिलेंगे ।

23 दिसंबर को वक्री गुरु रोहिणी नक्षत्र के तृतीय चरण में आने से तिल, तैल, घी, गुड़, खाण्ड, गर्म-वस्त्र, गेहूँ, जौं, चने में तेजी बने ।

24 दिसंबर को बुध ज्येष्ठा नक्षत्र में आकर घी, गुड़, खाण्ड, चावल, मूँग, बैंकिंग शेयर्ज़ में तेजी बना देगा |

27 दिसंबर को शनि पूर्वा भाद्रपद नक्षत्र में आयेगा जिससे गेहूँ आदि अनाज, अलसी, तिल, तेल, सरसों, मूँग, उड़द में तेजी बनेगी |

28 दिसंबर को सूर्य पूर्वा षाढ़ा नक्षत्र में तथा शुक्र कुम्भ राशि में आकर शनि के साथ मेल करेगा । शुक्र शनि पर मंगल की दृष्टि रहेगी और जिससे तिल, तैल, सरसों, बिनौला, गुड़, खाण्ड, हल्दी, गुग्गुल, चमड़ा, कपूर, ऊनी वस्त्र, सन्, चाँदी, क्रूड ऑयल में तेजी बनेगी यद्यपि अकेला शुक्र कुम्भ राशि में मन्दी करता है, परन्तु यहाँ क्रूर ग्रहयोग से तेजी का ही रुख चलेगा ।

विशेषमासारम्भ ता. 1 से 11 दिसंबर तक शेयर बाज़ार तेजी की तरफ ही रहेगा ।

नोट - गोचर ग्रहस्थिति अनुसार ऊपर दिए गए व्यापारिक रुख, लाईन तथा चांसों के विपरीत बाज़ार का रुख चले या वायदा/हाजिर व्यापार की लाईन अनुकूल न चले, तो तुरन्त सौदा काटकर हानि से बचें । व्यापार में किसी प्रकार की हानि होने पर हम जिम्मेवार न होंगे |