हमारी जन्मपत्रिका में कुछ भाव ऐसे होते हैं जिनको हम हमेशा बढ़ाना चाहते हैं या जिनसे संबंधित कारकत्वों की हम हमेशा वृद्धि करना चाहते हैं इन भावो मे दूसरा पांचवा नवा और 11वां भाव मुख्य रूप से महत्वपूर्ण होता है कालपुरुष की कुंडली के अनुसार यदि हम देखें तो यह भाव धन,कुटुंब,बुद्दि,संतान,धर्म,भाग्य एवं लाभ व संतुष्टि के होते हैं जिनका कारकत्व देवगुरु बृहस्पति को दिया गया है ज्योतिष मे बृहस्पति एकमात्र ऐसे ग्रह माने गए हैं तो जिस भी भाव को देखते हैं उस भाव के कारकत्वों की वृद्धि करते हैं कहीं – कहीं यह भी माना जाता है कि बृहस्पति यदि जिस भाव में हो तो उस भाव की हानि भी करते हैं परंतु यह बात अनुभव मे पूर्ण सत्य साबित नहीं होती है | हम हमेशा चाहते हैं कि हमारा धन कुटुंब परिवार संतान बुद्धि धर्म ज्ञान एवं लाभ और संतुष्टि बढ़ती ही रहे क्योंकि बृहस्पति इनके कारक माने गए हैं इसलिए बृहस्पति का कुंडली में अच्छी अवस्था में होना अथवा शुभ भाव में होना बहुत मायने रखता है परंतु ऐसा प्रत्येक कुंडली में तो नहीं हो सकता बृहस्पति कुछ ऐसी अवस्था में भी हो सकते हैं जिनसे इन कारकत्वों में कमी आए ऐसे में अक्सर यह देखा जाता है कि जब कोई व्यक्ति बृहस्पति से संबंधित सही उपाय करने लगता है तो उसके इन चारों भावों की वृद्धि होने लगती है यहां हम स्पष्ट कर दें कि स्त्रियों हेतु प्राचीन समय में बृहस्पति को पति का कारक भी माना गया है तो यदि स्त्री पत्रिका में बृहस्पति का संबंध सप्तम भाव से हो जाता है तो उसको शास्त्र में बहुत अच्छा माना गया है क्योंकि विवाह पश्चात सप्तम भाव अर्थात पति को तरक्की मिलेगी तथा अलगाव की स्थिति कभी नहीं बनेगी परंतु ऐसी अवस्था में स्त्री पत्रिका में नवे भाव के कारकत्व अपना प्रभाव नहीं दिखा पाते हैं क्यूंकी भारतीय समाज मे विवाह के बाद स्त्री का भाग्य उसके पति के द्वारा ही निर्धारित किया जाता हैं |
किसी भी कुंडली मे यदि गुरु अशुभ होकर अथवा अशुभ भाव मे स्थित होतो
जातक विशेष को गुरु स्थित भाव के ठीक सामने वाले भाव के कारक व्यक्ति को समय समय पर
कुछ न कुछ दान अथवा उपहार आदि देते रहने से गुरु अपना शुभ प्रभाव देने लगते हैं ऐसा
हमने अनुभवो मे पाया हैं संभवत: इसी कारण कहा गया हैं की गुरु के पास खाली हाथ नही
जाना चाहिए |
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