बुधवार, 11 अगस्त 2021

प्रश्न शास्त्र मे टोलेमी शतक रहस्य


टॉलेमी एक यूनानी खगोलविद और भूगोलवेत्ता थे। उनका मुख्य खगोलीय ग्रंथ, अल्मजीस्ती, समकालीन खगोलीय ज्ञान का एक वृहत संग्रह था उन्होने अरस्तू और हिप्पारकस के समक्ष अपने विचार रखे और भूकेन्द्रीय सिद्धांत का गठन किया। इस सिद्धांत में कहा गया कि पृथ्वी ब्रह्मांड के केंद्र में है और अन्य सभी आकाशीय पिंड उसकी परिक्रमा करते है। यह मॉडल कोपर्निकस के समय तक चौदह सौ सालों तक मान्य रहा। टॉलेमी भूगोल में अपने किए गए कार्यो के लिए भी प्रसिद्ध है। वह प्रथम व्यक्ति थे जिन्होने धरती के विभिन्न स्थानों की पहचान के लिए अक्षांश और देशांतर रेखाओं का प्रयोग किया था। उन्हे पाश्चात्य ज्योतिष में पितामह माना जाता है | प्रश्न शास्त्र में उनके दिए गए 100 सूत्र इस प्रकार से हैं

1)कुंडली देखने से पूर्व अपने गुरु या इष्ट का स्मरण करना चाहिए क्यूंकी इससे बुद्दि निर्मल व शुद्ध हो जाती हैं | निर्णय स्वयं शास्त्र की सहायता से करो,शास्त्रों के संकेतो को किसी विशेष स्थिति में व्यक्त करने में ज्योतिषी को मुख्यत: भगवान की सहायता चाहिए होती है,जिसके ऊपर भगवान कृपालु होंगे वही भविष्य का ठीक-ठाक वर्णन कर सकता हैं |

2)जब पूछने वाला अपने मन में किसी घटना का चिंतन करता है तो उसे उस घटना तथा उसके अपने अनुमान में कोई विशेष अंतर नहीं मिलेगा,दूसरे शब्दों में प्रश्न कुंडली प्रश्न का विषय बता देती है | यह देखे की कुंडली किस प्रकार की हैं यानि कुंडली मे ग्रहो का झुकाव संसार की सुख समृद्दि की और हैं या बौद्धिकता की ओर झुकाव हैं अथवा आध्यात्म की ओर बिना इसको जाने फलकथन मे असफलता ही मिलती है दूसरे जातक के उद्देश्य को भी पूर्ण रुपेण समझना ज़रूरी हैं |

3)किसी घटना या समस्या का विचार किसी के मन में होगा उसके अनुरूप ग्रह उसकी कुंडली में उपयुक्त भाव में होंगे |

4)पूछने वाली के लिए तर्क तथा बुद्धि किसी शास्त्र के ज्ञान से अधिक मूल्यवान हैं | यदि किसी जातक के द्वारा परीक्षा लेने जैसा आभास हो तो उस समय उस से बात नहीं करनी चाहिए |

5)कुशल पुरुष जिसको ज्योतिष का ज्ञान उपलब्ध है बहुत सी ठोकरों से अपने आप को बचाकर आने वाली घटनाओं के लिए तैयार हो जाता है | यदि देखने वाले की कुंडली का सप्तम भाव या सप्तमेश पाप प्रभाव मे होतो फल कथन नहीं करना चाहिए अन्यथा असफलता ही मिलती हैं,क्यूंकी यह दोनों जातक के आभार से संबंध रखते हैं |

6)कुंडली के अनुसार शुभ समय में किसी कार्य के करने का दिन तथा घंटा निश्चित करो,अशुभ समय में आपकी विवेक शक्ति ठीक काम नहीं करेगी चाहे देखती आंखों या अपनी बुद्धि से ठीक ही निर्णय आपने किया हो |

7)ग्रहों का मिश्रित फल समझा नहीं जा सकता जब तक कि आपने पहले से ग्रह,राशि भावों की विभिन्न अवस्थाओं का ज्ञान प्राप्त ना किया हो |

8)कुशाग्र बुद्धि वाला पुरुष ग्रह आदि के प्रभाव का विस्तार करता है जैसे कुशल किसान खेती की उपज का विस्तार करता है |

9)तांत्रिक भी ग्रहों के भ्रमण तथा ऋण आदि का उपयोग करते हैं |

10)मुहूर्त के चुनाव में पाप ग्रहों का उपयोग उतनी सीमित मात्रा में करें जितनी मात्रा में एक वैध रोग दूर करने में विका उपयोग करता है |

11)मुहूर्त का चुनाव तब तक नहीं हो सकता जब तक उद्देश्य का पूर्ण ज्ञान ना हो |

12)प्रेम घृणा सत्य के विचार तथा निर्णय में बाधक है क्योंकि वह तुच्छ बात को बड़ी बना देते हैं और मुख्य बातों पर पर्दा डाल देते हैं |

13)ग्रह चक्र के विचार में उपग्रहों तथा छाया ग्रहों पर विचार करो किसी को साधारण समझकर मत त्यागो |

14)ज्योतिषी भूलो के भंवर में फंस जाता है यदि उसका सप्तम भाव तथा सप्तमेश पीड़ित हो|

15)लग्न से 3,6,9,12 राशियों में राज्य के शत्रु होते हैं | केंद्र तथा पणफर लग्न के भिन्न होते हैं | यह नियम सब जगह लागू होता है |

16)शुभ ग्रह अष्टम में पुरुषों द्वारा पीड़ा देते हैं परंतु शुभ ग्रहों से दृष्ट होने पर पीड़ा का शमन करते हैं |

17)वृद्ध पुरुषों के भावी जीवन के विषय में उसकी आयु का पूर्ण विचार करके ही अपना मत व्यक्त करो |

18)लग्न में शुभ ग्रह और सूर्य चंद्र युति (एक ही राशि अंश) हो तो जातक पूर्ण भाग्यशाली होगा | सूर्य चंद्र पूर्णिमा में लग्न सप्तम में हो तो भी यही फल होगा | यदि पाप ग्रह लग्न में उदित हो तो विपरीत फल होगा |

19)रेचक दवा अपना प्रभाव नहीं दिखा पाएगी यदि गुरु चंद्र से युक्त है |

20)चन्द्र राशि के शरीर भाग मे लोह शस्त्र प्रहार मत करो |

21)जब चंद्र वृश्चिक या मीन में हो और लग्नेश की दृष्टि किसी भूगर्भ भाव (एक से 4 द्वारा 6 तक)  ग्रह पर पड़ती हो तो रेचक दवा काम करेगी परंतु यदि उदित भाग (0 से 10 द्वारा 1 तक) के ग्रह पर हो तो दवा नहीं चेगी अथवा उल्टी द्वारा पृथ्वी पर गिर जाएगी |

22)सिंह के चंद्र में ना तो नया कपड़ा पहनो और ना उसे उतार फेंको, विशेषकर जब चंद्र पीड़ित हो |

23)चंद्र की ग्रहों पर दृष्टि मनुष्य के जीवन में चंचलता उत्पन्न करती है | शक्तिशाली दृष्टि शुभ होती है परंतु असक्त दृष्टि प्रेरणा तक ही सीमित रह जाती है |

24)केंद्र का ग्रहण हितकारी होता है उसका फल लग्न व ग्रहण स्थान के बीच की दूरी के अनुसार होता है जैसे सूर्य ग्रहण में एक घंटा 1 वर्ष बताता है वैसे ही चंद्रग्रहण में 2 घंटा 2 माबताता है |

25)दशम केंद्र में स्थित कारक की गति विषुव रेखा से नाप कर लगाई जाती है |लग्न में स्थित कारक की नाप अक्षांश अनुसार होती है |

26)यदि किसी विषय का कारक सूर्य से अस्त हो चाहे,कुंडली के अस्त भाग में हो या अपने से विपरीत  स्थान में हो तो कुछ बातें छिपी हुई होती हैं,परंतु बात खुल जाएगी यदि कारक उदित हो या उदित भाग में हो|

27)जिस राशि में शुक्र बैठा हो उसके अनुरूप शरीर के भाग में शुक्र द्वारा सुख मिलता है ऐसे ही दूसरे ग्रहों के साथ होता है|

28)यदि चंद्र का स्वभाव दूसरे दो कारकों से मेल ना खाता हो तो उसके अनुरूप किसी नक्षत्र से विचार करें|

29))स्थिर तारे नक्षत्र अप्रत्याशित शुभ फल देते हैं परंतु यदि कारक ग्रहों से मेल नहीं खाते तो बहुत संकट पैदा करते हैं |

30)किसी राज्यवंश का प्रारम्भ देखें यदि उस समय का लग्न राजपुत्र के लग्न के अनुरूप हो तो वह पिता की राजगद्दी पर बैठेगा |

31)जब किसी राज्य का कारक ग्रह अपने संकट सूचक स्थान पर जाए तो उस राज्य का राजा या उसका मुख्य अधिकारी मरेगा |

32)दो मनुष्यो में सद्भावना हो यदि दोनों में से किसी के विषम संबंधी कारक ग्रह संभावना प्रकट करें |

33)2 कुंडलियों के कारक ग्रहो के अनुसार प्रेम या घृणा उनके जातकों में भी होगी |

34)अमावस का चंद्र राशियदि केंद्र में हो तो उस मास की घटनाओं का प्रतीक होगा |

35)जब कभी सूर्य किसी ग्रह के जन्मांश से युहो तो उस ग्रह के प्रभाव को सजग करता है |

36)किसी नगर की नींव ने के समय उन स्थिर तारों का विचार करो जिनका उन पर प्रभाव हो परंतु भवन निर्माण में ग्रहों का विचार करो | उन नगरों के राजा जिनके मंगल नगर के दशम भाव में हो तलवार से मारे जाएंगे |

37)कन्या मीन लग्न में जातक स्वयं अपने प्रताप तथा गौरव का कारण बनेगा,परंतु मेंष व तुला में वह स्वयं अपनी मृत्यु का कारण बनेगा |

38)मकर या कुंभ का सशक्त बुध जातक को सट्टे की प्रवृत्ति तथा खोजी बुद्धि प्रदान करता है | यदि मंगल के घर में विशेषकर हो तो वाक्य पटुता प्रदान करता है |

39)जब लग्न पाप ग्रहों से पीड़ित हो तो जातक नीच विचारों वाला,कुकर्मों से प्रसन्न होने वाला,दुर्गंध दि को अच्छा समझने वाला होगा |

40)यात्रा के समय अष्टम भाव स्थित पाप ग्रतथा उसके स्वामी से खबरदार रहो इसी प्रकार लौटने के समय द्वितीय तथा द्वितीयेश से सावधान रहो |

41)यदि रोग ऐसे समय प्रारम्भ हो, जब गोचर का चन्द्र जन्म की ऐसी राशि में हो जिसमें पापग्रह हो या  उस राशि से सप्तम,चतुर्थ,दशम राशि होतो रोग भीषण होगा परंतु यदि चन्द्र किसी ऐसी स्थिति में हो जिसमें शुभग्रह जन्म में बैठा हो जीवन को कोई भय नहीं होगा।

(42) किसी राष्ट्र के पापग्रहों का प्रभाव गोचर के पापग्रहों से अधिक तीव्र हो जाता है।

(43) यदि किसी बिमार का लान अपनी जन्म कुण्डली के ग्रहों के विपरीत हो और किसी शुभग्रह का प्रभाव न हो तो अशुभ संकेत समझे |

(44) यदि लान व मुख्य कारक ग्रह नर राशि मिथुन, कन्या, कुम्भ और धनु के प्रथम भाग) में न हों तो जातक मनुष्यता के गुणों से वंचित होगा।

45) जन्म कुण्डलियों में स्थिर तारों को महत्व दिया जाता है। और अमावस्या कुण्डली के केन्द्र ग्रहो

से परम सुख का संकेत मिलता है। वैसे ही किसी राष्ट्र के भाग्य बिन्दु से भी मिलता है।

46)यदि किसी की जन्म कुण्डली का पापग्रह किसी दूसरे की जन्म कुण्डली के शुभ ग्रह के स्थान में

हो तो शुभग्रह, वाले जातक को पापग्रह जातक द्वारा कष्ट मिलता है।

47)यदि किसी राजकुमार का दशम भावांश किसी साधारण नागरिक का लग्नांश हो या दोनों की

जन्म कुंडलियों मे शुभ ग्रहों का आदान-प्रदान हो तो वे दीर्घकाल तक एक दूसरे से जुदा नहीं होंगे |

48) यदि प्रजा या चाकर का छठा भावांश राजा का स्वामी का लग्नाश हो तो भी उपरोक्त (47) क्रमांक

का ही फल देगा

(49) यदि किसी चाकर का लग्न स्वामी का दशम हो तो चाकर स्वामी का उतना विश्वास पात्र बन जावे कि स्वामी उसकी बात मानता ही रहे।

(50) 119 प्रकार की युवतियों को मत भूलो। उन्हीं के ऊपर सांसारिक बातों का ज्ञान निर्भर है चाहें अच्छाई हो या बुराई।

(51) जन्म के चन्द्र की राशि की निषेक लग्न मानकर जन्म लग्न को निषेक चन्द्र मानकर या उसका सप्तम स्थान मानकर विचार करो। उसको प्रीमैटल-ऐषक भी कहते हैं।

52) लम्बे मनुष्य के कारक स्वामी (मुख्यतः लग्नेश) उदित होते हैं अर्थात दशम भावांश के सब से निकट हो। परन्तु छोटे कद वालों का ग्रह अस्त होगा अर्थात् सप्तमांश के निकट होगा |

(53) पतले मनुष्यों के लग्नेश का अक्षांश शून्य के निकट होता है। इसके विपारीत मोंटों का अक्षांश अधिक होता है। उत्तराक्षांश होने से जातक फुर्तीला होता है और दक्षिण अक्षांश बाला सुस्त होता है।

54) भवन निर्माण में मुख्य कारकों में कोई ग्रह अस्त भाग (2-3-4-5-6-7) में हो तो निर्माण में बाधा पड़ेगी |

55)मंगल का जहाजो पर प्रभाव घट जाता हैं यदि मंगल 10 व 11 भाव मे ना हो,परंतु यदि इन भावो मे होतो जहाज के नाविक को चोरो या आतंकियो द्वारा पकड़े जाने का भय रहता हैं और यदि लग्न मंगल के प्रभाव वाले तारे के से संबन्धित होतो जल जाने का भय रहता हैं | 

(56) जब चन्द्र पहले क्वार्टर (पक्ष का चतुर्थांश) से दूसरे चतुर्थांश (अमावस से पीछे) तक रहे, शरीर के

दोष बढ़ते हैं और फिर घटने लगते हैं।

(57) किस योग के प्रश्न लग्न में सप्तम तथा सप्तमेश के पीड़ित होने से डाक्टर या वैध बदल दे |

(58) राष्ट्रीय ज्योतिष में वर्ष लान से किसी ग्रह की दृष्टि नाप कर देखों । घटना तभी होगी जब वह दृष्टि तो पूर्ण होगी।

(59) प्रवासी के लौटने का निर्णय देने से पूर्व विचारों कि वह उन्मत्त तो नही है। ऐसे ही उसके घायल होने का निर्णय देने से पूर्व विचारों कि उसका रूधिर वैसे ही तो नही बह रहा है। दबा हुआ धन मिलने का निर्णय देने से पहले विचारो कि उसका अपना जमा किया हुआ धन नही लौटाया जा रहा हैं,कारण उन सब के ग्रह प्राय: समान ही होते हैं |

(60) रोग के विषय में विचारों कि भीषणावस्था के दिनों में चन्द्रमा केन्द्र में 22 अंश 30 कला का कोण तो नही बना रहा था। यदि चन्द्र कला केन्द्र पर शुभ ग्रहों का प्रभाव पड़ता हो तो रोगी के लिए शुभ है, और यदि पीड़ितों का हो तो अशुभ है।

61)शरीर संबंधी विषयो का कारक चन्द्र हैं जिसकी गति भी वैसी ही हैं |

62)अमावस पूर्ण की कुण्डली बनाकर आगामी मास के मौसम में परिवर्तन बताया जा सकता है। यह कुण्डली के केन्द्र स्वामियों पर निर्भर करता है,क्योंकि वे वायू मण्डल के स्वामी भी हैं और तात्कालिक मौसम (स्थानीय) के अनुरूप ही आय का निर्णय होगा।

(63) गुरू शनि की यूति का फल उस ग्रह के अनुरूप होगा जो दशम के निकट हो,ऐसे ही दूसरे ग्रहों

की युति का विचार करें।

(64) कार्येश जानने पर देखो कि वर्ष लग्न में वह ग्रह क्या संकेत देता हैं तथा अमावस की कुंडली मे क्या संकेत मिलता हैं उसके अनुसार अपना मत प्रकट करे |

65)न्यूनतम युति मे मध्यम युति के अंतर का और मध्यम युति मे अधिकतम युति के अंतर का विचार करे |

(66) किसी भी गुण के विचारार्थ ग्रहो के स्वभाव तथा उनकी बाधाओ का भी विचार करे |

67)जीवन आयु के वर्ष दाता की दुर्बलता से घटते हैं |

68)प्रात: उदित पाप ग्रह आकस्मिक दुर्घटना का संकेत देता है | यह अवस्था ग्रह के वक्री होने तक रहती है | चंद्र की स्थिति अमावस से सप्तमी तक रहती है | विपरीत अवस्था में अस्त पाप ग्रह सायंकाल अस्त होता है - रोग का संकेत देता है |

69)पूर्ण चंद्र (सूर्य से सप्तम) तारा मंडल के सद्रश ग्रहों से संबंधित सप्तम केंद्र में और पाप ग्रह लग्न केंद्र में चक्षु हीनता का सूचक होते हैं |

70)पागलपन की सूचना मिलती है यदि चंद्र का बुध से संबंध ना हो और चंद्र या बुध का लग्न से संबंध ना हो,रात्रि में शनि तथा दिन में मंगल केंद्र में कर्क, कन्या मीन का हो |

71)सूर्य चंद्र पुरुष राशि में पुरुषों की कुंडली में राशि अनुरूप फल देंगे परंतु स्त्रियों की कुंडली में राशि प्रभाव को उत्तेजित करेंगे | प्रातः उदित मंगल व शुक्र पुरुष उचित होते हैं विपरीत अवस्था में स्त्रीयोचित होते हैं |

72)त्रिकोण के स्वामीयो से शिक्षा का विचार करें | सूर्य चंद्र के त्रिकोण से जीवन का विचार करें |

73) फांसी - यदि सूर्य गोग्रंस हेड तारे के साथ होकर शुभग्रहो के संबंधों से वंचित तथा अष्टम भी शुभ प्रभाव वंचित और सूर्य से मंगल सप्तम या चतुर्थ दशम से केंद्र में हो तो फांसी का सूचक है | यदि सूर्य दशम केंद्र में हो तो केवल अंग भंग होकर ही रह जाता है यदि दृष्टि मिथुन या मीन में हो तो केवल हाथ पा कटते हैं |

74)लग्न का मंगल चेहरे पर दाग देता है |

75)सिंह में लग्नेश सूर्य से युत हो और मंगल का लग्न पर कोई अधिकार ना हो तथा अष्टम मे कोई शुभ ग्रह ना हो तो जातक की मृत्यु अग्नि द्वारा होती हैं |

76)दशम शनि तुर्थ सूर्य (रात्री मे चन्द्र)होने से जातक अपने ही घर में दबकर मरता है | विशेषकर जब चतुर्थ राशि वृषभ कन्या और मकर राशि हो | यदि कर्क वृश्चिक मीन हो तो डूब कर मरेगा |राशि होने से आदमी उसका गला घोटेंगे या फांसी लगेगी या उत्पाद्वारा मरेगा | यदि शुभ ग्रह अष्टमस्थ होतो वह मृत्यु निकट होकर भी नहीं मरेगा अर्थात बच जाएगा |

77)शरीर के रक्षार्थ लग्न बल,धन आदि के लिए भाग्य बिंदु बल,आत्मा के शारीरिक संबंध हेतु चंद्र बल और नौकरी तथा व्यापार के लिए सम बल आवश्यक है | यहां शब्द प्रोफेक्षण है इसका अर्थ सूर्य तथा दूसरे ग्रहों का बराबर प्रोग्रेशन 1 वर्ष 360-degree अर्थात एक पूर्ण चक्र और एक राशि जैसे पहले वर्ष में सूर्य 30 अंश मेष का हो वह तो उस वर्ष 30 अंश वृष का होगा |

78)ग्रह प्राय: ऐसे स्थान को प्रभावित करता है जहां उसका आधिपत्य नहीं दिखता इससे जातक को अप्रत्याशित लाभ होता है |

79)लाभस्थ मंगल वाला अपने स्वामी पर अधिकार नहीं पाता |

80)शनि युत शुक्र हो तथा शुक्र का सप्तम से संबंध हो तो वीर्य दाता का पता नहीं है अर्थात अज्ञात रहता है |

81)समय का विचार 7 प्रकार से होता है 1)दो कारकों के बीच का अंतर 2)उनकी आपसी दृष्टि का अंतर 3)एक का दूसरे की ओर बढ़ना 4)उनमें से किसी के बीच का अंतर घटना के कारक ग्रह गए के साथ 5)ग्रह के अस्त द्वारा 6)कारक के स्थान  परिवर्तन से 7)किसी ग्रह के अपने स्थान पर आने से |

82)अमावस् या  पूर्णिमा की कुंडली में यदि ग्रह तुल्य भार हो और गोचर में भी तुल्य भार हो तो ज्योतिषी को अपना मत प्रकट करने में जल्दी नहीं करनी चाहिए |

83)राज्य अधिकार मिलने का समप्रार्थी (प्रजा) राजा का प्रेम सूचक है परंतु कुंडली के भाव से अधिकार की व्याख्या मिलेगी |

84)कोई व्यापार,चाकरी कर्म आरंभ करते समय में यदि मंगल लग्नेश होकर दूसरे भाव में बैठा हो या द्वितीयेश  युहो तो बहुत उपकार करता है |

85)यदि लग्नेश द्वितीय से संबंधित हो तो राजा स्वत: बहुत से परिवर्तन करता है |

86)सूर्य आवश्यक शक्ति का प्रतीक है और चंद्र नैसर्गिक का |

87)मासिक कुंडली प्रति 28 दिन 2 घंटे 28 मिनट बाद बनती है सूर्य गति से मांस का फल का संकेत मिलता है | विशेषकर उसकी आंशिक युति दृस्टी से जो उसकी रंभिक स्थिति से हो |

88)वार्षिक कुंडली में सूर्य चंद्र की दूरी लग्न से नापे |

89)पितामह के विषय में सप्तम भाव से और अंकल के विषय में छठे भाव से विचार करें |

90)यदि कारक की लग्नाश से दृष्टि हो तो भावी घटना लग्न के अनुरूप ही होगी | यदि लग्न पर दृष्टि ना हो तो कारक जहां बैठा है उस स्थान के अनुरूप होगी | स्वामी से उसका रंग ज्ञात होगा,समय का चंद्र से, यदि कुंडली के उदित भाग में कारक हो तो किसी नए प्रकार की वस्तु होगी, अस्त भाग में रहने से पुरानी वस्तु होगी, संख्या का पता भाग्य बिंदु द्वारा,अंश के स्वामियों द्वारा, दशम या चतुर्थ लग्न द्वारा, चंद्र द्वारा उसका सत्व मूल आदि |

91)रोगी का स्वामी अस्त होना अशुभ है विशेषता या तब जब भाग्य बिंदु भी पीड़ित हो |

92)शनि पूर्व भाग में उदित रोगी को अधिक कष्टदायक नहीं होता और ना ही परिश्रम भाग 10-7-4 तक का मंगल |

93)किसी कुंडली में अपना विचार व्यक्त मत करो जब तक कि आगामी युति ना विचारों क्योंकि प्रत्येक यूति का प्रभाव युत ग्रह अनुसार भिन्न भिन्न होता है |

94)अधिक प्रभाव युक्त कारक पूछने वाले के विचार प्रकट करता है |

95)दशम में उदित ग्रह जातक के कर्म की सफलता का संकेत करता है |

96)ग्रहण के केंद्र में समीपस्थ ग्रह आगामी घटनाओं के सूचक हैं | घटनाओं का रूप ग्रहण की कुंडली के भाव ग्रह   मुख्य तारों के अनुरूप ही होता है |

97)अमावस् या पूर्णिमा की कुंडली के लग्न लग्नेश के केंद्र गत होने से शीघ्र ही कार्य सिद्धि होती है |

98)टूटते तारो का विचार नहीं करते |

99)उल्कापात केवल वायुमंडल की शुष्कता के सूचक हैं | जिस भाग में उल्कापात होगा उस भाग की वायु शुष्क होगी | यदि बहुत से भागों में हो तो जल की कमी ,कलहकारी, वायु मंडल तथा सेनाओं के संग्रामो के सूचक होते हैं |

100)यदि पुच्छल तारे सूर्य से 11 राशि पीछे केंद्र में प्रकट हो तो कोई राजा या राज्य का मुख्य अधिकारी मरता है | यदि पणफ़र में हो तो राज्य को बहुत धन लाभ होगा परंतु कोई भी राजा या राज्यपाल बदल जाएगा |यदि अपोकलीम  भाव में हो तो रोबढ़ेंगे और आकस्मिक मृत्यु होगी | यदि पुच्छल तारा पश्चिम से पूर्व की ओर जाता है तो विदेशी शत्रु आक्रमण करता है | यदि पुच्छल तारा गतिहिन हो तो शत्रु स्वदेशी  होता है |

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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