चन्द्र लग्न ( मनकारक )
हम सब जानते हैं की चन्द्र तीव्रगामी गृह हैं जिसके कई चेहरे हैं और
प्रत्येक चेहरा विविधता लिए हुये हैं कर्क राशि का स्वामी होकर चन्द्र वृष मे ऊंच
तथा वृश्चिक मे नीच का होता हैं हमारे व्यक्तित्व का भावनात्मक पक्ष जो हमारे
निर्णय,उग्रता,पसंद-नापसंद,सोच इत्यादि को दर्शाता हैं इसी चन्द्र
से देखा जाता हैं |
चन्द्र जलीय ग्रह हैं जब इसका प्रभाक 1,4,7,10 राशियो पर होता हैं तब जातक मे शुद्धता व ईमानदारी
होती हैं मन शांत व स्थिर होता हैं पूर्णता हेतु प्रेम होता हैं आंतरिक सोच पर
बाहरी सोच का नियंत्रण रहता हैं मानसिकता साफ व वैज्ञानिकता लिए होती हैं परंतु
पूर्वाभास की क्षमता कम होती हैं |
मेष राशि मे करिश्मा व संस्कार कम परंतु नेत्रत्वता व अग्नि अधिक होती हैं
कर्क मे स्वयं को निखारने की क्षमता अथवा तरक्की की चाहत अधिक होती हैं तुला मे
चन्द्र होतो जातक शुद्ध व नपा तुला होता हैं उसमे सुंदरता व सौहादर्ता होती हैं
भावनाए शुद्ध व मस्तिष्क साफ होता हैं मकर मे होतो भावनाए नियंत्रित परंतु समय समय
पर बलवती होती हैं बुद्दि व लगाव मे संबंध होता हैं संस्थागत प्रकृति सबसे पहले
होती हैं |
स्थिर राशियो 2,5,8,11 मे
से वृष मे चन्द्र की अधिकतम शक्ति तथा वृश्चिक मे न्यूनतम शक्ति बताती हैं पृथ्वी
तत्व होने पर वृष मे भावनाए गहरी होती हैं परंतु पूर्वाभास क्षमता नहीं होती सभी
स्थिर राशियो मे इच्छाए बहुत होती हैं सिंह राशि एक तरफ तो निस्वार्थ तथा दूसरी
तरफ आलसी व दिन मे सपने देखने वाली होती हैं | कुम्भ राशि
भावनाओ की रहस्यमय प्रकृति बताती हैं वृश्चिक राशि मंगल के प्रभाव मे होने से
शंकालु मन,संवेदनशीलता प्रेम व घृणा संबंधी जो भ्रम होते हैं
वह कुम्भ राशि मे समाप्त होने की प्रवृति बताते हैं |
अंत मे हम 3,6,9,12 राशियो
मे आते हैं जिनमे चन्द्र काफी नपा तुला प्रभाव देते हैं बुध की मिथुन व कन्या राशि
मे शुभ होने पर यह भावनाओ को नियंत्रित कर स्थिरता देते हैं जिससे जातक की
तामसिकता रुक जाती हैं वही अशुभ होने पर जातक को भ्रमित व आपराधिक प्रवृति भी
प्रदान कर देते हैं एक तरफ यह जातक को ज्ञानी व विनम्र बनाते हैं वही दूसरी और
घमंडी व घुर्त भी बनाते हैं आंतरिक व बाहरी मन मे संबंध होतो शुभता रहती हैं मीन
मे दोहरा जल प्रभाव रहने से यह जातक को स्वप्न द्र्स्टा बनाता हैं जिससे जहां नए
आविष्कार जन्म लेते हैं वही नए भ्रम भी होते हैं मुड़ीपना व धैर्यहीनता इन चारो
राशियो मे पायी जाती हैं |
पंचम भाव जातक की सोच व भावनाओ का होता हैं आंतरिक सोच का भाव 12वा होता
हैं जहां इन दोनों भावो का अशुभ संबंध जातक को नैतिकता से हटाता हैं वही शुभ होने
पर जातक को स्वयं के प्रति जागरूकता भी देता हैं |
सप्तम भाव अभिव्यक्ति का भाव होता हैं और इस भाव से चन्द्र व पंचम-पंचमेश
का संबंध जातक को कलाकार बनाता हैं यह संबंध जितना अच्छा होता हैं जातक उतना ही
अच्छा व बेहतरीन कलाकार होता हैं |
चन्द्र का अष्टम भाव मे होना जातक की सही ग़लत भावनाओ को छुपाने का प्रयास
बताता हैं यदि पंचमेश चन्द्र अथवा अष्टमेश से संबन्धित होतो जातका की भावनाए होकर
भी व्यक्त नहीं हो पाती और इनका संबंध ना
होतो जातक भावनाओ को समझ नहीं पाता अथवा जानता ही नहीं |
12वे भाव का चन्द्र जातक को जल्दबाज़ी देता हैं उसके निर्णय चाहे
अच्छे-बुरे अथवा सही-ग़लत हो तुरंत होते हैं | चन्द्र राहू केतू के प्रभाव मे होतो उत्सुकता बढाता हैं जो कलात्मकता के
साथ साथ भ्रम मे भी भी डाल देती हैं |
राशि के अलावा चन्द्र की स्थिति भी बहुत महत्व रखती हैं चन्द्र नक्षत्र का
स्वामी भी जातक के जीवन मे अपना बहुत प्रभाव रखता हैं चन्द्र का वक्री ग्रह के
नक्षत्र मे होना जातक की संवेदनशीलता को बढ़ा देता हैं जिससे जातक अनिद्रा,टेलीपेथी जैसे कार्यो मे पारंगत होता हैं | चन्द्र दशा जातक को कल्पनाशीलता व भावुकता देती हैं जो जातक के जीवन को
बदलते की क्षमता रखती हैं संभवत: इसी कारण हमारे विद्वानो ने चन्द्र को लग्न के
बाद दूसरा लग्न माना हैं |