मंगलवार, 20 दिसंबर 2016

कुंडलिनी का जाग्रत होना



हमारे शरीर मे स्थित मूलाधार चक्र हमारे अहम को बताता हैं जो समस्त परेशानियों का कारक होता हैं जिससे ही हमारे जीवन के सभी दुख व तकलीफ़े जन्म लेती हैं | जब हमारी यह कुंडलीनी जागने लगती हैं तब हम अपने समस्त अहम,राग,द्वेष आदि को खोने लगते हैं जिससे आत्मा की शुद्धता होने की शुरुआत होने लगती हैं जागते हुये जब यह कुंडलिनी स्वाधिस्ठान चक्र पार करती हैं तब हमारी समस्त इंद्रिया काबू मे जाती हैं |जब यह कुंडलिनी मणिपुर चक्र मे पहुँचती हैं तब जातक इच्छा,आकांक्षाओ से मुक्त होने लगता हैं परंतु उसमे स्थाईत्व नहीं आ पाता कुंडलिनी द्वारा अनाहत चक्र के पार करने पर जातक मे स्थाईत्व आ जाता हैं जब यह कुंडलिनी विशुद्ध चक्र को पार कर लेती हैं तब जातक के विचारो मे नियंत्रण हो जाता हैं और वह एकाग्र हो जाता हैं अब इस कुंडलिनी के द्वारा आज्ञा चक्र को पार कर लेने पर आत्मिक ज्ञान की प्राप्ति हो जाती हैं और जैसे ही यह कुंडलिनी जब जातक के शरीर के सहस्त्रर चक्र को पार कर लेती हैं जातक समाधि को पा लेता हैं |

हमारे भारतीय ज्योतिष मे 12वी राशि मीन मोक्ष की राशि मानी जाती हैं जिसका स्वामी नेपच्यून स्पाइनल केनेलपिनेयल ग्लेन्ड का प्रतिनिधित्व करता हैं | सूर्य का इस नेपच्यून से 60 अंश ( सेक्सटाइल ) व 120 अंश ( टराइन ) का दृस्टी संबंध और केतू का 5,9,12 भावो मे होना कुंडलिनी जाग्रन हेतु अति शुभ होता हैं | स्पाइनल केनेल के सबसे ऊपर पिनेयल ग्लेण्ड होती हैं जब कुंडलिनी जाग रही होती हैं तो वह तरंग के रूप मे सर्प की भांति होती हैं जो ऊपर की और बढ़ती हुई पिनेयल ग्लेण्ड को तरंगित करती हैं ऐसे मे जब इस तरंग की फ्रिक्वेन्सी पिनेयल ग्लेण्ड की ऊर्जा से मिल जाती हैं तक जातक की कुंडलिनी जाग्रत हो जाती हैं और वह आत्मिक ज्ञान को प्राप्त कर लेता हैं |


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