गुरुवार, 28 जुलाई 2016

दशानाथ का विशेष गोचरीय नियम

दशानाथ का विशेष गोचरीय नियम

किसी भी दशा के विषय मे फलित करते हुये हम यह मानते हैं की कुंडली मे दशानाथ जिस भाव व स्थिति मे हैं यदि वह उसकी ऊंच राशि,स्वराशि,मित्रराशि,उपचय भाव राशि अथवा अष्टकवर्ग मे अच्छे बिन्दु वाली राशी मे हैं तो वह शुभफल ही देगा परंतु क्या वास्तव मे ऐसा होता हैं हमने अपने अध्ययन मे ऐसा नहीं पाया कई कुंडलियों मे ग्रह अपनी ऊंचावस्था,शुभराशि व शुभावस्था मे होने के बावजूद अपनी दशा मे शुभ फल नहीं दे पाया,इसी को आधार बनाकर हमने कई कुंडलियों का अध्ययन कर पाया की दशानाथ ग्रह की गोचरीय स्थिति का उसके फल प्रदान करने की क्षमता मे बहत प्रभाव रहता हैं |

दशानाथ ग्रह जब गोचर मे शुभ अवस्था मे होता हैं तभी वह अपने वांछित परिणाम दे पाता हैं अन्यथा नहीं इसका एक ताजातरीन उदाहरण अमरीका के राष्ट्रपति ओबामा की कुंडली से पता चलता हैं राष्ट्रपति चुनाव के समय ओबामा की कुंडली मे शनि मे शनि मे शनि की प्रत्यंतर्दशा चल रही थी शनि मकर राशि का होकर उनकी पत्रिका मे गुरु संग लग्न मे ही स्थित हैं उस समय शनि गोचर मे तुला राशि अर्थात अपनी ऊंच राशि से ओबामा की कुंडली के दशम भाव से गोचर कर रहा था जिससे उन्हे कोई दोबारा से अमरीका का राष्ट्रपति बनने से रोक नहीं सकता था और ऐसा ही हुआ ओबामा दोबारा राष्ट्रपति चुने गए |

हमारी विशोन्तरी दशा प्रणाली मे ग्रहो के दशाकाल 6 वर्ष से 20 वर्ष तक रखे गए हैं वही उनका अंतर्दशाकाल न्यूनतम 3 माह 18 दिन से अधिकतम 3 वर्ष 4 माह अर्थात 40 माह तक होता हैं परंतु दशानाथ ग्रहो के प्रभाव इतने लंबे समय तक एक समान नहीं पाये जाते हैं कभी वह शुभ प्रभाव देते हैं तो कभी व अशुभ प्रभाव प्रदान करते हैं उदाहरण के लिए ऐसा हम कई बार पाते हैं की शुक्र महादशा मे शुक्र की अंतर्दशा जो की 3 वर्ष 4 माह की होती हैं उसमे जातक का विवाह,संतान व तलाक तीनों घटनाए हो जाती हैं जबकि कुंडली मे शुभ अथवा ऊंचावस्था मे स्थित था जो यह सोचने मे मजबूर कर देता हैं की कहीं हमारी दशा प्रणाली मे कोई त्रुटि तो नहीं हैं |    

गोचर प्रभाव के समय हम अधिकतर दीर्घकालीन ग्रहो शनि,गुरु,मंगल,राहू व केतू का अध्ययन ज़्यादा करते हैं जबकि अन्य ग्रहो के गोचर का प्रभाव भी जन्म नक्षत्र अनुसार ज़्यादा होता हैं अनुभव मे यह भी देखा गया हैं की सूर्य का गोचर तत्काल प्रभावी होता हैं गोचरीय प्रभावों मे यह भी देखा गया की दशा का ग्रह अपना प्रभाव कुंडली मे बैठे ग्रहो के द्वारा,भावो के द्वारा सूर्य के गोचर व दृस्टी गोचर द्वारा भी प्रदान करता हैं |

आइए अब कुछ गोचरीय नियम देखते हैं जिनके अंतर्गत ग्रह अपना फल प्रदान करते हैं |

1)अंतर्दशानाथ अपने शुभफल तब प्रदान करेगा जब वह गोचर मे दशानाथ से पंचम,नवम भाव मे हो,ऊंच का हो,स्वग्रही हो अथवा मित्रराशी मे हो |

2)अंतर्दशानाथ यदि गोचर मे अस्त,नीच,शत्रुराशी अथवा महादशानाथ से 6,8,12 भावो मे होतो अशुभ परिणाम ही प्रदान करता हैं भले ही कुंडली मे वह किसी भी अवस्था का हो |

3)अंतर्दशानाथ ग्रह कुंडली मे अपने स्वामित्व भाव व स्थित भाव के अतिरिक्त गोचर मे स्थित भाव का फल भी ग्रह प्रदान करता हैं |

4)गोचरीय चन्द्र भी तभी शुभ फल प्रदान करेगा जब वह महादशानाथ की ऊंच,स्वग्रही,अथवा उससे 3,5,6,7,9,10,11 राशि से गुजर रहा हो परंतु इसका प्रभाव थोड़ा कम ही होता हैं |

5)सूर्य का गोचर अवश्य देखे जो अंशो के आधार पर सटीक परिणाम दर्शाता हैं |सूर्य का यह सिद्दांत कई कुंडलियों पर परखा गया हैं और सही पाया गया हैं |

6)लग्नेश व दशमेश के अंशो को देखे जब भी दशानाथ –अंतर्दशानाथ का इनसे संबंध बनेगा और सूर्य का इनसे गोचर होगा दशा के परिणाम प्राप्त होंगे |

उपरोक्त सभी नियम सत्याचार्य,ढुंढिराज़ व व्यंकटेश द्वारा दिये गए दशा के नियमो से ही प्रतिपादित किए गए हैं ज़रूरत हैं इन्हे समझकर आज के संदर्भ मे प्रयोग करने की जिससे सटीक परिणाम प्राप्त होते हैं |

आइए अब कुछ कुंडलियों का अध्ययन करते हुये अपने इन नियमो का प्रतिपादन करते हैं |

1)नेहरुजी की पत्रिका मे 2 घटनाओ की पुष्टि हमारे इन नियमो से होती हैं 28/2/1936 को उनकी पत्नी का स्वर्गवास हुआ था तब उनकी सूर्य मे शुक्र की दशा थी यह दोनों ग्रह आपस मे शत्रु हैं तथा कुंडली मे 2/12/ अक्ष पर हैं अंतर्दशानाथ शुक्र शनि द्वारा दृस्ट तथा पापकर्तरी मे हैं जिससे वह पत्नी हेतु कष्ट बता रहा हैं 15/2/1936 को जब सूर्य कुम्भ मे आया तब वह जन्मकालीन शनि की दृस्टी मे आ गया तथा कुछ दिनो बाद ही पत्नी की मृत्यु हो गयी यहाँ यह भी ध्यान दे की 28/2/1936 के दिन सूर्य शुक्र दोनों गोचर मे भी 2/12 अक्ष पर कुंडली के सप्तम अष्टम भाव मे थे
दूसरी घटना 20/10/1962 की हैं जिस दिन चीन ने भारत पर हमला किया दशा राहू मे बुध की थी राहू कुंडली मे द्वादश भाव मे मिथुन राशि का हैं व बुध तुला का चौथे भाव मे पापकर्तरी मे हैं सूर्य जैसे ही तुला राशि मे जन्मकालीन बुध के ऊपर आया तथा 20/10/1962 को चन्द्र राहू के ऊपर मिथुन राशि पर आया यह घटना हुयी जिससे नेहरुजी को काफी मानसिक परेशानी का सामना करना पड़ा |

2)जॉन केनेडी की पत्रिका मे अमरीकी चुनाव के समय 8/11/1960 को गुरु मे गुरु अंतर्दशा चल रही थी उस समय गुरु धनु राशि मे ही गोचर कर रहा था तथा नवांश मे ऊंच का था कुंडली मे गुरु सप्तमेश होकर अपने भाव से दशम गोचर कर रहा था वही अन्य दावेदार निक्सन की पत्रिका मे शनि मे शुक्र दशा चल रही थी शुक्र शनि से द्वादश गोचर कर रहा था तथा शनि पर मंगल की दृस्टी भी थी स्पष्ट रूप से केनेडी की विजय निश्चित थी |

अंत मे यह कहना चाहूँगा की ज्योतिष बहुत विशाल क्षेत्र हैं परंतु फिर भी यदि हम थोड़ा सा श्रम व शोध करे तो इसके कई रहष्य ज्ञात किए जा सकते हैं |     

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